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उत्तर प्रदेश : बागी हुए थे सात विधायक लेकिन सपा ने तीन को ही साइकिल से क्यों उतारा?

सपा ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में क्रास वोटिंग करने वाले मनोज पांडे, राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह को पार्टी से निकाल दिया है

 manoj pandey, rakesh pratap singh, abhay singh
सपा से बाहर किए गए विधायक (मनोज पांडे, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह (बाएं से दाएं)
अपडेटेड 24 जून , 2025

करीब डेढ़ साल पहले की एक घटना की धमक समाजवादी पार्टी (सपा) में अब सुनाई दे रही है. दरअसल फरवरी 2024 में राज्यसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी (सपा) के सात विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया था. अब 23 जून को पार्टी ने इनमें से तीन विधायकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. 

पार्टी ने इन विधायकों को समाजवादी लोकाचार के विपरीत "विभाजनकारी और सांप्रदायिक" विचारधारा का समर्थन करने के लिए पार्टी लाइन के खिलाफ जाने का दोषी माना है. सपा ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक पोस्ट में कहा कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी से निष्कासित किए गए नेताओं में अभय सिंह (अयोध्या जिले के गोसाईंगंज से विधायक), राकेश प्रताप सिंह (अमेठी में गौरीगंज) और पूर्व मुख्य सचेतक मनोज कुमार पांडे (रायबरेली में ऊंचाहार) शामिल हैं. 

पार्टी ने दावा किया कि शेष चार बागी विधायकों को उनके 'अच्छे व्यवहार' के कारण बख्श दिया गया है, जबकि निष्कासित किए गए तीन विधायकों के लिए भविष्य के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं. जिन चार लोगों को बख्शा गया है वे हैं: बिसौली विधायक आशुतोष मौर्य, कालपी विधायक विनोद चतुर्वेदी, चायल विधायक पूजा पाल और जलालपुर विधायक राकेश पांडे.  

तीन बार के विधायक 57 वर्षीय मनोज पांडे कैबिनेट मंत्री के साथ-साथ पार्टी के मुख्य सचेतक रह चुके हैं. वे कभी सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी भी माने जाते थे. उन्होंने अपने निष्कासन पर हैरानी जताई है. मनोज पांडे का कहना है, "मैं इस घटनाक्रम से हैरान हूं. सपा की ओर से किए गए ट्वीट (एक्स पोस्ट) से मुझे सपा चलाने वालों पर तरस आ रहा है. कोई पार्टी ऐसे व्यक्ति को कैसे निष्कासित कर सकती है जो एक लाख लोगों की भीड़ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो चुका है?" 

बाहुबली से नेता बने 50 वर्षीय अभय सिंह को एक अन्य बाहुबली-राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ​​राजा भैया का करीबी माना जाता है, जिन्होंने अपनी पार्टी जनसत्ता दल (लोक तांत्रिक) बना ली है. साथ ही, तीन बार विधायक रह चुके 48 वर्षीय राकेश प्रताप सिंह पिछले कुछ समय से सत्तारूढ़ दल भाजपा के समर्थन में दिखाई दे रहे हैं. गौरीगंज विधायक राकेश प्रताप सिंह ने अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैं बिल्कुल भी परेशान नहीं हूं, बल्कि मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं और जो सही है, वही बोलता रहूंगा. जब धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं या उनके साथ खिलवाड़ होता है, तो सपा कोई स्टैंड नहीं लेती. मैं सनातन के साथ हूं, मैं राम के साथ हूं, मैं देश के साथ हूं, लेकिन सपा के लोग इसका विरोध कर रहे हैं."  

फरवरी 2024 में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा के आठवें उम्मीदवार संजय सेठ ने क्रॉस वोटिंग के कारण जीत हासिल की थी. सपा के सिर्फ दो उम्मीदवार जया बच्चन और रामजीलाल सुमन जीते थे, जबकि तीसरे उम्मीदवार आलोक रंजन हार गए थे. मनोज पांडे ने सपा के मुख्य सचेतक के पद से उस दिन इस्तीफा दे दिया, जिस दिन राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान चल रहा था. बागी विधायकों ने यह भी आरोप लगाया था कि सपा नेतृत्व ने उन्हें यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के निमंत्रण पर अयोध्या में राम लला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी थी. 

