भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए अरविंद केजरीवाल का मुख्यमंत्री पद छोड़ना हैरानी की बात थी, लेकिन पार्टी नेताओं को उससे ज्यादा हैरानी और शायद मुश्किल तब पेश आई जब आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ से केजरीवाल की जगह आतिशी को मुख्यमंत्री चुना गया. दरअसल बीजेपी को लग रहा था कि जब जेल में रहते हुए केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया तो जेल से आने के बाद तो वे ऐसा कतई नहीं करेंगे.
अरविंद केजरीवाल शराब नीति के कथित घोटाले में तकरीबन छह महीने जेल में रहने के बाद 13 सितंबर को जमानत पर छूटे हैं. इसके दो दिन बाद ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा कर दी थी और 21 सितंबर को आतिशी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. दरअसल पहले बीजेपी ने विधानसभा चुनावों को लेकर जो रणनीति बनाई थी, उसमें सारी योजना दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के आसपास थी.
आतिशी के मुख्यमंत्री बनने के बाद बीजेपी के अंदर भी इस बात को लेकर चर्चा चल रही है कि तीन—चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व किसी महिला के हाथों में ही होना चाहिए. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि दिल्ली प्रदेश बीजेपी में अभी कोई ऐसे कद का नेता नहीं दिख रहा है, जो अरविंद केजरीवाल की चुनौती के सामने एक मजबूत विकल्प के तौर पर उभरे. पूर्व केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, विजय गोयल और जगदीश मुखी के सक्रिय राजनीति से दूर जाने के बाद बीजेपी ने दिल्ली प्रदेश की राजनीति में नया नेतृत्व विकसित करने के लिए लगातार प्रयोग किया है लेकिन पार्टी अब तक इसमें सफल नहीं हो पाई है. इन हालात में पार्टी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को आतिशी के मुकाबले चेहरा बनाने पर विचार कर रही है.
बीते रविवार यानी 22 सितंबर को पार्टी के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी की अध्यक्षता में प्रदेश बीजेपी की एक बैठक हुई थी. बताया जाता है कि इस बैठक में प्रदेश के नेताओं से पूछा गया था कि अगर स्मृति ईरानी चुनाव प्रचार का नेतृत्व करती दिखें तो इससे पार्टी को कितना लाभ हो सकता है. बैठक में शामिल सभी नेताओं ने इस बारे में अपनी—अपनी राय रखी थी.
बीजेपी के अंदर अलग—अलग स्तर पर स्मृति ईरानी को लेकर जो चर्चा चल रही है, उसमें एक बात को लेकर मोटे तौर पर सहमति दिख रही है. वो यह कि ईरानी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित करके उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाया जाए और प्रचार अभियान का नेतृत्व करती हुई वे दिखें. इसका मतलब यह हुआ कि बात नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की हो लेकिन जमीनी स्तर पर कमान पूर्व केंद्रीय मंत्री के हाथ में रहे और अगर बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में आई तो फिर मुख्यमंत्री पद के लिए ईरानी के नाम पर विचार हो.
ऐसा लगता है कि स्मृति ईरानी को भी इस बात का अहसास है कि उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनकी वापसी का मौका दिल्ली में ही है. इसलिए बीजेपी जो सदस्यता अभियान अभी चला रही है, उसमें उन्होंने दिल्ली में बढ़—चढ़कर हिस्सा लिया. बीजेपी ने सघन सदस्यता अभियान चलाने के लिए पूरी दिल्ली को 14 भागों में बांटा था. इनमें से सात के 'सुपरविजन' की जिम्मेदारी स्मृति ईरानी को दी गई. पार्टी के कुछ नेताओं का ये भी दावा है कि बीते दिनों उन्होंने दक्षिणी दिल्ली में एक मकान खरीदा है. इसे भी प्रदेश की राजनीति में ईरानी की संभावित सक्रियता से जोड़कर देखा जा रहा है.
स्मृति ईरानी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी का चेहरा बनाए जाने के पीछे पार्टी में आंतरिक स्तर पर कई तर्क दिए जा रहे हैं. पहला तो यही कि आतिशी के मुकाबले बीजेपी के पास एक महिला चेहरा होगा. दूसरी बात यह कही जा रही है कि केजरीवाल को उनके ही अंदाज में जवाब देने की क्षमता अगर किसी में है तो स्मृति ईरानी उनमें सबसे आगे हैं. तीसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि स्मृति ईरानी पहले भी दिल्ली के चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव लड़ी हैं और वे मूल रूप से दिल्ली की ही हैं. यहीं उनका परिवार रहा और यहीं उनकी पढ़ाई हुई. इस नाते कहा जा रहा है कि वे दिल्ली को समझती हैं और यहां के लोग भी उनसे जुड़ाव महसूस कर पाएंगे और बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है.
लेकिन इस राह में स्मृति ईरानी की सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश बीजेपी का संगठन है. प्रदेश बीजेपी के एक पदाधिकारी कहते हैं, ''यहां के ज्यादातर वरिष्ठ नेता इस पक्ष में नहीं हैंकि स्मृति ईरानी दिल्ली प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हों और नेतृत्व की भूमिका में आएं. किसी को उनके व्यवहार से समस्या है तो किसी को दिल्ली में बाहरी नेताओं की अक्सर होने वाली पैराशूट लैंडिंग से. प्रदेश के नेताओं को लगता है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने दिल्ली को बीजेपी की प्रयोगशाला बना दिया है. पिछले दस साल में ही देखें तो बाहर से लाकर मनोज तिवारी और किरण बेदी जैसे लोगों को दिल्ली में अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं.''
प्रदेश संगठन के इस रुख के बावजूद अगर बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने स्मृति ईरानी को ही आगे बढ़ाया तो क्या स्थानीय नेता उनका साथ देंगे? इस सवाल के जवाब में ये नेता कहते हैं, ''बीजेपी कार्यकर्ता आधारित पार्टी है. इस प्रस्ताव के खिलाफ प्रदेश के नेता अपनी बात उचित फोरम पर रख रहे हैं. फिर भी अगर शीर्ष नेतृत्व को लगा कि स्मृति ईरानी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ना है तो संगठन पूरी शक्ति से उनके साथ लगेगा. पहले भी हमने ऐसा किया है. लेकिन इतना तय है कि बेमन से काम करने से कार्यकर्ताओं के उत्साह में कमी तो आती है.”