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राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में मौतों के पीछे की लापरवाही और भ्रष्टाचार की पड़ताल

जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल (SMS अस्पताल) के ICU में 5 अक्टूबर को आग लगने से 8 लोगों की मौत कोई अचानक हुआ हादसा नहीं था

Jaipur's SMS hospital neuro surgery department after fire
SMS अस्पताल का न्यूरोसर्जरी ICU जहां आग लगी थी
अपडेटेड 11 अक्टूबर , 2025

राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह (SMS अस्पताल) के न्यूरोसर्जरी ICU में 5 अक्टूबर की रात लगी आग की लपटें अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुई थी कि 9 अक्टूबर को इसी ICU के प्रभारी डाक्टर भ्रष्टाचार की राशि के साथ रंगे हाथों धर लिए गए. डॉक्टर रिश्वत की यह राशि ICU और अस्पताल में हुए सिविल कार्यों के बिलों पर साइन करने के बदले ले रहे थे. 

इससे पहले 5 अक्टूबर की देर रात जिस ICU में आग लगी और उसमें दम घुटने व जलने से आठ लोगों की मौत हो गई,  उस ICU के प्रभारी भी यही रिश्वतखोर डॉ. मनीष अग्रवाल थे. अग्रवाल को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने साढ़े 12 लाख रुपए का बिल पास करने के बदले एक लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया. 

सरकारी कार्यप्रणाली पर तो पहले ही सवाल उठ रहे थे मगर डॉक्टर के इस तरह खुलेआम रिश्वत लेने के मामले में ने सवाई मानसिंह अस्पताल में जमी भ्रष्टाचार की परतों को उघाड़ कर रख दिया है. विडंबना ये है कि इसके बाद भी चिकित्सकों का एक बहुत बड़ा तबका रिश्वतखोर डॉक्टर के बचाव में उतर आया. इंडिया टुडे ने सवाई मानसिंह अस्पताल लालच, लापरवाही और अनदेखी की पड़ताल की तो कई सच सामने आए. सबसे बड़ा सच तो सरकारी कार्यप्रणाली का है जिसका रवैया हर घटना के बाद एक जैसा ही नजर आता है. लापरवाही, हादसा, मौतें, मुआवजा और जांच कमेटी.  

राजस्थान में हर हादसे के बाद कमोबेश यही कहानी दोहराई जाती है. झालावाड़ स्कूल हादसे, कफ सिरप पीने से चार बच्चों की मौत और अब सवाई मानसिंह अस्पताल की ICU में आग लगने के कारण आठ लोगों की मौत के बाद भी यही परिपाटी अपनाई जा रही है. AIIMS दिल्ली के बाद उत्तर भारत के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल SMS की जलती हुई ICU में 5 अक्टूबर को देर रात आठ जिदंगियां खाक हो गई थी मगर कार्रवाई के नाम पर वही मुआवजा, जांच कमेटी और कुछ डॉक्टरों को पद से हटाने वाली ढाक के तीन पात जैसी कारस्तानी की गई हैं. पद से भी उन्हीं चिकित्सकों को हटाया गया है जिन्होंने प्रशासन का ध्यान ICU में क्षतिग्रस्त बिजली पैनल, करंट और पानी रिसाव की ओर दिलाया था. 

प्रशासन की सबसे बड़ी लापरवाही का जीता-जागता सबूत तो ICU के ठीक बाहर लगा फायर फाइटिंग सिस्टम था. इसमें पानी भी ठीक से आ रहा था मगर हादसे की रात उसे चलाने के लिए वहां कोई ऑपरेटर मौजूद नहीं था. ऑपरेटर लगाना फायर फाइटिंग सिस्टम लगाने वाली एजेंसी एसके इलेक्ट्रिक कंपनी की जिम्मेदारी थी मगर अस्पताल की किसी भी विंग में हादसे के वक्त कंपनी का कर्मचारी मौजूद नहीं था. अगर ICU के बाहर खड़ा गार्ड भी फायर फाइटिंग सिस्टम के पाइप के जरिए पानी चालू कर देता तो आग आसानी से बुझाई जा सकती था मगर अस्पताल का स्टाफ फायर ब्रिगेड के आने का इंतजार करता रहा. हालांकि, फायर ब्रिगेड वहां 20 मिनट में पहुंच गई थी मगर दूसरी मंजिल तक पहुंचने के लिए उनके पास सीढ़ी का इंतजाम नहीं था. सीढ़ी आने तक करीब 40 मिनट बीत चुके थे जिसके कारण आग पूरी ICU में फैल गई.

