अक्सर अपने बड़े-चढ़े बयानों के चलते चर्चा में रहने वाले योगी आदित्यनाथ सरकार के कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न ‘छड़ी’ पर बड़ा गुमान करते थे. अपनी सभाओं में राजभर सीना फुलाकर राजनीतिक विरोधियों का ‘इलाज’ पार्टी के चुनाव चिह्न ‘छड़ी’ के जरिए करने की अपील जनता से करते थे.
लेकिन लोकसभा चुनाव-2024 ने ओम प्रकाश राजभर और 'छड़ी' के रिश्ते में दरार ला दी. इस चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन की समीक्षा के लिए 14 जून को लखनऊ में हुई बैठक में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच छड़ी चुनाव चिह्न का ही मुद्दा छाया रहा. असल में हुआ यह था कि ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर ने एसबीएसपी के टिकट पर घोसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. उनका चुनाव चिह्न छड़ी था.
यह चुनाव चिह्न ईवीएम में ऊपर से तीसरे नंबर पर था. घोसी सीट से 'मूलनिवास समाज पार्टी' की प्रत्याशी लीलावती राजभर भी मैदान में थीं. चुनाव आयोग ने लीलावती को 'हॉकी स्टिक' चुनाव चिह्न आवंटित किया था, जो ईवीएम में नीचे से तीसरे नंबर पर था.
इस चुनाव में लीलावती को 47,527 वोट मिले थे. एसबीएसपी नेताओं का मानना था कि उनके मतदाताओं के बीच ‘छडी’ और ‘हॉकी स्टिक’ जैसे चुनाव चिह्न को लेकर दुविधा हो गई. इसलिए गलती से एसबीएसपी के मतदाताओं ने ऊपर से तीसरे स्थान पर ‘छड़ी’ चुनाव चिह्न का बटन दबाने के बजाय नीचे से तीसरे स्थान पर 'हॉकी स्टिक' का बटन दबा दिया जिसके कारण लीलावती को अप्रत्याशित रूप से बड़ी संख्या में वोट मिले.
हालांकि, घोसी लोकसभा सीट पर एसबीएसपी उम्मीदवार अरविंद राजभर को सपा उम्मीदवार राजीव राय से 1.63 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. अगर लीलावती को मिले वोट एसबीएसपी उम्मीदवार को मिलते तो भी अरविंद राजभर हार जाते. हालांकि एसबीएसपी नेताओं ने अपनी पार्टी की मुखिया के बेटे की हार का ठीकरा ‘छड़ी’ पर फोड़ा और पार्टी का चुनाव चिह्न बदलने के लिए चुनाव आयोग से जरूरी पत्राचार करने का निर्णय लिया.
असल में पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, बलिया समेत कई जिलों में राजभर मतदाताओं की अच्छी तादाद है. ये सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के पारंपरिक मतदाता माने जाते हैं. इन मतदाताओं में सेंधमारी करने के लिए भी विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव में छड़ी चुनाव चिह्न का सहारा लिया था. असल में लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय चुनाव आयोग के पास कुल 190 चुनाव चिह्न थे. इनमें छड़ी चुनाव चिह्न 180 नंबर पर था.
आयोग से एसबीएसपी का छड़ी चुनाव चिह्न पंजीकृत नहीं था इसलिए एसबीएसपी के प्रत्याशी के चुनाव लड़ने की स्थिति में तो उसे छड़ी चुनाव चिह्न आवंटित हुआ लेकिन बाकी अन्य जिलों में दूसरे प्रत्याशी अपनी पसंद से छड़ी चुनाव चिह्न मांगने के लिए स्वतंत्र थे. इसका फायदा विरोधी दलों ने उठाया. गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा सांसद अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत अंसारी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरी थीं. एसबीएसपी का उम्मीदवार गाजीपुर लोकसभा सीट पर नहीं था क्योंकि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही राजभर की पार्टी को गठबंधन में केवल घोसी लोकसभा सीट ही मिली थी. ऐसे में नुसरत को छड़ी चुनाव चिह्न आवंटित हुआ.
लोकसभा चुनाव में नुसरत को 4616 वोट मिले थे. हालांकि अफजाल अंसारी सवा लाख वोटों से चुनाव जीते थे. वहीं बगल की बलिया लोकसभा सीट पर सपा सांसद सनातन पांडेय के भतीजे सुमेश्वर पांडेय ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था. सुमेश्वर को भी छड़ी चुनाव चिह्न आवंटित हुआ था. चुनाव में सुमेश्वर को 5056 वोट मिले थे. हालांकि सनातन पांडेय 43 हजार मतों से चुनाव जीते थे. एसबीएसपी नेताओं का मानना था कि जिस तरह विपक्षी दलों के नेताओं ने छड़ी चुनाव चिह्न का उपयोग राजभर मतदाताओं में दुविधा पैदा करने के लिए किया उससे पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा था. इसी लिए एसबीएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने बिना देर किए चुनाव आयोग में पार्टी का चुनाव चिह्न बदलने की अर्जी दायर कर दी.
