
सोनपुर. छपरा जिले में गण्डकी और गंगा नदी के किनारे बसा एक शहर. बिहार की राजधानी पटना से करीब 50 किलोमीटर दूर. कार्तिक पूर्णिमा के दिन से अगले एक महीने तक यह शहर चर्चा में रहता है. वजह है - सोनपुर मेला. हर साल ठंड के दिनों में करीब एक महीने तक चलने वाला सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हुआ करता था.
इसका इतिहास मौर्य काल से शुरू होता है. लेकिन बदलते समय के साथ मेले का रंग-रूप और ढंग बदल चुका है. मेले की परिधि में पशु एक किनारे हो चुके हैं, केंद्र में है थिएटर. समय के साथ सोनपुर मेला की लोकप्रियता की वजह बदल चुकी है. कभी पशुओं की खरीद-बेच के लिए जाना गया मेला अब थिएटर के नाम पर लोगों को रिझा रहा है.
कौन सा थिएटर? वही, जिसके आर्टिस्ट होकर मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और पंकज त्रिपाठी सरीखे अभिनेताओं ने अभिनय में खुद को रंवा किया? जवाब है नहीं. फिर ये कौन-सा थिएटर है?
जवाब सोनपुर मेले के सबसे मशहूर थिएटर शोभा-सम्राट से जुड़े गब्बर सिंह देते हैं, “बहुत पहले थिएटर में अलग-अलग तरह के परफॉर्मेंस होते थे. अब ज्यादातर डांस होता है. दर्शक भी डांस प्रोग्राम ही देखते हैं, उसी के लिए आते हैं.” सोनपुर मेले में इस साल कुल 6 थिएटर लगे हैं. हर थिएटर में 60 से 80 महिला डांसर हैं.
सोनपुर मेले में थिएटर लगाने के लिए शोभा-सम्राट थिएटर ने 32 लाख रुपए की जमीन ली है. गब्बर कहते हैं, “3 करोड़ 80 लाख में मेले की ठेकेदारी मिली है. थिएटर के लिए 32 लाख रुपए की जमीन है. स्टॉल के लिए 31 हजार रुपए स्क्वायर फीट के हिसाब से जमीन दी गई है. 10 स्क्वायर फीट जगह के लिए 3 लाख 10 हजार रुपए देना पड़ा है स्टॉल वालों को. ये जो पैसा लगा है इन सब की कमाई का सबसे बड़ा जरिया है थिएटर.”
स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले इस मेले का मुखिया था पशु बिक्री. देश-दुनिया से लोग पशु-पक्षी खरीदने आते थे. लेकिन बाद के दिनों में पक्षियों की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगा दी गई. कई अलग-अलग पशु भी बिकने बंद हो गए. आज इस मेले में बमुश्किल हाथी, घोड़े, गाय और बैल बिकते हैं. इस गिरावट के साथ ही थिएटर का उठान हुआ और अब पूरी तरह से इस मेले की कमाई इसी पर निर्भर है.

शोभा-सम्राट थिएटर के गब्बर की उम्र 48 साल है. वे सोनपुर के ही रहने वाले हैं. गब्बर बताते हैं, “थिएटर देखने के लिए ही अब ज्यादातर लोग मेले में आते हैं. ठंड का दिन है तो मेले में जैकेट-कंबल जैसी चीजें बिकती हैं, वो भी लोकल. ऐसे सामान खरीदने के लिए तो कोई मेला नहीं ही आता है. ये सब तो बाजार में भी मिल जाते हैं. मेला आने वाली महिलाएं गंगा नहाने आती हैं. ज्यादातर पुरुष थिएटर देखने आते हैं.”
