प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की बिहार यात्रा पर आ रहे हैं. कहने को यह उनकी सरकारी यात्रा है, जिसमें वे राजधानी पटना और रोहतास के बिक्रमगंज में 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक की लागत की योजनाओं का उद्धाटन और शिलान्यास करेंगे. मगर इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, इसलिए प्रदेश की बीजेपी इकाई ने अपने इस स्टार कैंपेनर की यात्रा का राजनीतिक लाभ लेने की पूरी तैयारी की है.
जहां 29 की शाम पटना में उनका रोड शो होगा और फिर वे प्रदेश भाजपा कार्यालय में पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात करेंगे. वहीं, 30 मई को बिक्रमगंज में उनकी एक जनसभा कराने की तैयारी है, जिसमें पार्टी तीन लाख लोगों को जुटाने का दावा कर रही है.
खास तौर पर बिक्रमगंज में पीएम मोदी की जनसभा को राजनीतिक जानकार काफी उत्सुकता से देख रहे हैं, क्योंकि रोहतास जिले का यह इलाका मगध और शाहाबाद के लगभग बीच में है और दोनों क्षेत्र को प्रभावित करता है. पिछले पांच साल से बीजेपी और एनडीए इन दोनों इलाकों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को इस इलाके की 48 में से सिर्फ आठ सीटें मिल पाई थीं, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में आठ में से दो सीटें ही एनडीए जीत पाया. ये पूरे बिहार में एनडीए के सबसे कमजोर इलाके हैं. ऐसे में बीजेपी इस रैली के जरिए यह उम्मीद रख रहा है कि अगले चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होगा. मगर वे क्या एनडीए के पुराने अच्छे दिन वापस करवा पाएंगे, यह बड़ा सवाल है.
दरअसल 2020 से पहले इस इलाके में बीजेपी और एनडीए का प्रदर्शन बेहतर रहा करता था. 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने इस इलाके की सभी आठ सीटें जीत ली थीं. जिसमें चार- आरा, बक्सर, सासाराम और औरंगाबाद की सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. काराकाट, जहानाबाद और गया की सीटें जदयू ने जीतीं और नवादा पर लोजपा ने जीत दर्ज की थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में भले एनडीए 11 सीट ही जीत पाया, मगर यहां ध्यान देने वाली बात है कि उस चुनाव में जदयू और राजद साथ थे और जदयू ने 11 सीटें जीती थीं.
वहीं 2020 में जदयू और बीजेपी के साथ रहने पर भी इस इलाके में आठ सीटें ही जीत पाईं, जिसमें तीन सीटें जीतनराम मांझी की पार्टी 'हम' को मिली थी. बीजेपी को पांच सीटें मिलीं, जदयू अपना खाता भी नहीं खोल पाई. शाहाबाद में एनडीए का प्रदर्शन काफी बुरा रहा. गठबंधन 22 में से सिर्फ दो सीट जीत पाया था. वहीं महागठबंधन ने जो 39 सीटें जीतीं उनमें राजद के खाते में 26, कांग्रेस के खाते में आठ और भाकपा-माले के खाते में 5 सीटें आईं. जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में जब एनडीए ने बिहार में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया तब भी इस इलाके में इंडिया गठबंधन को आठ में से छह सीटें मिली थीं. इनमें राजद को तीन, भाकपा माले को दो और कांग्रेस को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी. एनडीए में एक सीट बीजेपी और एक 'हम' के खाते में गई थी.
मगध-शाहाबाद में पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े (कुल सीटें 48) :
पार्टी 2015 2020
राजद 20 26
बीजेपी 09 05
जदयू 11 00
कांग्रेस 05 08
भाकपा-माले 01 05
रालोसपा- 01 00
हम 01 03
बसपा 00 01
पिछले लोकसभा चुनावों में मगध-शाहाबाद के आंकड़े (कुल सीटें 08)
पार्टी 2019 2024
राजद 00 03
बीजेपी 04 01
जदयू 03 00
कांग्रेस 00 01
भाकपा-माले 00 02
हम 00 01
लोजपा 01 01
ऊपर दिए आंकड़ों को देखते हुए यह समझा जा सकता है कि 2020 के बाद इस इलाके की राजनीति तेजी से बदली है और बीजेपी या एनडीए की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है. वहीं महागठबंधन और इंडिया गठबंधन लगातार मजबूत हो रहा है.
