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क्या काशी से दक्ष‍ि‍ण को संदेश देने में कामयाब हो पाएंगे पीएम मोदी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से 17 दिसंबर को काशी-तमिल संगमम 2.0 की शुरुआत की है

17 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के नमो घाट से काशी-तमिल संगमम 2.0 की शुरुआत की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी-तमिल संगमम कार्यक्रम में
अपडेटेड 19 दिसंबर , 2023

वाराणसी में असि घाट से हरिश्चंद्र घाट की तरफ चलने पर कर्नाटक घाट के बगल में हनुमान घाट है. हनुमान घाट के पीछे बसे मोहल्ले को 'मिनी तमिलनाडु' के नाम से जाना जाता है. यहां पर वे 200 तमिल परिवार रहते हैं जिनके पूर्वज तमिलनाडु से आकर काशी में बस गए थे. यहां पर बना काशी कामकोटीश्वर मंदिर हूबहू तमिलनाडु के मदुरै नगर में स्थि‍त विश्व प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर की प्रतिकृति है.

दक्ष‍िण भारतीय स्थापत्य कला के दक्ष शिल्पकारों द्वारा निर्मित उत्तर भारत के इस इकलौते मंदिर में शि‍व के पंचायतन स्वरूप के दर्शन होते हैं. कांची शंकराचार्य पीठ की ओर से संरक्ष‍ित इस देवालय में दक्ष‍िण के सुदूर केरल राज्य में शबरीमाला पर्वत पर विराजे स्वामी अयप्पा शबरीमाला भी उसी रूप में पूजे जाते हैं और प्रतिष्ठ‍ित हैं.

मंदिर के बगल में स्वाधीनता संग्राम के लिए अनेक तमिल कविताओं के जरिए जनजागृति फैलाने वाले राष्ट्रकवि चिन्नस्वामी सुब्रमण्यम भारती की प्रतिमा स्थापित है, जो 16 साल की अवस्था में काशी आए और यहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई. हनुमान घाट से करीब 200 मीटर की दूरी पर विजयानगरम घाट के बगल में केदारघाट है जो तमिलनाडु के साथ दक्ष‍िण भारतीय लोगों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. यहां बाबा केदारनाथ के साथ माता पार्वती लिंग स्वरूप में विराजमान हैं. यहां के गौरी-केदारेश्वर मंदिर का प्रबंधन तमिलनाडु के कुमारस्वामी मठ द्वारा किया जाता है. कार्तिक के महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

देश की प्राचीनतम धर्मनगरी काशी का तमिलनाडु और तमिल भाषा से पौराणिक समय से चले आ रहे श्रद्धा और संस्कृति के संबंध को और प्रगाढ़ करने के लिए वाराणसी में काशी-तमिल संगमम् के अनोखे कार्यक्रम की शुरुआत पिछले वर्ष की गई थी. प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 19 नवंबर, 2022 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के एम्फी थियेटर मैदान में काशी-तमिल संगमम् का उद्घाटन किया था.

इस बार 17 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के नमो घाट से काशी-तमिल संगमम 2.0 की शुरुआत की. यह समारोह पिछली बार की तुलना में इस बार इसलिए भी अलग है कि बीते एक वर्ष में भाजपा कर्नाटक की सत्ता से हाथ धो चुकी है और उसका तेलंगाना  विजय का सपना भी चूर हो चुका है. इस तरह दक्ष‍िण भारत में भाजपा की सिकुड़न दूर करने के लिए काशी-तमिल संगमम् के जरिए किए जा रहे प्रयासों के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं.

काशी-तमिल संगमम् की पृष्ठभूमि दिसंबर, 2021 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन से ठीक पहले पड़ गई थी. कॉरिडोर के लोकार्पण से ठीक पहले जब काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद का पुनर्गठन हुआ तब उसमें पहली बार तमिलनाडु मूल के विद्वान वेंकटरमण घनपाठी को भी सदस्य बनाया गया. वेदों का अध्ययन और अनुष्ठानों से जुड़े होने के कारण ये घनपाठी कहलाए. चेन्नई में पैदा हुए 49 वर्षीय वेंकटरमण ने बी.कॉम. तक की शिक्षा वाराणसी में ही ग्रहण की है.

काशी कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय शि‍क्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को काशी और तमिल संस्कृतियों के बीच सेतु सरीखे किसी कार्यक्रम की योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी. प्रारंभि‍क रूपरेखा तैयार होने के बाद पिछले वर्ष अगस्त में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में भारतीय भाषा समिति के चेयरमैन चामू कृष्ण शास्त्री को काशी-तमिल संगमम् का 'कान्सेप्ट नोट' बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

काशी-तमिल संगमम् को और प्रभावी बनाने के लिए ही पिछले वर्ष तमिल आईएएस अफसर एस. राजलिंगम को वाराणसी का जिलाधिकारी बनाया गया. तमिलनाडु के मिनी जापान (कुट्टी जापान) के रूप में प्रसिद्ध शि‍वकाशी निवासी एस. राजलिंगम ने 6 नवंबर, 2022 को वाराणसी का जिलाधिकारी का दायित्व संभाला था. तमिल संस्कृति के बीच सांस्कृतिक रिश्ते को और प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से 15 नवंबर, 2022 से काशी विश्वनाथ धाम में ब्रह्म मुहूर्त से ही तमिलनाडु की प्रसिद्ध गायिका रहीं भारत रत्न एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी की मधुर आवाज में सुप्रभातम का प्रसारण दोबारा शुरू किया गया.

