ओडिशा सूचना आयोग ने 2021 और 2022 के करीब 6,000 लंबित मामलों को बंद कर दिया है. इसके बाद पूरे राज्य में सूचना का अधिकार कानून की अहमियत और आयोग के फैसले पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. दरअसल आयोग की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है कि सदस्यों ने 13 जून को हुई बैठक में लंबित मामलों की समीक्षा की और पाया कि 2021 और 2022 के करीब 6,000 मामले सुनवाई की प्रतीक्षा में हैं. यह भी देखा गया कि सुनवाई के दौरान कई अपीलकर्ता न तो उपस्थित हो रहे हैं और न ही स्थगन की मांग कर रहे हैं.
आयोग के मुताबिक संभव है कि उन्हें मामले की लंबित अवधि में ही आवश्यक सूचना मिल चुकी हो या वे अब आगे इस मामले को नहीं बढ़ाना चाहते हों. ऐसे में आयोग ने फैसला किया है कि इन पुराने लंबित मामलों (द्वितीय अपील/शिकायत) को बंद कर दिया जाए, जब तक कि अपीलकर्ता खुद विशेष रूप से मामले को जारी रखने की इच्छा न जताएं.
आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. उनका कहना है कि यह मनमाना कदम है और सूचना के अधिकार कानून का खुला उल्लंघन है, क्योंकि मामलों को बिना किसी सुनवाई के ही बंद कर दिया गया. बीते 20 अगस्त को राज्यभर के सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं ने बैठक की. जिसमें 200 से अधिक लोगों ने अपनी अपील को जारी रखने के लिए आयोग को पत्र लिखा है.
आयोग की गलती या लोगों ने ही दिलचस्पी नहीं दिखाई
राज्य के बलांगीर जिले के संतोष महापात्रा ने 20 अप्रैल 2022 में एक सूचना मांगी कि देवगांव ब्लॉक के बीडीओ रामदत्त भोई की पहली नियुक्ति कब हुई थी और क्या उनके नाम पर कोई विभागीय कार्रवाई चल रही है. उन्हें आज तक उसका जवाब नहीं मिला. बीते 16 जुलाई को सूचना आयोग ने संतोष को नोटिस भेजा और पूछा कि क्या आप ये सूचना अभी भी चाहते हैं. जवाब में 7 अगस्त को उन्होंने बताया कि उन्हें अपनी आरटीआई की सुनवाई जारी रखनी है और वे सूचना हासिल करना चाहते हैं.
बलांगीर जिले के ही सूचना अधिकार कार्यकर्ता नीलमणी जोशी ने साल 2020 में अपने जिले में धान खरीदी संबंधी फाइल की जानकारी मांगी थी. साल 2024 में उनके पास संतोष महापात्रा की तरह ही सूचना आयोग का नोटिस आया. नीलमणी के मुताबिक उनकी आरटीआई के संबंध में आज तक एक भी सुनवाई नहीं हुई है. गोपबंधू क्षत्रीय ने अपने ग्राम पंचायत और स्थानीय कॉलेज से कुल पांच सूचनाएं मांगी थीं, उन्हें भी आज तक कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई.
बिना सुनवाई किए मामले खारिज करने के लिए इसी साल 23 जुलाई को ओडिशा हाईकोर्ट ने सूचना आयोग को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था. मिली जानकारी के अनुसार याचिकाकर्ता निवेदिता रॉय ने 21 सितंबर 2021 को कटक शहर के चौलियागंज थाने के जन सूचना अधिकारी के पास एक आरटीआई एप्लीकेशन दी थी. उन्होंने अपने पति विभूति रॉय के खिलाफ दर्ज की गई शिकायत और थाने के सीसीटीवी फुटेज की जानकारी मांगी थी.
लेकिन जनसूचना अधिकारी (पीआईओ) ने आरटीआई एप्लीकेशन का कोई जवाब नहीं दिया. जानकारी न मिलने पर उन्होंने आरटीआई अधिनियम की धारा 18 के तहत ओड़िशा सूचना आयोग में शिकायत दर्ज की. करीब चार साल बीत जाने के बाद भी आयोग ने मामले की सुनवाई किए बिना शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने धारा 19(1) के तहत प्रथम अपीलीय प्राधिकारी से संपर्क नहीं किया है. इस मनमाने आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का रुख किया.