करीब दो महीने बाद लखनऊ के रवींद्रालय सभागार में एसबीएसपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ओम प्रकाश राजभर ने घोषणा की कि चुनाव आयोग ने पार्टी को नया चुनाव चिह्न 'चाबी' आवंटित किया है. राजनीतिक विश्लेषक और बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, “जाति आधारित पार्टियों के वोटबैंक को चुनाव में दुविधा में डालने के लिए विपक्षी दल अक्सर मिलते-जुलते चुनाव चिह्न का सहारा लेते हैं. जब पार्टी की पकड़ अपने मतदाताओं पर कमजोर होती है तो दूसरे दल मिलते-जुलते चुनाव चिह्न से उस पार्टी के मतदाताओं को भ्रमित करने में कामयाब हो जाते हैं. लोकसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ ऐसा ही हुआ. इसीलिए राजभर ने चुनाव चिह्न बदलने के साथ पार्टी के संगठन को भी नए सिरे से तैयार करने की कवायद शुरू की है.”
राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान ओम प्रकाश राजभर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में फिर से चुना गया और इसके राज्य संगठन को चार अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया गया: पूर्वांचल, पश्चिमांचल, बुंदेलखंड और मध्यांचल. इस बीच, ओम प्रकाश राजभर, जो उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक कल्याण के कैबिनेट मंत्री भी हैं, ने घोषणा की कि उनकी पार्टी बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में भी ‘मजबूती से लड़ेगी’, उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में बल्कि बिहार में भी प्रभाव रखती है.
अपने पार्टी के नेताओं से आगामी पंचायत चुनाव और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू करने के लिए कहते हुए, राजभर ने जाति जनगणना, रोहिणी आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन, सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के साथ-साथ भर और राजभर समुदायों को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने के बारे में अपनी पार्टी की मांगों को दोहराया. उन्होंने उत्तर प्रदेश में ‘शराबबंदी’ की अपनी पार्टी की मांग पर भी जोर दिया.
इस बीच ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को एसबीएसपी का राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाया गया, जबकि उनके भाई अरुण राजभर को पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता घोषित किया गया. सुशील पांडेय बताते हैं, “जिस तरह ओम प्रकाश राजभर ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख पदों पर अपने परिवार के सदस्यों को तैनात किया है उससे अपने परंपरागत राजभर मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए उनकी चुनौतियां और बढ़ गई हैं क्योकि इन मतदाताओं के बीच अब विपक्षी दलों में नया नेतृत्व भी उभर रहा है.”
पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के दौरान ओम प्रकाश राजभर ने पार्टी नेताओं को एक विश्वविद्यालय खोलने की पहल के बारे में भी बताया, जो राज्य में मदरसों को मान्यता देगा. उन्होंने राज्य में मदरसों की मान्यता की नई व्यवस्था शुरू करने की तैयारी के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, "मैं मदरसा चलाने के लिए विश्वविद्यालय खोलूंगा. हमारी कोशिश दो विश्वविद्यालय खोलने की है. हम राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को विश्वविद्यालय से संबद्ध करना चाहते हैं और सभी मदरसों को वहीं (विश्वविद्यालय से) मान्यता दी जाएगी, ताकि भविष्य में कोई विवाद न हो."
इस बीच प्रेम चंद कश्यप को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया. एसबीएसपी की मौजूदगी मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में है, लेकिन राज्य के अन्य हिस्सों में भी अपनी मजबूत मौजूदगी फैलाने के लिए इसने संगठन को चार जोन में बांटा है और हर जोन में एक प्रमुख भी है. इस तरह एक प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही चार जोनल अध्यक्ष भी होंगे. पूर्वांचल के लिए बिछेलाल राजभर, मध्यांचल के लिए अमरमणि कश्यप, पश्चिमांचल के लिए सुजीत बंजारा, पश्चिमांचल के लिए नरेंद्र कश्यप और बुंदेलखंड जोन के लिए कालूराम प्रजापति को अध्यक्ष बनाया गया है. ये फैसले ऐसे समय में अहम हो गए हैं, जब हाल के लोकसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने पश्चिमांचल और पूर्वांचल जैसे क्षेत्रों के लिए अलग राज्य की मांग उठाई थी. राज्य में अगले विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा फिर उठने की संभावना है.