
नेपाल से सटा लखीमपुर खीरी 7700 वर्ग किलोमीटर में फैला यूपी का सबसे बड़ा जिला है. यहां के 80 फीसदी किसान गन्ने की खेती करते हैं और यहां पर नौ चीनी मिलें हैं. इसी वजह से लखीमपुर खीरी जिले को “शुगर बोल” या चीनी का कटोरा भी कहते हैं.
खीरी लखीमपुर शहर से करीब दो किलोमीटर दूर एक कस्बा है. यहां के रहने वाले बताते हैं कि कभी इस इलाके में खैर के घने जंगल थे जिनके नाम पर इसका नाम खीरी पड़ा. लखीमपुर खीरी की पहचान दुधवा राष्ट्रीय उद्यान से भी है जो यूपी का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है. हालांकि राजनीतिक पटल पर भी खीरी की हैसियत कभी कम नहीं हुई.
खीरी लोकसभा सीट की नुमाइंदगी करने वाले ज्यादातर चेहरे खास रहे हैं. कांग्रेस के स्वर्णिम युग में यहां से सांसद रहे बाल गोविंद वर्मा से लेकर वर्तमान सांसद अजय मिश्र उर्फ टेनी तक ज्यादातर सांसदों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है.
आम चुनाव के चौथे चरण के लिए 11 मई को चुनाव प्रचार समाप्त होने के साथ, मतदाताओं को मतदान के दिन अपने मतदान केंद्रों पर आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए व्यस्त अभ्यास शुरू हो गया है. खीरी लोकसभा सीट पर 11 उम्मीदवार मैदान में हैं. सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा उर्फ टेनी (63 वर्ष) को मैदान में उतारा है, जो तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी जीत की हैट्रिक दर्ज करने की उम्मीद कर रहे हैं.
लखीमपुर खीरी जिले के बनवीरपुर गांव में जन्मे 61 वर्षीय अजय मिश्रा ने कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से विज्ञान और डीएवी कॉलेज कानपुर से क़ानून की स्नातक डिग्री हासिल की है. अजय मिश्रा को उनके करीबी टेनी नाम से बुलाते हैं, उनका रुझान खेलकूद ख़ास तौर पर क्रिकेट, पावर-लिफ्टिंग और कुश्ती की तरफ़ था. उन्होंने अपने छात्र जीवन के दौरान यूनिवर्सिटी और ज़िला स्तर पर इन खेलों के कई मुक़ाबले भी जीते. समय के साथ मिश्रा इन खेलों के मुक़ाबले आयोजित करने लगे.
अजय मिश्र वर्ष 1996 में राजनीति में आए जब वे युवा मोर्चा के कार्यकर्ता के रूप में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए. वर्ष 1998 में लखीमपुर खीरी के जिला सहकारी बैंक के निर्विरोध संचालक और उपाध्यक्ष चुने गए. वर्ष 2005 में अजय मिश्र “टेनी” ने लखीमपुर खीरी के जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता. 2007 में भाजपा की टिकट पर निघासन विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 1008 वोटों के करीबी अंतर से हारे. करीबी अंतर से हारने का सिलसिला वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा. तब के लोकसभा चुनाव में खीरी सीट से अजय मिश्र 18000 वोटों से चुनाव हारे.
हार का सिलसिला वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में टूटा और अजय मिश्रा 32000 वोटों से जीत कर निघासन सीट से विधायक बने. दो साल बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में खीरी सीट से भाजपा की टिकट पर जीतकर सांसद बने. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में दोबारा जीत दर्ज की. रुहेलखंड इलाके में ब्राह्मण वोटों को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई, 2021 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में अजय मिश्र “टेनी” को बतौर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री शामिल किया था. केंद्रीय राज्यमंत्री बनने के बाद अजय मिश्र “टेनी” आर्शीर्वाद यात्रा निकालकर रुहेलखंड और आसपास के जिलों में तीन दर्जन से अधिक सभाएं कर ब्राह्मण मतदाताओं और किसानों को भाजपा से जोड़ने की कोशिश में लग गए थे.
इसी क्रम में 25 सितंबर, 2021 को लखीमपुर खीरी की पलिया तहसील के संपूर्णानगर में एक किसान गोष्ठी में अजय मिश्र “टेनी” मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे. इस कार्यक्रम में अजय मिश्र के भाषण का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ जिसमें वे किसानों को चेतावनी देते हुए कहते हैं, “आओ मेरा सामना करो, मैं तुम्हें सुधार दूंगा.” मिश्र के इस बयान के बाद से किसान आक्रोशित थे और वे 3 अक्टूबर, 2021 को लखीमपुर के तिकुनिया कस्बे में उपमुख्यमंत्री के सामने अपना विरोध दर्ज कराने पहुंचे थे. तिकुनिया से बेलराया रोड पर किसानों और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र “टेनी” के बेटे आशीष मिश्र के काफिले के बीच हिंसक टकराव हुआ जिसमें चार किसान समेत 8 लोग मारे गए थे.