काशी-तमिल संगमम् को पूरी तरह एक सांस्कृति आयोजन के रूप में भले ही पेश किया जा रहा हो लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ इसे दूसरे नजरिए से देख रहे हैं. बीएचयू से सेवानिवृत्त प्रोफेसर अजित कुमार बताते हैं, "काशी-तमिल संगमम् के जरिए भाजपा की सरकार अपने 'मिशन साउथ' की शुरूआत कर चुकी है. यह संगमम् दक्ष‍िण भारतीय राज्यों खासकर तमिलनाडु में भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे की पैठ बनाने की दिशा में महत्पपूर्ण कड़ी साबित होगा."

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भले ही पांच महीने से कम का समय रह गया हो लेकिन भाजपा दक्ष‍िण भारत के राज्यों में अपनी सीटों में इजाफा करना चाहती है. खासकर तमिलनाडु में उस स्थ‍िति में पहुंचना चाहती है जहां भाजपा की सीटें दो अंकों में पहुंच सके. दक्ष‍िणी राज्यों में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 39 लोकसभा सीटें हैं लेकिन वहां भाजपा गठबंधन का केवल एक ही सांसद है. इसलिए राजनीतिक लिहाज से तमिलनाडु भाजपा के लिए सर्वाधिक संभावनाओं वाला प्रदेश है.

2019 का लोकसभा चुनाव तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन कर लड़ने वाली भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है. 2014 में भगवा खेमे को तमिल राज्य में करीब 5 प्रतिशत वोट मिला था तो पांच साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में यह घटकर 3.66 प्रतिशत रह गया. भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि तमिलनाडु के पड़ोसी राज्य केरल में भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है. यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में 'नेशनल डेमोक्रेटिक एलाएंस' (एनडीए) ने कुल 10.85 प्रतिशत वोट हासिल किए थे जो पांच साल बाद बढ़कर 15.20 प्रतिशत हो गए थे.

बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी कहते हैं, "काशी-तमिल संगमम् से उत्तर और दक्ष‍ि‍ण राज्यों के बीच सांस्कृति‍क और व्यवसायिक रिश्ते मजबूत होंगे. अगर राजनीतिक रूप से इसका सकारात्मक प्रभाव होता तो इसका फायदा सत्तारूढ़ भाजपा को मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन इसमें एक लंबा समय लगेगा." जाहिर है काशी-तमिल संगमम् के जरिए भाजपा दक्ष‍िणी राज्यों में कमल खि‍लाने की एक दीर्घकालीन रणनीति की शुरुआत कर चुकी है.

सदियों पुराना है काशी का तमिल से रिश्ता

  • सातवीं सदी के तमि‍ल लोक साहित्य काशी के महिमागान वाली रचनाओं से भरे हैं
  • ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार 2000 वर्ष पहले तमिलजन काशी यात्रा पर आने लगे थे 
  • शास्त्रों के अनुसार भगवान विश्वेश्वर की प्रेरणा से अगस्त्य मुनि दक्ष‍िण गए और तमिल भाषा का प्रचार प्रसार किया
  • तमिलनाडु की तेनकाशी नगरी को 'दक्ष‍िण की काशी' कहा जाता है
  • पांड्य वंश के सम्राट ने काशी से शि‍वलिंग लाकर तेनकाशी में स्थापित किया था
  • तमिलनाडु में तिरूवैआरू, गंगैकोंडसोलहपुरम समेत सात स्थान है जो काशी-तमिल की साझा संस्कृति को दर्शाते हैं
  • काशी में सक्रिय तमिलनाडु के वैश्य समुदाय की संस्था 'नाट्टुक्कोट्टै नगरत्तार' का काशी विश्वनाथ मंदिर में तीनों प्रहर की पूजा में विशेष योगदान है
  • तमिलनाडु से आए दंडी सन्यासी शुकदेव ने वर्ष 1800 के आसपास काशी में संन्यासियों के लिए रहने के लिए शुकदेव मठ का निर्माण करवाया था
  • काशी का ब्रह्मेंद्र मठ श्रीकांचीकामकोटिपीठ से जुड़ा संगठन है, यहां संन्यासियों के रहने और वेदों के अध्ययन का कार्य भी होता है. 
  • बनारसी साड़ी की तमिलनाडु में बड़ी डिमांड है तो वाराणसी कांचीपुरम (सिल्क) साड़ियों का एक बड़ा बाजार है 
  • तमिलनाडु के गांव-गांव में काशी विश्वनाथ मंदिर मिलते हैं
  • काशीनाथ या काशीनाथन, विश्वनाथ या विश्वनाथन नाम तमिलनाडु के लोगों में सबसे ज्यादा मिलते हैं
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