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रामसिंह कस्वां और उनके परिवार की राजेंद्र सिंह राठौड़ से अनबन की कहानी

भाजपा की टिकट पर राजस्थान की चूरू सीट से सांसद राहुल कस्वां अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. एक जमाने में उनके पिता रामसिंह कस्वां और राजेंद्र सिंह राठौड़ को राजस्थान की सियासत राम-लक्ष्मण की जोड़ी कहा जाता था

सांसद राहुल कस्वां ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है
रामसिंह कस्वां के बेटे और चूरू से सांसद राहुल कस्वां ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है
अपडेटेड 12 मार्च , 2024

राजस्थान में चूरू की सियासत में राजेंद्र राठौड़ और रामसिंह कस्वां को राम-लक्ष्मण की जोड़ी माना जाता रहा है, लेकिन आज वही जोड़ी एक दूसरे को जयचंद साबित करने में जुटी है. पिछले तीन दशक से चूरू जिले की सियासत के केंद्र रहे राजेंद्र राठौड़ और रामसिंह कस्वां आज एक दूसरे के धुर विरोधी बन बैठे हैं. 

दरअसल, राजेंद्र राठौड़ और रामसिंह कस्वां का राजनीति में अवतरण एक ही समय में हुआ था. जिसकी वजह से यह जोड़ी राम-लक्ष्मण के तौर पर प्रसिद्ध हो गई. रामसिंह कस्वां से एक साल पहले विधानसभा पहुंचने के कारण राजेंद्र राठौड़ राम के तौर पर जाना गया और एक साल बाद सांसद चुने गए रामसिंह कस्वां को लक्ष्मण के तौर पर पहचान मिली. 

वह 1990 का साल था. राजेंद्र राठौड़ चूरू विधानसभा क्षेत्र से जनता दल के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे और रामसिंह कस्वां सार्दुलपुर से निर्दलीय के तौर पर चुनाव मैदान में डटे थे. इस चुनाव में राजेंद्र राठौड़ तो जीतने में कामयाब रहे, लेकिन रामसिंह कस्वां चुनाव नहीं जीत पाए. बताया जाता है कि इस चुनाव में रामसिंह कस्वां ने राजेंद्र राठौड़ की चूरू में और राजेंद्र राठौड़ ने रामसिंह कस्वां की सार्दुलपुर में मदद की थी.

रामसिंह कस्वां भले ही 1990 में विधानसभा चुनाव हार गए हो लेकिन उनका राजनीतिक कद काफी बड़ा हो चुका था. इसी वजह से उन्हें भाजपा ने 1991 के लोकसभा चुनाव में चूरू संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका दिया. जनता दल की लहर के दौरान चतुष्कोणीय मुकाबले में रामसिंह कस्वां यहां से पहली बार भाजपा का परचम फहराने में कामयाब रहे. इसके बाद 1999, 2004 और 2009 में भी रामसिंह कस्वां यहां से सांसद चुने गए. 2014 और 2019 में रामसिंह कस्वां के बेटे राहुल कस्वां यहां से सांसद चुने गए. इस तरह पिछले 25 साल से चूरू संसदीय क्षेत्र पर कस्वां परिवार का एकछत्र राज है. 

कुछ ऐसे ही सियासी समीकरण राजेंद्र राठौड़ के साथ रहे. 1990 से लेकर 2018 तक राजेंद्र राठौड़ ने चूरू से छह बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और सब चुनावों में उन्हें जीत मिली. 2008 में जब राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे के खिलाफ माहौल बना तो राजेंद्र राठौड़ ने चूरू की जगह तारानगर को अपना निर्वाचन क्षेत्र बनाया और वहां भी उन्हें जीत हासिल हुई. 

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राजेंद्र राठौड़ और रामसिंह कस्वां के बीच पहली सियासी अनबन 2013 के विधानसभा चुनाव में हुई जब रामसिंह कस्वां की पत्नी कमला कस्वां सार्दुलपुर से भाजपा उम्मीदवार थी. इस चुनाव में बसपा के मनोज न्यांगली की जीत हुई जो राजपूत समाज से आते हैं. उस वक्त पहली बार रामसिंह कस्वां के परिवार को यह अहसास हुआ कि राजेंद्र राठौड़ ने इस बार सार्दुलपुर में उन्हें चुनाव जिताने का प्रयास नहीं किया. हालांकि, कस्वां परिवार यह कहता रहा कि उन्होंने चूरू में राजेंद्र राठौड़ की जीत के लिए पूरे प्रयास किए थे. 2014 में रामसिंह कस्वां के बेटे राहुल कस्वां के सांसद चुने जाने के बाद यह सियासी अनबन खत्म हो गई. 2018 में भाजपा ने रामसिंह कस्वां को सार्दुलपुर से अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन वो इस चुनाव में भी जीत हासिल नहीं कर पाए. हालांकि, राजेंद्र राठौड़ 2018 में भी जीतने में कामयाब रहे. 