लखीमपुर खीरी से करीब 100 किलोमीटर दूर तिकुनिया कस्बे की यह घटना आग की तरह फैल गई. देश भर में इसके विरोध में प्रदर्शन होने लगे. राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार ने अजय मिश्र उर्फ टेनी को मंत्री पद से हटाने की मांग की लेकिन यूपी में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव का देखते हुए भाजपा अपने निर्णय पर कायम रही. तिकुनिया कांड के बाद दिलचस्प यह था कि जहां यह कांड हुआ था, उस निघासन विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी.
निघासन के एक गांव के पूर्व प्रधान जय शंकर वर्मा बताते हैं, “वर्ष 2021 में तिकुनिया कांड को लेकर जो राजनीतिक भूचाल पैदा किया गया उसे जनता का समर्थन नहीं मिला. क्योंकि स्थानीय जनता आज भी इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण घटना मानती है. इसी तिकुनिया में इस बार भी वह घटना कोई मुद्दा नहीं है. इस इलाके की सिख बिरादरी में कुछेक लोगों को छोड़कर कहीं यह कोई विषय ही नहीं. आम चुनाव में भी इस घटना का कोई असर नहीं पड़ेगा.” तिकुनिया की घटना के चार महीने बाद हुए यूपी के विधानसभा चुनाव में जिले की सभी आठों सीटें भाजपा ने जीती थीं. इसके अलावा चार नगर पालिकाओं व आठ नगर पंचायत में भी भाजपा ज्यादातर जगह काबिज है और लगभग सभी ब्लाकों पर भी.
समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने पूर्व लखीमपुर विधायक 38 वर्षीय उत्कर्ष वर्मा मधुर को टिकट दिया है, जो इससे पहले 2010 में लखीमपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सबसे कम उम्र के विधायक चुने गए थे. कभी खीरी संसदीय सीट पर राज करने वाली कांग्रेस, जिसने यहां नौ बार जीत हासिल की, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के कारण चुनावी लड़ाई से दूर है. खीरी लोकसभा सीट पर सपा और कांग्रेस के जमीनी नेताओं के बीच तालमेल बिठाना एक कठिन चुनौती भी है. खीरी की सियासत में वर्मा परिवार का दबदबा रहा है. वर्ष 1980 में बालगोविंद ने कांग्रेस की झोली में सीट डालकर चौथी बार जीत दिलाई थी. उनके निधन के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी ऊषा वर्मा जीतीं.

इसके बाद 1984 और 1989 में भी ऊषा वर्मा ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली. 1991 और 1996 में गेंदालाल कनौजिया ने यहां भगवा परचम फहराया. 1998 में सपा ने ऊषा के बेटे रविप्रकाश वर्मा को टिकट दिया और खीरी में पहली बार साइकिल दौड़ी. वर्मा ने जीत की हैट्रिक लगाई. इसके बाद खीरी सीट सपा के गढ़ के रूप में तब्दील हो गई. सपा प्रत्याशी रवि प्रकाश वर्मा को 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पहा था.
हारे हुए प्रत्याशी रवि प्रकाश वर्मा को 2014 में ही पार्टी ने राज्यसभा क्या भेजा स्थानीय नेताओं में गुटबाजी शुरू हो गई. असंतोष ज्यादा तब बढ़ा जब वर्ष 2019 में सपा ने इनकी बेटी पूर्वी वर्मा को टिकट दे दिया. ये भी चुनाव हार गईं. पार्टी के इस रवैये से कार्यकर्ताओं का एक धड़ा बेहद नाराज था. इसे भांप कर सपा नेतृत्व रवि वर्मा को साइड लाइन करने लगा. इसकी भरपाई के लिए पार्टी कुर्मी बिरादरी के उत्कर्ष वर्मा को अहमियत देने लगी. राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कार्यकर्ता सम्मेलन भी उत्कर्ष के कॉलेज में हुआ और यहां मान-मनौव्वल के बाद रवि वर्मा अनमने ढंग से कार्यक्रम में शामिल हुए.
जब रवि प्रकाश वर्मा को लगा कि उन्हें सपा से खीरी लोकसभा सीट से टिकट नहीं मिलेगा तो उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अपने पुराने घर कांग्रेस में चले गए. लेकिन इंडिया गठबंधन ने कुछ ऐसा गणित बनाया कि जिले की दोनों सीटें धौरहरा और खीरी सपा की झोली में चली गईं. रवि वर्मा के शांत बैठ जाने से खीरी में कुर्मी मतों की सपा के पक्ष में एकजुटता संदिग्ध हो गई है. इस बीच केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार अजय कुमार मिश्रा टेनी को "और भी बड़ा" बनाने का वादा किया, अगर खीरी के मतदाताओं ने उन्हें संसद के लिए चुना, जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यहां पहुंचकर तिकुनिया हिंसा की यादों को ताजा किया और मतदाताओं से उनके उम्मीदवार उत्कर्ष वर्मा को वोट देने का आग्रह किया और तिकुनिया की घटना का बदला "वोट के माध्यम से" लेने की अपील भी की.
खीरी के 18.6 लाख मतदाताओं में सबसे ज्यादा 5 लाख मतदाता दलित जाति के हैं. इसके बाद 2 लाख मुस्लिम, 1.75 लाख ब्राह्मण, 1.75 लाख कुर्मी, 1.5 लाख वैश्य, 1 लाख ठाकुर, 1 लाख सिख शेष, 60 हजार थारू जनजाति अन्य जाति के मतदाता हैं. भाजपा ने इस बार लखीमपुर खीरी में चुनावी फायदा उठाने के लिए भारत-नेपाल सीमा पर पलिया और निघासन इलाकों में थारू जनजाति पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां उनकी अच्छी खासी आबादी है. यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी खीरी में टेनी के लिए प्रचार किया.
टेनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर भी भरोसा है. चूंकि सिखों ने स्पष्ट रूप से खुद को भगवा पार्टी से दूर कर लिया है, समाजवादी पार्टी इस मौके का फायदा उठाना चाह रही है और उसने टेनी के खिलाफ उत्कर्ष वर्मा को खड़ा किया है. वर्मा अपनी चुनावी रैलियों में भारी भीड़ जुटाने में कामयाब रहे और 9 मई को जब अखिलेश यादव एक सभा को संबोधित करने के लिए लखीमपुर शहर आए तो भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा. हालांकि, अखिलेश की रैली में बड़ी भीड़ थी, लेकिन बहुत सारे सिख समर्थक नहीं थे, जो इस समुदाय का बहुजन समाज पार्टी की ओर झुकाव का संकेत दे रहा था.
मायावती के उम्मीदवार अंशय कालरा, जो एक पंजाबी हैं, से सिख मतदाताओं को आकर्षित करने की उम्मीद है, जो मुख्य रूप से पलिया क्षेत्र में केंद्रित हैं और उनका अभियान फोकस सिख, मुस्लिम और दलित मतदाताओं तक ही सीमित था. हालांकि, भाजपा के भीतर चिंताएं भी हैं क्योंकि खीरी निर्वाचन क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्रों के तीन विधायक - पलिया से रोमी साहनी, गोला गोकर्णनाथ से अमन गिरी और निघासन से शशांक वर्मा - पार्टी द्वारा आयोजित प्रमुख रैलियों से अनुपस्थित थे.
अजय मिश्र अपने स्वजातीय ब्राह्मण मतदाताओ के अलावा दलित, ठाकुर, वैश्य समेत अन्य पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं. वहीं सपा कुर्मी के साथ मुस्लिम, सिख और दलित मतों को अपनी तरफ खींचकर संसद की राह आसान बनाने की जुगत कर रही है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक नए रंगरूट, 30 वर्षीय अंशय कालरा को मैदान में उतारा है, जो अमरोहा जिले से हैं और पेशे से एक बिल्डर हैं.
बसपा ने अंशय को पहले गाजियाबाद से टिकट दिया था लेकिन बाद में उसे बदलकर खीरी लोकसभा सीट भेज दिया था. अंशय बसपा के परंपरागत दलित के साथ सिख पंजाबी मतदाताओं के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं.
पिछले एक पखवाड़े के दौरान प्रमुख राजनीतिक दलों के कई स्टार प्रचारकों ने रैलियां कीं और खीरी के मतदाताओं से अपने उम्मीदवारों के लिए समर्थन मांगा है. इनमें केंद्रीय मंत्री अमित शाह, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव शामिल हैं. बसपा प्रमुख मायावती ने तिकुनिया कांड को याद करके खीरी के किसानों, विशेषकर सिखों के कथित दमन पर भी प्रकाश डाला और अंशय कालरा के लिए मतदाताओं का समर्थन मांगा. हालांकि, वर्ष 2014 और 2019 के पहले के संसदीय चुनावों के विपरीत, इस बार खीरी के मतदाताओं के मूड का अनुमान लगाना कठिन है. रैलियों से भी अनुमान लगाना कठिन है. लगभग हर राजनीतिक नेता की हर रैली में, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, वे बड़ी संख्या में एकत्र हुए, जिससे चुनावी समीकरण और भी जटिल हो गए हैं.