महाराष्ट्र में साल 1999 से लेकर 2019 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो इस दौरान कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि 12 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर राज्य की विधानसभा में अपना कदम रखा हो. महाराष्ट्र की अनुमानित आबादी 12.50 करोड़ के आसपास है, और उसमें मुस्लिमों की भी अच्छी-खासी भागीदारी है. वे कुल जनसंख्या के करीब 12 फीसद हैं यानी सवा करोड़ से भी ज्यादा.
लेकिन राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में मुसलमानों की मौजूदगी बहुत कम है. पिछले पांच विधानसभा चुनावों में चुने गए मुस्लिम विधायकों की संख्या में धीरे-धीरे गिरावट देखी गई है. 2019 के चुनावों में कुल 288 विधायकों में से सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. 1999 में 12 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, लेकिन 2004 में यह संख्या घटकर 11 रह गई. 2009 में भी सिर्फ 10 मुस्लिम विधायक ही चुने गए.
इनमें भी पांच कांग्रेस के विधायक थे, जबकि कुल 10 में से छह मुंबई इलाके से चुने गए थे. यह इलाका मुस्लिम बहुल माना जाता है. अगर इसे ठाणे के साथ मिला दिया जाए तो यह महाराष्ट्र की मुस्लिम आबादी का करीब एक तिहाई हिस्सा कवर कर लेता है. बहरहाल, 2014 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम विधायकों की संख्या और कम होकर नौ रह गई. 2019 में इसमें एक की मामूली बढ़त हुई और अभी वर्तमान में कुल 10 मुस्लिम विधायक महाराष्ट्र विधानसभा में हैं.
यह ऐसे समय में हुआ है जब राज्य में मुसलमानों को विकास सूचकांकों पर पिछड़ते हुए देखा जा रहा है. साल 2014 में राज्य सरकार ने पूर्व आईएएस अधिकारी महमूद-उर-रहमान के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था. इसने पाया कि ग्रामीण इलाकों में 59.8 फीसद और शहरी क्षेत्रों में 59.4 फीसद मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे थे. और इनमें से महज 2.2 फीसद लोगों ने ही स्नातक तक की पढ़ाई की थी.
महाराष्ट्र में मुस्लिम तबका सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है. लेकिन राज्य के पुलिस बल में इसका प्रतिनिधित्व सिर्फ 4.2 फीसद है. 2007 में जारी आंकड़ों के मुताबिक इस समुदाय से करीब 28.3 फीसद विचाराधीन कैदी हैं.
स्थानीय मुस्लिम नेता और कार्यकर्ता विधान सभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या में गिरावट के लिए बदलती सामाजिक वास्तविकताओं और बढ़ते धार्मिक ध्रुवीकरण को जिम्मेदार ठहराते हैं. उनका मानना है कि अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को दूसरे धर्म के लोगों के वोटों का हस्तांतरण आम तौर पर मुश्किल हो गया है.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 20 नवंबर को होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपनी तरफ से किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है. हालांकि बीजेपी की सहयोगी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर) के सिल्लोड निर्वाचन क्षेत्र से मंत्री अब्दुल सत्तार को फिर से टिकट दिया है. बीजेपी की एक और सहयोगी और उपमुख्यमंत्री अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की तरफ से भी पांच मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी ताल ठोक रहे हैं.
इन उम्मीदवारों में नवाब मलिक (मानखुर्द शिवाजीनगर), सना मलिक (अणुशक्तिनगर), जीशान सिद्दीकी (बांद्रा पूर्व), हसन मुश्रीफ (कागल) और नजीब मुल्ला (मुंब्रा कलवा) जैसे लोग शामिल हैं. महाराष्ट्र उन चुनिंदा राज्यों में से है जहां विधान परिषद् भी अस्तित्व रखता है. लेकिन यहां भी इस 78 सदस्यीय विधान परिषद् में सिर्फ एक ही मुस्लिम एमएलसी मौजूद हैं - एनसीपी के इदरीस नाइकवाड़ी.
सत्तारूढ़ महायुति के बरक्स विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने आठ मुस्लिम उम्मीदवारों को नामित किया है. इनमें शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की ओर से हारून खान का नाम भी शामिल है.
इस साल लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने एमवीए का पूरा समर्थन किया था, जिससे उसे कुल 48 में से 31 सीटों पर शानदार जीत मिली थी. इसके चलते बीजेपी नेताओं ने "वोट जिहाद" के भी आरोप लगाए थे. "वोट जिहाद" दरअसल, एक अपमानजनक शब्द है जिसका मतलब है अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों का करीब-करीब पूरा हस्तांतरण.
एमवीए के एक छोटे घटक के वरिष्ठ नेता बताते हैं कि राजनीति में मुसलमानों के कम प्रतिनिधित्व के खिलाफ किसी भी नाराजगी या शिकायत के बावजूद, यह समुदाय बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के मकसद से विपक्ष का ही समर्थन करेगा.
हालांकि मराठी मुसलमान, यानी वे मुसलमान जो मूल रूप से महाराष्ट्र से हैं और मराठी बोल सकते हैं, वे शिकायत करते हैं कि मुसलमानों को जो राजनीतिक जमीन मिलनी चाहिए अक्सर उस पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों से आए प्रवासियों का दबदबा होता है. अखिल महाराष्ट्र और अखिल समुदाय की मौजूदगी वाले आखिरी मराठी मुस्लिम नेता दिवंगत बैरिस्टर अब्दुल रहमान अंतुले थे, जो रायगढ़ से थे और अब तक महाराष्ट्र के एकमात्र मुस्लिम मुख्यमंत्री हैं.
साल 1984 में अंतुले को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए टिकट देने से मना कर दिया था. इसके बाद उन्होंने पार्टी से अलग होकर अपना गुट बनाया और कुलाबा (रायगढ़) से चुनाव लड़ा. लेकिन अंतुले पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्लूपी) के एडवोकेट दत्ता पाटिल से मामूली अंतर से हार कर दूसरे नंबर पर रहे थे. यह वह समय था जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लिए सहानुभूति लहर थी और जिसमें बीजेपी सिर्फ दो सीटों पर सिमट कर रह गई थी.
2004 के लोकसभा चुनाव में अंतुले महाराष्ट्र से चुने गए एकमात्र मुस्लिम थे. इसके करीब 15 साल बाद ही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सैयद इम्तियाज जलील 2019 में औरंगाबाद से सांसद चुने गए. मौजूदा समय की बात करें तो महाराष्ट्र में लोकसभा में कोई मुस्लिम सांसद नहीं है.