उत्तर प्रदेश में पुलिस विभाग के मुखिया की तैनाती पिछले कई वर्षों से विवादों में घिरी हुई है. निष्क्रियता और काम में रुचि की कमी के आरोपों के बाद, 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी मुकुल गोयल को फरवरी 2024 में उनकी सेवानिवृत्ति से काफी पहले 11 मई 2022 को हटाए जाने के बाद लगातार चार कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) तैनात किए गए हैं.
स्थाई डीजीपी मुकुल गोयल को हटाकर योगी सरकार ने डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया था. इसके बाद विजय कुमार, आर. के. विश्वकर्मा कार्यवाहक डीजीपी बने. इस साल प्रशांत कुमार को यूपी का कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया. हालांकि मुकुल गोयल को हटाए जाने से राज्य में डीजीपी की तैनाती को लेकर राज्य और केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के बीच मतभेद पैदा हो गए थे.
योगी मंत्रिमंडल द्वारा न्यूनतम दो वर्ष के कार्यकाल के लिए राज्य पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के नए नियमों को मंजूरी दिए जाने से यूपी में 30 महीने से अधिक के अंतराल के बाद स्थाई डीजीपी मिलने का रास्ता साफ हो गया है. योगी सरकार द्वारा लाए गए नए नियमों के तहत, राज्य के पुलिस प्रमुख का चयन एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा किया जाएगा.
यह पहले की प्रक्रिया से अलग है, जिसके तहत राज्य वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारियों (जिनकी न्यूनतम सेवा अवधि छह महीने शेष है) की सूची केंद्रीय गृह मंत्रालय और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को नामों की एक सूची भेजता था, ताकि नए डीजीपी की नियुक्ति के लिए मानदंडों के अनुसार तीन अधिकारियों के नाम तय किए जा सकें. 4 नवंबर की शाम को राज्य मंत्रिमंडल ने ‘पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश चयन एवं नियुक्ति नियम, 2024’ को मंजूरी दे दी. गृह विभाग के अधिकारियों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य की रिट याचिका के मामले में 22 सितंबर, 2006 को राज्य सरकारों से नया पुलिस अधिनियम बनाने को कहा था, ताकि पुलिस व्यवस्था को किसी भी तरह के दबाव से मुक्त रखा जा सके. नए नियमों के लिए सुप्रीम कोर्ट के सभी निर्देशों को ध्यान में रखा गया है.
नए नियमों के मुताबिक राज्य सरकार को राज्य पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिए यूपीएससी पैनल को नाम नहीं भेजने होंगे. डीजीपी के चयन और नियुक्ति के लिए गठित समिति की अध्यक्षता हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे और इसमें राज्य के मुख्य सचिव, यूपीएससी के एक नामित व्यक्ति, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या नामित व्यक्ति, गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव के साथ ही सेवानिवृत्त डीजीपी भी सदस्य होंगे.
चयन की योग्यता के लिए, उम्मीदवारों के पास पद खाली होने की सूचना जारी होने की तिथि पर छह महीने की सेवा शेष होनी चाहिए. दिशानिर्देशों में कहा गया है कि डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल दो साल का होगा. यानी नियुक्ति के लिए चुने जाने के बाद पुलिस प्रमुख को कम से कम दो वर्ष तक सेवा करनी होगी. गृह विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, “डीजीपी को उनके पद से हटाने से संबंधित प्रावधानों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दिशानिर्देशों का पालन किया गया है. यदि नियुक्त डीजीपी के खिलाफ कोई आपराधिक या भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया जाता है, या वह अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में विफल रहते हैं, तो राज्य सरकार उन्हें दो साल की उपरोक्त अवधि पूरी होने से पहले अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त कर सकती है."
