इस साल के लोकसभा चुनावों में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने शरद पवार के नेतृत्व में महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और आठ पर जीत हासिल की थी. अगर एक निर्दलीय उम्मीदवार संजय गाडे मैदान में नहीं होते, तो पार्टी सतारा भी जीत सकती थी.
निर्दलीय संजय गाडे ने ‘तुरही’ (या ट्रंपेट) चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा, जो एनसीपी (एससीपी) के ‘तुरहा बजाता हुआ आदमी’ चिह्न से मिलता-जुलता था. गाडे ने 37,000 वोट हासिल किए, जिससे बीजेपी के उम्मीदवार छत्रपति उदयनराजे भोसले को एनसीपी (एससीपी) के शशिकांत शिंदे पर 32,000 वोटों से जीत मिली थी.
अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में चुनाव चिह्न का भूत एक बार फिर से पार्टी के सामने खड़ा हो गया है. एनसीपी (एससीपी), जिसने केवल 10 सीटें जीती हैं, को ‘तुरही’ चिह्न वाले निर्दलीय उम्मीदवारों के कारण नौ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. पार्टी के उम्मीदवार उन निर्दलीय उम्मीदवारों से हार गए, जिन्होंने एनसीपी के चिह्न से मिलता-जुलता चुनाव चिह्न लिया था और जिनके मिले वोट हार-जीत के अंतर से ज्यादा थे.
उदाहरण के लिए, अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के सहकारिता मंत्री दिलीप वाल्से पाटिल ने एनसीपी (एससीपी) के देवदत्त निकम को सिर्फ 1,523 वोटों से हराया. वाल्से पाटिल की जीत में निर्णायक भूमिका निभाई, उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी के नाम से मेल खाते एक निर्दलीय उम्मीदवार ने, जो तुरही चिह्न पर चुनाव लड़े और 2,965 वोट हासिल किए. भले ही आपको ये एकाध मामला लगे मगर ठीक से पड़ताल करने पर सिर्फ चुनाव चिह्न की वजह से शरद पवार के उम्मीदवारों की मिली हार का एक पूरा पैटर्न दिखता है.
परांदा में पूर्व विधायक राहुल मोटे को शिवसेना के तानाजी सावंत से 1,509 वोटों से हार का सामना करना पड़ा, जबकि तुरही चुनाव चिह्न पर खड़े निर्दलीय उम्मीदवार जमील खान पठान को 4,446 वोट मिले. अणुशक्ति नगर में, एनसीपी की सना मलिक ने फहाद अहमद को 3,378 वोटों से हराया, जबकि निर्दलीय जयप्रकाश अग्रवाल ने 4,075 वोट हासिल किए. नवी मुंबई के बेलापुर में, बीजेपी की मंदा म्हात्रे ने एनसीपी (एससीपी) के संदीप नाइक को 377 वोटों से हराया, जबकि तुरही चिह्न को 2,860 वोट मिले. घनसावंगी में भी एनसीपी (एससीपी) के राजेश टोपे को शिवसेना के हिकमत उधान से 2,309 वोटों से हार मिली, जबकि निर्दलीय बाबासाहेब शेलके को 4,830 वोट मिले. परभणी, शाहपुर, पारनेर और बीड के कैज जैसी जगहों पर भी यही स्थिति रही.
एनसीपी (एससीपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनीश गावंडे ने चुनाव परिणामों के बाद कहा, "चुनाव आयोग से बार-बार 'तुरही' चिह्न को फ्रीज करने के लिए अनुरोध किया गया था, और लोकसभा चुनाव में शशिकांत शिंदे की हार के बावजूद, विधानसभा चुनावों में भी भ्रामक प्रतीकों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई."
बीते 15 अक्टूबर, 2024 को चुनाव आयोग ने एनसीपी (शरद पवार) के अनुरोध को स्वीकार करते हुए ‘तुरहा बजाता हुआ आदमी’ चिह्न को ईवीएम के बैलेट यूनिट्स पर प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्णय लिया, लेकिन 'तुरही' चिह्न को फ्रीज करने की मांग को खारिज कर दिया था. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था कि एनसीपी-एससीपी ने आयोग से यह शिकायत की थी कि उनका चुनाव चिह्न सही तरीके से प्रदर्शित नहीं किया गया था. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आयोग चुनाव चिह्नों के आवंटन की मौजूदा प्रणाली को बाधित नहीं करना चाहता, इसीलिए तुरही चिह्न को हटाने का अनुरोध ठुकरा दिया गया. सीईसी ने जोर देकर कहा था कि 'तुरही' का चिह्न 'तुरहा बजाते आदमी' से अलग है.
एनसीपी (एससीपी) ने यह तर्क दिया कि 'तुरही' चिह्न ‘तुरहा बजाते आदमी’ से बहुत मिलता-जुलता है, जिससे मतदाताओं में भ्रम पैदा हो सकता है. पार्टी का कहना था कि सतारा में निर्दलीय उम्मीदवार ने ‘तुरही’ चिह्न पर चुनाव लड़ा और बीजेपी के उम्मीदवार उदयनराजे भोसले के जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल किए.
अनीश गावंडे ने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए कहा, "बात यह है कि 'तुरही' चिह्न केवल उन निर्दलीय उम्मीदवारों को आवंटित किया गया है, जहां एनसीपी (एससीपी) चुनाव लड़ रही है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन पर गंभीर सवाल उठाता है. कर्जत-जामखेड में रोहित पवार नामक निर्दलीय उम्मीदवार को 80 से अधिक मुक्त चिह्नों में से केवल 'तुरही' कैसे आवंटित किया गया?"
शरद पवार के पोते रोहित पवार ने अहमदनगर (अहिल्यानगर) सीट से 1,243 वोटों के मामूली अंतर से दूसरी बार जीत हासिल की, जबकि उनके नाम के एक निर्दलीय उम्मीदवार ने 'तुरही' चिह्न पर चुनाव लड़ा और 3,489 वोट हासिल किए.