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बिहार : RJD के नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल कौन हैं; तेजस्वी ने उन पर दांव क्यों लगाया?

RJD के नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल धानुक जाति से ताल्लुक रखते हैं, जो अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में आती है

मंगनी लाल मंडल (फाइल फोटो)
मंगनी लाल मंडल (फाइल फोटो)
अपडेटेड 20 जून , 2025

बिहार लोकतंत्र के सबसे बड़े राजनीतिक उत्सव की तैयारी कर रहा है. अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में यहां पांच राजनीतिक दलों के मजबूत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के तेजस्वी यादव ने कमर कस ली है.

तेजस्वी यादव ने एक पुरानी रणनीति अपनाई है, जिसके तहत अगर आप अपने दुश्मनों को हरा नहीं सकते, तो उनके समर्थकों को अपने पक्ष में कर लें. इसी नीति के तहत इस बार RJD ने धानुक जाति से आने वाले अनुभवी समाजवादी नेता और पूर्व सांसद मंगनी लाल मंडल को अपना नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

मंगनी लाल मंडल की जाति बिहार में आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग यानी EBC वर्ग में आती है. ऐसे में 76 वर्ष की उम्र में मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राजद ने न सिर्फ उन्हें उनके जीवन भर की राजनीतिक यात्रा का इनाम दिया है, बल्कि उनके जरिए अति पिछड़ी जातियों के वोटों में सेंध लगाने की कोशिश भी की है.

2022 में हुए बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार की कुल आबादी में अति पिछड़ी जातियों में 112 जातियां शामिल हैं, जिन्हें EBC कहते हैं और इनकी आबादी 36.01 फीसद है.  

इसमें मंगनी लाल मंडल के समुदाय से आने वाले मंडल और धानुक समूह शामिल हैं. राज्य की आबादी में इनकी संख्या करीब 2.21 फीसद है. यह EBC वर्ग के अंतर्गत आने वाली 5 प्रमुख जातियों में से एक है. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि बिहार में धानुक को मंडल जाति का एक उप-समूह माना जाता है.

इनकी सबसे ज्यादा आबादी मधुबनी, सुपौल, पटना और नालंदा जैसे जिलों में केंद्रित है. इसके अलावा भी इनकी आबादी एक दर्जन से अधिक दूसरे जिलों में है. जब से सीएम नीतीश कुमार ने जनवरी 2006 में पंचायत निकायों में EBC के लिए 20 फीसद आरक्षण की शुरुआत की है, तब से ये समुदाय जनता दल (यूनाइटेड) के वोटबैंक बन गए हैं.

हालांकि, राजनीति परिवर्तनशील है और तेजस्वी अब नीतीश कुमार के प्रमुख समर्थक इस जाति को अपनी पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करके वे नीतीश कुमार के वोटबैंक में सेंध लगाना चाहते हैं.

इसे अक्टूबर और नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन की मजबूत रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है. RJD ने पिछले चार महीनों में ब्लॉक से लेकर जिला स्तर पर संगठनात्मक चुनाव के जरिए पार्टी के अधिकारियों की नियुक्ति की. क्षेत्रीय स्तर पर पार्टी के अधिकारियों की नियुक्ति पर प्रदेश कार्यालय से निगरानी की गई.

संगठन के इन अहम पदों पर नियुक्ति के समय औपचारिक प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखा गया. प्रत्येक जिले में यह सुनिश्चित किया गया कि इन पदों पर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और EBC समुदाय के नेताओं का प्रतिनिधित्व हो. इतना ही नहीं प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी केवल एक ही नाम का प्रस्ताव रखा गया.
 
पार्टी में बिना किसी विरोध के मंगनी लाल मंडल प्रदेश अध्यक्ष बने. वे औपचारिक रूप से एक ठाकुर नेता और लंबे समय से लालू प्रसाद के विश्वासपात्र रहे जगदानंद सिंह की जगह अब EBC समुदाय के मंगनी लाल मंडल ले रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक, जगदानंद सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष पद को छोड़ने के लिए इच्छा जाहिर की थी. इसके बाद ही मंडल को निर्विरोध पार्टी अध्यक्ष चुना गया. यह एक ऐसा फैसला है, जिसे EBC को लुभाने के लिए आरजेडी की तत्परता के तौर पर देखा जा रहा है.  

इस पद पर नियुक्ति के बाद आम लोगों को भले मंगनी लाल मंडल शायद एक अप्रत्याशित और बड़े नेता लगें. लेकिन, सच्चाई यह है कि वह कोसी और मिथिलांचल क्षेत्र में जन्मे और पले-बढ़े. उनकी राजनीति स्थानीय और जातिगत पहचान से गहराई से जुड़ी रही है. उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की, जो बिहार में सकारात्मक राजनीति के प्रणेता थे.

1986 में लोकदल के उम्मीदवार के रूप में वे विधान परिषद में चुने गए. करीब 18 साल तक वह विधान परिषद रहे. 1990 के दशक में RJD सरकार में मंत्री भी बने. एक ओर जहां लालू यादव और नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर उभरे, वहीं मंगनी लाल मंडल का प्रभाव क्षेत्रीय स्तर पर ही रहा. उनका अपने समुदाय और क्षेत्र में सम्मान था, लेकिन वे कभी प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर के नेता नहीं बन पाए.
 
2004 में मंगनी लाल मंडल ने नीतीश कुमार की JDU में शामिल होकर एक नया अध्याय शुरू किया. JDU ने उन्हें तुरंत राज्यसभा भेजा. पांच साल बाद 2009 में उन्होंने JDU के टिकट पर झंझारपुर लोकसभा सीट जीती. लेकिन, इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी बदलने का फैसला लिया.