क्या है वजह?
जानकार इस इलाके में महागठबंधन-इंडिया गठबंधन के मजबूत होने के पीछे भाकपा-माले के साथ आने और रणनीति के तौर पर राजद द्वारा कुशवाहा, वैश्य और राजपूत वोटरों में सेंधमारी की कोशिश करने को मुख्य वजह के तौर पर देखते हैं. साथ ही इस इलाके के लोगों में रोजगार और हाशिये पर रहने की निराशा फिर से बलवती हुई. इन तीनों वजहों को एक-एक कर समझते हैं.
भाकपा-माले का साथ आना : टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र कहते हैं, "मगध और शाहाबाद का इलाका भूमि-संघर्ष का इलाका रहा है इसलिए भाकपा-माले की यहां मजबूत पकड़ रही है. 2020 से पहले माले अकेले या वाम गठबंधन के साथ चुनाव लड़ती थी. ऐसे में उसका कैडर जो वोट करता, वह उसके जीतने के लिए पर्याप्त नहीं होता. इससे राजद को नुकसान भी पहुंचता था. इसलिए 2020 में माले का महागठबंधन में आना एक बड़ा फैक्टर साबित हुआ. इससे दोनों को फायदा हुआ. कांग्रेस को भी जाहिर तौर पर लाभ मिला. इसे हम आंकड़े में देख सकते हैं कि कैसे 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में इन तीनों पार्टियों की सीटें इस इलाके में बढ़ी."
कुशवाहा, वैश्य और राजपूत वोटों में सेंधमारी: राजनीतिक टिप्पणीकार रमाकांत चंदन कहते हैं, "2024 के लोकसभा चुनाव में जहां राजद ने कुशवाहा वोटरों को साधने के लिए इस जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिए, खासकर औरंगाबाद से अभय कुशवाहा को. वहीं माले ने कुशवाहा और वैश्य मतदाताओं पर फोकस करते हुए राजाराम सिंह और सुदामा प्रसाद को उतारा. काराकाट से पवन सिंह का निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में आना और बक्सर से सुधाकर सिंह का राजद की तरफ से उतरना राजपूत मतदाताओं को भी अपनी तरफ खींचने में सफल रहा. इस वजह से बीजेपी के आर.के. सिंह जैसे दिग्गज नेता चुनाव हार गए. उपेंद्र कुशवाहा अपनी पसंदीदा सीट काराकाट को बचा नहीं पाए. औरंगाबाद से सुशील सिंह हार गए."
शांति से मन भर गया अब 'न्याय' चाहिए : पुष्पेंद्र बताते हैं, "यह इलाका लालू जी के जमाने में और उससे पहले भी जमीन के संघर्ष का इलाका रहा है. उस दौर में यहां बड़े-बड़े जनसंहार हुए. खूब खून-खराबा हुआ. मगर एक समय के बाद यहां के लोग मार-काट से थकने लगे और शांति की तलाश करने लगे. इसलिए उन्होंने नीतीश के वक्त में आई शांति का समर्थन किया. मगर अब एक बार फिर से यहां के लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी है, खास तौर पर नौकरी और रोजगार की. जो मौजूदा सरकार पूरा नहीं कर पा रही. इसलिए लोग अब फिर से संघर्ष करने वाली पार्टियों के पाले में जा रहे हैं."