 

ICU के ठीक बाहर फायर फाइटिंग सिस्टम भी लगा था लेकिन हादसे के वक्त इसे चलाने वाला कोई नहीं था
ICU के ठीक बाहर फायर फाइटिंग सिस्टम भी लगा था लेकिन हादसे के वक्त इसे चलाने वाला कोई नहीं था

प्रशासनिक लापरवाही का दूसरा सबसे बड़ा नमूना ICU के भीतर बनाया गया स्टोर रूम था. दवाइयां रखने के लिए बनाए गए स्टोर रूम में रुई, पुराने गद्दे जैसा कबाड़ भरकर रखा हुआ था जो आग के संपर्क में आते ही भीषण दावानल बन गया. प्रशासनिक लापरवाही की एक ओर नजीर ट्रोमा सेंटर प्रभारी द्वारा न्यूरोसर्जरी ICU में क्षतिग्रस्त बिजली पैनल, करंट और पानी रिसाव जैसी समस्याओं को लेकर लिखे गए वे 8 पत्र थे जिन पर सवाई मानसिंह अस्पताल के अधीक्षक की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई. बताया जा रहा है कि न्यूरोसर्जरी के प्रभारी डॉ. मनीष अग्रवाल के प्रभाव के चलते कार्रवाई नहीं हुई.

अग्रवाल की रिश्वत के मामले में गिरफ्तारी इन दावों का सच बयान कर रही है. ट्रॉमा सेंटर प्रभारी डॉ. अनुराग धाकड़ की ओर से ये पत्र 30 अगस्त से 3 अक्टूबर के बीच लिखे गए मगर अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी की ओर से न तो किसी पत्र का जवाब दिया गया और न ही उन्होंने खुद मौके पर जाकर वास्तविक स्थिति का पता लगाने की जहमत उठाई. 

हादसे के दो दिन पहले ही ICU प्रबंधन की ओर से अस्पताल प्रशासन को एक पत्र लिखा गया था जिसमें बिजली पैनल के क्षतिग्रस्त होने का हवाला दिया गया. ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर डॉ. अनुराग धाकड़ ने न्यूरोसर्जरी ओटी के निर्माण के कारण सेंट्रलाइज्ड एसी, डक्ट और बिजली पैनल के क्षतिग्रस्त होने का हवाला देते हुए हादसे की आशंका जताई थी मगर अधीक्षक इस ओर आंखें मूंदे रहे. डॉ. अनुराग धाकड़ के मुताबिक, ‘‘अस्पताल में समस्त वित्तीय और निर्माण संबंधी कार्य अधीक्षक की ओर से ही स्वीकृत किए जाते हैं. न्यूरोसर्जरी ICU में करंट, पानी टपकने और क्षतिग्रस्त बिजली पैनल को लेकर हमने कई बार प्रशासन को अवगत कराया मगर कोई समाधान नहीं हुआ.’’  

निर्माण कार्य के चलते पानी टपकने और करंट के कारण 3 और 5 सितंबर को न्यूरोसर्जरी ओटी में कई सर्जरी में दिक्कते आईं. हादसे में अपना भाई खो चुके सुरेंद्र गुर्जर ने बताया, ''ICU में स्टोर रुम की तरफ पानी टपकने से कई दिन से सीलन आई हुई थी मगर स्टाफ ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.'' 6 अक्टूबर के अग्निकांड के बाद डॉ. भाटी यह दावा करते रहे कि आग से एक भी मरीज की मौत नहीं हुई है, सभी मौतें मरीजों को ICU में शिफ्ट करने के कारण हुई है.  

ICU में आठ मरीजों की मौत के बाद डॉ. सुशील भाटी को अधीक्षक और डॉ. अनुराग धाकड़ को  ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर पद से हटा दिया गया है. डॉ. मृणाल जोशी को भाटी की जगह कार्यवाहक अधीक्षक बनाया गया है. अधीक्षक का कार्यभार संभालते ही मृणाल जोशी सबसे पहले ट्रॉमा सेंटर की छत पर पहुंचे जहां न्यूरोसर्जरी ऑपरेशन थियेटर के निर्माण कार्य के कारण न्यूरोसर्जरी ICU में पानी टपक रहा था. इसी को 5 अक्टूबर की रात हुए हादसे की प्रमुख वजह भी माना जा रहा है. न्यूरोसर्जरी ICU (प्रथम) और ICU (द्वितीय) में बिजली के घटिया तार शॉर्ट सर्किट की वजह बने जो ICU द्वितीय के 11 और ICU प्रथम के 13  बिस्तरों के वेंटिलेटर व अन्य विद्युत उपकरणों का लोड सहन नहीं कर पाए. 

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक सबसे पहले बिजली के तारों से ही धुआं निकलना शुरू हुआ था जिसने जल्दी ही आग पकड़ ली. हादसे की एक बड़ी वजह उस वक्त ICU में मौजूद मेडिकल स्टाफ की अनदेखी को भी माना जा रहा है. हादसे के वक्त रात 11:35 बजे ICU के बैड नंबर 7,8 के पास धुआं उठता देख मरीजों के परिजनों ने वहां मौजूद मेडिकल स्टाफ को सूचना दी मगर स्टाफ ने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. 

