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कोलकाता गैंगरेप : छेड़छाड़, चोरी और मारपीट; इतने केस के बावजूद आरोपी कैसे करता रहा कैंपस में दबंगई?

साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज में 24 साल की छात्रा के साथ हुए कथित गैंगरेप के मुख्य आरोपी मनोजित मिश्रा के ऊपर पहले से कुछ मामले दर्ज हैं लेकिन इनकी वजह से कभी उस पर कॉलेज आने पर पाबंदी नहीं लगी

कोलकाता गैंगरेप की पीड़िता ने FIR में दरिंदगी का दर्द बयां किया है
कोलकाता गैंगरेप की पीड़िता ने FIR में दरिंदगी का दर्द बयां किया है
अपडेटेड 1 जुलाई , 2025

25 जून की शाम साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज के अंदर 24 साल की छात्रा के साथ हुआ कथित गैंगरेप क्रूरता की कोई एक अकेली घटना नहीं थी. बल्कि यह मुख्य आरोपी मनोजित मिश्रा की सालों से चली आ रही बेलगाम मनमानी और उसके खिलाफ कार्रवाई की कमी का नतीजा थी.

मिश्रा लॉ कॉलेज का पूर्व छात्र रहा है और तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद् (टीएमसीपी) का नेता है. उसे संस्थान के भीतर लंबे समय से सत्ता और संरक्षण मिला हुआ था, जबकि उस पर कई गंभीर आरोप लगे थे. इनमें छेड़छाड़ से लेकर शोषण, मारपीट और चोरी जैसे मामले शामिल थे.

इनमें से कई मामलों में तो पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल की थी. 31 साल के मिश्रा को 2017 में कालीघाट इलाके में हुई हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इसके अलावा 2019 में उस पर उसी यूनियन रूम के अंदर एक महिला पर हमला करने का आरोप लगा, जहां हालिया कथित गैंगरेप की घटना हुई. उस मामले में पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल की थी.

2019 में ही, मिश्रा पर न्यू ईयर की पूर्व संध्या पर अपने एक दोस्त के घर से निजी सामान चुराने का भी आरोप लगा था. इसके बाद भी आरोप लगते रहे, जिनमें 2022 में कसबा में छेड़छाड़ और 2024 में कॉलेज परिसर के भीतर एक सुरक्षा गार्ड पर हमला शामिल है.

लेकिन तब कॉलेज प्रशासन ने सिर्फ अपने कर्मचारी पर हमले के बाद ही औपचारिक शिकायत दर्ज कराई, पर मिश्रा को कैंपस से बाहर करने के लिए कोई संस्थागत कार्रवाई नहीं की गई.

इतने गंभीर रिकॉर्ड के बावजूद मिश्रा कॉलेज आता-जाता रहा. उप-प्राचार्या नयना चटर्जी के अनुसार, उसे कॉलेज में अस्थायी कर्मचारी के रूप में रखा गया था, जो गवर्निंग बॉडी की सिफारिश पर हुआ.

उस गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष और तृणमूल विधायक अशोक कुमार देब ने मिश्रा की नियुक्ति में किसी भी सीधे दखल से इनकार किया है. उनका यह इनकार मिश्रा की गिरफ्तारी और उनके साथ ली गई तस्वीरें सामने आने के बाद आया. मिश्रा के सोशल मीडिया अकाउंट पर भी कई तृणमूल नेताओं के साथ उसकी तस्वीरें मौजूद थीं, जिससे उसके राजनीतिक संबंधों की धारणा और मजबूत हुई.

25 जून की शाम करीब 7:30 से 10:50 बजे के बीच पीड़िता के साथ मनोजित मिश्रा और दो अन्य जैब अहमद और प्रमित मुखर्जी (दोनों कॉलेज के मौजूदा छात्र) ने मिलकर कथित रूप से उसका रेप किया.

पीड़िता की पुलिस शिकायत और बाद में दर्ज न्यायिक बयान के अनुसार, सबसे पहले उसके साथ यूनियन रूम में मारपीट की गई, फिर उसे जबरदस्ती घसीटकर सुरक्षा गार्ड के कमरे में ले जाया गया. वहां आरोपियों ने उस पर हॉकी स्टिक से हमला करने की कोशिश की और मनोजित मिश्रा ने उसके साथ बलात्कार किया, जबकि बाकी दोनों साथी तमाशा देखते रहे.

सुरक्षा गार्ड पिनाकी बनर्जी ने दावा किया कि उन्हें जबरन कमरे में बंद कर दिया गया और उनका फोन छीन लिया गया. लेकिन जांच अधिकारियों ने उनके बयान पर शक जताया है. सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि पीड़िता भागने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मुख्य दरवाजा बंद था. यह बात आरोपियों के उस दावे को कमजोर कर देती है कि यह सब आपसी सहमति से हुआ था.

