
राजस्थान की भजनलाल सरकार के सामने ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) और यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) ने चुनौती खड़ी कर दी है. राज्य सरकार इस बात को लेकर दुविधा में है कि वो कौन सी पेंशन स्कीम को अपनाए. भजनलाल सरकार अगर पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के ओपीएस के फैसले को पलटकर यूपीएस अपनाती है तो प्रदेश के कर्मचारी संगठनों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर ओपीएस जारी रखती है तो अपनी ही डबल इंजन की सरकार के खिलाफ जाना पड़ेगा.
यही वजह है कि पिछले आठ महीनों में राज्य की भजनलाल सरकार की ओर से ओपीएस को लेकर एक बार भी किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की गई है. केंद्र सरकार की ओर से 24 अगस्त को एनपीएस की जगह यूपीएस लागू किए जाने का फैसले हुआ तब भी राजस्थान के मुख्यमंत्री और मंत्री का कोई बयान नहीं आया. यहां तक कि सूबे की वित्त मंत्री दिया कुमारी ने भी यूपीएस पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर करने के बजाय उसे लागू किए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट को ही रीट्वीट करना बेहतर समझा.
प्रदेश में दिसंबर 2023 में भजनलाल सरकार के गठन के एक महीने बाद ही ओपीएस को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई थी. 22 जनवरी, 2024 को कृषि विभाग की ओर से जारी आदेश में यह हवाला दिया गया था कि विभाग में सहायक कृषि अधिकारियों की भर्ती अंशदायी पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत होगी. इस आदेश को लेकर प्रदेश भर में कर्मचारी संगठनों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई तो विभाग ने इस आदेश में न्यू पेंशन स्कीम को हटाकर एक नया आदेश जारी कर दिया. इसके बाद से न तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और न ही उनके किसी मंत्रिमंडल सदस्य ने ओपीएस या एनपीएस को लेकर कुछ कहा.
राजनीतिक विश्लेषक विजय विद्रोही कहते हैं, "प्रदेश की भजनलाल सरकार के लिए पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार का ओपीएस का फैसला पलट पाना आसान नहीं होगा. भजनलाल सरकार यूपीएस लागू करके राज्य के साढ़े सात लाख नियमित और डेढ़ लाख निगम व बोर्ड कर्मचारियों की नाराजगी मोल नहीं लेगी. आगामी 6 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव तक तो सरकार इस मसले पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है."

राजस्थान, देश में न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) की जगह ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने वाले पहले राज्यों में शुमार है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मार्च 2022 में प्रदेश के साढ़े सात लाख कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम का तोहफा दिया था. राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) संशोधन नियम, 2022 के तहत राज्य में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू किए जाने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था. ओपीएस लागू किए जाने के बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी.
राज्य सरकार ने एनपीएस के तहत वर्ष 2005 से लेकर 1 अप्रैल 2022 तक कर्मचारियों से 10 फीसदी अंशदान के तौर पर जमा की 41 हजार करोड़ रुपए की राशि राजस्थान सरकार को लौटाने का आग्रह किया था जिसे केंद्र के पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण ने वापस लौटाने से इंकार कर दिया था. इसके बाद से केंद्र और राज्य सरकार के बीच इस राशि को लेकर कई बार पत्राचार हुआ. हालांकि, 1 अप्रैल 2022 के बाद से राजस्थान में कर्मचारियों के 10 फीसदी अंशदान की कटौती बंद कर दी गई है. इसकी जगह ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सामान्य प्रावधायी निधि (जीपीएफ) की कटौती शुरू की गई है.
राजस्थान में हर साल औसतन 15 हजार कर्मचारी सेवानिवृत्त होते हैं. राज्य में पिछले दो सालों में सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के लाभ दिए गए हैं, लेकिन 2015 से 2022 के बीच सेवानिवृत्त होने वाले 2500 कर्मचारियों को न्यू पेंशन स्कीम के तहत ही सेवानिवृत्ति मिली. इनमें ज्यादातर कर्मचारी ऐसे थे जिन्हें अनुकंपा या विशेष श्रेणी में नियुक्ति मिली थी. 2004 में न्यू पेंशन स्कीम लागू किए जाने के बाद एनपीएस के तहत नियुक्ति पाने वाले कर्मचारी अगले तीन-चार साल में सेवानिवृत्त होंगे.
ऐसे में अगर ओल्ड पेंशन स्कीम लागू रहती है तो इन कर्मचारियों को अंतिम महीने के बेसिक वेतन का 50 फीसदी पेंशन, ग्रेच्यूटी, एसआई, जीपीएफ और उपार्जित अवकाश सहित अन्य लाभ मिलेंगे. लेकिन अगर यूपीएस लागू हुई तो इन्हें अंतिम 12 महीने के बेसिक वेतन की 50 फीसद पेंशन राशि के तौर पर मिलेगी. यूपीएस में जीपीएफ लाभ देय नहीं हैं. यूपीएस में पेंशन के लिए कर्मचारी को हर महीने अपने मूल वेतन का 10 फीसद अंशदान के तौर पर जमा कराना पड़ता है जबकि ओपीएस में कर्मचारी से अंशदान नहीं लिया जाता.
राजस्थान के बाद देश के चार और राज्य एनपीएस की जगह ओपीएस को अपना चुके हैं. इनमें छत्तीसगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और झारखंड शामिल हैं. महाराष्ट्र पहला ऐसा राज्य है जिसने यूपीएस लागू किए जाने की घोषणा की है. छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती सरकार भी कर्मचारियों के अंशदान की 17 हजार 240 करोड़ रुपए की राशि राज्य को जारी करने का तकादा कर रही थी, लेकिन अब वहां भाजपा की सरकार बन चुकी है. छत्तीसगढ़ सरकार ने भी अभी तक यूपीएस को लेकर कोई फैसला नहीं किया है.
शुरू हुआ यूपीएस का विरोध
केंद्र की यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) राजस्थान के कर्मचारी संगठनों और विपक्ष को रास नहीं आ रही है. कांग्रेस सहित राज्य के तमाम कर्मचारी संगठनों ने एक सुर में एलान कर दिया है कि अगर राजस्थान में ओपीएस की जगह यूपीएस लागू हुई तो सरकार को कर्मचारियों का भारी विरोध झेलना पड़ेगा.
राजस्थान में ओपीएस लागू करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है, "राजस्थान में जब हमारी सरकार ने पुरानी पेंशन योजना लागू की तब भाजपा और केन्द्र सरकार ने विरोध किया था, और शेयर मार्केट आधारित एनपीएस को श्रेष्ठ बताया था. केन्द्र सरकार द्वारा नई पेंशन योजना यूपीएस लागू करना यह स्वीकारोक्ति है कि एनपीएस में बड़ी खामियां थी. यूपीएस भी एनपीएस की तरह ही एक जुमला है."
अखिल राजस्थान विद्यालय शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष रामकृष्ण अग्रवाल का कहना है, "यूपीएस एनपीएस की पुरानी बोतल में नई शराब है. बीस साल बाद भाजपा ने एक बार फिर देश के कर्मचारियों की आंख में धूल झोंकने का काम किया है. अगर यूपीएस इतनी ही अच्छी है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले सांसद और विधायकों पर इसे लागू करें."
अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ (एकीकृत) के प्रदेशाध्यक्ष गजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा है कि अगर राज्य सरकार ने ओपीएस में छेड़छाड़ की तो कर्मचारी संगठन कड़ा विरोध करेंगे.