मई की 14 तारीख को ओडिशा सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के छात्रों के लिए 11.25 फीसद आरक्षण लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी. यह प्रस्ताव सरकारी और सरकार की फंडिंग से चलने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए लागू होगा.
सीएम मोहन चरण मांझी की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट ने इस फैसले को मंजूरी दी है, जो शैक्षणिक वर्ष 2025-26 से लागू होगा. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुआई वाली ओडिशा सरकार के इस फैसले ने अब राज्य में जातिगत राजनीति को फिर केंद्र में ला दिया है.
यह रिजर्वेशन राज्य के सरकारी विश्वविद्यालयों, सरकार से सहायता प्राप्त उच्चतर माध्यमिक स्कूलों और कॉलेजों में लागू होगा, जो स्कूल और जन शिक्षा, उच्च शिक्षा, ओडिया भाषा, साहित्य और संस्कृति, खेल और युवा सेवा विभागों के तहत संचालित होते हैं.
सरकार के बयान में कहा गया है कि इस कदम का उद्देश्य सभी श्रेणियों में आरक्षण को एकसमान लागू करना है. नई नीति 'रिजर्वेशन स्ट्रक्चर' (रिजर्वेशन के ढांचे) का अनुकरण करती है, जिसमें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 22.5 फीसद, अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 16.25 फीसद, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) के लिए 11.25 फीसद, दिव्यांगजनों (पीडब्ल्यूडी) के लिए 5 फीसद और भूतपूर्व सैनिकों के लिए 1 फीसद शामिल है.
ओडिशा में अब तक SEBC/OBC छात्रों के लिए शिक्षा में आरक्षण नहीं दिया गया था, हालांकि राजनीतिक हलकों से लंबे समय से 27 फीसद कोटा लागू करने की मांग हो रही थी.
रोजगार के क्षेत्र में, राज्य ने पहले 1994 में SEBC/OBC उम्मीदवारों के लिए 27 फीसद आरक्षण लागू किया था. हालांकि, ओडिशा प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा 1998 के फैसले के बाद इसे पलट दिया गया था, जिसे बाद में 2007 में उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा. तब से, सरकारी नौकरी में SEBC आरक्षण 11.25 फीसद पर बना हुआ है.
बहरहाल, ओडिशा सरकार का यह ऐसा कदम है जिससे राज्य के 231 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समूहों को लाभ होगा. यह पहली बार है कि ओडिशा सरकार ने ओबीसी के लिए शिक्षा में कोटा की घोषणा की है, जिन्हें पहले से ही सरकारी नौकरियों में 11.25 फीसद कोटा मिल रहा है.
माझी सरकार का यह कदम विपक्षी दलों, नवीन पटनायक की अगुआई वाली बीजू जनता दल (बीजद) और कांग्रेस को मात देने का प्रयास प्रतीत होता है, जो अब पिछड़े और वंचित वर्गों के अधिकारों को लेकर बीजेपी पर दबाव बढ़ा रहे हैं.
ओडिशा के उच्च शिक्षा मंत्री सूर्यवंशी सूरज ने 15 मई को कहा कि बीजेपी सरकार ने शिक्षा में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देकर सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया है. सूरज ने कहा, "भारत के संविधान ने पिछड़े वर्गों को अधिकार दिए हैं, लेकिन अतीत में यह शून्य रहा. हमने जाति-आधारित आरक्षण को 50 फीसद के भीतर रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 11.25 फीसद आरक्षण (ओबीसी छात्रों को शिक्षा में) सुनिश्चित किया है."
ओडिशा में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के लिए आरक्षण क्रमशः 16.25 और 22.5 फीसद है. शायद माझी सरकार के इस फैसले से मुख्य विपक्षी दल बीजेडी को झटका लगा है, जिसने इसे "दिखावा" करार दिया और दावा किया कि "इस कदम से SEBC को ज्यादा फायदा नहीं होगा."
