राजस्थान में भजनलाल सरकार को 20 माह बीत चुके हैं मगर मंत्रिमंडल विस्तार और निगम, बोर्ड व अकादमियों के मुखियाओं की नियुक्ति का काम अब तक अटका हुआ है. मंत्रिमंडल विस्तार लगातार टलता जा रहा है, निगम–बोर्ड और अकादमियों में नियुक्तियां अधर में लटकी हुई हैं. सूबे में दस में से आठ अकादमियां और 30 से ज्यादा निगम व बोर्ड के मुखिया पद डेढ़ साल से भी लंबे समय से खाली चल रहे हैं.
महिला आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राजस्थान आवासन मंडल जैसे महत्वपूर्ण आयोग सियासी नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं. पंचायतीराज संस्थाओं और नगरीय निकायों के चुनाव में एक साल से भी ज्यादा समय की देर हो चुकी है. इसके चलते इनमें प्रशासक नियुक्त करने पड़े हैं. वहीं 16 नगरीय विकास न्यास (यूआईटी) चेयरमैन के पद खाली चल रहे हैं.
प्रदेश की 10 में से 8 अकादमियों के अध्यक्ष पद खाली चल रहे हैं. इनमें संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी, उर्दू अकादमी, सिंधी अकादमी, संस्कृत अकादमी, बृजभाषा अकादमी और बाल साहित्य अकादमी शामिल हैं.
प्रदेश में सत्ता ही नहीं बल्कि संगठन का काम भी कछुआ रफ्तार से चल रहा है. मदन राठौड़ को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभाले एक साल का वक्त हो चुका है मगर वो अभी तक अपनी कार्यकारिणी भी नहीं बना पाए हैं. मदन राठौड़ की कथित कार्यकारिणी की सूची दो बार सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है.
एक सूची तो इसलिए विवादों में आ गई क्योंकि उसमें कार्यकारिणी में स्थान पाने वाले लोग किसकी मेहरबानी से आए हैं, इसका भी जिक्र था. सोशल मीडिया पर हंगामा मचा तो प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने इस सूची को फर्जी बताते हुए जांच के आदेश दिए.
हुआ यूं कि बीते 16 अगस्त को बीजेपी शहर जिला अध्यक्ष अमित गोयल के सोशल मीडिया अकाउंट पर पार्टी की नई कार्यकारिणी की सूची जारी की गई थी. उस सूची में कुल 34 पदाधिकारियों के नाम शामिल थे. जिनमें 8 उपाध्यक्ष, 3 महामंत्री, 9 मंत्री, 1 कार्यालय मंत्री, 6 प्रदेश प्रवक्ता, 1 आईटी संयोजक, 1 आईटी सह संयोजक, 1 सोशल मीडिया संयोजक, 1 सोशल मीडिया सह संयोजक, 1 प्रकोष्ठ संयोजक और 1 मीडिया सह संयोजक के नाम शामिल थे.
हैरानी की बात यह थी कि इस सूची में उन मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के नाम भी लिखे गए थे जिनकी सिफारिश पर नए नेताओं को शहर कार्यकारिणी में शामिल किया गया था. एक नाम के आगे तो मुख्यमंत्री कार्यालय की सिफारिश का जिक्र था. जैसे ही विवाद शुरू हुआ तो इस सूची को तुरंत डिलीट कर दिया गया.
राजस्थान में आयोग, निगम, अकादमी व बोर्ड में नियुक्तियां नहीं होने से उन नेताओं को बड़ा धक्का लगा है जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव हारने के बाद इनमें सियासी नियुक्ति की बाट जोह रहे थे. ऐसे नेताओं में पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़, प्रभुलाल सैनी, श्रीचंद कृपलानी, पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा, नारायण पंचारिया, पूर्व विधायक चंद्रकांता मेघवाल, संतोष अहलावत, रामलाल शर्मा, विठ्ठल शंकर अवस्थी, हाउसिंग बोर्ड के पूर्व चेयरमैन सरदार अजयपाल सिंह, बीजेपी नेता श्रवण बगड़ी, मुकेश दाधीच, लक्ष्मीकांत भारद्वाज, राखी राठौड़, पूजा कपिल, अपूर्वा पाठक, सरिता गैना, प्रियंका बालान, जैसे नाम प्रमुख हैं.
