
फरवरी की 20 तारीख को दोपहर साढ़े 12 बजे के करीब रेखा गुप्ता ने दिल्ली की नौंवी और चौथी महिला मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. वसंत की हल्की तीखी धूप में दिल्ली के रामलीला मैदान में उमड़ी खचाखच भीड़ के बीच उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. रेखा गुप्ता के साथ छह मंत्रियों ने भी शपथ ली. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 27 सालों के बाद दिल्ली की सत्ता में धमाकेदार वापसी की है. हालिया संपन्न चुनाव में पार्टी को कुल 70 में से 48 विधानसभा सीटों पर जीत मिली. नई सीएम रेखा गुप्ता शालीमार बाग से विधायक चुनी गई थीं. वे पहली बार की विधायक हैं लेकिन बीजेपी ने उन्हें प्रदेश का सीएम बनाकर अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है.
बेशक दिल्ली में बीजेपी ने धमाकेदार जीत दर्ज की है, लेकिन उसकी सरकार के लिए प्रदेश की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना इतना आसान नहीं होगा. बीजेपी ने दिल्ली चुनावों के समय महिलाओं को भत्ते से लेकर यमुना की सफाई जैसे कई बड़े वादे किए थे. अब जबकि पार्टी सरकार बना चुकी है तो उसके पास काम करने की पूरी क्षमता भी है. लेकिन नई सरकार के सामने कई चुनौतियां भी होंगी, जिनमें अव्वल तो चुनावी वादों को पूरा करना ही है. इसके अलावा, इनमें प्रदेश के वित्त का प्रबंधन और राष्ट्रीय राजधानी के बुनियादी ढांचे का विकास जैसे मुद्दे भी शामिल हैं.
आइए ऐसी ही पांच बड़ी चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं :
1. महिलाओं के लिए किए गए चुनावी वादे को पूरा करना
दिल्ली चुनावों के समय बीजेपी के सबसे बड़े चुनावी वादों में से एक यह था कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो वह हर महीने पात्र महिला लाभार्थियों को 2500 रुपये देगी. पार्टी ने कहा था कि सरकार बनने के बाद 8 मार्च (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस) तक वह महिलाओं के खाते में 2500 रुपये की पहली किस्त जारी कर देगी.
चुनावों के वक्त पीएम मोदी ने अपने एक भाषण में कहा, "हमने अपनी बहनों को 2,500 रुपये (प्रति माह) देने का संकल्प लिया है. यह गारंटी पूरी होगी क्योंकि यह मोदी की गारंटी है. आप देखेंगे कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बनेगी और 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के खातों में पैसे मिलने लगेंगे."
दिल्ली में हालिया संपन्न चुनाव में चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार महिला वोटरों ने बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाई. महिलाओं का वोट फीसद 60.92 फीसद रहा, जबकि पुरुषों में यह 60.21 फीसद था. अपने मैनिफेस्टो में बीजेपी ने 'मातृ सुरक्षा वंदना' योजना का वादा किया, जो सभी गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण किट और 21,000 रुपये की गारंटी देती है. इसके अलावा, पार्टी ने 'महिला समृद्धि योजना' के तहत 2,500 रुपये हर महीने कैश ट्रांसफर का भी वादा किया था.
अब जबकि रेखा गुप्ता सीएम पद की शपथ ले चुकी हैं, ऐसे में अगले कुछ हफ्तों में इस वादे को पूरा करने के लिए उचित व्यवस्था बनाना बीजेपी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. नई सरकार को कुछ ही दिनों में नए वित्तीय वर्ष के लिए बजट भी तैयार करना होगा, जिसमें महिलाओं की खातिर इन योजनाओं के लिए बजट आवंटन तो होगा ही, साथ ही इसमें गर्भवती महिलाओं के लिए भी 21,000 रुपये का वादा शामिल होगा.

