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ओडिशा : SC-ST के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए भारी फंड मिला, लेकिन ये घटनाएं रुक क्यों नहीं रहीं?

ओडिशा के कुंजाम जिले में 22 जून को दो दलित व्यक्तियों के साथ गौ-रक्षा के नाम पर मारपीट की गई, लेकिन इस साल का यह ऐसा अकेला मामला नहीं है

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बुलू नायक और बाबूलाल नायक जिनके साथ गोरक्षकों ने मारपीट की
अपडेटेड 26 जून , 2025

बीते 22 जून को ओडिशा के कुंजाम जिले के दो दलितों के साथ बर्बतापूर्ण हिंसा हुई. गौ-रक्षा के नाम पर कुछ लोगों ने बुलू नायक और बाबूलाल नायक मुंह में घास डाली और दो किलोमीटर तक घिसटने पर मजबूर किया. बाबूलाल नायक अपनी बेटी को उपहार में देने के लिए दो गाय और दो बछड़ा खरीद कर गांव जा रहे थे, उनके साथ तब यह घटना हुई. 

ये हाल तब है जब ओडिशा उन पांच राज्यों में से एक है, जिसे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) नियम  1989 और सिविल राइट्स संरक्षण अधिनियम (पीसीआर) 1955 के अंतर्गत अनुसूचित जाति और जनजातियों पर अत्याचारों की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार से सबसे अधिक पैसा मिलता है. 

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय राज्य स्तर पर इन कानूनों के क्रियान्वयन के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना चलाता है. इस योजना के तहत, वर्ष 2024-25 (3 मार्च, 2025 तक) के लिए ओडिशा को एसी/एसटी पर हो रहे अत्याचारों की रोकथाम और पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कुल 35.81 करोड़ रुपये मिले हैं. ओडिशा के अलावा उत्तर प्रदेश को 89.49 करोड़, मध्य प्रदेश को 88.12 करोड़, कर्नाटक 48.66 करोड़ और बिहार को 46.34 करोड़ रुपए मिले हैं. 

राज्य एसटी-एससी विकास विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा सरकार ने पिछले 10 महीनों (पिछले साल जून से अब तक) में एससी-एसटी  अत्याचार पीड़ितों को 20.34 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया है. कुल 2,116 पीड़ितों को यह मुआवजा मिला है. बलांगीर जिले में उत्पीड़न के सबसे ज़्यादा 202 मामले दर्ज हुए हैं.  इसके अलावा पुरी, जाजपुर, गंजाम, ढेंकानाल, कटक और बरगढ़ भी ऐसे अपराधों के हॉटस्पॉट बने हुए हैं. 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की क्राइम इन इंडिया-2024 रिपोर्ट के अनुसार ओडिशा में अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ अपराध की घटनाएं आदिवासियों से भी अधिक हैं. एससी के खिलाफ अपराध के मामले 2020 में 2,046 से बढ़कर 2022 में 2,902 हो गए. इनमें हत्या, हत्या का प्रयास, आपराधिक धमकी और बलात्कार शामिल हैं. इन मामलों में भले ही एफआईआर दर्ज हो रही हैं, लेकिन सजा की दर सिर्फ 16.1 प्रतिशत है. वहीं देश भर में साल 2022 में अनुसूचित जातियों के प्रति हिंसा के कुल 57,582 मामले दर्ज किए गए. यह साल 2021 में (50,900 मामले) की तुलना में 13.1 फीसदी अधिक थे. 

वहीं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अत्याचार के मामले 2020 में 624 से बढ़कर 2022 में 773 हो गए. ये मामले हत्या, हत्या के प्रयास, महिलाओं के प्रति हिंसा, रेप और आपराधिक धमकियों से जुड़े हैं. लेकिन राज्य में इन अपराधों में सजा की दर मात्र 19.6 फीसदी है. अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ हिंसा मामले में देश भर में 10,064 मामले दर्ज किए गए. यह साल 2021 के 8,802 मुकाबले 14.3 प्रतिशत अधिक थी. 

वहीं साल 2023 में 4 मई को ओडिशा में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए तत्कालीन केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकार मंत्री रामदास अठावले ने कहा था कि साल 2022-23 में ओडिशा में एससी और एसटी के खिलाफ 3115 मामले दर्ज हुए हैं. यह काफी चिंताजनक है. 

