तेलंगाना विधानसभा के लिए दो सीटों को छोड़कर बाकी 117 सीटों के नतीजे आ गए हैं. यहां बहुमत का आंकड़ा 60 है जिसे कांग्रेस ने पार कर लिया है. कांग्रेस ने 64 सीटों पर जीत हासिल की है. वहीं, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने 38 सीटों पर विजय प्राप्त की है और एक सीट पर आगे चल रही है.
तेलंगाना के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 19 सीटें मिली थीं. तब सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस (अब भारत राष्ट्र समिति या बीआरएस) ने 88 सीटें जीतकर जबर्दस्त बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. लेकिन इस बार के चुनाव में पासा पलटता दिख रहा है.
बीआरएस बैकफुट पर नजर आ रही है. इसके पीछे जिम्मेदार जिस नाम की खूब चर्चा हो रही है वो हैं - रेवंत रेड्डी. अनुमुला रेवंत रेड्डी. तेलंगाना कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष. आइए इनके बारे में और जानते हैं.
मुश्किल भरा रहा है निजी और राजनीतिक सफर
आंध्र प्रदेश के महबूबनगर में साल 1969 में जन्मे रेवंत रेड्डी छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे. दिलचस्प बात है कि वे शुरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से इसकी शुरुआत की थी. ओस्मानिया विश्वविद्यालय से फाइन आर्ट्स में बैचलर की उपाधि हासिल करने के बाद रेवंत खुद का प्रिंटिग प्रेस चला रहे थे. इसी दौरान उन्हें वरिष्ठ कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके जयपाल रेड्डी की भतीजी (गीता रेड्डी) से प्रेम हो गया. वे दोनों नागार्जुन सागर बांध के समीप एक 'वोट राइड' के दौरान मिले थे. हालांकि रेवंत के स्टेटस को देखते हुए इस रिश्ते के लिए शुरू में गीता का परिवार राजी नहीं था. रेवंत ने इस मुश्किल को किसी तरह संभाला और 1992 में शादी के बाद वे सक्रिय राजनीति में कूद पड़े.
जब रेवंत 'चतुर' रेड्डी ने तिकड़म से जीता जिला परिषद् चुनाव
साल 2004 में तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ जब रेवंत जुड़े हुए थे तो उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी कलवाकुर्थी सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सीट-शेयरिंग फार्मूले के तहत वह सीट कांग्रेस को दे दी गई. इसके बाद 2006 में रेवंत ने जिला परिषद् चुनाव के लिए भाग्य आजमाने की सोची. लेकिन यह भी एक कठिन चुनौती थी. उनके सामने थे- सांकीरेड्डी जगदीश्वर रेड्डी. एक दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी. रेवंत ने तिकड़म सोची. उन्होंने मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए इलाके में कई और जगदीश्वर रेड्डी बतौर निर्दलीय खड़े किए. तिकड़म काम कर गई और रेवंत 20 से भी कम वोटों से चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
2009 में तेलुगु देशम पार्टी से विधायक बने
बाद में रेवंत रेड्डी ने चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी ज्वाइन कर ली और कोडांगल विधानसभा सीट से साल 2009 और 2014 का विधानसभा चुनाव जीता. साल 2014 में वे तेलंगाना विधानसभा में टीडीपी के सदन के नेता चुने गए. लेकिन 2009 का वाक्या दिलचस्प है. चंद्रबाबू नायडू ने रेवंत को आखिरी समय में चुनाव लड़ने के लिए कहा. रेवंत को इस सीट का कोई आइडिया नहीं था लेकिन वे जानते थे कि ये एक बड़ा मौका हो सकता है. रेवंत ने जी-तोड़ मेहनत की और परिणाम जब आया तो उन्होंने वह सीट करीब 7000 वोटों से अपने नाम कर ली थी.
साल 2015 में रेवंत का ग्राफ नीचे लुढ़का
साल 2015 रेवंत रेड्डी के लिए किसी बुरे सपने जैसा रहा. उन्हें कैश-फॉर-वोट मामले में गिरफ्तार कर लिया गया. एक टेप में उनपर कथित तौर पर एक विधायक को घूस देने का आरोप लगा जिसमें वो विधायक को एमएलसी चुनाव में वोटों को प्रभावित करने के लिए राजी कर रहे थे. रेवंत को इसके लिए जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी. रेवंत ने साल 2017 में कांग्रेस ज्वाइन की. लेकिन साल 2018 में उन्हें एक और झटका लगा. केसीआर के विधानसभा भंग करने के बाद इसी साल चुनाव हुए. रेवंत को टीआरएस उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा.
2019 लोकसभा चुनाव से वापसी और अब भावी मुख्यमंत्री का सफर
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रेवंत को मलकाजगिरी से टिकट दिया. रेवंत ने पार्टी को निराश नहीं किया और 10,919 वोटों से जीत दर्ज की. इस बीच वो पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे थे और केसीआर (के. चंद्रशेखर राव) को यह अनुभव करा रहे थे कि वे उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित होंगे. पार्टी ने भी उनपर विश्वास करते हुए साल 2021 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. आज जब तेलंगाना अगले पांच साल के लिए अपना भविष्य तलाश रहा है, रेवंत मशाल धारक के तौर पर सामने आ रहे हैं.
केसीआर से ले रहे हैं सीधी टक्कर
2023 के विधानसभा चुनाव में रेवंत रेड्डी अपनी पारंपरिक कोडांगल सीट के अलावा कामारेड्डी सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. कामारेड्डी में उनका मुकाबला सीधे मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव से है. कामारेड्डी केसीआर की जन्मभूमि भी है. और वर्तमान चुनाव में यह सीट हॉटस्पॉट बनी हुई है. 2 बजे तक के रुझानों के मुताबिक, इस सीट से रेवंत आगे चल रहे हैं. यानी केसीआर, जिनका राजनीति के क्षेत्र में अनुभव 40 साल से भी ज्यादा है, अपने से आधे अनुभवी रेवंत रेड्डी के साथ कशमकश अनुभव कर रहे हैं.