2. यमुना की सफाई
दिल्ली चुनाव में 8 फरवरी को पार्टी की शानदार जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी मुख्यालय में अपने विजय भाषण की शुरुआत और अंत 'यमुना की जय' के नारे से किया था. यह इस बात को बताता है कि बीजेपी यमुना की सफाई को कितना अहमियत देती है. लेकिन सवाल वही पुराना ही है कि पार्टी नारों से आगे बढ़कर जमीन पर वास्तविक बदलाव कैसे ला पाएगी?
2015 से हर विधानसभा चुनावों में यमुना की सफाई एक अहम चुनावी मुद्दा बना है, और दिल्ली में हर सरकार ने यमुना को स्वच्छ बनाने का वादा किया है. 2015 में 'आप' ने वादा किया था कि दो साल के भीतर नदी इतनी साफ हो जाएगी कि उसमें डुबकी लगाई जा सके.
लेकिन दस साल बाद भी सीवेज, अवैध उद्योगों का कचरा व गंदगी यमुना में जा रही है और नदी के किनारे अनधिकृत कॉलोनियों जैसी चुनौतियों का समाधान नहीं हो पाया है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि यमुना में अधिकांश प्रदूषक तब जुड़ते हैं जब नदी दिल्ली से होकर गुजरती है.
पिछली कोई भी सरकार, चाहे वो कांग्रेस हो या आप, इस मुद्दे से सफलतापूर्वक नहीं निपट पाई है. इस बार के दिल्ली चुनावों में भी यमुना में प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा था. बीजेपी ने वादा किया कि वह यमुना की सफाई के लिए ऐसा काम करेगी जो न तो कांग्रेस और न ही आप अपनी सरकारों में कर सकी. लेकिन क्या वाकई बीजेपी यह काम पूरा कर सकती है? जाहिर है इसके लिए नई सरकार को ऐसी प्रभावी रणनीति बनानी होगी जो पिछली सरकारें नहीं बना पाईं.
3. वित्त प्रबंधन
दिल्ली चुनावों के समय बीजेपी ने कहा था कि वो सत्ता में आने के बाद 'आप' की पुरानी योजनाओं (उदाहरण - मुफ्त बिजली, पानी) को बहाल रखेगी. साथ ही, पार्टी ने अपनी भी कई मुफ्त योजनाओं का वादा किया था. हालांकि, इन कल्याणकारी योजनाओं के साथ एक महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ भी आता है, जो कि लगभग 10,000 करोड़ रुपये है. यह दिल्ली के शिक्षा बजट का लगभग 60 फीसद है. अगर कल्याणकारी सब्सिडी की लागत में बढ़ोत्तरी ऐसे ही जारी रहती है, तो दिल्ली सरकार को भारी राजस्व घाटे का सामना करना पड़ सकता है.
पिछले आंकड़ों से पता चला है कि दिल्ली का रेवेन्यू सरप्लस घटकर 4,966 करोड़ रुपये रह गया है, जो पिछले साल के 14,457 करोड़ रुपये का सिर्फ एक तिहाई है. भारतीय रिजर्व बैंक के एनालिसिस से पता चलता है कि 2013-14 में दिल्ली सरकार ने राज्य के बजट का 1.1 फीसद पूंजीगत व्यय के लिए आवंटित किया था. 2023-24 तक यह व्यय अनुपात घटकर 0.8 फीसद रह गया है और अगर मौजूदा रुझान जारी रहा तो चालू वित्त वर्ष में इसके और घटकर 0.5 फीसद रह जाने का अनुमान है.
जब 'आप' सत्ता में थी, खासकर अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी दो सालों में, तब वित्त विभाग ने दिल्ली की फाइनेंशियल हेल्थ को लेकर कई बार चिंता जताई थी. चुनाव से पहले 'आप' सरकार ने केंद्र की लघु बचत कोष से 10,000 करोड़ रुपये का उच्च ब्याज दर वाला लोन मांगा था. वित्त विभाग ने पिछले सालों से कई बार सब्सिडी पर सरकारी खर्च को लेकर लाल झंडी दिखाई है. ऐसे में नई बीजेपी सरकार के सामने ये चुनौती होगी कि इन कल्याणकारी योजनाओं को किस तरह संभाला जाए कि रेवेन्यू सरप्लस नीचे न जाए और सारे चुनावी वादे भी पूरे हों.