घटना, पीड़ितों की जुबानी 

पीड़ित 55 साल के बाबूलाल नायक कंजाम जिले के सिंगीपुर गांव रहनेवाले हैं. घटना के बारे में उन्होंने बताया, " मैं 22 जून को 15 हजार रुपए में हरिपुर गांव से दो गाय और दो बछड़ा खरीदकर ला रहा था. यह गाय मैं अपनी बेटी अनु नायक को उपहार में देने के लिए ला रहा था, जिसकी शादी पिछले साल ही हुई है. जब मैं जहाड़ा गांव पहुंचा तो वहां कुछ युवकों ने गाड़ी को रोक लिया. आरोप लगाया कि गाय खऱीद कर उसका मांस खाने के लिए ले जा रहा हूं. मैं उन्हें समझाता रहा कि यह बेटी को उपहार में देने के लिए खरीदी है, लेकिन वो नहीं माने. फिर उन्होंने 30,000 रुपए की मांग की. हमारे पास था ही नहीं, तो हम कहां से दे पाते." 

दूसरे पी़ड़ित और बाबूलाल नायक के भाई 45 साल के बुलू नायक ने बताया, "ये चार-पांच युवक थे जिन्होंने हमें मारा. फिर उन्होंने 20 और लोगों को बुलाया. मारपीट के बाद जहाड़ा गांव में ही हमारे बाल मुंडवाए गया. इसके बाद हम दोनों के मुंह में घास और पत्ते ढूंसे. फिर उन्होंने घुटनों के बल घिसटने को कहा. ऐसा नहीं करने पर फिर मारपीट की.’’ 

बाबूलाल नायक के मुताबिक लगभग दो किलोमीटर तक उनसे ऐसा करवाया गया. इसी दौरान गंदा पानी भी पीने को मजबूर किया गया. मारनेवालों में वो केवल जारा सामल नाम के युवक को पहचान पाए. बाकियों का नाम पता नहीं चला. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता आदित्य नारायण रथ के मुताबिक आरोपी युवकों का संबंध बजरंग दल से है. 

आरोपियों के खिलाफ धारकोट थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है. अब तक 9 लोगों को हिरासत में लिया गया है, बाकियों की तलाश जारी है. गंजाम जिले के एसपी सुवेंदु कुमार पात्र ने पुष्टि की है कि जांच चल रही है. दोनों पीड़ितों का इलाज धारकोट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कराया गया. 

एससी-एसटी के खिलाफ हिंसा बदस्तूर जारी 

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ हिंसा मामले में ओडिशा की स्थिति पहले भी खराब रही है. राज्य में एससी-एसटी आयोग नहीं है. दलित अधिकार कार्यकर्ता अनिल मलिक ने कुंजाम घटना को लेकर बीते 24 जून को राज्य मानवाधिकार आयोग में पिटिशन दर्ज कराई है. वे कहते हैं, "बीते पांच सालों में ओडिशा में दलितों-आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में 58 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है." 

हाल ही में हुई एक घटना का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, "बीते 14 अप्रैल को भुवनेश्वर जिले के बल्लभगढ़ गांव में रीजनल फेस्टिवल ‘झामू जतरा’ मनाया जा रहा था. प्रताप सेठी नाम के 55 साल के एक व्यक्ति ने पुजारी के हाथ का डंडा छू लिया, यह सोच कर कि उसका भला होगा. इसके बाद प्रताप सेठी को लोगों ने इतना मारा कि वह मर गया. उसके बेटे के दोनों हाथ तोड़ दिए. इसमें अभी तक एक रुपया भी मुआवजे के तौर पर नहीं मिला है. वहीं भद्रक जिले में एक गो-रक्षक मारा गया था. सरकार ने उसे तत्काल 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया. इससे लोगों में यह संदेश जाता है कि गो-रक्षा करने पर सरकार हमारा साथ देगी.’’ 

पिछले साल जगतसिंहपुर के बिरिडी और पुरी के पिपिली में दो अनुसूचित जाति के युवकों को चोरी के आरोप में पूरे गांव में चप्पलों की माला पहनाकर और चेहरे पर कालिख लगाकर घुमाया गया. बलांगीर में एक आदिवासी लड़की को मैला खाने के लिए मजबूर किया गया था. इन घटनाओं का जिक्र करते हुए अनिल मलिक कहते हैं कि इन मामलों में अब तक आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है.

ऑल इंडिया किसान मजदूर सभा के राष्ट्रीय सचिव भालचंद्र षाडंगी इस घटना को जातिगत उत्पीड़न से जोड़ते हैं. उनके मुताबिक, "हमला करने वाले पड़ोस के गांव के ही हैं. उन्होंने जाति के नाम पर गालियां भी हैं." भालचंद्र आगे कहते हैं कि गाय के मामले में कोई भी राजनीतिक पार्टी पीड़ित के पक्ष में खड़ी नहीं होती. राहुल गांधी ने पीड़ित के लिए भले ही आवाज उठाई हो, लेकिन स्थानीय कांग्रेस विधायक रमेश जना ने पीड़ित से मिलना तो दूर, इस घटना के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला. 

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