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ट्रैफिक जाम में जकड़ी काशी के लिए रोप-वे कितनी बड़ी राहत बन पाएगा?

वाराणसी में निर्माणाधीन देश की पहली रोपवे अर्बन ट्रांसपोर्ट परियोजना अक्टूबर तक शुरू करने की तैयारी है. 800 करोड़ रुपए के इस अनोखे प्रोजेक्ट का ट्रायल शुरू हो चुका है

Varanasi Ropeway (Photo Credit: Instagram_Social Media)
वाराणसी में पहले चरण के तहत पहले चरण में कैंट से रथयात्रा तक रोपवे चलेगा
अपडेटेड 5 सितंबर , 2025

प्राचीनता अपने आप में चुनौती लाती है. उसे सहेजने की, उसके साथ तालमेल बिठाने की. दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहर वाराणसी के लिए भी यह उतना ही सही है. 'शिव की नगरी' और आध्यात्मिक आस्था का केंद्र होने के कारण यहां रोजाना लाखों लोग पहुंचते हैं. 

लेकिन इस पवित्र नगरी की सड़कों पर रोजमर्रा की सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक जाम है. संकरी गलियां, तीर्थयात्रियों की भीड़ और लगातार बढ़ते वाहनों ने काशी की रफ्तार रोक दी है. काशी यानी वाराणसी की आबादी करीब 20 लाख से अधिक है, लेकिन वाहनों की संख्या इस क्षमता से कहीं आगे निकल चुकी है. 

2021 तक यहां 12 लाख वाहन रजिस्टर्ड थे, जो अब 14 लाख से अधिक हो गए हैं. शहर का सड़क नेटवर्क बेहद सीमित है. कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया या रथयात्रा तक की 3.5 किलोमीटर की दूरी सामान्य दिनों में 40-45 मिनट में और त्योहारों पर डेढ़ से दो घंटे में तय होती है. ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट बताते हैं कि वाराणसी की औसत यातायात गति 8 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा नहीं है. काशी के व्यापारी, विद्यार्थी और पर्यटक सभी इस समस्या से परेशान हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय( बीएचयू) की छात्रा प्रीति सिंह कहती हैं, “सुबह की क्लास के लिए निकलो तो भीड़ और जाम इतना होता है कि वक्त पर पहुंचना मुश्किल हो जाता है. सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब परीक्षा या इंटरव्यू के लिए जाना हो.” ऐसे में आसमान से सफर कराने वाला देश का पहला अर्बन पब्लिक ट्रांसपोर्ट रोपवे इस शहर की दिशा और दशा बदलने जा रहा है.

काशी में निर्माणाधीन देश की पहली रोपवे अर्बन ट्रांसपोर्ट परियोजना अक्टूबर तक शुरू करने की तैयारी है. 30 सितंबर तक पहले चरण में कैंट रेलवे स्टेशन से रथयात्रा इलाके तक काम पूरा कर लिया जाएगा. अक्टूबर के पहले सप्ताह तक इसे शुरू करने की तैयारी है. विद्यापीठ और रथयात्रा रोपवे स्टेशन तैयार हो चुका है. कार्यदायी विभाग नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक मैनेजमेंट लिमिटेड (एनएचएलएमएल) के अधिकारियों ने 29 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने अक्टूबर के पहले हफ्ते तक पहले चरण का कार्य पूरा करने की प्रतिबद्धता जताई है. 

रोपवे प्रोजेक्ट के सफलतापूर्वक एलाइनमेंट टेस्ट पास करने के बाद जुलाई के अंतिम सप्ताह से 10 “मोनो केबल डिटेचबल गोंडोला” (केबल कार) का बिना भार दिए मूवमेंट हो रहा है. परियोजना से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं, “सितंबर के दूसरे सप्ताह तक केबल कार की गति‍, संतुलन और सुरक्षा के बिंदुओं पर परीक्षण होगा. करीब सवा तीन किलोमीटर लंबे रोपवे कॉरीडोर में 15 सितंबर से लोड टेस्ट शुरू किया जाएग. यह प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से एक माह में पूरी की जाएगी.” हर एक केबल कार में 400 किलोग्राम भार का परीक्षण करने के लिए रेत की बोरियों और पानी को बोतलों का उपयोग होगा. इसके साथ ही 23 टावरों में लगाए गए 163 सेंसरों का परीक्षण भी चल रहा है. 

यह 807 करोड़ रुपये की रोपवे परियोजना को लेकर दावा किया जा रहा है कि इससे प्रतिदिन एक लाख से अधिक लोगों को फायदा मिलेगा. वाराणसी कैंट से गोदौलिया तक दूरी सिर्फ 16 मिनट में तय होगी, जबकि भारी ट्रैफिक और जाम के कारण यह फासला तय करने में 40-45 मिनट लग जाता है. प्रत्येक एक से दो मिनट के अंतराल में केबल कार यात्रि‍यों के लिए उपलब्ध होगी. 24 घंटे में 16 घंटे रोपवे संचालित होगी. 