4. नागरिक सुविधाओं को दुरुस्त करना
ओवरफ्लो हो रहे सीवेज और कूड़े से भरी सड़कें अरविंद केजरीवाल सरकार के साथ दिल्लीवासियों की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक थीं. 'आप' अक्सर यह दावा करके अपना बचाव करती रही कि केंद्र दिल्ली सरकार के साथ सहयोग नहीं कर रहा है और उसके साथ गलत व्यवहार कर रहा है.
पिछली 'आप' सरकार ने कई बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं के ठप होने के लिए नौकरशाहों और उपराज्यपाल के कार्यालय के प्रतिकूल रवैये को जिम्मेदार ठहराया था. इनमें सड़क पुनर्विकास और कचरा संग्रहण बुनियादी परियोजनाओं में से थे. ऐसे में बीजेपी ने अपने चुनावी अभियानों में 'डबल इंजन सरकार' के लाभों पर जोर दिया.
अब जबकि पार्टी केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सत्ता में है और नगर निगम में भी बढ़त बनाए हुए है, रेखा गुप्ता प्रशासन के सामने अपने वादों को पूरा करने की चुनौती है. नई सरकार को अपने बजट में शहरी विकास के लिए एक बड़ा आवंटन अलग रखना होगा, जिसमें सड़क की मरम्मत और रखरखाव, फ्लाईओवर और लैंडफिल पर कूड़े के पहाड़ को हटाना शामिल है.
5. साफ हवा, पानी और बिजली और लॉ एंड ऑर्डर
दिल्ली में वायु प्रदूषण, साफ पानी की नियमित आपूर्ति और 24 घंटे बिजली कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो हर चुनावों में मुद्दे बनते हैं. खासकर वायु प्रदूषण, जो पराली जलाने, वाहनों से निकलने वाले धुएं और औद्योगिक प्रदूषण के कारण हर सर्दियों में और भी बदतर हो जाता है. पिछली 'आप' सरकार खतरनाक वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के स्तर को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष करती रही, जो अक्सर गंभीर श्रेणी में पहुंच जाता था.
नई सरकार को दिल्ली की एयर क्वालिटी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए हरित क्षेत्र का विस्तार, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार जैसे दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
वायु प्रदूषण के अलावा दिल्ली में पानी की कमी और अनियमित बिजली आपूर्ति लंबे समय से चली आ रही समस्या है. शहर के कई हिस्सों में अनियमित जल आपूर्ति की समस्या बनी हुई है, जो यमुना नदी के प्रदूषण के कारण और भी बदतर हो गई है. बीजेपी ने स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की कसम खाई है, लेकिन इसकी निरंतर उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक मुश्किल चुनौती होगी.
राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा और अपराध दर भी एक बड़ी चिंता बनी हुई है. इससे पहले, 'आप' सरकार ने किसी भी सुरक्षा विफलता के लिए दिल्ली पुलिस (जो केंद्र को रिपोर्ट करती है) को दोषी ठहराया था. हालांकि, अब प्रदेश में बीजेपी की डबल इंजन की सरकार बनने के बाद अब उसे किसी बाहरी प्राधिकरण को दोष नहीं देना पड़ेगा.
बहरहाल, इंडिया टुडे ने जब नई सीएम रेखा गुप्ता से बतौर सीएम इन चुनौतियों के बारे में पूछा तो उनका जवाब था, "शासन में नीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति दो महत्वपूर्ण कारक हैं. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमारी नीति और नीयत दोनों ही स्पष्ट हैं. प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में दिल्ली के सभी 48 बीजेपी विधायक हमारी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और दिल्ली की जनता के जीवन में वास्तविक बदलाव लाने के लिए अथक प्रयास करेंगे."