लखनऊ के हजरतगंज में मौजूद प्रधान डाकघर यानी जीपीओ के बगल में लगी सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा और इसके आसपास सफाई का काम अब तेजी पकड़ रहा है. 31 अक्टूबर को पटेल की 148वीं जयंती के मौके पर उनकी प्रतिमा राजनीतिक दलों की गतिविधियों का केंद्र बनेगी. दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सरदार पटेल की राजनीतिक विरासत पर दावा ठोंकने के लिए राजनीतिक दल हर संभव प्रयास में जुट गए हैं.
देश के पहले गृहमंत्री की कुर्मी पहचान की बात 2014 के आम चुनाव के पहले भाजपा ने जोरशोर से उठाई थी. उसके बाद से यह सिलसिला लगातार चलता रहा है और अब उत्तर प्रदेश में चुनावी रूप से महत्वपूर्ण कुर्मी वोट बैंक का राजनीतिक सुर्खियों का केंद्र बनना तय है. यह अलग बात है कि भाजपा इस मौके पर पहले की तरह ही 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के भव्य समारोह आयोजित करने जा रही है.भाजपा कुर्मी समाज को साधने के लिए एक बड़ी योजना पर भी काम कर रही है.
इसकी जिम्मेदारी पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को सौंपी गई है. इसके अलावा कुर्मी समाज से आने वाले अन्य मंत्रियों और विधायकों को भी दायित्व सौंपा गया है. पार्टी के बैनर तले जाति विशेष पर आधारित कार्यक्रम करने से बचते हुए भाजपा 'सरदार पटेल बौद्धिक विचार मंच' के जरिए कुर्मी समाज के बुद्धिजीवियों और युवाओं में पैठ बनाना चाहती है. इसी मंच के तले लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में एक बड़ा आयोजन करने की योजना भी तैयार की गई है.
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने यूपी में यादव वोट बैंक के सपा की ओर एकतरफा झुकाव से निबटने के लिए एक जैसी सामाजिक संरचना वाली पिछड़ी जातियों कुर्मी और मौर्य को अपने से जोड़ा था. सामाजिक न्याय समिति-2001 की रिपोर्ट के अनुसार यूपी की कुल पिछड़ी जातियों में यादवों की भागीदारी 19.40 प्रतिशत है तो कुर्मी 7.46 प्रतिशत हैं. कृषि पर आधारित एक जैसी सामाजिक संरचना वाली कुर्मी-सैंथवार पिछड़ी जाति को पटेल, गंगवार, निरंजन, सचान, कटियार, चौधरी और वर्मा जैसे उपनाम से जाना जाता है.
यूपी के 25 जिलों में कुर्मी समाज के मतदाता प्रभावी हैं. कुर्मी जातियां पूर्वांचल में मुख्य रूप से वर्मा, चौधरी और पटेल, कानपुर-बुंदेलखंड में पटेल, कटियार, निरंजन, सचान, रुहेलखंड में गंगवार और वर्मा, अवध और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वर्मा, चौधरी, पटेल के नाम से पहचाने जाते हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में कुर्मी मतदाताओं का भाजपा से कुछ अलगाव भी दिखा था जब सिराथु विधानसभा सीट से अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने सपा के टिकट पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव हरा दिया था.
बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, "वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में यह देखा गया कि कुर्मी मतदाताओं ने कुर्मी उम्मीदवारों को वोट दिया. पार्टी चाहे जो भी रही हो." 2022 के विधानसभा चुनाव में कुर्मी विधायकों की संख्या तो बढ़ी लेकिन भाजपा के कुर्मी विधायक घट गए. 2022 के विधानसभा चुनाव में कुल 41 कुर्मी विधायक चुनाव जीत कर आए जबकि 2017 में 37 कुर्मी विधायक जीते थे. 2017 में भाजपा के 26 और अपना दल (सोनेलाल) के 5 कुर्मी विधायक चुने गए थे लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कुर्मी विधायकों की संख्या घटकर 22 रह गई. अपना दल (सोनेलाल) के इस बार भी 5 कुर्मी विधायक जीते. वहीं सपा के कुर्मी विधायकों की संख्या 2017 में 2 से बढ़कर 2022 में 14 हो गई.
कुर्मी समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ही भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी भी सरदार पटेल के योगदान का आह्वान करने के लिए राज्यव्यापी सम्मेलन आयोजित करने वाली है. इसके लिए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम को जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं, सपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने किसानों के संकट को उजागर करते हुए राज्य सरकार को ज्ञापन भेजने के लिए सरदार पटेल की जयंती का मौका चुना है.
रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय के मुताबिक पार्टी यह बताएगी कि कैसे भाजपा ने एमएसपी के माध्यम से पर्याप्त मुआवजा और गन्ने का समय पर भुगतान नहीं कर किसानों को धोखा दिया है. कांग्रेस ने जाति जनगणना की अपनी मांग को उजागर करने के लिए लखनऊ में एक राज्य स्तरीय ओबीसी सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई है. इस तरह विपक्ष उस कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए हर मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है जिसे भाजपा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ाने में कामयाब रही है.