बगावत के बाद इनमें से कुछ विधायकों ने राम मंदिर का दर्शन किया. इस बीच, निष्कासन से सपा के तीनों बागी विधायकों की विधानसभा सदस्यता पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है. विधानसभा सचिवालय के एक अधिकारी बताते हैं कि तीनों विधायकों को अब सदन में सपा का सदस्य नहीं माना जाएगा. उन्हें विधानसभा में सपा के बैठने वाले ब्लॉक के बाहर बैठने की व्यवस्था दी जाएगी. अधिकारी के मुताबिक सपा से निकाले गए विधायकों को असंबद्ध सदस्य माना जाएगा और सपा की व्हिप अब उन पर लागू नहीं होगी. हालांकि, उन पर दलबदल कानून लागू होगा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, अगर वे किसी अन्य पार्टी में शामिल होते हैं तो वे अयोग्य हो जाएंगे. मनोज पांडे भाजपा में शामिल हो गए हैं, अगर सपा विधानसभा सचिवालय में शिकायत लेकर जाती है तो कार्रवाई हो सकती है, ऐसा विधानसभा के नियमों की जानकारी रखने वाले अधिकारी बताते हैं. 

इसी साल 2 अप्रैल को भाजपा के राज्यसभा सांसद संजय सेठ के साथ सपा के बागी विधायक अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और विनोद चतुर्वेदी ने नई दिल्ली में वरिष्ठ भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. इसके बाद से सपा नेतृत्व ने इन नेताओं पर कड़ी कार्रवाई करने का मन बना लिया था. 

लेकिन सवाल यह उठता है कि सात विधायकों के बागी होने के बावजूद केवल तीन पर ही सपा ने कार्रवाई क्यों की? बाकी चार को पार्टी ने “अच्छे आचरण” का हवाला देकर क्यों बख्श दिया? राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ के जय नारायण डिग्री कालेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर ब्रजेश मिश्र बताते हैं, “तीन बागी विधायकों को पार्टी से निकालते वक्त सपा ने अपने आधिकारिक बयान में पार्टी के कार्यकर्ताओं को चेतावनी भी दी थी. पार्टी ने कहा था कि भविष्य में जनविरोधी नेताओं के लिए कोई जगह नहीं होगी और पार्टी की मूल विचारधारा के खिलाफ गतिविधियों को हमेशा अक्षम्य माना जाएगा. चूंकि मनोज पांडेय, राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह सपा के ही मूल नेता रहे हैं. इन पर कड़ी कार्रवाई करके सपा ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले दलबदल करने की मंशा रखने वाले पार्टी के नेताओं को सख्त संदेश देने की कोशिश की है.” 

ब्रजेश मिश्र के मुताबिक बाकी चार विधायकों में आशीष मौर्य को छोड़कर बाकी तीन सपा के मूल कार्यकर्ता नहीं रहे हैं. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले दलबदल कर सपा में आए थे. चूंकि राज्यसभा में क्रास वोटिंग के बाद इन चारों बागी विधायकों ने सपा के विरोध में कोई भी बयान नहीं दिया है. जिसे सपा नेतृत्व ने इन बागी विधायकों का पार्टी के प्रति सकारात्मक रवैया माना है. राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि पूजा पाल ( ओबीसी) और आशीष मौर्य (दलित) पर कार्रवाई न करके सपा ने अपनी पीडीए रणनीति भी जाहिर की है. 

हालांकि इनके साथ ही दो ब्राह्मण विधायकों पर भी कार्रवाई न करके ब्राह्मण मतदाताओं को भी साधने की कोशिश की गई है. सपा ने कई मौकों पर पीडीए में “ए” का मतलब “अगड़ा” भी बताया है. सपा ने वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने की घोषणा की है. ऐसे में रायबरेली के ऊंचाहार और अमेठी के गौरीगंज के विधायक के निष्कासन के बाद से कांग्रेस के गढ़ में सीट बंटवारे की राह भी असान होगी लेकिन इसका कितना फायदा इंडिया गठबंधन को होगा यह तो वर्ष 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. 

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