
तारीख़ 1 दिसंबर, 2019. समंदर किनारे बसे महाराष्ट्र में सियासी लहरें उफान पर थीं. लहरों का शोर विधानसभा से निकलकर न सिर्फ महाराष्ट्र में गूंज रहा था बल्कि दिल्ली तक पहुंच रहा था. क्योंकि आनन-फानन में हुए शपथ ग्रहणों और इस्तीफ़ों के बाद कांग्रेस, NCP और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मिलकर नई सरकार बना ली थी.
सरकार बनने के बाद ये पहला ही मौका था जब विधानसभा में बोलने उठे थे बीजेपी के विधायक और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस. फडणवीस ने लंबा-चौड़ा भाषण दिया. लेकिन इस बीच उन्होंने एक शेर पढ़ा- “मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर वापस आऊंगा.”
यही कोई दो बरस बाद फडणवीस लौटे हैं और वो भी बीजेपी के खाते में 132 सीटें लेकर. अब महाराष्ट्र का मुखिया कौन बनेगा, इस पर कयासबाजी चल रही है. देवेंद्र फडणवीस ही सबसे मजबूत दावेदार हैं. रेस में शामिल हैं एकनाथ शिंदे भी. मुख्यमंत्री कोई भी बने लेकिन फडणवीस ने इस चुनाव में अपना दमखम साबित कर दिया है. बीजेपी नेता के पास ऐसा दमखम बचपन से ही रहा जब उन्होंने 6 बरस की उम्र में स्कूल जाने से मना कर दिया था क्योंकि स्कूल का नाम इंदिरा गांधी के नाम पर था.
इस कहानी में दाखिल होने के लिए कैलेंडर के पन्ने पीछे की तरफ पलटते हैं और चलते साल 1975 की ओर. 26 जून, 1975 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने भारत में आपातकाल की घोषणा कर दी. इमरजेंसी लगते ही देशभर में विपक्षी नेताओं और सरकार के आलोचकों की धर-पकड़ शुरू हो गई. दिल्ली से करीब 1200 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में भी गिरफ्तारियों का दौर चल रहा था. इसी दौरान पुलिस ने एक शख्स को पकड़कर जेल में डाल दिया, जिसका नाम था गंगाधर राव फडणवीस.
गंगाधर राव की गिरफ्तारी से उनका छोटा बेटा बहुत गुस्से में था. गुस्सा इस हद तक कि उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम से भी नफरत हो गई. और जब ये नफरत का ख्याल मन में आया ही होगा कि उसे अपने स्कूल का नाम पता चला. नाम था- इंदिरा कॉन्वेंट स्कूल. लड़के ने झल्लाते हुए अपना बैग फेंका और मां से कहा कि अब से मैं इस स्कूल में नहीं जाना चाहता. मुझे कहीं और दाखिला दिलाया जाए. लड़के की उम्र 6 साल थी. और नाम था देवेंद्र फडणवीस.

1970 में जन्मे देवेंद्र फडणवीस बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखा में जाया करते थे. वजह साफ़ है, उनके पिता गंगाधर राव फडणवीस RSS और जनसंघ से जुड़े थे. गंगाधर राव राज्य विधान परिषद के सदस्य भी रहे. इंडिया टुडे मैगज़ीन से जुड़े महाराष्ट्र के पत्रकार धवल एस. कुलकर्णी बताते हैं, "फडणवीस परिवार की जड़ें नागपुर से क़रीब सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर दूर चंद्रपुर जिले में हैं. वो अपने इलाके के बड़े जमींदार रहे हैं. बाद में पूरा परिवार नागपुर आ गया. देवेंद्र फडणवीस के पिता गंगाधर राव फडणवीस और चाची शोभा फडणवीस RSS और जनसंघ के बड़े नेता थे. देखा जाए तो यही लोग थे जिन्होंने विदर्भ के इलाके में जनसंघ और बीजेपी को खड़ा किया और आज यह क्षेत्र बीजेपी का गढ़ माना जाता है."
बहरहाल देवेंद्र फडणवीस का बचपन नागपुर में ही गुजरा. सरस्वती विद्या मंदिर से स्कूली पढ़ाई के बाद फडणवीस ने धर्मपीठ जूनियर कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से LLB की. हालांकि LLB करने के बाद वो वकील नहीं बने. तब तक सियासी गलियारों में उनकी चहलकदमी बढ़ चुकी थी.
1992 में फडणवीस नागपुर म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के कॉर्पोरेटर बने. 1992-97 तक और फिर 1997 से 2001 तक उन्होंने ये ऑफिस संभाला. इस बीच 1997 में ही नागपुर से वो मेयर भी चुने गए. मेयर का कार्यकाल पूरा होने तक बीजेपी की राज्य इकाई में उनकी पहचान बन चुकी थी. और पिता गंगाधर राव फडणवीस के हवाले से जो संबंध थे, वो तो थे ही. एक कहानी ये भी है कि मोदी सरकार में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी गंगाधर राव को अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं. महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि पहली बार 29 साल की उम्र में देवेंद्र फडणवीस जब नागपुर वेस्ट विधानसभा सीट से विधायक चुने गए तो उसमें नितिन गडकरी की बड़ी भूमिका थी.
धवल एस. कुलकर्णी बताते हैं, "दरअसल नितिन गडकरी गंगाधर राव फडणवीस को अपना गुरु मानते थे. तो पहली बार 1999 में नागपुर वेस्ट विधानसभा सीट से देवेंद्र फडणवीस चुनाव लड़े तो उन्होंने काफी मदद की. चुनाव में लगातार वो सक्रिय रहे."
2004 में फडणवीस दूसरी बार नागपुर वेस्ट से ही विधायक चुने गए. 2009 में पार्टी ने उनकी सीट बदली और नागपुर वेस्ट के बजाय नागपुर साउथ वेस्ट से टिकट दिया. हालांकि सीट बदलने का कोई फर्क नतीजों पर नहीं पड़ा. और 2009, 2014, 2019 और अब 2024 में फडणवीस नागपुर साउथ वेस्ट सीट से ही विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं.