ओडिशा की राजनीति में यूपी-बिहार की तरह जातिगत कारक हावी नहीं है. इसके बावजूद बीजद (जिसने पिछले साल जून में एनडीए के हाथों सत्ता गंवा दिया) अपने पुनरुत्थान के लिए इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राज्य की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 54 फीसद है, इसलिए बीजद इन समूहों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उनके हितों को आगे बढ़ाने के प्रयास तेज कर रही है.
इसी मार्च में पिछले विधानसभा सत्र के दौरान, बीजद विधायकों ने बीआर आंबेडकर की प्रतिमा तक एक रैली निकाली और 27 फीसद ओबीसी कोटा के साथ-साथ राज्यव्यापी जाति सर्वेक्षण की मांग को लेकर धरना दिया.
माझी कैबिनेट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजद के ओबीसी सेल के अध्यक्ष अरुण कुमार साहू ने कहा कि इसमें SEBC के लिए "आंशिक आरक्षण" की घोषणा की गई है, और बताया कि सरकार ने राज्य द्वारा संचालित व्यावसायिक संस्थानों को कोटा के दायरे से बाहर रखा है.
साहू ने कहा, "सरकार ने उन कोर्स के लिए आरक्षण की घोषणा की है, जहां हर साल सीटें खाली रहती हैं. हम मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी पाठ्यक्रमों में आरक्षण की मांग करते हैं और कैबिनेट ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है. अगर वे मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में एसईबीसी के लिए आरक्षण सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो उन्हें इसका श्रेय लेने की कोई जरूरत नहीं है."
बीजद की आलोचना को कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना ने भी दोहराया है, जिन्होंने राज्य सरकार के कदम को "क्रूर मजाक" कहा है. जेना ने कहा, "मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य व्यावसायिक शिक्षा जैसे तकनीकी पाठ्यक्रमों को छोड़ कर मुख्यमंत्री द्वारा उच्च शिक्षा में ओबीसी के लिए 11.25 फीसद आरक्षण की घोषणा, 54 फीसद ओबीसी/एसईबीसी छात्रों और युवाओं के साथ पूर्ण विश्वासघात है. हालांकि इसे एक ऐतिहासिक कदम के रूप में पेश किया जा रहा है, लेकिन इससे पिछड़े वर्गों को कोई वास्तविक लाभ नहीं मिलता है."
हालांकि, बीजेपी ने इस फैसले को सामाजिक न्याय की दिशा में एक "ऐतिहासिक कदम" बताया और "पूरे राज्य में अपना संदेश पहुंचाने के लिए व्यापक कार्यक्रम" चलाने की योजना बनाई. बीजेपी ने कहा कि वो "यह भी सामने लाएगी कि किस तरह बीजद ने पिछड़े वर्गों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया है."
राज्य में ओबीसी राजनीति
2009 के विधानसभा चुनावों से पहले तत्कालीन बीजद सरकार ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसद आरक्षण देने के लिए ओडिशा पदों और सेवाओं के लिए आरक्षण (एसईबीसी के लिए) कानून, 2008 पारित किया था.
कुछ नौकरी चाहने वालों ने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण में कानून को चुनौती दी, जिसने 2013 में इसे रद्द कर दिया. बाद में, ओडिशा हाई कोर्ट ने भी न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि यह कानून आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय की 50 फीसद सीमा का उल्लंघन करता है.
बाद में नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण घटाकर 11.25 फीसद कर दिया गया, जबकि शिक्षा में कभी कोई कोटा आवंटित नहीं किया गया. जनवरी 2020 से बीजद सामाजिक न्याय के मुद्दे पर विशेष रूप से मुखर रही है और पार्टी सांसदों ने जाति जनगणना की मांग को लेकर अगस्त 2021 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी.
मई 2023 में, पटनायक सरकार ने ओडिशा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (ओएससीबीसी) को राज्य में ओबीसी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण करने का काम सौंपा. ओएससीबीसी ने बाद में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी, जिसे अब तक गुप्त रखा गया है.
2019 और 2020 में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तत्कालीन सीएम पटनायक को पत्र लिखकर नौकरियों और शिक्षा में एसईबीसी के लिए 27 फीसद आरक्षण पर जोर दिया था.