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ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मुंबई में कई एयर रेड सायरन खराब पड़े थे! अब क्या कर रही सरकार?

पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने हवाई हमले की चेतावनी देने के लिए सायरन बजाकर मॉक ड्रिल किया. इस वक्त पता चला कि मुंबई सहित राज्य में लगभग आधी जगहों पर सायरन काम नहीं कर रहे

हवाई हमले को लेकर सतर्क करने वाला सायरन (सांकेतिक तस्वीर)
हवाई हमले को लेकर सतर्क करने वाला सायरन (सांकेतिक तस्वीर)
अपडेटेड 28 मई , 2025

साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के वक्त हवाई हमलों से नागरिकों को सचेत करने के लिए एयर रेड प्रिकॉशन (ARP) प्रणाली की शुरुआत हुई थी. इसके तहत संभावित हवाई हमलों से लोगों को आगाह करने के लिए मुंबई शहर में 306 सायरन स्थापित किए गए थे. बाद में राज्य में कई जगहों पर इस तरह के सायरन लगाए गए.

अतीत की भारत और पाकिस्तान जंग के दौरान मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में हवाई हमले के सायरन किसी चौकीदार की तरह काम करते थे. लेकिन, पिछले महीने पाकिस्तान के साथ जारी तनाव के बीच जब हवाई हमले के इन सायरनों को बजाकर मॉक ड्रिल किया गया तो आधे से ज्यादा सायरन खराब मिले.

महाराष्ट्र में कुल 492 सायरन पॉइंट हैं. मुंबई में 311, पुणे में 85, नासिक में 33, तारापुर में 21, रायगढ़ में 16 और ठाणे में 26. इनमें से ज्यादातर सायरन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के आधार पर लगाए गए थे.

1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान हवाई हमले की चेतावनी देने में इन सायरनों ने अहम भूमिका निभाई थी. उसके बाद भी कुछ समय तक रोजाना इन सायरनों को सुबह 9 बजे बजाया जाता था.

पिछले महीने पाकिस्तान के साथ जारी तनाव के बीच जब इन सायरन को बजाकर जांच की गई तो मुंबई में कई सार्वजनिक जगहों पर लगे ये सायरन खराब मिले.

केंद्र द्वारा संचालित ARP प्रणाली 2004 के बाद इस्तेमाल में नहीं आने की वजह से तकनीकी रूप से धीरे-धीरे गुमनामी में चली गई. 2005 में मुंबई में मूसलाधार बारिश के बाद आई बाढ़ ने इन सायरन को जोड़ने वाली भूमिगत केबलों को भी नुकसान पहुंचाया था.

आखिरी बार हवाई हमले के सायरन जुलाई 2006 में मुंबई में लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने के लिए बजाए गए थे. मुंबई या महाराष्ट्र में लगे ये सायरन बाकी देशों की तरह ऑटोमेटिक या आधुनिक टेक्नोलॉजी से काम नहीं करते थे.

ये सभी सायरन मैनुअली संचालित किए जाते थे. यही वजह है कि धीरे-धीरे इस्तेमाल नहीं होने के कारण सरकारी एजेंसियों के लिए इनकी देखरेख और निगरानी मुश्किल हो गई.  

हालांकि, मुंबई के क्रॉस मैदान और कालाघोड़ा में निदेशालय कार्यालय जैसी सरकारी इमारतों पर लगाए गए कुछ सायरन का नियमित रूप से परीक्षण जरूर किया जाता रहा है.

7 मई को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हवाई हमलों को लेकर अलर्ट करने वाले इन सायरन को बजाकर मॉक ड्रिल करने के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी. इसमें हवाई हमले के सायरन का संचालन भी शामिल था.

सूत्रों ने बताया कि मुंबई में केवल 50 से 60 सायरन काम करते पाए गए, जबकि राज्य में 492 सायरन में से लगभग 50 फीसद काम नहीं कर रहे थे.

इन सायरन को अब इमरजेंसी अलर्ट देने और भविष्य में युद्ध जैसी स्थिति के लिए तैयार रहने के प्रयासों के तहत दोबारा से ठीक किया जा रहा है. महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री योगेश कदम ने इंडिया टुडे को बताया कि सरकार ने इन सायरन को अपग्रेड करने के लिए नागरिक सुरक्षा निदेशालय से प्रस्ताव मांगा है. उन्होंने कहा, "यह एक पुरानी प्रणाली है और हम इसे अपग्रेड करेंगे."

महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक और नागरिक सुरक्षा निदेशक प्रभात कुमार ने कहा कि वे मुंबई और पालघर, ठाणे, रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग के तटीय जिलों में मौजूदा सायरन को ठीक करने और इस व्यवस्था को मजबूत करने पर काम कर रहे हैं. पुराने नेटवर्क में नए सायरन भी लगाए जा रहे हैं.

कुमार ने कहा, "मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के निर्देश पर राज्य सरकार ने नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के अनुसार धनराशि उपलब्ध कराई है. हम मुंबई और उरण तथा तारापुर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कम से कम 100 सायरन लगाएंगे."

उन्होंने बताया कि इन सायरन को खरीदने और उन्हें लगाने का काम चल रहा है. पारंपरिक सायरन को बढ़ावा देने के अलावा निदेशालय भविष्य में अत्याधुनिक प्रणाली की खरीद और स्थापना की भी योजना बना रहा है.

इन जगहों पर सायरन लगाए जाने की वजह यह है कि मुंबई से लगभग 130 किमी दूर पालघर जिले में स्थित तारापुर में एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन है. वहीं, रायगढ़ जिले में उरण जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट है, जहां एक तेल और प्राकृतिक गैस निगम संयंत्र है. इसके अलावा यहां महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी द्वारा संचालित एक गैस ताप विद्युत स्टेशन भी है. ऐसे में इन संवेदनशील प्रतिष्ठानों को दुश्मनों के हमले से बचाने के लिए यहां सायरन लगाए जाएंगे.

हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर में एयर रेड सायरन का इस्तेमाल करना अपनी तरह की चुनौतियों से भरा हुआ है. जब मुंबई में ये सायरन लगाए गए तब से आजतक इस शहर में बहुत कुछ बदल गया है.

एक अधिकारी ने कहा, "मुंबई की ऊंची इमारतें पारंपरिक सायरन के लिए ध्वनि अवरोधक का काम करती हैं. इन इमारतों पर लगी कांच की दीवार ध्वनि को अंदर तक नहीं जाने देती. शहर में अब पहले की तुलना में शोर भी ज्यादा है. ऐसे में इन सायरन की आवाज ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास पहुंचेगी ऐसा मुश्किल लगता है."

नागरिक सुरक्षा तंत्र की यह कॉसेप्ट 'एयर रेड प्रिकॉशन कमेटी' से आई है. दरअसल, इस कमेटी की स्थापना अगस्त 1937 में द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी. अगर भारत की बात करें तो अक्टूबर 1939 में बॉम्बे में भी पहली बार एयर रेड प्रिकॉशन वार्डन की भर्ती की गई थी.

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