ये तो फास्ट फॉरवर्ड में हमने उनकी विधायकी की जानकारी दे दी. लेकिन फडणवीस की कहानी में एक दिलचस्प किस्सा जुड़ता है साल 2006 में. तब वो नागपुर वेस्ट से दूसरी बार के विधायक थे. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ MLA रहते हुए फडणवीस ने एक कपड़े की दुकान के लिए मॉडलिंग की. नागपुर में बड़े-बड़े 5 होर्डिंग लगे जिस पर फडणवीस की स्टाइलिश तस्वीरें छपी थीं. ये तस्वीरें उनके दोस्त और फोटोग्राफर विवेक रानाडे ने खींची थीं. टाइम्स ऑफ इंडिया की ही रिपोर्ट में रानाडे का बयान मिलता है, “केरल में एक ख़ास थेरेपी करवाने के बाद उनका वजन काफी कम हो गया था. मैंने उन्हें अंबिका मेन्स के लिए मॉडलिंग करने के लिए राजी किया, जिसके मालिक गोविंद गुप्ता मेरे क्लाइंट थे. मैंने देवेंद्र से कहा कि एक जनप्रतिनिधि का मॉडलिंग करना गलत नहीं है और वे मान गए.”
ज़ाहिर है ये वो समय था बीजेपी का नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के हाथों में थी. तो उनकी पार्टी के नागपुर वेस्ट वाले विधायक यानी देवेंद्र फडणवीस मॉडलिंग कर रहे हैं ये ख़बर वाजपेयी तक पहुंची. टाइम्स ऑफ इंडिया में इस पर फडणवीस के क़रीबी दोस्त रहे शैलेश जोगलेकर का बयान मिलता है. शैलेश याद करते हैं, “खबर अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंची और उन्होंने देवेंद्र को दिल्ली आने को कहा. मैं उनके साथ गया था और मुझे याद है कि वाजपेयी ने उनका स्वागत करते हुए कहा था, आइए, आइए मॉडल जी.”

शैलेश जोगलेकर ही बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी देवेंद्र फडणवीस से काफी खुश थे. लेकिन महाराष्ट्र के कुछ क्षत्रप थे जो कसमसाने वाले थे. क्योंकि फडणवीस बड़ी तेज़ी के साथ राज्य की सियासत में अपने पांव मज़बूत करने लगे थे. और यहीं से गोपीनाथ मुंडे, नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस की तिकड़ी की कहानी शुरू होती है. गुटबाजी की कहानी बयां करते हैं धवल एस. कुलकर्णी, "नागपुर की बीजेपी में ऐसा कहा जाता है कि बंगला यानी फडणवीस का घर और वाड़ा यानी गडकरी का घर दो अलग ग्रुप हैं. 2008 में गोपीनाथ मुंडे ने बीजेपी के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे दिया था क्योंकि मुंडे और गडकरी की बनती नहीं थी. उस वक्त शोभा ताई और देवेंद्र फडणवीस गोपीनाथ मुंडे के साथ थे."
1989 में बीजेपी में वार्ड कन्वेनर के पद से शुरू हुआ फडणवीस का सफर 1992 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के नागपुर अध्यक्ष, 1994 में युवा मोर्चा के स्टेट वाइस प्रेसिडेंट, 2001 में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक पहुंचा चुका था. 2010 में उन्हें महाराष्ट्र में बीजेपी का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया. तीन बरस बाद 2013 में राज्य में पार्टी के मुखिया यानी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे. एक साल बाद यानी 2014 में देश में आम चुनाव हुए. देश की जनता ने बीजेपी को केंद्र की सरकार चलाने का जिम्मा सौंपा. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. और पार्टी भी अब उन्हीं के मन मुताबिक़ चलने वाली थी.

