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उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल केजीएमयू को ‘ब्रेन ड्रेन’ की बीमारी कैसे लग गई?

बीते पांच वर्षों में डेढ़ दर्जन से ज्यादा डॉक्टरों ने लखनऊ के केजीएमयू से इस्तीफा दिया है और दिक्कत की बात यह कि इनमें से ज्यादातर स्पेशियलिटी विभागों के सबसे काबिल डॉक्टरों में गिने जाते थे

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी- फाइल फोटो
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी- फाइल फोटो
अपडेटेड 25 जुलाई , 2025

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 14 जुलाई को देश के प्रतिष्ठ‍ित चिकित्सा संस्थान में शुमार किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय यानी केजीएमयू के दौरे पर थे. योगी ने 941 करोड़ रुपए की योजनाओं का लोकार्पण और शि‍लान्यास किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री ने केजीएमयू के डॉक्टरों से अपील की कि वे गरीब मरीजों के हितों को ध्यान में रखकर काम करें. 

शायद मरीजों के हितों की बात करने वाले मुख्यमंत्री योगी के पिटारे में केजीएमयू के डाक्टरों के लिए कुछ नहीं था. इसी कारण केजीएमयू का एक और नगीना टूट गया. मुख्यमंत्री के केजीएमयू आने के एक हफ्ते के बाद 21 जुलाई को यहां के मानसिक रोग विभाग के प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने इस्तीफा दे दिया. डॉ. आदर्श के 170 से अधिक शोधपत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशि‍त हो चुके हैं और उनकी पहचान मानसिक रोगों के साथ सेक्स संबंधी समस्याओं के एक अच्छे डॉक्टर के रूप में थी. 

डॉ. त्रिपाठी ओपीडी में हर रोज 300 से अधि‍क मरीज लखनऊ के आसपास के जिलों से आते हैं. अचानक इस्तीफा देने की वजह पूछे जाने पर डॉ. आदर्श त्रिपाठी बताते हैं, “केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में कार्य करना हर डॉक्टर का सपना होता है. लेकिन एक समय के बाद डॉक्टरों की जरूरतें बढ़ती हैं और उस अनुपात में उन्हें संसाधन की जरूरत होती है जो एक सरकारी संस्थान मुहैया नहीं करा सकता. इसी वजह से मैंने इस्तीफा दिया है.” 

डॉ.‍ आदर्श त्रिपाठी अब तीन महीने तक केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में नोटिस पीरियड पर काम करेंगे. वहीं पिछले महीने केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और सस्थान के पूर्व प्रॉक्टर डॉ. क्षितिज श्रीवास्तव का नोटिस पीरियड पिछले महीने ही पूरा हुआ है. डॉ. श्रीवास्तव ने अप्रैल की शुरुआत में अपना इस्तीफा सौंप दिया था. वे अब लखनऊ के एक निजी कॉर्पोरेट अस्पताल में अपनी सेवाएं देंगे. इस तरह गंभीर से गंभीर बीमारी का कारगर इलाज मुहैया कराने वाला केजीएमयू खुद अपने डाक्टरों के पलायन से बेजार है. 

बीते पांच सालों के दौरान डेढ़ दर्जन से ज्यादा डाक्टर केजीएमयू छोड़कर जा चुके हैं. केजीएमयू शिक्षक संघ के अध्यक्ष के. के. सिंह बताते हैं, “अगर केजीएमयू की कुल 400 से अधिक की फैकल्टी की संख्या से तुलना करें तो पांच साल में संस्थान को छोड़ने वाले डाक्टरों की संख्या कोई बहुत ज्यादा नहीं है. लेकिन छोड़ने वाले डॉक्टर ज्यादातर सुपर स्पेशियलिटी विभागों से ताल्लुक रखते हैं, यह चिंताजनक है.”

केजीएमयू में अलग-अलग डिपार्टमेंट का ढांचा कैसा है

केजीएमयू और अन्य मेडिकल संस्थानों में पढ़ाई और शोध के साथ ही इलाज की भी व्यवस्था होती है. स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट का अंतर न भी करें, तब भी यहां तीन प्रकार के विभाग काम करते हैं. पहले ऐसे विभाग जिनके शिक्षक सिर्फ पढ़ाते हैं और शोध करते हैं. इस श्रेणी में एनॉटमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री जैसे विभाग आते हैं. दूसरी श्रेणी में ऐसे विभाग हैं, जहां पढ़ाई के साथ ही डॉक्टर ओपीडी में मरीज भी देखते हैं. जैसे- मेडिसिन, पीडियाट्रिक, रेस्पिरेटरी मेडिसिन आदि विभाग. तीसरी श्रेणी में पढ़ाई और ओपीडी में मरीज देखने के साथ सर्जरी करने वाले विभाग शामिल हैं. 