जब थिएटर की डिमांड और लागत इतनी है तो इसकी भरपाई दर्शकों को ही करनी पड़ती है. थिएटर में चार दरों के टिकट मिलते हैं. 400 रुपए, 600 रुपए, 800 रुपए और 1200 रुपए. स्टेज से दूरी बढ़ती जाती है और टिकट का दाम घटता जाता है. जो सबसे नजदीक बैठते हैं वो वीवीआईपी क्लास है, जिसके लिए 1200 रुपए का टिकट लगता है. सबसे पीछे नॉर्मल सीट है, जिसके लिए 400 रुपए देने होते हैं.
हर रोज़ रात में एक शो होता है. शो चलता है रात 9 बजे से अगली सुबह 5 बजे तक. इसमें अलग-अलग परफॉर्मेंस होते हैं. पहला परफॉर्मेंस ग्रुप डांस होता है. जिसमें एक साथ 20-25 महिला डांसर स्टेज पर आती हैं. इसकी वजह गब्बर समझाते हैं, “शुरुआती वक्त में टिकट बेचने के लिए एक साथ स्टेज पर ढेर सारे डांसर्स को उतारा जाता है. ताकि ज्यादा से ज्यादा पब्लिक जुटे. फिर अलग-अलग प्रोग्राम होने लगता है. हमारे पास कुल 60-80 डांसर्स होती हैं.”

रात चढ़ने के साथ-साथ थिएटर में भोजपुरी गानों की गूंज और दर्शकों की शांति बढ़ती जाती है. सोनपुर मेले में थिएटर की लानत-मलानत इस बात के लिए होती है कि यहां रात को अश्लीलता परोसी जा रही है. क्या वाकई यहां अश्लीलता का प्रदर्शन हो रहा है? नाम चाहे जो भी हो लेकिन ये विशुद्ध रूप से भोजपुरी के द्विअर्थी और छिछले गानों पर होने वाला ऑर्केस्ट्रा ही है. बिहार में ज्यादातर बारात के दौरान ऑर्केस्ट्रा देखने को मिलता है. ऑर्केस्ट्रा और मेले के थिएटर में स्टेज पर डांसर्स की संख्या का ही फर्क है.
शोभा-सम्राट थिएटर के गब्बर अश्लीलता के सवाल पर कहते हैं, “देखिए, पहले तो मोबाइल और इंटरनेट होता नहीं था, मनोरंजन का यही साधन था. अब सबके पास फोन है, इंटरनेट है. उसमें तो इससे ज्यादा अश्लीलता देखते हैं लोग. यहां तो जो कुछ है वो खुले तौर पर है. कुछ छिपा-छिपाया तो है नहीं. अब भोजपुरी गानों पर डांस होता है तो जैसा गाना रहता है उसी तरह से डांसर परफॉर्म भी करती हैं.”
गब्बर बताते हैं, “हमारे थिएटर में हर रोज़ 500 से 800 तक दर्शक आते हैं. शनिवार और रविवार को भीड़ ज्यादा होती है. इन दिनों में 1000 से 1200 तक दर्शक थिएटर में आते हैं. इसमें बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो सिर्फ ठहरने के लिए भी टिकट लेकर बैठ जाते हैं. सोनपुर मेले में आने वाले लोगों के रुकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. लोग दूर-दूर से आते हैं तो टिकट लेकर रात को थिएटर में ही रुक जाते हैं. उनका मनोरंजन भी हो जाता है.”

थिएटर में आने वाली भीड़ की एक वजह उसके डांसर भी हैं. सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली रील्स भी भीड़ को खींच ले आती हैं. एक उदाहरण हैं काजल. शोभा-सम्राट थिएटर की वायरल गर्ल. यूट्यूब पर सिर्फ ‘काजल डांसर’ लिखते ही सैकड़ो वीडियो और रील्स सामने आ जाती हैं. व्युअरशिप किसी भी वीडियो की लाख से कम नहीं है. गब्बर अपने थिएटर में आने वाली भीड़ के लिए काजल को श्रेय देते हैं.