मगर अब एनडीए क्या करेगा
बीजेपी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि पार्टी इन परिस्थितियों को गंभीरता से ले रही है. खासकर जब पार्टी इस चुनाव में 200 से अधिक सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है, तो वह इस क्षेत्र को नजरअंदाज नहीं कर सकती. ऐसे में बताया जा रहा है कि इस इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रियता बढ़ी है. इसकी शाखाओं का विस्तार तो हो ही रहा है, साथ ही कार्यकर्ता घर-घर जाकर वोटरों को मोदी सरकार की खूबियां बता रहे और बीजेपी के पक्ष में माहौल बना रहे. इसी का नतीजा है कि पार्टी इस बार बिक्रमगंज में बड़ी रैली करने की हिम्मत जुटा पाई है.
बीजेपी का लक्ष्य इस रैली में इसी इलाके से तीन लाख लोगों को जुटाना है. पार्टी के सूत्र कहते हैं कि पहले इस इलाके में रैली होती थी तो पार्टी को उत्तर बिहार के इलाकों से भी लोगों को ढोकर ले जाना पड़ता था. मगर इस बार उन्हें भरोसा है कि वह इस इलाके से लोगों को जुटा लेगी. हालांकि इसमें कई चुनौतियां हैं. चर्चित यू-ट्यूबर और बीजेपी नेता मनीष कश्यप जिनकी पिछले दिनों पीएमसीएच में पिटाई हो गई थी, अलग ही अभियान चला रहे हैं. वे इस इलाके के मतदाताओं से अपील कर रहे हैं कि वे पीएम की रैली में न जाएं ताकि मोदी यहां की समस्याओं को समझ सकें. इधर कई लोग शाहाबाद को अलग प्रमंडल बनाने की भी मांग कर रहे हैं. शाहाबाद महोत्सव आयोजन समिति की तरफ से यह मांग पीएम मोदी से की गई है.
हालांकि आधिकारिक रूप से बीजेपी कुछ और ही कहती है. पार्टी के मीडिया प्रभारी दानिश इकबाल के मुताबिक, "यह ठीक है कि इस इलाके में हमारी स्थिति कमजोर है. मगर पिछले साल के विधानसभा उपचुनाव में हमने बेहतर प्रदर्शन किया है, चार की चार सीटें एनडीए के खाते में गई हैं. एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन उस इलाके में हुए है, जिसमें हमने बूथ स्तर तक संवाद किया है. हमारे प्रदेश अध्यक्ष ने भी वहां का दौरा और प्रवास किया है. मोदी जी की इस यात्रा से हमें निश्चित तौर पर मजबूती मिलेगी."
वहीं राजनीतिक जानकार बताते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी की इस यात्रा में उनका फोकस ऑपरेशन सिंदूर और विकास पर रहेगा. इसको लेकर पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर मोदी की तसवीर वाले दो बड़े पोस्टर लगे हैं. इनमें एक में लिखा है, "न देश झुकेगा, न बिहार का विकास रुकेगा." दूसरे में, "जो सिंदूर मिटाने निकले थे, उन्हें मिट्टी में मिलाया है."
रमाकांत चंदन कहते हैं, "पार्टी के पास फिलहाल राष्ट्रवाद के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. हां साथ में बिहार के विकास का तड़का लगाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि पीएम मोदी इस दौरे में बिहार के लिए 50 हजार करोड़ की योजनाओं की घोषणा करेंगे."
इस यात्रा में पीएम मोदी पटना एयरपोर्ट के नये टर्मिनल भवन का उद्घाटन करेंगे, वहीं बिहटा में नये नागरिक एयरपोर्ट की आधारशिला रखेंगे. इन दोनों की लागत क्रमशः 1200 करोड़ और 1410 करोड़ रुपए बताई जा रही है.
बिक्रमगंज से पीएम मोदी 48,520 करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा करेंगे. इसमें 29,930 करोड़ की लागत वाली नबीनगर थर्मल पावर प्लांट की दूसरे यूनिट(3*800 मेगावाट) प्रमुख है. इसके अलावा कई हाइवे और बड़े पुलों का शिलान्यास होना है. मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या ऑपरेशन सिंदूर के नारे और विकास की इन घोषणाओं से मोदी मगध और शाहाबाद के वोटरों का मन बदल पाएंगे?