वे फिर से RJD में लौटे और 2019 के चुनावों से ठीक पहले दोबारा से JDU में चले गए और वहां राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने. हर बार पार्टी बदलने से उन पर अवसरवादी होने के आरोप लगे, लेकिन एक बात स्पष्ट रही कि तमाम राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद मंगनी लाल मंडल EBC समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक बने रहे.

RJD के लिए मंगनी लाल मंडल की प्रासंगिकता अब सबसे बड़ी ताकत बन गई है. पार्टी जानती है कि बिहार के चुनाव में केवल मुस्लिम (17.7 फीसद) और यादव (14.26 फीसद) वोटरों के दम पर जीत नहीं मिल सकती है. इसलिए, RJD ने एक रणनीति बनाई है, जिसमें अलग-अलग समुदायों को जोड़कर INDIA गठबंधन को आगामी विधानसभा चुनाव में बढ़त दिलाई जा सके.

अगर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी दोनों गठबंधनों के वोट काटने में सफल रही, तो बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है. इससे NDA और INDIA गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल करने में मुश्किल होगी. ऐसी स्थिति में RJD को NDA के साथ सीधे मुकाबले से बाहर निकलकर फायदा उठाने का मौका मिल सकता है.

हालांकि, जन सुराज का स्थानीय स्तर पर असर कितना असर है, इसके लेकर ज्यादा कुछ कह पाना मुश्किल है. बिहार में इसकी रणनीति भी अप्रत्याशित है और साथ ही इसका जमीनी संगठन अभी शुरुआती दौर में है. ऐसे में जन सुराज RJD के वोट को नहीं काट पाए, इसलिए उसे अपने मजबूत क्षेत्रों को और मजबूत करने की जरूरत है.

मंगनी लाल मंडल को अध्यक्ष बनाकर RJD ने न सिर्फ समावेशी होने का संदेश दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि वह सिर्फ यादवों को नहीं बल्कि सबसे हाशिए पर मौजूद जातियों को भी अपने साथ लेकर चलना चाहती है.

अपनी निर्विरोध नियुक्ति पर मंडल ने एक अनुभवी नेता की तरह विनम्रता दिखाई है. उन्होंने पत्रकारों से कहा, “यह मेरे लिए बड़ा सम्मान है. चुनावी साल में यह एक चुनौती और जिम्मेदारी है. मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का इस भरोसे के लिए आभार मानता हूं.”

उनके शब्द सतर्क हैं, लेकिन इनमें वह आत्मविश्वास झलकता है, जो दशकों तक सत्ता के गलियारों में काम करने से आता है. उनकी विनम्रता के पीछे चुनावी रणनीति की गहरी समझ है. वोटों की छोटी-छोटी गणना, मतदाता समूहों को जोड़ने की कला और बूथ स्तर पर गठबंधन बनाने का अनुभव, RJD के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

RJD के एक वरिष्ठ नेता ने साफ कहा, “मंगनी लाल मंडल हमारा सबसे भरोसेमंद EBC चेहरा हैं. उनकी नियुक्ति से यह संदेश जाता है कि RJD अब A से Z तक की राजनीति करती है.” यह समावेशिता का संदेश है, जिसमें कोई भी जाति या समुदाय बाहर नहीं है.  बिहार में, जहां एक ओर नेताओं की वफादारी वोटों के अंतर और मतदान प्रतिशत से मापी जाती है, वहां मंगनी लाल मंडल जैसे पुराने नेता को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला ट्रेंड से हटकर एक तरह से निर्णायक संदेश दे सकता है.

अक्टूबर में जब चुनाव शुरू होंगे और गांवों के चौराहों पर लाउडस्पीकरों के साथ-साथ लोग हाथों में तख्तियां लेकर अपने पसंदीदा नेता का समर्थन करेंगे, तब जमीनी रणनीति ही INDIA गठबंधन को हराएगी या जीत दिलाएगी.

कई ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब विधानसभा चुनाव के दौरान या उसके बाद ही मिलेगा. क्या मंगनी लाल मंडल की मौजूदगी उनके सफेद बाल और टोपी के नीचे चमक EBC समुदाय को RJD के पीछे लामबंद कर पाएगी? क्या वे अपनी शांत चाल और वाकपटुता के साथ अपनी व्यक्तिगत साख को सामूहिक गोलबंदी में बदल पाएंगे? ये भी तभी साफ होगा कि तेजस्वी की यह चाल बिहार के चुनावी समीकरण को बदल पाई या सिर्फ पुरानी विभाजन रेखाओं को फिर से जोड़-तोड़ कर रही है?

फिलहाल, मंडल की नियुक्ति तेजस्वी का RJD की अनौपचारिक कमान संभालने के बाद सबसे साहसिक कदम है. यह समाजवादी नेताओं की छवि को युवा महत्वाकांक्षा के साथ जोड़ता है और पार्टी को उस समुदाय पर दावा करने का मौका देता है, जो कभी उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी की राजनीति का आधार माना जाता था.

मंडल का यह पद सिर्फ औपचारिक नहीं है. यह एक ऐसे चुनावी मुकाबले में नया हथियार है, जहां हर जाति, हर समुदाय और हर वोट को रणनीतिक रूप से देखा जाता है. बिहार में रणनीति कोई किताबी बात नहीं, बल्कि रोजमर्रा का काम है.  

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