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गुजरात : बीजेपी किस अजब-गजब मुश्किल में फंसती दिख रही है?

केंद्रीय मंत्री और गुजरात की राजकोट लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार परशोत्तम रूपाला के एक बयान से राज्य में पार्टी के लिए खड़ी हुई मुश्किलें

केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला
केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला
अपडेटेड 4 अप्रैल , 2024

केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला के एक बयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. दो बार के राज्यसभा सांसद रूपाला पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. वे गुजरात की राजकोट सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं. 

कुछ दिनों पहले अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने क्षत्रिय समाज को लेकर एक टिप्पणी की और इसके बाद से लगातार गुजरात के अलग-अलग हिस्सों में क्षत्रिय समाज के लोग और संगठन रूपाला के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.

दरअसल, दलित समाज के लोगों के बीच एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए रूपाला ने जो कहा उसका सार यह है कि अंग्रेजों समेत विदेशी शासकों के शासनकाल के दौरान क्षत्रिय समाज के लोगों की उनसे मिलीभगत रहती थी और न सिर्फ ये लोग उनके साथ उठते-बैठते थे बल्कि अपनी बेटियों की शादियां भी उन महाराजाओं से करा देते थे. इस बयान के बाद क्षत्रिय समाज की तरफ से कई जिलों में रूपाला का पुतला जलाया गया  और इस समाज की महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया.

मामला गरम होते देख रूपाला ने तीन बार अपने बयान के लिए माफी मांगी फिर भी यह विवाद शांत होते नहीं दिख रहा है. गुजरात में अलग-अलग सीटों पर क्षत्रिय समाज के प्रभाव को देखते हुए बीजेपी के लिए भी यह विवाद सिरदर्द बन गया है. यही वजह है कि मामले को शांत करने के लिए गुजरात प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष सीआर पाटिल खुद मैदान में उतरे. मंगलवार को रूपाला के संसदीय क्षेत्र में पहुंचे पाटिल ने खुद अपील की कि रूपाला ने माफी मांग ली है तो अब क्षत्रिय समाज को बड़ा दिल दिखाते हुए उन्हें माफ कर देना चाहिए. दो अप्रैल को ही सीआर पाटिल ने गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की मौजूदगी में क्षत्रिय संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की लेकिन यह बैठक बेनतीजा रही.

गुजरात के क्षत्रिय समाज की तरफ से यह मांग हो रही है कि रूपाला की उम्मीदवारी वापस ली जाए. यह मांग इसलिए भी जोर पकड़ रही है क्योंकि गुजरात की दो लोकसभा सीटों – वड़ोदरा और साबरकांठा पर बीजेपी ने स्थानीय विरोध को देखते हुए अपने उम्मीदवार बदले हैं. क्षत्रिय समाज और इनमें से भी खास तौर पर महिलाओं ने बीजेपी को 4 अप्रैल तक का अल्टीमेटम दिया है और कहा है कि अगर रूपाला की उम्मीदवारी वापस नहीं ली गई तो क्षत्रिय समाज अपने अभियान और उग्र करेगा और साथ ही क्षत्रिय समाज की महिला उम्मीदवारों को गुजरात की कई सीटों पर उतारने पर विचार करेगा.

परशोत्तम रूपाला की उम्मीदवारी को वापस लेने का निर्णय बीजेपी के लिए आसान नहीं होने वाला है. गुजरात में रूपाला की गिनती भाजपा के पुराने दिग्गज नेताओं में होती है. 1991 में वे अमरेली से पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद वे गुजरात सरकार में मंत्री रहे. 2006 से 2010 के बीच रूपाला गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे. 2012 से वे राज्यसभा सांसद हैं. कड़वा पटेल समाज से आने वाले रूपाला की राजकोट से उम्मीदवारी को अगर बीजेपी वापस लेती है तो इससे कड़वा पटेल समाज में पार्टी के प्रति नाराजगी पैदा होने की आशंका रहेगी. 

वहीं अगर भाजपा उनकी उम्मीदवारी वापस नहीं लेती तो क्षत्रिय समाज मोर्चा खोलकर बैठा है. इस बीच क्षत्रिय समाज से आने वाले पार्टी नेता राज शेखावत ने रूपाला के बयान के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. उनका दावा है कि अगर पार्टी ने रूपाला के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो आने वाले दिनों में क्षत्रिय समाज के कुछ और नेता भी पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं.

दरअसल, गुजरात में क्षत्रिय और पाटीदारों के बीच राजनीतिक संघर्ष का एक इतिहास रहा है. 1980 के दशक में दोनों जातियों के बीच कई हिंसक घटनाएं हुईं. 1982 में भावनगर में तीन राजपूतों की हत्या बहुचर्चित मामला बना था. इस मामले में जिन 20 पाटीदारों की गिरफ्तारी हुई थी, उन्हें अदालत ने बरी कर दिया था. 1988 में राजपूत नेता अनिरुद्ध सिंह जडेजा ने पाटीदार समाज से आने वाले कांग्रेस के निवर्तमान विधायक पोपटलाल सोराठिया की हत्या दिनदाहाड़े गोली मारकर राजकोट के गोंडल में कर दी थी. उसी गोंडल में 29 मार्च को रूपाला ने क्षत्रिय समाज ने एक बार फिर से अपने बयान के लिए हाथ जोड़कर माफी मांगी. 

बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि क्षत्रिय संगठनों ने अपने पूरे विरोध प्रदर्शन को रूपाला केंद्रित रखा है. बल्कि इन संगठनों की तरफ से यह बयान भी आया है कि पार्टी चाहे तो किसी दूसरे पाटीदार को उम्मीदवार बना दे लेकिन रूपाला उन्हें मंजूर नहीं. ऐसा इसलिए भी हो सका क्योंकि किसी भी पाटीदार संगठन या पाटीदार समाज के किसी बड़े नेता ने रूपाला के बयान का समर्थन नहीं किया है.

जिस राजकोट सीट से परशोत्तम रूपाला बीजेपी के उम्मीदवार हैं, वहां राजपूत मतदाताओं की संख्या तकरीबन 50,000 है. इसलिए गुजरात बीजेपी के लोग अनौपचारिक बातचीत में कह रहे हैं कि क्षत्रिय समाज के विरोध के बावजूद रूपाला की जीत की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे राजकोट के अलावा दूसरी सीटों पर माहौल खराब होगा. गुजरात की राजनीति को करीब से देख रहे लोगों का दावा है कि अगर कोई ऐसी स्थिति बनती है कि क्षत्रिय समाज की महिलाएं उम्मीदवार बनती हैं तो बीजेपी की सीटों की संख्या भले ही न घटे लेकिन गुजरात की हर सीट पर पांच लाख मतों से जीतने की उसकी योजना धरी की धरी रह जाएगी.

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