उनका तर्क है कि यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और ओड़िशा सूचना आयोग (अपील प्रक्रिया) नियम, 2006 के नियम 6(4) के प्रावधान के खिलाफ है. जबकि सूचना अधिकार नियम के तहत, सामान्यतः सूचना 30 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए. हालांकि, अगर मांगी गई सूचना किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है, तो यह 48 घंटे के भीतर दी जानी चाहिए. यदि एप्लीकेशन किसी सहायक जन सूचना अधिकारी (APIO) को दी गई है, तो सूचना देने की समय सीमा में 5 दिन अतिरिक्त जोड़ दिए जाते हैं.
आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप प्रधान ने आरोप लगाया कि यह पहली बार नहीं है जब ऐसा प्रयास किया गया. उन्होंने कहा, “6,000 मामलों को बंद करने से पहले ही 800 मामले निपटा दिए गए थे. जब हमने विरोध किया तो आयोग ने पत्र जारी कर कहा कि शिकायत दर्ज कराई जा सकती है.”
प्रधान के मुताबिक आयोग की नियमित साप्ताहिक बैठक में इस पर चर्चा हुई थी. लेकिन जब हमने इस बैठक की मिनट्स की प्रति मांगी तो उन्होंने कहा कि यह निर्णय अनौपचारिक बैठक में लिया गया था और कोई आधिकारिक मिनट्स जारी नहीं किए गए.
क्या कह रहा है सूचना आयोग
पूरे मामले पर सूचना आयोग का पक्ष रखते हुए ओडिशा के मुख्य सूचना आयुक्त मनोज कुमार परिदा ने कहा, “हाई कोर्ट ने ओडिशा सूचना आयोग के आदेश को बरकरार रखा है. अगर अपीलकर्ता मामले को जारी रखना चाहता है, तो एक भी केस बंद नहीं होगा. 15 अगस्त के बाद लगभग 75 प्रतिशत अपीलकर्ता अपने पुराने मामलों को आगे नहीं बढ़ाना चाहते. हमें नए मामलों की ओर बढ़ना है और न्याय सुनिश्चित करना है.”
उन्होंने यह भी कहा कि बंगाल सूचना आयोग ने भी इसी तरह का कदम उठाया था. अगर किसी अपीलकर्ता को आवश्यक सूचना मिल चुकी है और वह मामले को बंद करना चाहता है, तो कोई तीसरा पक्ष उसे मुकदमा जारी रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.
हालांकि ओडिशा हाईकोर्ट ने 8 अगस्त को दुष्मंत नारायण आचार्य की रिट याचिका का निस्तारण करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता को सूचना आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने का एक और अवसर दिया जा सकता है.
मामला दरअसल राज्य मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा 16 मई 2025 को पारित आदेश से जुड़ा है, जिसमें एक मामले की दूसरी अपील यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि मांगी गई सूचना "निजी जानकारी" है. उस सुनवाई में अपीलकर्ता मौजूद नहीं थे और आयोग ने अनुपस्थिति के आधार पर मामला खारिज कर दिया था.
वहीं याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि ओडिशा सूचना आयोग (अपील प्रक्रिया) नियमावली, 2006 के तहत अपीलकर्ता को पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया. वहीं आयोग की ओर से अधिवक्ता बी.के. दास ने दलील दी कि अपीलकर्ता स्वेच्छा से पेश नहीं हुए, इसलिए आदेश में कोई गैरकानूनी तत्व नहीं है.
न्यायमूर्ति वी. नरसिंह की पीठ ने कहा कि नियमों के अनुसार, आयोग अपीलकर्ता की अनुपस्थिति में भी सुनवाई कर सकता है, लेकिन अगर याचिकाकर्ता यह साबित कर सके कि परिस्थितिवश वह उपस्थित नहीं हो सका, तो न्यायहित में उसे एक और मौका दिया जाना चाहिए.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह आयोग के समक्ष आदेश वापस लेने (recall) का आवेदन कर सकता है. यदि आयोग को यथोचित कारण मिलता है तो उसे सुनवाई का अवसर दिया जाए और मामले का निपटारा गुण-दोष के आधार पर किया जाए.
प्रदीप प्रधान एक बार फिर कहते हैं, "नए सूचना आयुक्त कानून की पूरी तरह उपेक्षा कर रहे हैं. यहां तक कि वे मामले को सही से समझ भी नहीं पाते. कभी आवेदक को अपनी बात तक करने का मौका नहीं दे रहे हैं. बिना सुनवाई के, बिना सूचना दिए मामला खत्म करना गलत परंपरा है.’’ वे आगे कहते हैं, "बीते 20 साल में कभी ऐसा नहीं हुआ था. मुझे समझ नहीं आता वो इतने बेचैन क्यों हैं बिना सूचना दिए खत्म करने के लिए. कुछ मामलों को छोड़कर आज तक पीआईओ पर पेनल्टी नहीं लगी है.”