सड़कों पर हादसे तो पूरे देश में जहां-तहां होते ही रहते हैं लेकिन बीते एक महीने से ऐसा लग रहा है जैसे राजस्थान ने ऐसे हादसों और इनमें मौतों के मामले में सबसे तेज रफ्तार पकड़ ली है. पिछले एक माह में प्रदेश की सड़कों पर हुए चार बड़े हादसों में 64 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. एक के बाद एक हो रहे हादसों के बाद भी परिवहन विभाग और सरकार ने कोई बड़ा सबक नहीं लिया है. पिछले एक साल में हुए हादसों के आकंडों पर गौर करें तो सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए सरकार की ओर से किए गए तमाम दावे खोखले साबित हुए हैं.
हाल ही में सरकार ने एक रोड सेफ्टी एक्शन प्लान बनाकर 2030 तक सड़क हादसों को आधा करने का दावा किया था मगर पिछले एक साल में सड़क हादसों में हुई 6 फीसदी की बढोतरी इन दावों की पोल खोलती है. हालात ये हैं कि पिछले पांच साल में प्रदेश में 54 हजार लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं.
राजस्थान में वर्ष 2024 में करीब 25 हजार सड़क हादसे हुए जिनमें करीब 12 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई. प्रदेश में हर दिन 32 लोग अपनी जान गंवा रहे हैं जबकि देश में रोजाना सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की कुल संख्या 474 है. सड़क हादसों में जान गंवाने के मामले में उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान पांचवे नंबर पर है.
राजस्थान में दुर्घटनाओं में जान गंवाने का औसत भी अन्य राज्यों से कहीं ज्यादा है. राजस्थान में हर 100 दुर्घटनाओं पर 48 लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो रहे हैं जबकि देश में यह संख्या 36 है. विशेषज्ञों का मानना है कि हाइवे के निकट ट्रोमा सेंटर्स की कमी इसकी मुख्य वजह है.
राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो (NCERB) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 की अपेक्षा 2023 में सड़क हादसों में घायलों और मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इस अवधि में मौत के आंकड़े में 6 फीसदी, घायलों में 3 फीसदी और हादसों में 5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है. दिल्ली और बेंगलुरू के बाद जयपुर ऐसा शहर है जहां सड़क हादसों में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई है.
राजधानी जयपुर समेत पांच शहर ऐसे हैं जहां मौत का आंकड़ा 500 से ज्यादा है. परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार साल 2023 के दौरान जोधपुर में सड़क हादसों में 506 लोगों ने अपनी जान गंवाई वहीं अजमेर में 536, उदयपुर में 565, अलवर में 632 और जयपुर में 1271 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
राजस्थान में सड़क सुरक्षा को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र सिंह कहते हैं, “ हमने एक साल पहले पुलिस और यातायात विभाग को 800 ब्लैक स्पॉट (जहां सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं) चिह्नित करके दिए थे, मगर इनको दुरस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए. इन स्पॉट में जयपुर के झोटवाड़ा का वह रोड कट भी था जहां 20 सितंबर को एक गैस टैंकर और ट्रक की टक्कर में 19 लोगों की मौत हुई थी.''
राजस्थान में बढ़ते सड़क हादसों पर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब-तलब किया है वहीं 3 नवंबर को जयपुर के हरमाड़ा में तेज गति से डंपर दौड़ाकर 14 लोगों को कुचले जाने की घटना के बाद जागी राज्य सरकार ने शराब पीकर वाहन चलाने पर हमेशा के लिए लाइसेंस निरस्त करने का निर्णय किया है. हालांकि कुछ ही महीनों बाद यह समझ आ जाएगा कि सरकार का यह कदम बढते सड़क हादसों पर कितनी लगाम लगा पाया है.
रोड सेफ्टी से जुड़े कार्यकर्ता राजस्थान में सड़क हादसों को ये वजहें बताते हैं :
खराब और टूटी-फूटी सड़कें
राजस्थान नेशनल और स्टेट हाइवे पर टोल वसूली के मामले में देश में सबसे आगे हैं मगर सड़कों की स्थिति खस्ताहाल है. यातायात पुलिस ने प्रदेश में 800 ऐसे ब्लैक स्पॉट चिह्नित किए थे जिन पर सबसे ज्यादा हादसे होते हैं.
