राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र को अनौपचारिक बातचीत में जाटलैंड यानी जाट बहुल आबादी की बसाहट वाला इलाका कहा जाता है. सीकर, झुंझुनूं, चूरू और नागौर जिलों से मिलकर बने शेखावटी की खास बात है कि यह इलाका भारतीय सेना में सबसे ज्यादा जवान भेजता है.
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में चाहे देश और प्रदेश के लिए कुछ भी मुद्दे हों, लेकिन शेखावाटी में हर पार्टी सैनिकों और भूतपर्वू सैनिकों को साधने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती. यही वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में शेखावाटी में अन्य मुद्दों के साथ ‘अग्निवीर’ को लेकर सियासत गरमाई हुई है.
राजस्थान की 25 में से चार लोकसभा सीटें शेखावाटी में आती हैं. ये हैं- सीकर, झुंझुनूं, चूरू और नागौर. इन सीटों का हवाला देते हुए राजनीतिक विश्लेषक अशोक सिंह शेखावत बताते हैं, ‘‘नहर के पानी के अलावा इस बार अग्निवीर योजना को लेकर इस इलाके में सियासत काफी गरमाई हुई है. भाजपा के नेता सार्वजनिक मंचों पर अग्निवीर योजना का जिक्र करने से बचते नजर आते हैं वहीं कांग्रेस हर सभा में इस योजना को लेकर केंद्र सरकार को घेरती नजर आती है.’’
शेखावत के इस दावे में इसलिए भी दम नजर आता है क्योंकि यह अकेला इलाका है जहां से करीब साढ़े तीन लाख सैनिक और पूर्व सैनिक जुड़े हैं. सैनिकों और पूर्व सैनिकों के परिवारों के मतदाताओं की संख्या का ब्यौरा देखा जाए तो वह करीब 8-10 लाख के बीच ठहरता है.
केंद्र सरकार की ओर से पिछले दिनों राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार राजस्थान से सेना में एक लाख 10 हजार जवान कार्यरत हैं. इनमें से 90 फीसदी यानी, 80 हजार अकेले शेखावाटी क्षेत्र के हैं. वहीं इस इलाके से करीब दो लाख 60 हजार पूर्व सैनिक हैं. अलग-अलग मीडिया रिपोर्टों की मानें तो आजादी के बाद से अब तक शेखावाटी के 1210 जवान सरहदों पर लड़ते हुए अपनी शहादत दे चुके हैं. कारगिल युद्ध के बाद से अब तक शेखावाटी के 186 जवान शहीद हो चुके हैं. इनमें झुंझुनूं के 102, सीकर के 57 और चूरू के 27 जवान शामिल हैं. राजस्थान में अधिकांश सैन्य भर्ती शेखावाटी क्षेत्र से होती है. इन इलाकों के लगभग हर गांव के स्कूल का नाम स्थानीय शहीदों के नाम पर रखा गया है. हर गांव में शहीदों की मूर्तियां लगी हैं.
हालांकि, अग्निवीर योजना लागू होने के बाद से शेखावाटी के युवाओं का सेना में जाने का अनुपात कम हुआ है. वहीं बड़ी तादाद में ऐसे युवा भी हैं जो अग्निवीर भर्ती होने के बाद ट्रेनिंग के दौरान ही नौकरी छोड़कर अपने गांव आ गए. कांग्रेस अपनी रैलियों में इन युवाओं का जिक्र प्रमुखता के साथ करती है.
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो विधानसभा चुनाव में भी इस क्षेत्र में अग्निवीर के मुद्दे ने काफी असर दिखाया था. इसी का नतीजा रहा कि सीकर, झुंझुनूं, चूरू और नागौर जिलों के 30 विधानसभा क्षेत्रों में से 18 पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई जबकि भाजपा के खाते में इस क्षेत्र से महज 10 सीटें आई. एक सीट पर बसपा और एक पर निर्दलीय को जीत मिली.
चूरू लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में इस समय 5 पर कांग्रेस, 2 पर भाजपा और एक पर निर्दलीय का कब्जा है. इस बार भाजपा छोड़कर आए राहुल कस्वां को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं भाजपा ने पैरा ओलंपियन देवेंद्र झाझरिया पर दांव खेला है. राहुल कस्वां और उनके समर्थकों की कोशिश है कि मुकाबले को कस्वां बनाम राजेंद्र राठौड़ किया जाए जिससे जातीय वोटों के धु्वीकरण का फायदा मिल सके. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चूरू में अपनी सभा में मुकाबला देवेंद्र बनाम राहुल कस्वां करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पांच अप्रैल को इस सभा में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘चूरू के देवेंद्र के लिए दिल्ली से नरेंद्र आया है. आप सभी को विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करके देश का नाम रोशन करने वाले देवेंद्र का साथ देना है.’’
झुंझुनूं में पूर्व मंत्री और शेखावाटी के कद्दावर नेता रहे शीशराम ओला के बेटे बृजेंद्र ओला कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, जबकि भाजपा ने उनके सामने पूर्व विधायक शुभकरण चौधरी को मौका दिया है. बृजेंद्र ओला अभी झुंझुनूं विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. ओला सचिन पायलट के समर्थक माने जाते हैं. शुभकरण चौधरी के लिए सबसे बड़ी परेशानी भाजपा की आंतरिक कलह है.
सीकर में कांग्रेस ने गठबंधन के तौर पर यह सीट माकपा के अमराराम के लिए छोड़ी है जबकि भाजपा ने सांसद सुमेधानंद सरस्वती को फिर से मौका दिया है. अमराराम की छवि आंदोलनकारी और जननेता की रही है, इसलिए वे अपने संघर्ष के दम पर जनता के बीच जा रहे हैं. अमराराम की सभाओं में ‘लाल-लाल लहरावेलौ- अमरो दिल्ली जावैलो’ नारा खूब गूंज रहा है. अमराराम के समर्थन में पूरे जिले की कांग्रेस एकजुट है. उधर, भाजपा के सुमेधानंद सरस्वती राम मंदिर के मुद्दे को खूब भुना रहे हैं.
नागौर में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुईं ज्योति मिर्धा भाजपा की प्रत्याशी हैं वहीं कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन के तौर पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल के लिए छोड़ी है. ज्योति मिर्धा यहां से चार चुनाव लगातार हार चुकी हैं, ऐसे में उनके लिए यह चुनाव सियासी अस्तित्व का चुनाव बन गया है वहीं हनुमान बेनीवाल किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना के खिलाफ संसद में आवाज उठाने जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं.