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कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में क्यों निशाने पर है 55 साल पुराना समझौता

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक का है जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के पास और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्ज‍िद के पास है

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और ईदगाह
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद
अपडेटेड 15 दिसंबर , 2023

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म भूमि और ईदगाह विवाद मामले में 14 दिसंबर को एक नया मोड़ आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद का अपनी देखरेख में सर्वेक्षण कराए जाने की मंजूरी दे दी. यह सर्वेक्षण हाईकोर्ट की ओर से तय एडवोकेट कमिश्नर की निगरानी में होगा. 

श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से दाखिल अर्जी पर कोर्ट ने यह मांग स्वीकार कर ली है. सर्वे का तरीका क्या अपनाया जाए, कोर्ट इस पर 18 दिसंबर को सुनवाई करेगा. हिंदू पक्ष कोर्ट के इस आदेश को ऐतिहासिक बता रहा है. 

क्या है विवाद  

मथुरा में आज जिस जगह पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान है, वहां पांच हजार साल पहले मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशवदेव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था. मान्यता है कि इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था. कटरा केशव देव को कृष्ण जन्मभूमि माना जाता है. इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल 400 ई. में कृष्ण जन्मभूमि में एक भव्य मंदिर बनवाया गया था. महमूद गजनवी ने सन् 1017 ई. में आक्रमण कर इस मंदिर तो लूटने के बाद तोड़ दिया था.

खुदाई में मिले एक अभि‍लेख के मुताबिक 1150 ई. में राजा विजय पाल के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति‍ ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया विशाल मंदिर बनवाया था. 16वीं शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासनकाल में इसे नष्ट कर दिया गया था. इतिहासकारों के मुताबिक 1618 ई में जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला इसी स्थान पर एक नया मंदिर बनवाया. 1670 ई. में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त कराकर इसके एक हिस्से पर ईदगाह का निर्माण कराया था जो आज भी मौजूद है.

निशाने पर जन्मस्थान-ईदगाह समझौता 

अंगेजों ने वर्ष 1815 में कटरा केशवदेव मंदिर की 13.37 एकड़ जमीन नीलाम की जिसे बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा. मुस्लिम पक्ष के स्वामित्व का दावा खारिज होकर 1860 में बनारस राजा के वारिस राजा नरसिंह दास के पक्ष में डिक्री हो गया. हालांकि विवाद चलता रहा. जिला अदालत से 1920 में मुस्लिम पक्ष को झटका लगा. कोर्ट ने कहा, 13.37 एकड़ जमीन पर मुस्लिम पक्ष का कोई अधिकार नहीं है. 

इसके बाद 1935 में शाही ईदगाह मस्जिद के केस को एक समझौते के आधार पर फिर से तय किया गया. पंडित मदनमोहन मालवीय की पहल पर 7 फरवरी 1944 को उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने कटरा केशव देव की जमीन को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधि‍कारियों से खरीद लिया. बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की. 

श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने 1 मई, 1958 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का गठन किया. वर्ष 1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ का नाम बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया. 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ एवं शाही मस्ज‍िद ईदगाह के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता किया गया कि 13.37 एकड़ जमीन पर कृष्ण मंदिर और मस्ज‍िद दोनों बने रहेंगे. 17 अक्टूबर 1968 को यह समझौता पेश किया गया और 22 नवंबर 1968 को सब रजिस्ट्रार मथुरा के यहां इसे पंजीकृत किया गया. 

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक का है जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्ज‍िद के पास है. फरवरी, 1982 में मंदिर का जीर्णोद्धार पूरा हुआ. कोर्ट में विभि‍न्न याचिकाएं दायर कर वर्ष 1968 के समझौते को रद करने के साथ 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक की मांग की गई है. 

कोर्ट में जारी उठापटक 

भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और लखनऊ की वकील रंजना अग्न‍िहोत्री समेत आठ लोगों ने 25 सितंबर, 2020 के सिविल जज (सीनियर डिवीजन), मथुरा की अदालत में वाद दायर किया था. इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्ज‍िद ईदगाह कमेटी के बीच वर्ष 1968 में हुए समझौते को रद्द कर मस्जिद हटाने और जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को देने की मांग की थी. 30 सितंबर, 2020 को वाद यह कहकर अदालत ने खारिज कर दिया था कि मात्र भक्त होने के आधार पर प्रार्थीगण को वाद दायर करने की अनुमति देना न्यायोचित नहीं है. 

इसके बाद 12 अक्टूबर, 2020 को जिला जज, मथुरा की अदालत में अपील दायर की गई. जिला जज ने अपील स्वीकार की और और मुकदमा शुरू हुआ. इसके बाद एक हिंदूवादी संगठन ‘हिंदू आर्मी’ के नेता मनीष यादव और ठाकुर केशवदेव महाराज ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), मथुरा की अदालत में एक वाद दायर कर कृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक की मांग की. हाइकोर्ट ने 12 मई, 2022 को भगवान श्रीकृष्ण के ‘वादमित्र’ और हिंदू आर्मी के नेता मनीष यादव की अर्जी पर सुनवाई करते हुए श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद से जुड़ीं सभी अर्जियों को अधिकतम चार महीने के भीतर निबटारे का निर्देश मथुरा कोर्ट को दिया था. 

श्रीकृष्ण जन्मस्थान मामले में इस वर्ष 11 अगस्त को पहली बार श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ईदगाह की जमीन पर अपना दावा प्रस्तुत किया और एक मुकदमा सिविल जज सीनियर डिवीजन के न्यायालय में दायर किया. इसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी को प्रतिवादी बनाया गया है. ट्रस्ट ने कहा कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान (तब सेवा संघ) को समझौते का अधिकार नहीं था. लेकिन 1968 में सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से भूमि को लेकर समझौता किया था. इस समझौते की डिक्री 1973 व 1974 में न्यायालय द्वारा की गई. ट्रस्ट के मुताबिक इसे रद्द किया जाना चाहिए. 

ट्रस्ट के इस मामले से पहले तक कृष्ण जन्मस्थान मामले में 17 केस दायर हो चुके थे, लेकिन ये पहला मामला है, जिसमें जन्मभूमि ट्रस्ट खुद ही वादी है. मथुरा सेशन कोर्ट में दाखिल 18 केसों की फाइलों को हाईकोर्ट ने अपने अधीन सुनवाई के लिए ले रखा है. इन सारे मामलों की सुनवाई एक साथ हाइकोर्ट में शुरू हुई. इसी बीच हिंदूवादी संगठनों ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली. हिंदूवादी संगठनों ने दायर की गई याचिका में कोर्ट से कोर्ट कमिश्नर की तैनाती के साथ-साथ पुरातात्व‍िक सर्वे की मांग भी की. जन्मभूमि-ईदगाह प्रकरण में हाईकोर्ट ने 16 नवंबर को हुई सुनवाई के बाद सभी 18 केसों से संबंधित वादियों और प्रतिवादियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का आदेश दिया था. 

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