हाल में पुणे में एक 23 वर्षीय महिला ने कथित रूप से दहेज उत्पीड़न की वजह से आत्महत्या कर ली. इसके लिए जिम्मेदार उसके ससुराल वाले और पति बताए जा रहे हैं. लेकिन अब इस घटना ने मराठा समुदाय के लोगों को दहेज उत्पीड़न के खिलाफ सामाजिक अभियान शुरू करने के लिए प्रेरित किया है.
घटना बीते मई की है, जब पुणे के बावधन में वैष्णवी हगवणे ने कथित दहेज उत्पीड़न और यातना के कारण आत्महत्या कर ली. इस मामले में ससुराल वालों, जिनमें उसके ससुर राजेंद्र हगवणे, सास लता, पति शशांक, देवर सुशील और ननद करिश्मा शामिल हैं, को गिरफ्तार किया गया है.
राजेंद्र महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता थे. घटना के बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया है. वैष्णवी के माता-पिता ने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी को हगवणे परिवार ने पैसे के लिए प्रताड़ित किया और पीटा. उन्होंने दावा किया कि वैष्णवी के ससुराल वालों को शादी के समय टोयोटा फॉर्च्यूनर एसयूवी, नकद और सोना दिया गया था.
इस घटना के बाद मराठा समुदाय के लोगों की अगुआई में महाराष्ट्र भर में कई बैठकें हुईं, जिनमें शादियों में फिजूलखर्ची को रोकने और दहेज उत्पीड़न को खत्म करने का आह्वान किया गया.
समुदाय के बड़े नेताओं ने कहा कि शादियों और उपहारों पर बहुत पैसा खर्च करने की आदत कुछ साल पहले पुणे से सटे पिंपरी-चिंचवाड़ में तेजी से शहरीकरण से शुरू हुई, जहां किसानों ने बिल्डरों और डेवलपर्स को अपनी जमीन बेचकर करोड़ों रुपये कमाए. इसका नतीजा ये रहा कि कुछ शादियों में तो हजारों मेहमान आते हैं, खाना शानदार होता है और सजावट व उपहार बहुत महंगे होते हैं.
शादियों में फिजूलखर्ची और दहेज उत्पीड़न को रोकने के इस प्रयास में अखिल भारतीय मराठा महासंघ के राजेंद्र कोंधरे भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि गाइडलाइंस में शादी में महंगे उपहार न देना, खर्चों में बचत करना, यह तय करना कि विवाह की रस्में समय पर हों, और शादी में भाषण न देना शामिल है.
परिवारों को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि मेहमानों की संख्या 500 या उससे कम हो. कोंधरे ने बताया, "किसी परिवार में दहेज उत्पीड़न या दहेज से संबंधित मौतों के मामले में, समुदाय के सदस्य उनके साथ 'रोटी-बेटी व्यवहार' बंद कर देंगे यानी उसका सामाजिक बहिष्कार करेंगे."
उन्होंने कहा, "यह मध्यम वर्ग और नए अमीर लोग हैं जो ऐसा करते हैं. वे सामाजिक और आर्थिक रूप से अपने से ऊपर वालों से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करते हैं और शादियों पर बहुत पैसा खर्च करते हैं. उन्हें इस बात की भी चिंता रहती है कि अगर उन्होंने ये समारोह सादगी से किए तो समाज उनके बारे में क्या कहेगा."
इस संबंध में पुणे, पिंपरी-चिंचवाड़, नासिक और परभणी जैसे इलाकों में बैठकें हुईं. कोंधरे ने बताया कि गुजराती, मारवाड़ी और कुंभार जैसे अन्य समुदायों के लोग भी इन बैठकों में शामिल हुए, जिनमें विभिन्न दलों के नेताओं और मराठा महासंघ और संभाजी ब्रिगेड जैसे सामाजिक संगठनों के नेताओं की मौजूदगी देखी गई है. दूल्हा-दुल्हन के परिवारों के बीच खर्च बांटने के बारे में भी निर्णय लिए जा रहे हैं.
पिंपरी-चिंचवाड़ के पूर्व एनसीपी पार्षद प्रशांत शितोले ने कहा कि वे कम खर्चीली शादियों को बढ़ावा देना चाहते हैं. शितोले ने कहा, "परिवारों की फाइनेंशियल कैपेसिटी अलग-अलग होती है और इसलिए कुछ लोग विवाह के लिए लोन लेने के लिए मजबूर होते हैं. उन्हें चिंता होती है कि अगर वे अपनी शादी को शानदार ढंग से नहीं करेंगे तो समाज उनके बारे में भला-बुरा कहेगा."
शितोले ने कहा, "परिवार अपनी बेटी के नाम पर फिक्स्ड डिपॉजिट रख सकते हैं या संस्थानों या जरूरतमंदों को दान दे सकते हैं."