जनरल सर्जरी के साथ ही अन्य सर्जरी वाले सभी विभाग इसी में आते हैं. केजीएमयू में एनॉटमी, फिजियालाजी जैसे विभागों में तैनात शिक्षकों का पलायन न के बराबर है जबकि स्पेशियलिस्ट और सुपरस्पेशियलिस्ट सेवाओं से जुड़े डाक्टरों ने बहुतायत में संस्थान को बाय-बाय बोला है. केजीएमयू के सर्जरी विभाग में तैनात एक डॉक्टर बताते हैं, “सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टरों को पढ़ाई के लिए अतिरिक्त समय और मेहनत करनी होती है. इसके बावजूद संस्थान में नियुक्ति का नंबर आता है तो सभी को एक समान वेतन और भत्ते मिलते हैं. इसमें न तो डॉक्टर की डिग्री और ना ही उनके विभाग का कोई अंतर होता है. सुपर-स्पेशियलिटी और कम डॉक्टरों वाले विभागों में काम भी अपेक्षाकृत ज्यादा होता है. इसके चलते डॉक्टर नियुक्ति के बाद कुछ समय तक रुककर अनुभव हासिल करते हैं और निजी अस्पताल से अच्छा पैकेज मिलने पर तुरंत केजीएमयू छोड़ देते हैं.” 

सिर्फ पैसे के लिए केजीएमयू नहीं छोड़ रहे डॉक्टर

सरकारी संस्थानों में असिस्टेंट प्रोफेसर के वेतन की शुरुआत करीब डेढ़ लाख रुपये मासिक वेतन से होती है. जिन डॉक्टरों की निजी क्षेत्र में मांग होती है उनको औसतन चार से पांच लाख रुपये महीना आसानी से मिल जाता है. ज्यादा डिमांड होने पर यह राशि दस लाख रुपये मासिक तक हो जाती है. इसी तरह सुपरस्पेशि‍यलिटी डाक्टरों के केजीएमयू छोड़ने की वजह से यहां पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट, सर्ज‍िकल गैस्ट्रोलाजी, नेफ्रोलाजी विभाग समेत कई अन्य विभागों में डॉक्टरों की भारी कमी हो गई है. कुल मिलाकर केजीएमयू में डाक्टरों के 68 पद खाली हैं. केजीएमयू शिक्षक संघ के महामंत्री प्रो. संतोष कुमार बताते हैं, “यह भी ध्यान रखना होगा कि केजीएमयू छोड़कर जाने वाला डॉक्टर शिक्षक भी है. ऐसे में एक डॉक्टर के जाने पर न केवल मरीजों को नुकसान उठाना पड़ता है बल्क‍ि मेडिकल छात्रों की पढ़ाई पर भी असर पड़ता है. सरकार को इस दिशा में नीतिगत बदलाव करना चाहिए ताकि डॉक्टर केजीएमयू में रुके रहें.”

वहीं केजीएमयू के एक विभागाध्यक्ष निजी प्रैक्ट‍िस के नाम पर डॉक्टरों के उत्पीड़न को मेडिकल संस्थानों के लिए नुकसानदेय बताते हैं. इन विभागाध्यक्ष का कहना है, “अगर केजीएमयू को कोई डॉक्टर घर जाने के बाद अपनी पत्नी के बुटीक संचालन में उसकी मदद करे और बदले में दोनों लोग मिलकर आमदनी करें तो ठीक है लेकिन अगर डॉक्टर ने किसी मरीज को घर पर देख लिया तो यह एक बड़ा अपराध हो जाता है. सरकार को मेडिकल कालेजों में पेड ओपीडी की भी सुविधा शुरू करनी चाहिए ताकि सरकारी संस्थान में तैनात डॉक्टर निजी क्षेत्र के डाक्टरों की तुलना में हीनता महसूस न करें.” 

दरअसल सरकारी डॉक्टर नानप्रैक्ट‍ि‍सिंग भत्ते को नाकाफी बता रहे हैं. सरकारी नियम के मुताबिक केजीएमयू के डॉक्टरों को उनके मूल वेतन के निर्धारित प्रतिशत का अतिरिक्त भुगतान नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस के रूप में किया जाता है. इसका मकसद उनको निजी प्रैक्टिस से रोकना है. यह भत्ता एनॉटमी के साथ ही उन सभी विभागों के डॉक्टरों को भी मिलता है, जिनके यहां ओपीडी तक संचालित नहीं होती है. ऐसे में केजीएमयू में तैनात डाक्टर नए सिरे से नान प्रैक्ट‍िसिंग भत्ते का निर्धारण करने और इसे ज्यादा व्यवहारिक बनाने की मांग सरकार से कर रहे हैं. 

अगर केजीएमयू ‘ब्रेन ड्रेन’ से निबटने के लिए कोई ठोस योजना न ला सका तो लखनऊ में निजी कार्पोरेट अस्पतालों की बढ़ती गति का खमियाजा संस्थान को अपने कई और प्रतिष्ठ‍ित डाक्टरों को खोकर उठाना पड़ सकता है. लगातार वरिष्ठ डॉक्टरों के इस्तीफे से स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित होने के साथ ही विश्वविद्यालय की नैक ग्रेडिंग पर भी असर पड़ सकता है. इससे “जॉर्ज‍ियन” की प्रतिष्ठा ही धूमिल होगी. 

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