दिल्ली से आने वाली काजल अपनी उम्र 19 साल बताती हैं. वे पिछले साल सोनपुर मेले में इस थिएटर के साथ जुड़ी थीं. यहीं से उनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. इस साल तो उन्हें देखने के लिए ही लोग पहुंचने लगे हैं. वे आज की तारीख में मेले और थिएटर की इस दुनिया में सबसे मशहूर हैं.
काजल के घर में मां हैं. चार भाई-बहनों में काजल सबसे बड़ी हैं. हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद दिल्ली के ही एक अस्पताल में नौकरी करती थीं. 10 हज़ार रुपए महीने की तनख्वाह मिलती थी. काजल कहती हैं, “पापा हैं नहीं, मम्मी हैं और 1 छोटी बहन और 2 छोटे भाई हैं. घर का खर्च नहीं चला तो थिएटर ज्वाइन कर लिया.”
शोभा सम्राट थिएटर के गब्बर सिंह ऑर्केस्ट्रा की दुनिया में काजल के आने की इस सीधी-सी कहानी के कुछ गिरहें खोलते हैं. वे कहते हैं, “दिल्ली में ये लोग बार में डांस करती हैं. इनका एजेंट होता है जो हमसे संपर्क कराता है. काजल हमसे पिछले साल के सोनपुर मेला में जुड़ी थी. अब फिर इस साल मेले में ही हमारे थिएटर में आई है. यहां इनाम और बाकी रुपया बहुत ज्यादा मिलता है जिसकी वजह से ये लोग आते हैं.”
क्या थिएटर के भीतर डांसर्स के साथ दर्शक अभद्रता भी करते हैं? “300 रुपए का टिकट लेकर आते हैं और समझते हैं कि मेरे ब्वॉयफ्रेंड हैं, पति हैं. इतनी हंसी आती है, कई तो कहते हैं शादी कर लो मुझसे. अपनी उम्र नहीं देखते ये लोग. मेरी उम्र के जिनके बच्चे होंगे वो भी ये कहने आ जाते हैं. मैं तो हंसकर टाल देती हूं.” शोभा सम्राट थिएटर की वायरल गर्ल काजल हंसते हुए ही ये बात कहती हैं लेकिन उनकी हंसी में सकुचाहट भी है और हिचकिचाहट भी. हालांकि स्टेज पर ये दोनों ही भाव उनके पांव नहीं रोकते, काजल पूरे मन से वो काम करती हैं जिसके लिए उन्हें थिएटर से पैसे मिलते हैं- डांस.
हर साल ही प्रशासन की कोशिश होती है कि थिएटर के शो बंद कर दिए जाएं लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगती है. इस बार भी मेले के शुरुआती एक हफ्ते तक थिएटर नहीं लगे. जिसका सीधा असर मेले पर दिखा. मेले के प्रबंधन से जुड़े एक शख्स बताते हैं, “एसपी साहब ने थिएटर पर रोक लगाया तो मेले में भीड़ ही नहीं दिखी. एक हफ्ते तक लगा ही नहीं कि सोनपुर का मेला लगा है. लोग आराम से बाइक लेकर आवाजाही कर रहे थे. लेकिन फिर हफ्ते भर बाद जब थिएटर शुरू हुआ तो हाल ये है कि मेले का एरिया जाम-पैक्ड हो गया है.”
थिएटर में डांस के नाम पर अश्लीलता से थिएटर के लोग भी इनकार नहीं करते और यहां पहुंच रहे दर्शक तो इसी ‘मनोरंजन’ के लिए जा रहे हैं. हालांकि वो इस अश्लीलता के आरोप से बचाव के लिए कई वजहें सामने रखते हैं.
मौर्य काल से चला आ रहा ये मेला अब अपने असल रूप को खो चुका है. जो कुछ बचा है वो थिएटर का ‘मनोरंजन’ है, जिससे मेले की भीड़ और कमाई दोनों चल रही है.