अयोध्या में वह पल करीब है जिसका इंतजार देशभर के करोड़ों लोगों ने पीढ़ियों तक किया. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने घोषणा की है कि मुख्य राम मंदिर और उसके परिसर में छह छोटे मंदिरों का निर्माण कार्य पूरा हो गया है. 25 नवंबर को शिखर पर ध्वज फहराने की परंपरा के साथ इसे औपचारिक रूप से पूर्ण घोषित किया जाएगा.
27 अक्टूबर को ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने जानकारी दी कि अयोध्या में मुख्य राम मंदिर के साथ-साथ शिव, गणेश, हनुमान, सूर्य, भगवती, अन्नपूर्णा और शेषावतार को समर्पित छह मंदिरों का काम पूरा हो चुका है. परिसर में झंडे के खंभे और कलश लगा दिए गए हैं. सप्त मंडप, जो ऋषि वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, शबरी और अहल्या को समर्पित है, भी बनकर तैयार हैं.
संत तुलसीदास के मंदिर, ‘जटायु’ और ‘गिलहरी’ की मूर्तियों की स्थापना के साथ आगंतुकों के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माण भी पूरा हो गया है. राय के मुताबिक़, बाकी जो काम चल रहे हैं, वे जनता से सीधे संबंधित नहीं हैं, जैसे 3.5 किलोमीटर लंबी चारदीवारी, ट्रस्ट कार्यालय, गेस्ट हाउस और ऑडिटोरियम. सड़क निर्माण और पत्थर की फर्श लगाने का काम एल एंड टी कर रही है, जबकि हरियाली और पंचवटी प्रोजेक्ट (10 एकड़ क्षेत्र में) जीएमआर समूह संभाल रहा है.
25 नवंबर : झंडा फहराने की तैयारी
ट्रस्ट 23 से 25 नवंबर तक तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करेगा. संभावन है कि अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिखर ध्वज फहराएंगे. मंदिर निर्माण समिति के चेयरमैन नृपेंद्र मिश्र के मुताबिक अब तक 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का दान मिल चुका है, जिसमें से 1,500 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. शेष काम पूरा होने तक यह आंकड़ा करीब 1,800 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है. मिश्र के मुताबिक ध्वज फहराने की रस्म के लिए सेना की मदद ली जाएगी क्योंकि ध्वज का आकार और वज़न दोनों असाधारण हैं.
ध्वज का वज़न 11 किलो और चौड़ाई 22 फीट है, जबकि खंभा 11 फीट ऊंचा होगा. सेना के अधिकारियों ने मौके पर जाकर निरीक्षण किया है और रिहर्सल शुरू हो गई है. ध्वज पर दो प्रतीक होंगे, कोविदारा का पेड़, जो अयोध्या के प्राचीन राज्य का प्रतीक है, और इक्ष्वाकु वंश का प्रतीक, जो भगवान राम का वंश है. ट्रस्ट इस बार समारोह में ‘समरसता’ की थीम पर काम कर रहा है. मिश्र के मुताबिक लगभग 6,000 मेहमानों को बुलाया गया है और ट्रस्ट उन लोगों को भी आमंत्रित करने पर विचार कर रहा है जिन्होंने 2022 के बाद मंदिर निर्माण में दान दिया. यानी यह कार्यक्रम सिर्फ़ बड़े दानदाताओं या राजनीतिक हस्तियों का नहीं होगा, बल्कि स्थानीय समाज और आम लोगों की भागीदारी पर ज़ोर दिया जाएगा. चंपत राय के अनुसार, “हम चाहते हैं कि यह आयोजन सिर्फ़ एक धार्मिक घटना न रहे, बल्कि समाज के हर वर्ग की साझेदारी का प्रतीक बने.”
यह प्रयास उस धारणा को संतुलित करने का है कि मंदिर आंदोलन मुख्य रूप से एक राजनीतिक परियोजना था. इसके अलावा इसके राजनीतिक पहलू भी हैं. पिछले वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राममंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में विपक्ष ने सभी वर्गों और खासकर दलित बिरादरी के आयोजन से दूर रहने को मुद्दा बनाया था. लोकसभा चुनाव में भी इंडिया गठबंधन के दलित प्रत्याशी अवधेश प्रसाद ने BJP उम्मीदवार लल्लू सिंह को हराकर फैजाबाद सीट जीती थी. अब इसी नुकसान की भरपाई के लिए अयोध्या का राममंदिर ट्रस्ट 25 नवंबर को होने वाले समारोह में समाजिक समरता की झांकी पेश करना चाहता है.