2023 के विधानसभा चुनाव में राजेंद्र राठौड़ अपनी परंपरागत सीट चूरू को छोड़कर तारागनर पहुंच गए और चूरू में अपनी जगह हरलाल सहारण को चुनाव लड़ा दिया. इस चुनाव में राजेंद्र राठौड़ ने हरलाल सहारण को हनुमान बताते हुए उन्हें जीत दिलाने का आह्वान किया. चूरू में राजेंद्र राठौड़ ने हरलाल सहारण को जिताने की भरसक कोशिश की, लेकिन सार्दुलपुर में राठौड़ पर बसपा के मनोज न्यांगली का समर्थन करने के आरोप लगे. उधर, पहले से ही खार खाए बैठे रामसिंह कस्वां और उनके बेटे राहुल कस्वां ने विधानसभा चुनाव में तारानगर में राजेंद्र राठौड़ की कोई मदद नहीं की.

बताया जाता है कि रामसिंह कस्वां ने अपने समर्थकों को राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ वोट डालने की अपील की. इसी का नतीजा था कि राजेंद्र राठौड़ तारानगर से चुनाव हार गए. चुनाव हारने के बाद राजेंद्र राठौड़ ने रामसिंह कस्वां और उनके परिवार पर हमला साधते हुए सार्वजनिक मंचों से उन्हें ‘जयचंद’ करार दिया. हालांकि, उस वक्त रामसिंह और राहुल ने राजेंद्र राठौड़ के बयानों को लेकर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन जैसे ही 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए चूरू से भाजपा ने राहुल कस्वां की जगह पैराओलंपियन देवेंद्र झाझरिया को अपना उम्मीदवार बनाया, कस्वां परिवार खुलकर राठौड़ पर हमलावर हो गया. टिकट की घोषणा के तीन दिन बाद राहुल कस्वां ने अपने घर पर शक्ति प्रदर्शन कर राजेंद्र राठौड़ पर जमकर निशाना साधा. राहुल कस्वां ने कहा – ‘‘जयचंदों के बीच में रहने वाले जयचंद ही जयचंदों की बात करते हैं. क्या अब वो एक व्यक्ति (राजेंद्र राठौड़) मेरे भविष्य का फैसला करेगा, चूरू का बच्चा-बच्चा मेरे कल का फैसला करेगा.  ये लड़ाई अब एक आदमी के अहंकार के खिलाफ है.’’

8 मार्च के इस शक्ति प्रदर्शन के तीन दिन बाद ही 11 मार्च को राहुल कस्वां ने भाजपा को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थाम लिया. दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करते हुए राहुल कस्वां ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के लिए तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उस वक्त भी वो राजेंद्र राठौड़ पर हमला करने से नहीं चूके. राहुल कस्वां ने कहा, ‘‘ राजेंद्र राठौड़ ने चूरू ही नहीं, पूरे राजस्थान के टिकट बांटने का ठेका लिया हुआ था. पहले उन्होंने अपनी सीट बदली फिर मुझसे बिना राय लिए चूरू जिले के जिलाध्यक्ष और उनकी पूरी टीम बनाई. जब वह चुनाव खुद लड़ रहे थे, सीट खुद बदल रहे थे तो हार का इल्जाम किसी और पर क्यों लगा रहे थे.’’  

हालांकि, राहुल कस्वां के इन बयानों पर राजेंद्र राठौड़ का पलटवार अभी बाकी है. देखना ये है कि कभी चूरू की राम-लक्ष्मण की जोड़ी अब विपरीत ध्रुवों में शामिल होकर एक दूसरे पर किस तरह के सियासी बाण चलाती है और जयचंद से शुरू हुई यह सियासी प्रतिस्पर्धा 2024 में किस तरह की राजनीति इबारत लिखेगी. 

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