
राजस्थान विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से बाहर आती फूलों से सजी पुरानी एंबेसडर कार और उसके आगे बैंड बाजे पर बज रहा ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ गीत. जिस किसी ने भी यह दृश्य देखा उसे एक बारगी तो यही लगा कि विश्वविद्यालय में किसी बेटी की विदाई हो रही है.
मगर, बहुत करीब से देखने पर पता चला कि यहां बेटी की विदाई नहीं बल्कि ‘लोकतंत्र की विदाई’ नाम से सरकार की बारात निकालकर छात्र संघ चुनाव कराए जाने की मांग की जा रही है. इस बारात में दूल्हे के रूप में एक छात्र सांकेतिक रूप में सीएम भजनलाल शर्मा का मुखौटा पहनकर घोड़ी पर बैठा और कुछ छात्र प्रदेश के मंत्रियों के मुखौटे पहनकर बारात में नाचते नजर आए.
कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की ओर से 12 जुलाई को यह दिलचस्प विरोध प्रदर्शन किया गया. इससे तीन दिन पहले ही छात्र नेता शुभम रेवाड़ ने राजस्थान में छात्र राजनीति से मुख्य धारा की सियासत में जगह बनाने वाले नेताओं के कटआउट लगाकर उनके हाथ में ‘छात्र संघ चुनाव बहाल करो’ स्लोगन लिखी तख्तियां थमा दी थीं.
छात्र राजनीति से संसद और विधानसभा की सीढ़ी चढ़ने वाले राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, सांसद हनुमान बेनीवाल, विधायक कालीचरण सराफ, हरीश चौधरी, मनीष यादव, विकास चौधरी, मुकेश भाकर और रविंद्र सिंह भाटी, पूर्व विधायक सतीश पूनियां, प्रताप सिंह खाचरियावास, रघु शर्मा, रामलाल शर्मा और अशोक लाहोटी जैसे नेताओं के कटआउट देखकर लग रहा था जैसे कि ये सभी नेता राजनीतिक प्रतिद्वंदता भुलाकर एक साथ छात्र संघ चुनाव की मांग के लिए इकट्ठा हुए हैं. छात्र नेता शुभम रेवाड़ कहते हैं, ‘‘मैं इन सब नेताओं के कटआउट बनाकर इन्हें एक साथ इसलिए लाया हूं ताकि सरकार छात्र संघ चुनाव की अहमियत समझ ले. अगर छात्र संघ चुनाव नहीं होते तो इनमें से कई नेता कभी भी विधायक और सांसद नहीं बन पाते.’’

लोकतंत्र की विदाई और सूबे के बड़े नेताओं के कटआउट जैसे ये प्रयोग इन दिनों राजस्थान विश्वविद्यालय ही नहीं बल्कि मीडिया और सोशल मीडिया में भी खासे चर्चा का विषय बने हुए हैं. प्रदेश में छात्र संघ चुनाव बहाल करने की मांग को लेकर छात्र नेता आए दिन इसी तरह के अनूठे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
धरने-प्रदर्शन, रैली जैसे पुराने और परंपरागत तरीकों को छोड़कर छात्र नेता अब ऐसे प्रयोग कर रहे हैं जिससे कि आम जनता और सरकार का ध्यान उनकी ओर जाए. राजनीति विश्लेषक विजय विद्रोही कहते हैं, ‘‘धरने-प्रदर्शन, सड़क जाम जैसे आंदोलन के तरीकों पर अब न तो आम जनता का ध्यान जाता है न मीडिया इन्हें कोई तव्वजो देता है.’’
18 जुलाई को राजस्थान में छात्र संघ चुनाव बहाली की मांग को लेकर एक छात्र नेता गजराज सिंह राठौड़ जमीन में गड्ढा खोदकर सांकेतिक तौर पर समाधि में बैठ गया. हालांकि कुछ समय बाद ही यूनिवर्सिटी प्रशासन की समझाइश के बाद गजराज सिंह गड्ढ़े से बाहर निकल आया. बाद में गजराज ने कहा, “राजस्थान की पूर्व कांग्रेस सरकार ने छात्र संघ चुनाव को बंद करके युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है. इसलिए मैं गांधीवादी तरीके से जमीन समाधि में बैठकर प्रदेश की भजनलाल सरकार से एक बार फिर चुनाव शुरू करने की मांग कर रहा हूं.”
