मध्य प्रदेश में किसानों से जुड़ा एक बड़ा राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है, क्योंकि राज्य सरकार ने इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर मूंग खरीदने से इनकार कर दिया है.
इस साल मूंग का एमएसपी 8,682 रुपये प्रति क्विंटल है, जो खुले बाजार में मूंग के मूल्य से करीब 1,500-2,000 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा है. पिछले कुछ सालों से नर्मदा नदी के किनारे रहने वाले मध्य प्रदेश के किसान रबी और खरीफ सीजन के बीच छोटे समय के लिए गर्मी के दिनों में मूंग की बुआई करते हैं.
गर्मी के दिनों में राज्य के करीब 12 लाख से 14 लाख हेक्टेयर जमीन पर मूंग बोई जाती है. मुख्य रूप से दलहन की इस फसल की उपज नर्मदापुरम संभाग के जिलों और रायसेन, सीहोर, विदिशा, जबलपुर, कटनी, हरदा और नरसिंहपुर में होती है. इससे पिछले कुछ साल में यहां के किसानों के आय में वृद्धि भी हुई है.
राज्य सरकार पिछले चार सालों से ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल खरीद रही है, लेकिन पिछले हफ्ते कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक बरनवाल ने इस साल किसानों से MSP पर मूंग नहीं खरीदने की बात कही है. उनका कहना है कि इसमें ज्यादा से ज्यादा हानिकारक खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
अब लोगों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या मध्य प्रदेश में MSP पर मूंग नहीं खरीदे जाने की असल वजह खरपतवारनाशी दवाई का छिड़काव ही है या इसे नहीं खरीदने की कुछ और वजह है?
गर्मियों के सीजन की मूंग मार्च के अंत में या अप्रैल की शुरुआत में गेहूं की फसल कटने के बाद बोई जाती है. इस फसल की सिंचाई ट्यूबवेल या बांधों के माध्यम से की जाती है. जल संसाधन विभाग विशेष रूप से इस फसल के लिए नहरों, बांधों या नदियों में पानी छोड़ता है.
मूंग की फसल का चक्र ढाई महीने का होता है, लेकिन किसान फसल काटने की जल्दी में रहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस फसल की उपज में किसी भी प्रकार की देरी से उन्हें आगामी खरीफ सीजन में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जैसा कि हम जानते हैं कि खरीफ की बुवाई जून के मध्य में शुरू होती है.
किसान दलहन की फसल को कम से कम समय में उपजाने के लिए ज्यादा से ज्यादा उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा मूंग के पौधे के साथ आने वाले खरपतवार को खत्म करने के लिए किसान मूंग की फसल पर बीज बनने और फली पकने के बाद खरपतवारनाशकों का छिड़काव करते हैं. यह एक केमिकल होता है, जिसके छिड़काव से मूंग की फसल कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई के लिए जल्दी तैयार हो जाती है. इससे किसानों को अगली फसल की बुवाई के महत्वपूर्ण समय पर लगभग 10-15 दिन की बचत होती है. हालांकि, केमिकल होने की वजह से इसके साइड इफेक्ट होने की भी संभावना होती है.
सवाल यह भी उठता है कि आखिर ‘पैराक्वाट डाइक्लोराइड’ जैसे खरपतवारनाशकों के छिड़काव को लेकर राज्य सरकार अभी ही क्यों जागी है, जबकि यह सालों से चलन में है?
पैराक्वाट इस्तेमाल किए जाने वाले किसी चीज के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में पहले भी एक्सपर्ट बताते रहे हैं. इसे व्यापक रूप से काफी ज्यादा जहरीला माना जाता है.
हालांकि, राज्य सरकार ने मूंग की फसल में जहरीले पदार्थों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में कभी इसपर कोई परीक्षण नहीं कराया है. साथ ही एक बात यह भी है कि सभी किसान मूंग के लिए खरपतवारनाशकों का उपयोग नहीं करते.
इसके अलावा, ‘पैराक्वाट डाइक्लोराइड’ भारत में प्रतिबंधित खरपतवारनाशक नहीं है. जानकारों का कहना है कि अगर खरपतवारनाशक मूंग को खतरनाक बना रहे हैं, तो MSP पारिस्थितिकी तंत्र के बाहर खुले बाजार में भी उनकी बिक्री पर अंकुश लगाया जाना चाहिए.
कहीं इसके पीछे कोई और वजह तो नहीं है? सरकार के सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री मोहन यादव फसलों पर खरपतवारनाशकों के इस्तेमाल के खिलाफ हैं, लेकिन सरकार के सामने वित्तीय समस्या भी है.
पिछले साल 8,558 रुपये प्रति क्विंटल के MSP पर 580,000 टन मूंग की खरीद की गई थी. इसमें से केंद्र सरकार ने तय सीमा के अनुसार करीब 330,000 टन का बिल चुकाया, बाकी मूंग की फसल को मध्य प्रदेश सरकार ने खुले बाजार में बेचने के लिए छोड़ दिया था.
मूंग सार्वजनिक वितरण प्रणाली का हिस्सा नहीं है. पिछले साल खुले बाजार में बिक्री से करीब 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान सरकार को हुआ है. संभव है कि इस रकम को राज्य सरकार बचाना चाहती है.
राज्य सरकार के अलावा केंद्र सरकार को भी मूंग की खरीद के बाद खुले बाजार में बिक्री से 1,000 करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक का नुकसान हुआ है.
मध्य प्रदेश में कृषि उपज के मूल्य निर्धारण को लेकर काफी राजनीति हो रही है क्योंकि राज्य में कृषि ही मुख्य आर्थिक गतिविधि है. भाजपा ने 2023 के चुनाव के दौरान 2,700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद का वादा किया था, लेकिन अभी तक इसे पूरा नहीं किया है.
इतना ही नहीं मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने धान की खरीद के लिए किए गए वादे को भी पूरा नहीं किया है. मूंग खरीद के मुद्दे पर विपक्षी कांग्रेस मुखर रही है, लेकिन राज्य सरकार इस पर कोई ध्यान देने के मूड में नहीं है. हालांकि अब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के केंद्रीय कृषि मंत्री हैं और किसानों को उम्मीद हैं कि वे शायद इस मामले पर दखल देंगे.