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महाराष्ट्र में इस्लामपुर बनेगा ‘ईश्वरपुर’! सिर्फ धर्म नहीं, नामकरण की राजनीति के पीछे और भी कुछ है!

महाराष्ट्र में महायुति की सरकार ने छत्री निजामपुर का नाम बदलने की भी योजना बनाई है. शहरों के इस्लामी नाम बदलने के ताजा दौर को आलोचक मुस्लिम पहचान मिटाने की कोशिश मान रहे हैं

अपडेटेड 12 अगस्त , 2025

महाराष्ट्र में जगहों के नाम बदलने के एक और दौर में महायुति सरकार ने सांगली जिले के इस्लामपुर और रायगढ़ जिले के छत्री निज़ामपुर का नाम बदलने का फैसला किया है. बीजेपी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार ने घोषणा की है कि इस्लामपुर का नाम अब 'ईश्वरपुर' होगा और छत्री निजामपुर 'रायगढ़वाड़ी' कहलाएगा.

राज्य विधानमंडल के मानसून सत्र में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने घोषणा की कि कैबिनेट ने इस्लामपुर का नाम बदलने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है और अब इसे मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा.

हिंदू दक्षिणपंथी समूह 1980 के दशक से ही इस्लामपुर का नाम बदलने की मांग करते रहे हैं. विवादित बयानों के कारण सुर्खियों में रहने वाले संभाजीराव भिड़े 'गुरुजी' के नेतृत्व वाला संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान इस मामले में काफी मुखर रहा है. ग्रामीण विकास मंत्री जयकुमार गोरे ने छत्री निजामपुर का नाम बदलने की घोषणा की. ये गांव रायगढ़ किले की तलहटी में स्थित है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी थी. बीजेपी विधायक गोपीचंद पडलकर ने ग्राम पंचायत का नाम बदलने की मांग की थी.

इस्लामपुर का नाम बदलकर ईश्वरपुर करने के फैसले की पूर्व वित्त मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने आलोचना की है. पाटिल 1990 से इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उनके पिता राजारामबापू पाटिल इस सीट से तीन बार (1962, 1967, 1972) विधायक रहे हैं. जयंत पाटिल ने कहा कि सिर्फ शहर का नाम बदलने से इसकी समस्याएं हल नहीं हो जाएंगी. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने समस्याओं के समाधान पर कोई ध्यान नहीं दिया है. हालांकि, पडलकर का कहना है कि नाम बदलने का फैसला ‘लोकभावना’ के अनुरूप है. भड़काऊ बयानों के लिए विवादित रहे पडलकर ने कहा, “जो लोग हिंदू विरोधी रुख अपनाएंगे, उन्हें कुचल दिया जाएगा.”

शहरों और जिलों के इस्लामी नाम बदलने का इस ताजा दौर के बारे में जानकारों का कहना है कि ये मुस्लिम पहचान मिटाने की कोशिश का हिस्सा है. 2023 में महाराष्ट्र सरकार ने अहमदनगर जिले का नाम बदलकर 18वीं शताब्दी की इंदौर की शूरवीर रानी अहिल्यादेवी होल्कर के नाम पर ‘अहिल्यानगर’ रखने की घोषणा की थी.

इसके पीछे इरादा अपने संख्याबल की वजह से महत्वपूर्ण माने जाने वाले धनगर समुदाय को संतुष्ट करना था, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी का एक प्रमुख हिस्सा है. धनगर का पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में खासा दबदबा है और संख्या बल के लिहाज से मराठा-कुनबियों के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं. उसी वर्ष, केंद्र सरकार ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदलकर क्रमशः छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव रखने को भी मंज़ूरी दी थी.

औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम मुगल बादशाह औरंगजेब और निजाम मीर उस्मान अली खान के नाम पर रखा गया था. अहमदनगर नाम अहमद निजामशाह के नाम पर पड़ा था, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में निजामशाही वंश और इस शहर की स्थापना की थी. औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर करने का उद्देश्य छत्रपति संभाजी महाराज की स्मृति को संजोना रहा है, जिन्हें 1689 में औरंगजेब की सेना की तरफ से बंदी बनाए जाने के बाद कड़ी यातनाएं दी गईं और फिर उनकी हत्या कर दी गई.

मई 1988 में महाराष्ट्र के मूल निवासी राजनेता से हिंदुत्व के प्रतीक के तौर पर उभरते तत्कालीन शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने औरंगाबाद में एक जनसभा में इसकी मांग की थी. तबसे, शिवसेना नेता और कार्यकर्ता औरंगाबाद को हमेशा ‘संभाजीनगर’ ही कहते रहे हैं.

हालांकि, औरंगाबाद का नाम बदलने से भानुमती का पिटारा खुल सकता है, क्योंकि ऐसी ज्यादातर मांगें जाति-आधारित या कोई खास पहचान रखने वाले समूहों की ओर से आती हैं. शहरों ही नहीं रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने की मांग भी काफी पहले से उठ रही हैं. इनमें मुंबई, पुणे, कोल्हापुर और नागपुर; अहमदनगर जिला; और मुंबई में चर्चगेट, दादर और मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन आदि शामिल हैं.

इनमें कुछ मांगें एक-दूसरे से परस्पर विरोधी प्रकृति की हैं. बतौर उदाहरण, 2020 में महाराष्ट्र विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र सरकार से मुंबई सेंट्रल स्टेशन का नाम बदलकर परोपकारी जगन्नाथ 'नाना' शंकरशेठ मुरकुटे पर रखने की सिफारिश की गई थी, जिन्होंने अंग्रेजों के शासनकाल में मुंबई के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. लेकिन दलित समूह चाहते हैं कि इसका नाम बदलकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कर दिया जाए.

महाराष्ट्र अपने सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रतीक चिह्नों को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है. 1978 में शरद पवार के नेतृत्व वाले गठबंधन प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा ने औरंगाबाद स्थित मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर आंबेडकर पर रखने का फैसला किया. लेकिन प्रमुख मराठा समुदाय के सदस्यों ने इस पर नाराजगी जताई.

इस कदम की वजह से ही क्षेत्र में दलितों, खासकर बौद्ध दलितों के खिलाफ हिंसा भड़की थी. जनवरी 1994 में विश्वविद्यालय का नाम बदलकर अंततः डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय कर दिया गया. इसके साथ, मराठवाड़ा मुक्ति आंदोलन के नायक स्वामी रामानंद तीर्थ के नाम पर नांदेड़ में एक नया विश्वविद्यालय बनाया गया. इसके पीछे उद्देश्य नाम बदलने का विरोध करने वालों को संतुष्ट करना था.

नाम बदलने की मांग को लेकर चले ‘नामांतर’ आंदोलन ने ही केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले और पूर्व सांसद जोगेंद्र कवाड़े जैसे दलित नेताओं को राजनीतिक पहचान थी. इसने जातिवाद के खिलाफ मोर्चेबंदी को भी जन्म दिया. इसी का नतीजा था कि शिवसेना मराठवाड़ा में राजनीतिक जगह बनाने में सफल हुई, जो मुंबई-ठाणे क्षेत्र के बाहर उसकी पहली शुरुआत थी. हालांकि, डेढ़ दशक लंबे आंदोलन के दौरान जो सामाजिक मनमुटाव बढ़ा, वो आज भी मराठवाड़ा क्षेत्र में गूंजता रहता है.

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