राजनीति, व्यापार और प्रतीक का संगम
राम मंदिर लंबे समय से भारतीय राजनीति के केंद्र में रहा है. 1990 के दशक में यह मुद्दा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की राजनीति की धुरी बना. आज, जब मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया है, तो यह न केवल BJP के लिए, बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक नया अध्याय खोलता है. राजनीतिक विश्लेषक प्रो. संजय कुमार कहते हैं, “राम मंदिर BJP के लिए केवल चुनावी नहीं, बल्कि वैचारिक पूंजी भी है. निर्माण पूरा होने के बाद अब सवाल यह होगा कि BJP इस प्रतीक को विकास, संस्कृति और राष्ट्रीय गौरव की कथा में कैसे पिरोती है.”
राम मंदिर के इर्द-गिर्द अयोध्या एक धार्मिक नगर से एक स्मार्ट-टूरिज्म सिटी में बदल रही है. रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, चौड़ी सड़कों और नए होटल श्रृंखलाओं के साथ यह शहर उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिकता सूची में है. बीते पांच वर्षों में अयोध्या में 3000 करोड़ से अधिक की योजनाएं आकार ले चुकी हैं. योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अयोध्या में हवाई अड्डे, धाम परिक्रमा मार्ग, सरयू तट सौंदर्यीकरण और ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए हैं. अयोध्या के प्रतिष्ठित साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य वी. एन. अरोड़ा बताते हैं, “अयोध्या अब केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि धार्मिक पर्यटन की नई राजधानी बन रही है. पर असली चुनौती यह होगी कि स्थानीय आबादी, खासकर छोटे दुकानदार और कारीगर, इस बदलाव से लाभान्वित हो सकें.”
अयोध्या में अब सिर्फ़ मंदिर नहीं बन रहा, एक नया शहर बन रहा है, जो आस्था, अर्थव्यवस्था और राजनीति के त्रिकोण पर खड़ा है. शहर के निवासी कहते हैं कि पिछले तीन सालों में जो बदलाव हुआ है, वह अभूतपूर्व है. “पहले जहां सिर्फ़ मंदिर की चर्चा होती थी, अब यहां होटल, सड़क, रोज़गार और सुविधाओं की बात होती है” हनुमान गढ़ी के सामने प्रसाद की दुकान लगाने वाले दुकानदार रामसेवक कहते हैं. फिर भी अयोध्या के लोगों के मन में एक सवाल है- क्या यह विकास धार्मिक पर्यटन से आगे जाकर स्थानीय लोगों के जीवन में स्थायी सुधार लाएगा?
राजनीतिक संदेश और 2027 की छाया
राम जन्मभूमि परिसर में अभी कुछ काम बाकी हैं, शहीद स्मारक, अस्थायी मंदिर का स्मारक रूपांतरण और चारदीवारी का अंतिम चरण. ट्रस्ट ने संकेत दिया है कि इन सभी कामों को इस साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा. इसके बाद ट्रस्ट एक और बड़े समारोह की योजना बना रहा है, जिसमें मंदिर निर्माण में योगदान देने वाले सभी व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित किया जाएगा. उन्हें पहचान पत्र और प्रशंसा प्रमाणपत्र दिए जाएंगे.
राम मंदिर निर्माण की पूर्णता योगी आदित्यनाथ सरकार और BJP के लिए आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले एक नैरेटिव एंकर बन सकती है. मंदिर का उद्घाटन न केवल सांस्कृतिक उपलब्धि के रूप में, बल्कि शासन, सुरक्षा और “सांस्कृतिक पुनर्जागरण” की कहानी के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दल मंदिर पर प्रत्यक्ष टिप्पणी से बचते रहे हैं. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे “देशवासियों की आस्था का विषय” कहकर राजनीतिक बयानबाज़ी से दूरी बनाई है. कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत का कहना है, “मंदिर निर्माण संविधान और न्यायिक प्रक्रिया के तहत हुआ, और हम इसका सम्मान करते हैं.”
मंदिर का निर्माण भारत के सामाजिक परिदृश्य में भी कई प्रश्न उठाता है. क्या यह आंदोलन अब विभाजन की जगह एकता का प्रतीक बनेगा? ट्रस्ट का इस बार ‘समरसता’ पर ज़ोर देना इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास है. चंपत राय और मिश्रा दोनों ही इस बात पर ज़ोर देते हैं कि समारोह में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी होगी, चाहे वे पिछड़े वर्ग हों, दलित हों या स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय.
हालांकि कुछ समाजशास्त्री मानते हैं कि यह प्रक्रिया अभी प्रतीकात्मक स्तर पर है. “सामाजिक समरसता का अर्थ केवल आमंत्रण नहीं, बल्कि समान भागीदारी से है. मंदिर आंदोलन ने जो वैचारिक खाई पैदा की थी, उसे पाटने में समय लगेगा,” फैजाबाद के अवध विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर कहते हैं.
राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होना एक युग का अंत और एक नए युग की शुरुआत है. यह उस आंदोलन की परिणति है जिसने भारत की राजनीति, समाज और सामूहिक चेतना को दशकों तक आकार दिया.