मिश्रा के फोन से अश्लील वीडियो मिले हैं, जिनमें से कुछ उसने खुद और कुछ किसी और ने रिकॉर्ड किए थे. ये वीडियो पहले से सोची-समझी क्रूरता की तरफ इशारा करते हैं. हालांकि पीड़िता बहुत डरी और सदमे में थी, फिर भी उसने अगले दिन हिम्मत जुटाकर शिकायत दर्ज करवाई, जबकि उसे समाज में बदनामी का भी डर था.

दो दिन बाद जब पश्चिम बंगाल महिला आयोग की सदस्य उससे मिलने पहुंचीं, तो उसने बताया कि शिकायत दर्ज कराने से पहले उसे अपने भीतर गहरी मानसिक लड़ाई लड़नी पड़ी. महिला आयोग ने पुलिस से कहा है कि सारे सबूत सुरक्षित रखे जाएं और जांच की प्रक्रिया सही तरीके से हो. पीड़िता ने अब तक की पुलिस कार्रवाई पर संतोष जताया है.

मिश्रा, अहमद और मुखर्जी को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया गया, और पिनाकी बनर्जी को अगले ही दिन रात में पकड़ा गया. इस मामले की जांच के लिए कोलकाता पुलिस ने एक विशेष जांच दल (SIT) बनाया है. लेकिन असली नाकामी संस्थागत स्तर पर है. यह सवाल उठ रहे हैं कि ग्रेजुएशन के सालों बाद भी मिश्रा को यूनियन रूम में आने-जाने की छूट क्यों थी, और कॉलेज प्रशासन ने बुनियादी सावधानियां जैसे कि प्रतिबंधित क्षेत्रों को बंद रखना, क्यों नहीं अपनाईं.

इसके अलावा साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज में कई सालों से छात्र संघ के चुनाव नहीं हुए थे. इसकी वजह से सत्ताधारी पार्टी के छात्र संगठन को बिना किसी विरोध के कॉलेज में जगह मिल गई, जिससे एक बेपरवाह और जवाबदेही से मुक्त माहौल बन गया. छात्र प्रतिनिधित्व की कमी के कारण मिश्रा जैसे लोगों को मनमानी करने की पूरी छूट मिल गई.

बढ़ते दबाव के बीच कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने इस मामले से निपटने के कॉलेज के तरीके की आलोचना की है. कार्यवाहक कुलपति संता दत्ता डे ने कॉलेज की रिपोर्ट को "लापरवाह" बताया और सवाल उठाया कि उप-प्राचार्या चटर्जी को प्रतिक्रिया देने में 40 घंटे क्यों लगे और आपातकालीन गवर्निंग बॉडी की बैठक क्यों नहीं बुलाई गई.

अब यूनिवर्सिटी की एक जांच टीम स्वतंत्र रूप से कॉलेज का निरीक्षण करेगी. यूनिवर्सिटी ने यह भी सवाल उठाया कि एक पूर्व छात्र को कॉलेज में इतनी छूट कैसे मिली और यूनियन रूम अभी भी कैसे चालू था.

इस घटना का राजनीतिक असर तेज और साफ देखने को मिला. 29 जून को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कॉलेज तक विरोध मार्च निकालने की कोशिश की, लेकिन उन्हें गरियाहाट क्रॉसिंग पर पुलिस ने रोक कर हिरासत में ले लिया. बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस पर अपने छात्र संगठन के भीतर अपराधियों को बचाने का आरोप लगाया और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग की.

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मामले की जांच के लिए सांसदों और पूर्व सांसदों को मिलाकर एक चार सदस्यीय समिति बनाई. केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस घटना को बंगाल में कानून-व्यवस्था की गिरती हालत का उदाहरण बताया. यह टीम 30 जून को कोलकाता पहुंची और 1 जुलाई को अपनी 'जांच रिपोर्ट' के आधार पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी.

इस बीच राज्य सरकार ने खुद को आरोपियों से अलग दिखाने की कोशिश की है, हालांकि उनके साथ संबंधों से इनकार करना आसान नहीं है. विपक्षी नेताओं ने कॉलेज नियुक्तियों में राजनीतिक दखल और स्वतंत्र प्रशासन की कमी को लेकर सवाल उठाए हैं. यह घटना बंगाल की शैक्षणिक संस्थाओं में फैली गहरी सड़न को उजागर करती है, जहां राजनीतिक दखल आम बात बन चुका है.

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