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पश्चिम बंगाल: वोटर लिस्ट को लेकर चुनाव आयोग से क्यों भिड़ गईं ममता बनर्जी?

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने मतदाता सूची सत्यापन से जुड़े नए दिशा-निर्देशों को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा है

ममता बनर्जी (फाइल फोटो)
ममता बनर्जी (फाइल फोटो)
अपडेटेड 30 जून , 2025

जून की 26 तारीख को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग (EC) पर तीखा हमला बोला. उन्होंने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि मतदाता सूची के सत्यापन के लिए नए दिशानिर्देशों को जारी करने का मुख्य मकसद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को गुप्त रूप से लागू करना है. अगर ऐसा हुआ तो पश्चिम बंगाल इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला राज्य होगा.  

पूर्वी मेदिनीपुर के दीघा में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की तैयारियों का जायजा लेने के बाद सीएम बनर्जी ने यह बात कही है. ममता ने कहा कि उन्हें चुनाव आयोग से दो लंबे-लंबे 25-30 पन्नों के पत्र मिले हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि वे इन पत्रों को पूरी तरह से पढ़ नहीं पाई हैं. हालांकि, सरसरी नजर से देखने पर यह पता चला है कि आयोग अब 1 जुलाई, 1987 और 2 दिसंबर, 2004 के बीच पैदा हुए मतदाताओं से एक घोषणा पत्र की मांग कर रहा है.

सीएम ममता के मुताबिक, इस फॉर्म में नागरिकता के प्रमाण के रूप में माता-पिता दोनों के जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता है. उन्होंने चुनाव आयोग की इस नीति की आलोचना करते हुए कहा कि विशेष समय में जन्मे लोगों को अचानक इस तरह दस्तावेज जमा करने के लिए क्यों मजबूर किए जा रहे हैं.

उन्होंने इस तरह के नियम के जरिए कुछ खास लोगों को निशाना बनाए जाने की बात कहकर सवाल उठाया है. साथ ही उन्होंने कहा, "इन तारीखों को चुनने के पीछे क्या तर्क है? 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अलग क्यों रखा गया?”

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि केंद्र और चुनाव आयोग का यह फैसला NRC से भी ज्यादा खतरनाक है और सभी विपक्षी दलों को इसका विरोध करना चाहिए.

वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि नए दिशा-निर्देश मतदाता सूचियों के गंभीरता पूर्वक जांच का हिस्सा है, जो इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले वहां भी शुरू होने वाला है. नियमों के तहत, 2003 से पहले पंजीकृत मतदाताओं को अतिरिक्त दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि, 2003 के बाद पंजीकृत लोगों को पहचान और नागरिकता प्रमाण प्रस्तुत करना होगा. इस प्रक्रिया में देश भर में घर-घर जाकर सत्यापन शामिल है और कुछ राज्यों में 2004 की सूची के आधार पर सत्यापन की प्रक्रिया होगी.

ममता ने इस फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बिहार में मतदाता सूची की जांच सत्तारूढ़ बीजेपी की ध्यान भटकाने की रणनीति है. साथ ही ममता ने ये भी कहा कि बिहार तो बस बहाना है. उनका असली लक्ष्य बंगाल है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.

उन्होंने कहा कि "इस कवायद का उद्देश्य युवा और कमजोर मतदाताओं, खासकर प्रवासी श्रमिकों, छात्रों, ग्रामीणों और अशिक्षित लोगों को मताधिकार से वंचित करना है. ये वो लोग हैं, जिन्हें अपने माता-पिता के दस्तावेज हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है."

ममता ने आरोप लगाया कि BJP के इशारे पर मनमाने ढंग से वैध मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं. उन्होंने दावा किया, "बीजेपी के निर्देश पर अंतिम समय में मतदाता सूची से नाम हटाए जाते हैं. चुनाव आयोग और अन्य एजेंसियां इस तरह के जोड़-तोड़ का इस्तेमाल करके भाजपा को बंगाल में सत्ता हासिल करने में मदद कर रही हैं."

ममता ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गहरा संदेह व्यक्त करते हुए उस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया. उन्होंने सीधे गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा, "मोदीजी प्रधानमंत्री हैं. मैं कुर्सी का सम्मान करती हूं. लेकिन, सच ये है कि अमित शाह देश चला रहे हैं. मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त सहकारिता मंत्रालय में उनके सचिव थे."

सीएम ममता बनर्जी ने सभी विपक्षी दलों से इन दिशानिर्देशों के खिलाफ एकजुट होने और इन्हें खारिज करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग एकतरफा कार्रवाई नहीं कर सकता. हम संघीय लोकतंत्र में रहते हैं. राजनीतिक दल और निर्वाचित सरकारें बंधुआ मजदूर नहीं हो सकतीं. चुनाव आयोग को इन व्यापक बदलावों को लागू करने से पहले सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से परामर्श करना चाहिए."

ममता ने मतदाता सूची सत्यापन अभियान के पीछे दीर्घकालिक इरादे पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा, "गरीब लोग अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र कैसे पेश करेंगे? यह एक पिछले दरवाजे से NRC लागू करने का प्रयास है. आयोग को अपनी मंशा साफ करनी चाहिए."

इसके आगे उन्होंने कहा, "असम में भी NRC को छह साल लग गए, लेकिन अभी भी वहां इसे अंतिम सूची के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है."

उन्होंने केंद्र सरकार के प्रति अपने अविश्वास को रेखांकित करने के लिए पिछली घटनाओं का हवाला दिया. इस साल फरवरी में उन्होंने राजस्थान और हरियाणा की तरह बंगाल में भी डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्रों के मामलों को उठाया था.

TMC ने इस मुद्दे को चुनाव आयोग के आगे उठाया, जिसके बाद चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में खामियों को स्वीकार किया था. ममता बनर्जी ने कहा, "अब  चुनाव आयोग हमसे बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं का विवरण मांग रहे हैं. मैं आयोग को उनकी पहचान क्यों बताऊं?"

ममता बनर्जी के अलावा दूसरे दलों ने भी इस मुद्दे पर चुनाव आयोग का विरोध किया है. सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखकर चेतावनी दी कि मौजूदा संशोधन प्रक्रिया असम में NRC लागू होने जैसा है. हमने देखा कि असम में यह नागरिकता विवादों को निर्णायक रूप से हल करने में विफल रही है.

ममता ने उन मतदाताओं को हिरासत में लिए जाने की आशंका पर भी चिंता जताई है, जो दस्तावेजों की शर्तों को पूरा करने में विफल होंगे. सीएम ममता बनर्जी ने कहा, "जो लोग बाहर पढ़ रहे हैं या काम कर रहे हैं, उन्हें मतदान के दिन से पहले तक अपने नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने चाहिए. मुझे बताया गया है कि ओडिशा के कटक में बंगाल के 100 प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिया गया है. कुछ को बालासोर पुलिस स्टेशन में रखा गया है. ऐसी घटनाएं हर दिन क्यों हो रही हैं?"

मतदाताओं से सतर्क रहने का आग्रह करते हुए ममता बनर्जी ने चेतावनी दी कि दस्तावेज सत्यापन के बहाने नागरिकों को मताधिकार से वंचित करना अंततः “BJP को भारी नुकसान पहुंचाएगा.” हालांकि, ममता ने यह भी कहा, “हम मतदाता सूची के निष्पक्ष संशोधन के विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम ऐसे संदिग्ध तरीकों से किए जा रहे मतदाता सूची सत्यापन से वास्तविक मतदाताओं को मताधिकार से वंचित नहीं होने देंगे.”

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