लचर लाइसेंस प्रणाली
राजस्थान में सड़क हादसों की एक अन्य वजह कमजोर लाइसेंस प्रणाली है. केरल जैसे राज्यों में प्रशिक्षित चालक को ही लाइसेंस जारी किया जाता है वहीं राजस्थान में बिना किसी वाहन टेस्ट के लाइसेंस जारी कर दिए जाते हैं. ज्यादातर परिवहन कार्यालय भ्रष्टाचार के अड्डों में तब्दील हो चुके हैं और परिवहन विभाग के कर्मचारी दिनभर वसूली में व्यस्त रहते हैं.
तेज गति व लापरवाही
NCERB के आंकड़ों के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण तेज गति है. राजस्थान में सड़कों पर कैमरों का अभाव होने के कारण वाहनों की गति पर कोई नियंत्रण नहीं है जिसके कारण हादसे बढ़ रहे हैं. एक नवंबर को फलौदी एक्सप्रेसवे पर टेंपो ट्रैवलर हादसे की वजह भी तेज स्पीड थी.
नशा और मोबाइल का प्रयोग
राजस्थान में जिला और तहसील मुख्यालय तो दूर राजधानी जयपुर में भी ड्राइवरों का अल्कोहल टेस्ट नहीं किया जाता. 3 नवंबर को जयपुर के हरमाड़ा में जिस डंपर चालक ने 17 वाहनों को कुचलकर 15 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, वह भी शराब के नशे में था. इसके अलावा वाहन चलाते समय मोबाइल का उपयोग रोकने के लिए भी किसी तरह के इंतजाम नही हैं.
ओवर लोडिंग व नियमों की अनदेखी
राजस्थान में ओवर लोडिंग वाहनों का आवागमन हादसों का प्रमुख कारण बन रहा है. सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं बजरी परिवहन में लगे वाहनों से हो रही हैं. इसके अलावा वाहन निर्माण में नियमों की अनदेखी की जा रही है, वह भी हादसों का कारण बनती है. 14 अक्टूबर को जैसलमेर के पास पोकरण में जिस स्लीपर बस आग लगने से 28 लोगों की मौत हो गई, उसकी बॉडी भी नियमानुसार नहीं थी.
पिछले एक माह में हुए बड़े सड़क हादसे :
जैसलमेर बस हादसा : 14 अक्टूबर को जैसलमेर में पोकरण के पास चलती स्लीपर बस में अचानक आग लग गई जिसके कारण बस में सवार 28 लोगों की मौत हो गई. यह हादसा हाल के वर्षों में राज्य का सबसे भयावह सड़क हादसा था. हादसे में इतने लोगों की जान इसलिए गई क्योंकि बस में किसी तरह का इमरजेंसी गेट नहीं था.
मनोहरपुरा हादसा : 28 अक्टूबर को दिल्ली-जयपुर नेशनल हाइवे पर मनोहरपुरा में एक स्लीपर बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गई. बस में करंट दौड़ने से आग लग गई और तीन मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई. जांच में पता चला कि बस की ऊंचाई नियमों से ज्यादा थी जो हादसे का प्रमुख कारण बनी.
अलवर थार दुर्घटना : 31 अक्टूबर को अलवर में तेज रफ्तार थार ने एक बाइक को इतनी जोरदार टक्कर मारी कि चार लोगों की मौके पर मौत हो गई.
फलौदी एक्सप्रेसवे हादसा : एक नवंबर को भारतमाला एक्सप्रेस-वे पर फलौदी के पास एक टेंपो ट्रैवलर सड़क किनारे खड़े ट्रक से टकरा गया जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई. इस हादसे की भी प्रमुख वजह तेज रफ्तार थी.
जयपुर हरमाड़ा डंपर हादसा : 3 नवंबर को जयपुर में हरमाड़ा के पास एक तेज रफ्तार डंपर ने 17 वाहनों को कुचल दिया जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई. डंपर का ड्राइवर नशे में था और अवैध बजरी परिवहन करता था.

