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केरल की वामपंथी सरकार क्यों आई भगवान अयप्पा की 'शरण' में?

केरल में सबरीमाला मंदिर के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले पंपा में पहला वैश्विक अयप्पा संगमम आखिर दिलचस्पी जगाने के साथ विवाद की वजह भी क्यों बन रहा है

सबरीमला मंदिर में दर्शन (फोटो : AI)
अपडेटेड 18 सितंबर , 2025

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की सरकार ने ही 2018 में भगवान अयप्पा को समर्पित सबरीमाला मंदिर के द्वार महिलाओं के लिए खोलने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी मजबूती से समर्थन किया था. यहां तक कि प्रशासन ने पुलिस सुरक्षा में कुछ महिलाओं को दर्शन के लिए पहुंचने की सुविधा भी मुहैया कराई.

इसके बाद केरल में सिलसिलेवार विरोध प्रदर्शन हुए और सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) ने अगले चुनाव यानी 2019 के लोकसभा चुनावों में बेहद खराब प्रदर्शन किया. उसे 20 सीटों में से सिर्फ एक पर जीत हासिल हुई.

तबसे, केरल में हिंदू बहुसंख्यक वोटों के लिहाज से LDF के लिए स्थितियां शायद ही कुछ बेहतर हुई हों. क्या 2026 के चुनाव में कोई बदलाव नजर आ सकता है? यह सवाल इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि विजयन सरकार 20 सितंबर को सबरीमाला के प्रवेश द्वार पंपा में पहला वैश्विक अयप्पा संगमम आयोजित करके भगवान अयप्पा की विरासत का जश्न मनाने की तैयारी कर रही है.

इस सम्मेलन को लेकर लोगों में गहरी दिलचस्पी जगी है लेकिन साथ ही विवाद भी उपजे हैं. विपक्षी दल कांग्रेस और BJP का आरोप है कि इसके पीछे राजनीतिक मकसद छिपा है. हालांकि, वामपंथी सरकार त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड के साथ मिलकर इस आयोजन की मेजबानी लिए पूरी तरह तैयार दिख रही है.

दुनियाभर से लगभग 3,000 प्रतिनिधियों ने संगमम के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. केरल के देवस्वम बोर्ड मंत्री वी.एन. वासवन ने इंडिया टुडे को बताया, “तैयारियां अंतिम चरण में हैं. पंपा सबरीमाला को एक विश्वस्तरीय तीर्थस्थल बनाने की दिशा में वैश्विक अयप्पा संगमम की मेजबानी के लिए तैयार है. हमें भारत के भीतर और बाहर अयप्पा भक्तों से शानदार प्रतिक्रिया मिली है.”

वासवन के अनुसार, यह आयोजन सबरीमाला तीर्थयात्रा की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जा रहा है, जो पथनामथिट्टा जिले में पहाड़ी पर स्थित मंदिर है और जहां हर साल लगभग 40 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि विजयन इस साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों और 2026 की पहली छमाही में विधानसभा चुनावों से पहले इस आयोजन का समय तय करके हिंदुओं का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं.

केरल की 3.3 करोड़ की आबादी में हिंदुओं की संख्या 55 फीसदी के आसपास है. इनमें एझावा 23 फीसदी और नायर 14.5 फीसदी हैं. हिंदुओं का समर्थन मिल जाए तो LDF को एक दशक के शासन के बाद कुछ सत्ता-विरोधी भावनाओं को दूर करने और विजयन के लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने में सफलता मिल सकती है.

पथानमथिट्टा के रहने वाले एक हिंदू ए.आर. सुरेश का कहना है, “संगमम कुछ और नहीं बल्कि उच्च जाति के नायर समुदाय के साथ-साथ आम हिंदुओं को खुश करने की एक कोशिश है. LDF ने इस आयोजन की तैयारी इसी बात को ध्यान रखकर की है. क्या भगवान अयप्पा को सच में सरकार की तरफ से किसी तरह की ब्रांडिंग की जरूरत है?”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वी.डी. सतीसन ने सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया और कहा कि उसे 2018-19 के सबरीमाला आंदोलन के दौरान हिंदू प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी पर माफी मांगनी चाहिए. विधानसभा में विपक्ष के नेता ने कहा, “माकपा धर्म और राजनीति को मिला रही है, BJP की तरह हिंदू कार्ड का इस्तेमाल कर रही है और चुनाव जीतने के लिए बहुसंख्यकों को खुश करने में जुटी है.” सतीसन ने कहा की कि वह संगमम के उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होंगे. उनकी तरह, केंद्रीय मंत्री और त्रिशूर से BJP सांसद सुरेश गोपी ने भी निमंत्रण ठुकरा दिया है.

दूसरी तरफ, केरल BJP ने भी जल्द ही अयप्पा भक्तों के लिए एक वैकल्पिक कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया है.  BJP के केरल इकाई के पूर्व अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन कहते हैं, “भगवान अयप्पा हिंदू आस्था के प्रतीक हैं. उनके धार्मिक अनुष्ठान हमेशा बिना किसी सरकारी नियंत्रण के भक्तों की तरफ से किए जाते रहे हैं. लेकिन अब, सरकार सबरीमाला तीर्थयात्रा की राजनीतिक ब्रांडिंग करना चाहती है.” इस बीच, त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड की तरफ से सम्मेलन की फंडिंग और उद्देश्यों पर विस्तृत जानकारी देने के बाद केरल हाईकोर्ट ने आयोजन को अपनी मंजूरी दे दी है. लेकिन राजनीति जारी है.

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