इंडिया टुडे मैगज़ीन से जुड़े पत्रकार हिमांशु शेखर कहते हैं, "देवेंद्र फडणवीस संघ के करीब तो शुरू से ही थे. बचपन से वो संघ में सक्रिय थे. संघ उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर देखता है जो उनकी विचारधारा को मजबूती से आगे बढ़ाता है. बात करें मोदी और शाह के साथ रिश्तों की तो 2014 के बाद ये रिश्ता ख़ूब गाढ़ा हुआ है. 2014 में जब बीजेपी महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव जीती तो देवेंद्र को सीएम बनाया गया. जबकि उस वक़्त उनके नाम को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं थी. लेकिन मोदी-शाह फडणवीस को विश्वस्त के तौर पर देखते हैं. दूसरी बात ये है कि नितिन गडकरी को बैलेंस करने के लिए उन्हें महाराष्ट्र में एक मजबूत नेता चाहिए था. इस लिहाज से भी फडणवीस बेहतर विकल्प थे."
2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होता है. पार्टी की कमान देवेंद्र फडणवीस के ही हाथों में थी. बीजेपी के लिए मुश्किलें बड़ी थीं क्योंकि पार्टी शिवसेना से गठबंधन तोड़ चुकी थी और चुनाव में अकेले उतरी थी. इसके बावजूद 2014 विधानसभा चुनाव में राज्य की 288 सीटों में से बीजेपी ने 122 सीटें जीतीं. 2009 में उसे केवल 46 सीटों पर जीत मिली थी. इस जीत के बाद BJP ने देवेंद्र फडणवीस को 44 साल की उम्र में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. वो शरद पवार के बाद महाराष्ट्र के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. 2014 से 2019 तक देवेंद्र फडणवीस ने सूबे की सत्ता संभाली. 49 साल बाद ऐसा हुआ कि किसी मुख्यमंत्री ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. फडणवीस से पहले वसंतराव नाईक ने अपना कार्यकाल पूरा किया था. नाईक 1963 में पहली बार राज्य के CM बने थे. और देखा जाए तो 1963 से 1975 के बीच कुल 11 साल के लिए वो इस कुर्सी पर बैठे. लेकिन 1 मार्च, 1967 से 13 मार्च 1972 के बीच वो इकलौता 5 साल का कार्यकाल था जो उन्होंने पूरा किया.
2019 में फडणवीस का कार्यकाल पूरा हुआ. और एक बार फिर महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए. इस बार बीजेपी और शिवसेना ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ. लेकिन दोनों पार्टियों के बीच CM की कुर्सी को लेकर रार छिड़ गई. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद मांगा तो देवेंद्र फडणवीस ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कह दिया कि बीजेपी ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था. नतीजा ये हुआ कि दोनों पार्टियों का गठबंधन दरक गया. जिस वक्त बीजेपी से गठबंधन का साथी दूर हो रहा था उसी दौरान कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली शरद पवार की NCP में बग़ावत हो गई. शरद पवार के भतीजे अजीत पवार पार्टी के कुछ विधायक लेकर बीजेपी के पास पहुंच गए. और फिर वो नज़ारा पॉलिटिक्स में दिलचस्पी रखने वाला कौन सा शख्स भूल सकता है जब आधी रात को फडणवीस ने CM और अजित पवार ने डिप्टी CM पद की शपथ ली.

लेकिन बात इतनी सीधी-सीधी रह जाए तो कैसी राजनीति! शपथ ग्रहण के दो दिन बाद ही अजित पवार ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया और फिर चाचा शरद पवार के पास लौट गए. देवेंद्र फडणवीस की सरकार गिर गई. क्योंकि वो विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए. फडणवीस की सरकार गिरी और 22 नवंबर को कांग्रेस और NCP की मदद से शिवसेना ने सरकार बना ली. CM बने उद्धव ठाकरे. बमुश्किल तीन बरस ठाकरे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे होंगे कि उनकी पार्टी के ही नेता एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को दो फाड़ कर दिया. शिंदे अपने 39 विधायकों के साथ बीजेपी के पास चले गए. और उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई. सत्ता में एक बार फिर बीजेपी की वापसी हुई. लेकिन देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री ना बन सके. और दिल्ली के दबाव में डिप्टी CM के पद से ही संतोष करना पड़ा.
हिमांशु शेखर बताते हैं, "देवेंद्र फडणवीस कतई तैयार नहीं थे डिप्टी सीएम बनने के लिए. लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कहने पर ही वो राज़ी हुए. क्योंकि इन दो नेताओं को लेकर फडणवीस का रवैया हमेशा से यही रहा है कि उनका कहा सिर-माथे."
धवल कुलकर्णी भी ज़रूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस की ओर ध्यान दिलाते हैं, "आपको याद होगा कि जब ये सब कुछ हो रहा था तब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. और मैं अगर ठीक-ठीक याद कर पा रहा हूं तो जेपी नड्डा ने कहा था कि देवेंद्र फडणवीस को निर्देशित किया जाता है कि वो इस सरकार (शिंदे सरकार) में शामिल हों."
जोड़-तोड़ और तमाम तिकड़मों की ज़मीन पर शिंदे सरकार दो बरस चली. लेकिन दो साल बाद 2024 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूरी ताकत के साथ जीत हासिल की है. सत्ता में बीजेपी की वापसी हुई है. और इस जीत के हीरो बनकर उभरे हैं देंवेंद्र फडणवीस.