बीजेपी के सहयोगी छात्र संगठन एबीवीपी ने 16 जुलाई को छात्र संघ चुनाव कराए जाने की मांग को लेकर आवाज बुलंद की. इस दौरान संगठन कार्यकर्ताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस नेता सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा के पुतले लगाकर उन्हें छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाने के लिए माफी मांगते हुए दिखाया. एबीवीपी ने छात्रसंघ की अर्थी सजाकर विरोध प्रदर्शन किया.

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले छात्र संघ चुनावों पर रोक लगा दी थी. इस रोक के पीछे सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि छात्र संघ चुनाव कराए जाने से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने और प्रशासनिक कार्यों में परेशानी और रुकावट आ सकती है. इसके साथ ही लिंगदोह कमेटी के नियमों का पालन नहीं होना भी एक कारण बताया गया. हालांकि, जानकार मानते हैं कि सरकार की ओर से छात्रसंघ चुनावों पर रोक की कुछ अन्य वजह भी हैं.
दरअसल 2022 में हुए छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस समर्थित छात्र संगठन एनएसयूआई को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी. प्रदेश के 17 विश्वविद्यालयों में एनएसयूआई के सिर्फ दो विश्वविद्यालयों में अध्यक्ष चुने गए वहीं एबीवीपी के 6 और 9 विश्वविद्यालयों में निर्दलीय अध्यक्ष चुने गए. छात्र राजनीति से जुड़े रहे अभिषेक कहते हैं, ‘‘सरकार ने 2023 में जानबूझकर छात्र संघ चुनाव नहीं कराए क्योंकि कांग्रेस को डर था कि अगर 2022 जैसे नतीजे 2023 में भी दोहराए जाते तो चार-पांच माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर इसका असर पड़ता.’’
हालांकि, छात्र संघ चुनाव पर रोक पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने ही लगाई थी मगर अब वे भी चुनाव कराए जाने के पक्ष में हैं. 10 जुलाई को गहलोत ने सोशल मीडिया के जरिए कहा, ‘‘छात्रसंघ चुनाव युवाओं के लिए राजनीति की नींव का काम करते हैं. इसमें भाग लेने से न सिर्फ राजनीतिक समझ बढ़ती है बल्कि लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद मिलती है. मैं छात्रसंघ की राजनीति में सक्रिय रहा था. प्रदेश के युवा काफी समय से राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार उन्हें निराश कर रही है.’’
अपने कार्यकाल में छात्रसंघ चुनाव पर रोक को लेकर भी गहलोत ने सफाई दी. गहलोत ने कहा, “हमारे समय में विधानसभा चुनाव का वर्ष होने के कारण चुनाव स्थगित किए थे. मैं पहले भी कई बार मांग कर चुका हूं और अब पुनः दोहराना चाहता हूं कि सरकार को अविलंब छात्रसंघ चुनाव को कराने के बारे में सकारात्मक फैसला लेना चाहिए.’’
राजस्थान की भजनलाल सरकार ने अभी तक छात्र संघ चुनावों को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि, कुछ समय पहले छात्र संगठनों की मांग को दरकिनार करते हुए राज्य के उपमुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमचंद बैरवा ने यह साफ कर दिया था कि न तो उन्होंने छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाई है और न वो इसे फिर शुरू करने वाले हैं.
हालांकि, पिछले साल उच्च शिक्षा विभाग की ओर से जारी किए गए शैक्षिक कैलेंडर में जुलाई से अगस्त के बीच छात्र संघ चुनाव कराए जाने की बात थी मगर सरकार की ओर से किसी तरह के दिशा-निर्देश जारी नहीं होने के कारण प्रदेश में छात्र संघ चुनाव नहीं कराए जा सके.