संस्कृति और आधुनिकता का संगम

परियोजना में काशी की झलक बनाए रखने पर खास जोर है. नेशनल हाईवे लाजिस्टिक मैनेजमेंट लिमिटेड (NHLML)  कैंट, रथयात्रा व विद्यापीठ स्टेशनों के ऊपर लगाए जाने वाले शिखर का स्वरूप काशी विश्वनाथ धाम जैसा भव्य देने की कोशि‍श में जुटा है. पहले इसे गुंबद का आकार मिलना था, लेकिन बाद में काशी विश्वनाथ धाम के शिखर जैसा भव्य स्वरूप देने पर सहमति बनी. इसके लिए NHLML की तरफ से हैदराबाद की कंपनी विश्वसमुद्र को वर्कआर्डर जारी हुआ है. 

NHLML ने मोनोकेबल डिटैचेबल गोंडोला (केबल कार) और स्टेशनों पर यात्रियों के सुरक्षित लगेज मैनेजमेंट पर काम शुरू किया है. तय हुआ है कि केबल कार पर यात्री अपने साथ 15 किलोग्राम तक सामान ही निशुल्क ले जा सकेंगे. अधिक वजन होने पर अतिरिक्त धनराशि चुकानी होगी. हवाई सफर की भांति अतिरिक्त वजन के हिसाब से सीट का किराया निर्धारण होगा. कैंट रोपवे स्टेशन पर एक क्लाक रूम (सामान रखने का स्थान) भी बनाया जा कहा है. प्रति किलोमीटर 13 से 15 रुपये प्रति सीट किराया तय करने का प्रस्ताव शासन भेजा गया है. आस्ट्रिया की “लाइटमर” कंपनी को सुरक्षा की जांच करने की जिम्मेदारी मिली है. उनकी रिपोर्ट पर ही रोपवे को जनता के हवाले किया जाएगा. 

सुरक्षा के आधुनिक इंतजाम 

रोपवे की केबल कार की सुरक्षा जांच के लिए एक्सपर्ट कई तकनीक इस्तेमाल कर रहे हैं. पहले गति कम रखी जा रही है फिर मानक के अनुरूप उसे बढ़ाया जा रहा है. ब्रेकिंग सिस्टम की जांच हो रही है. बिजली गुल करने के बाद देखा जा रहा है कि जिस प्वाइंट पर गेंडोला को रुकना चहिए था, वहां रुका है या नहीं. रोपवे कॉरीडोर को स्काडा सिस्टम (सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डेटा एक्विजिशन) के दायरे में लाया गया है. हर टावर पर छह सेंसर लगाए जा रहे हैं. सारे सेंसर की सक्रियता की अलग से जांच की जा रही है. 

परियोजना से जुड़े एक अधि‍कारी बताते हैं, “कुल 38 टावरों में 228 सेंसर लगाए जा चुके हैं. उनकी क्षमता का परीक्षण शुरू हुआ है.” एक्सपर्ट की माने तो रोपवे में कई खूबियां हैं. केबल कार किस टावर से गुजर रही है, उसका पता चलेगा. अगला स्टेशन कितनी दूरी पर है. इसकी भी जानकारी मिलेगी. अगर सेंसर में समस्या आती है तो रोपवे अपने आप बंद हो जाएगा. रोपवे का पूरा सिस्टम ऑनलाइन रहेगा. 

पैनल में गड़बड़ी होने पर स्व‍िट्जरलैंड से ही विशेषज्ञ इसे ठीक कर सकेंगे. इसके लिए उन्हें वाराणसी आने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, उनकी टीम बनारस में हमेशा रहेगी. कंप्यूटर और इंटरनेट से कंट्रोल पैनल को कनेक्ट किया जाए‌गा. स्काडा के जरिए भी वह रोपवे की निगरानी और नियंत्रण को बेहतर बना सकेंगे. रोपवे की गति, सुरक्षा, दिशा, भार और जरूरत के मुताबिक नियंत्रण समेत कई गतिविधि‍यां संचालित की जाएगी.

चुनौतियां और अड़चनें

परियोजना का सबसे बड़ा संकट जून में गोदौलिया पर सामने आया. पाइलिंग के दौरान 200 साल पुराना ‘घोड़ा नाला’ धंस गया. आसपास की इमारतों पर खतरा मंडराने लगा. हालांकि बाद में इसे ठीक करने का काम शुरू हुआ. इस बारे में  एग्जिक्यूटिव इंजीनियर के.के. सिंह कहते हैं, "घोड़ा नाले की मरम्मत पूरी हो चुकी है. बाढ़ के कारण फिनिशिंग का काम रुका था. अब रोपवे का काम यहां तेजी से आगे बढ़ेगा.” 

पहले चरण में कैंट से रथयात्रा तक रोपवे चलेगा, जबकि दूसरे चरण में गिरजाघर और गोदौलिया तक इसका विस्तार होगा. अधिकारियों का मानना है कि यह मॉडल देश के अन्य घनी आबादी वाले शहरों के लिए भी रास्ता दिखाएगा. 807 करोड़ रुपए की यह परियोजना काशी के लिए केवल यातायात का समाधान नहीं, बल्कि एक नई पहचान है. यह शहर के व्यापार, पर्यटन और रोजमर्रा की जिंदगी को नई रफ्तार देगा. कभी घंटों का सफर अब मिनटों में पूरा होगा. सड़कों पर वाहन कम होंगे, हवा साफ होगी और लोग चैन की सांस लेंगे. काशी के आकाश में उड़ती गोंडोला इस बात का प्रतीक होंगी कि यह प्राचीन नगरी अब आधुनिकता के पंखों के साथ भविष्य की ओर बढ़ रही है.

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