वहीं ICU प्रथम और द्वितीय के 24 बिस्तरों पर सिर्फ एक रेजिडेंट डॉक्टर और तीन नर्सिंगकर्मी ही मौजूद थे. आग लगते ही ये भी मरीजों को अपने हाल पर छोड़कर बाहर भाग गए. इसके बाद मरीजों के परिजनों, SMS अस्पताल पुलिस थाने के कर्मचारियों और अस्पताल में मौजूद सुरक्षा गार्डों ने मरीजों को आग की लपटों से खींचकर बाहर निकाला. ICU द्वितीय में दम घुटने और आग की चपेट में आने से 7 मरीजों और ICU प्रथम में वेंटिलेटर हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट करने के दौरान एक मरीज की मौत हो गई.

पिछले एक साल के दौरान सवाई मानसिंह अस्पताल में आग लगने की 3 बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं मगर सरकार ने भविष्य में हादसे रोकने के कारगर उपाय करने की जगह कमेटियां बनाकर खानापूर्ति कर ली. जन स्वास्थ्य अभियान राजस्थान के प्रतिनिधि डॉ. नरेंद्र गुप्ता आरोप लगाते हैं, ‘‘जांच कमेटियां सरकारी बदइंतजामी पर पर्दा डालने के लिए बनाई जाती हैं. SMS की इस घटना को चेतावनी मानते हुए राज्यव्यापी अस्पताल सुरक्षा आपातकाल घोषित कर अस्पताल सुरक्षा टास्क फोर्स गठित की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं ना हो.’’ 

SMS अस्पताल मामले को लेकर सबसे ज्यादा सवाल सूबे के चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. गजेंद्र सिंह खींवसर की कार्यप्रणाली को लेकर उठ रहे हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा घटना के एक-डेढ़ घंटे बाद रात को ही मौके पर पहुंच गए थे वहीं चिकित्सा मंत्री को अस्पताल पहुंचने में 17 घंटे लग गए. चिकित्सा मंत्री से जब इस देरी के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें हादसे की सूचना ही सुबह मिली थी.  

इसके बाद पूरे प्रदेश में मंत्री के बयान को लेकर प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी.  प्रतिपक्षी कांग्रेस ने चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. गजेंद्र सिंह खींवसर के इस्तीफे की मांग की. कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, ''कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत होने के सवाल पर चिकित्सा मंत्री प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर भाग गए और अब SMS हादसे पर उन्होंने मरीजों को अपने हाल पर छोड़ दिया. चिकित्सा मंत्री से जब स्वास्थ्य महकमा संभल नहीं रहा है तो उन्हें पद से हटा देना चाहिए.'' पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, ''इतने बड़े हादसे के बाद भी चिकित्सा मंत्री और अफसर कहां हैं यह किसी को नहीं पता. इस मामले की सरकारी कमेटी से नहीं बल्कि न्यायिक आयोग से जांच करानी चाहिए.''

प्रशासनिक लापरवाही को लेकर सवाल तो ओर भी बहुतेरे हैं. अस्पताल में दर्द से जूझते मरीजों को जीवन की उम्मीद मिलती है मगर राजस्थान में अस्पतालों में आए दिन होने वाली आगजनी की घटनाएं मरीजों की जिंदगी में मौत का धुआं घोल रही हैं. यह धुआं सिर्फ अस्पतालों की दीवारों से नहीं उठ रहा बल्कि प्रशासनिक लापरवाही भी इसी धुएं की चपेट में है. 

राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं 

19 मई 2025 : झालावाड़ के सरकारी अस्पताल के ICU में आग लग गई. 50 मरीजों को बाहर लाकर जान बचाई गई. 

3 फरवरी 2025 : जालोर के अस्पताल कैंपस में आग लगने से एक डॉक्टर की मौत

29 जनवरी 2025 : आयुष्मान टॉवर की चौथी मंजिल पर आग लग गई 

9 जनवरी 2024 : एसएमएस अस्पताल की माइक्रोबायोलॉजी लैब में आग लग गई जिसके कारण 20 एसी और अन्य चिकित्सा उपकरण जल गए

1 जनवरी 2020 : अलवर के अस्पताल के शिशु वार्ड में आग में जलने से एक बच्ची की मौत हो गई, दो डॉक्टर सहित चार कर्मचारी निलंबित किए गए

2019 : SMS अस्पताल के ड्रग स्टोर में आग लगने से लाखों रुपए की दवाइयां जल गई. जून  में एक माह में ही वार्ड और ICU में आगजनी की तीन घटनाएं हुई. 2018 में सीटी ऑपरेशन थियेटर में आग लगने से सभी उपकरण जल गए.

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