प्रमुख आयोग, बोर्ड व निगमों की बात करें तो राजस्थान फाउंडेशन, राजस्थान राज्य बीज निगम, बीस सूत्री कार्यक्रम (बीसूका), डांग व मगरा विकास बोर्ड, महिला आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, समाज कल्याण बोर्ड, अनुसूचित जाति आयोग, ओबीसी आयोग, खादी बोर्ड, राज्य क्रीड़ा परिषद, समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड, आवासन मंडल, जन अभाव अभियोग निराकरण समिति, वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, गोसेवा आयोग, युवा बोर्ड, भूदान बोर्ड, मेला विकास प्राधिकरण, डेयरी फेडरेशन, बुनकर संघ, सार्वजनिक प्रन्यास बोर्ड, लघु उद्योग विकास निगम, राज्य सफाई कर्मचारी चयन आयोग, जवाहर कला केंद्र, अंतरराज्यीय जल विवाद निवारण समिति जैसे महत्वपूर्ण स्थानों में मुखिया के पद खाली चल रहे हैं. इन आयोगों में जिन नेताओं को सियासी नियुक्ति मिलेगी उन्हें कैबिनेट और राज्यमंत्री स्तर का दर्जा दिया जाता है.
बीजेपी सरकार और संगठन की इस हालत पर कांग्रेस प्रवक्ता जसवंत गुर्जर कहते हैं, ''यह सरकार दिल्ली से रिमोट कंट्रोल के जरिए चल रही है. वहां से पर्ची खुलेगी तभी मंत्रिमंडल विस्तार होगा और उसके बाद ही निगम, अकादमी, बोर्ड व आयोगों में नियुक्तियां होंगी.''
राजस्थान की भजनलाल सरकार अब तक 9 बीजेपी नेताओं को ही निगम, बोर्ड व प्राधिकरणों में नियुक्ति दे पाई है. जिन नेताओं को सियासी आधार पर नियुक्ति मिली है उनमें पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत को धरोहर प्रोन्नति प्राधिकरण, पूर्व सांसद सीआर चौधरी को किसान आयोग, पूर्व सांसद जसवंत विश्नोई को जीव जंतु कल्याण बोर्ड, पूर्व मंत्री अरुण चतुर्वेदी को राज्य वित्त आयोग, पूर्व मंत्री प्रेम सिंह बाजौर को सैनिक कल्याण बोर्ड, बीजेपी नेता राजेंद्र नायक को अनुसूचित जाति वित्त वित्त व विकास आयोग, ओम प्रकाश भडाना को देवनारायण बोर्ड, रामगोपाल सुथार को विश्वकर्मा कौशल विकास बोर्ड और प्रहलाद टाक को माटी कला बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है. पूर्व न्यायाधीश गंगाराम मूलचंदानी को राज्य मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन और पूर्व आईपीएस अशोक गुप्ता को मानवाधिकार आयोग में सदस्य बनाया गया है.
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ भजन लाल सरकार ने ही निगम, आयोग, बोर्ड व अकादमियों में नियुक्तियों में देरी की है. राजस्थान में सियासी नियुक्तियों में देरी करना पूर्ववर्ती सरकारों की भी परिपाटी रही है. पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार में भी दो साल बाद ही निगम, बोर्ड व अकादमियों में नियुक्तियां की गई थी. गहलोत सरकार के आखिरी पांच माह में प्रदेश में 20 से नए आयोग बनाए गए और उनमें अध्यक्षों की नियुक्ति की गई. इसी तरह पूर्ववर्ती वसुंधररारजे सरकार में भी राजनीतिक नियुक्तियों में दो से ढाई साल की देरी हुई थी.
राजनीतिक नियुक्तियों में हो रही देरी से कार्यकर्ता बेचैन हैं, नेता नाराज और सत्ता व संगठन अधूरा है. कहने को तो भजनलाल सरकार पूर्ण बहुमत की सरकार है मगर सियासी फैसले 20 माह बाद भी अल्पमत में फंसे हैं.