इससे पहले, 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी मुकुल गोयल, जो यूपीएससी मंजूरी के बाद तैनात अंतिम डीजीपी थे, को निष्क्रियता और काम में रुचि की कमी के आरोपों के बाद बीच में ही हटा दिया गया था. गोयल के हटने के बाद, कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार मौजूदा मानदंडों के अनुसार यूपीएससी से मंजूरी लिए बिना पुलिस विभाग के प्रमुख बनने वाले लगातार चौथे अधिकारी हैं. यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा कि नए नियम स्पष्ट रूप से 2006 के ऐतिहासिक फैसले के अनुपालन में हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को पुलिस में संरचनात्मक परिवर्तन करने के लिए विशिष्ट निर्देश दिए थे ताकि इसे बाहरी दबावों से बचाया जा सके और इसे लोगों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सके. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नए नियम डीजीपी की नियुक्ति के लिए राज्य को अधिकार वापस लाने और यूपीएससी की भूमिका को कम करने की दिशा में एक स्पष्ट कदम प्रतीत होते हैं.
योगी सरकार द्वारा डीजीपी की तैनाती के नए नियमों पर सियासत भी गरम हो गई है. नए नियमों पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर कटाक्ष करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म “एक्स” पर कहा, "मैंने सुना है कि एक वरिष्ठ अधिकारी को स्थायी पद देने और उसके कार्यकाल को दो साल बढ़ाने की व्यवस्था की जा रही है... सवाल यह है कि क्या व्यवस्था करने वाला व्यक्ति खुद दो साल तक रहेगा." एक्स पर पोस्ट में उन्होंने पूछा, "क्या यह दिल्ली से बागडोर अपने हाथ में लेने का प्रयास है? दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0."
योगी सरकार के निर्णय का बचाव करते हुए समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण कहते हैं, “जब राज्य और मुख्यमंत्री राज्य की हर कानून-व्यवस्था की समस्या के लिए जवाबदेह हैं, तो उन्हें या राज्य सरकार को पुलिस प्रमुख नियुक्त करने का निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए.” राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि जिस तरह डीजीपी की तैनाती के लिए राज्य सरकार ने नए नियम बनाए हैं उससे यूपी में योगी आदित्यनाथ के बढ़े प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है. बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, “लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद योगी आदित्यनाथ अपनी ही पार्टी के लोगों के निशाने पर थे. बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थन में आने के बाद से यह स्पष्ट हो गया है कि यूपी के सभी मसलों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ही चलेगी और केंद्र का हस्तक्षेप भी कम होगा. डीजीपी के तैनाती के नए नियम भी इसी ओर ही इशारा कर रहे हैं.”
डीजीपी की तैनाती के लिए योगी सरकार के नए नियमों को लेकर कानून के जानकार भी सवाल खड़ा कर रहे हैं. हाइकोर्ट में वरिष्ठ एडवोकेट और आरटीआई एक्सपर्ट शैलेंद्र सिंह चौहान कहते हैं, “पंजाब, पश्चिम बंगाल और तेलांगाना में ऐसी ही नियमावली बनी थी पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और पश्चिम बंगाल की नियमावली को गलत ठहरा दिया था. इस नियमावली में एक प्रावधान किया गया है कि अगर डीजी स्तर के किसी अधिकारी की सेवा अवधि छह माह बची है तो उसे डीजीपी बनाया जा सकता है और उसका कार्यकाल दो सात का किया जा सकता है. पर, डेढ़ साल का सेवा विस्तार देने के लिए केन्द्र की सहमति लेनी कानूनन जरूरी है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्र सरकार जूनियर अधिकारी को सेवा विस्तार ऐसी स्थिति में मंजूर करेगी जबकि उसके बैच या अन्य सीनियर बैच में डीजीपी के लिए अधिकारी हों. इससे केंद्र और राज्य के बीच टकराव भी बढ़ेगा.”
योगी सरकार द्वारा अचानक स्थाई डीजीपी की नियुक्ति के लिए नए नियम बनाने के पीछे की वजह सुप्रीम कोर्ट में चल रहा प्रकरण भी है. डीजीपी की स्थाई नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित है. सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती को असंवैधानिक बता रखा है. इस पर 14 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार को शपथ पत्र दाखिल करना है. जानकार बताते हैं कि शपथ पत्र दाखिल करने से पहले ही कैबिनेट में इस नई नियमावली को मंजूरी दे दी गई ताकि सरकार की पैरवी आसान हो जाए. स्थाई डीजीपी नियुक्त करने का योगी सरकार का प्रयास इस बात पर भी निर्भर करेगा कि सुप्रीम कोर्ट का इसमें क्या रुख रहता है?