
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बदायूं जिला अध्यक्ष आरपी त्यागी ने 25 जून को बदायूं के सिविल लाइंस थाने में अशोक सिद्धार्थ के करीबी और दातागंज विधानसभा क्षेत्र प्रभारी पद से हटाए गए राजेश कुमार समेत 10 निष्कासित पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज कराई है.
पूर्व राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ मायावती के भतीजे आकाश आनंद के ससुर हैं. त्यागी ने आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी की और उन्हें जान से मारने की धमकी दी. कथित तौर पर पद से हटाए जाने के बाद राजेश कुमार ने सोशल मीडिया पर पार्टी और उसके नेताओं के खिलाफ अभियान चलाया था.
फिलहाल पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. हालांकि इस पूरे घटनाक्रम ने यह संदेश भी दिया है कि बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने निष्कासित पार्टी नेता अशोक सिद्धार्थ से जुड़े पार्टी पदाधिकारियों पर कड़ा रुख अपनाना जारी रखा है. मायावती ने 4 मार्च को आकाश को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ पर पार्टी में उम्मीदवारों के चयन, प्रचार कोष जुटाने और रणनीति बनाने सहित कई मामलों में एकतरफा फैसले लेने और आकाश पर अपने ससुर के साथ सांठगांठ करने के आरोप लगे थे. मायावती का मानना था कि आकाश अशोक सिद्धार्थ से काफी प्रभावित थे, जो कथित तौर पर पार्टी के भीतर एक समानांतर प्रणाली चलाते थे.
हालांकि आकाश आनंद को 12 अप्रैल को पार्टी में फिर से शामिल किया गया और बाद में अपनी पिछली गतिविधियों के लिए मायावती से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के बाद उन्हें मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बना दिया. बसपा के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, “बसपा प्रमुख अशोक सिद्धार्थ से इतनी नाराज हैं कि वे पार्टी के भीतर और यहां तक कि पार्टी और बसपा पदाधिकारियों के परिवारों में होने वाली शादियों की हर गतिविधि पर नजर रख रही हैं. बहन जी (मायावती) पार्टी में अनुशासन के टूटने की हर आशंका को हमेशा के लिए खत्म करना चाहती हैं इसीलिए कड़े कदम उठा रही हैं.”

अशोक सिद्धार्थ का बसपा से तीन दशक से अधिक पुराना जुड़ाव था और वे विभिन्न दक्षिणी राज्यों में पार्टी के प्रभारी थे. 8 फरवरी को दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद सिद्धार्थ को कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बसपा से निष्कासित कर दिया गया था. बसपा दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में एक भी सीट जीतने में विफल रही और इसका वोट प्रतिशत 0.58 फीसदी तक गिर गया, जिससे राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी की कमजोरी और जाहिर हुई.
अशोक सिद्धार्थ के निष्कासन के बाद से मायावती ने मिर्जापुर और प्रयागराज मंडल के समन्वयक राजू गौतम और अमरेंद्र भारती समेत कई नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. इससे पहले उन्होंने सिद्धार्थ के करीबी सहयोगी पूर्व सांसद नितिन सिंह को निष्कासित कर दिया था और अक्टूबर 2024 में उनसे पहले आगरा मंडल के समन्वयक संतोष आनंद को भी बाहर कर दिया था. पार्टी नेता बताते हैं कि सिद्धार्थ के साथ कथित संबंधों के कारण और भी नेताओं को पार्टी से निष्कासित किया जा सकता है.
पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया गया है कि वे केवल संगठनात्मक विस्तार पर ध्यान केंद्रित करें और अन्य गतिविधियों से बचें. कार्यकर्ताओं के बीच मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा. पार्टी के भीतर अनुशासन की स्थापना के साथ ही मायावती की सबसे बड़ी चिंता उस जनाधार को वापस लाने की है जिसने 2007 में बसपा को यूपी की सत्ता दिलाई थी. हालांकि 2012 में सत्ता गंवाने के बाद बसपा यूपी में लगातार कमजोर होती जा रही है और उसका जनाधार भी बिखर रहा है. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पार्टी के पिछड़े चेहरे के रूप में पेश किया और बसपा के समर्थन आधार में सेंध लगाने के लिए ऊंची जातियों, ओबीसी और दलितों के इंद्रधनुषी गठबंधन पर काम किया.
वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा ने गैर-यादव पिछड़े समुदायों को अपने पाले में करने के लिए पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) कार्ड खेला. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ओबीसी का भाजपा और सपा की ओर रुख करने से बसपा कमजोर हुई है. खोया हुआ आधार वापस पाने के लिए बसपा नेतृत्व अब कैडर कैम्प आयोजित कर ओबीसी को लुभाने का काम कर रहा है.
पार्टी के भीतर कड़े अनुशासन को लागू करने के साथ बसपा प्रमुख मायावती ने वर्ष 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में खोई जमीन हासिल करने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से समर्थन जुटाने के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है. बसपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के मुताबिक पार्टी पूरे यूपी के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में ओबीसी कैडर कैंप आयोजित कर रही है, जिसका उद्देश्य पिछड़े समुदायों का समर्थन वापस जीतना है जो वर्ष 1984 में अपनी स्थापना के बाद से पार्टी की रीढ़ रहे हैं.
पार्टी नेताओं और पदाधिकारियों को प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में कैडर कैंप आयोजित करने का निर्देश दिया गया है. पाल बताते हैं, “जिला और विधानसभा इकाई के पदाधिकारी ओबीसी मतदाताओं तक पहुंचेंगे और उन्हें पिछली बसपा सरकारों द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं से अवगत कराएंगे. वर्ष 2027 में सरकार बनने पर ओबीसी को उनके सशक्तिकरण के लिए अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में भी बताया जाएगा.” कुर्मी, मौर्य, कुशवाहा, राजभर, पाल, निषाद, नाई, नोनिया, बिंद, मल्लाह, गुज्जर और प्रजापति समेत पिछड़े समुदायों के सदस्यों को शिविरों में शामिल किया गया है. बसपा ने इन मतदाताओं के बीच अपना आधार मजबूत करने के लिए विभिन्न ओबीसी समूहों के सदस्यों वाली अपनी ‘भाईचारा’ समितियों को भी फिर से सक्रिय किया है.