भारत में क्रिकेट और रियासतों का बरसों से गहरा नाता रहा है. 2 सितंबर को ज्योतिरादित्य सिंधिया के 29 वर्षीय बेटे महानआर्यमन सिंधिया मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (MPCA) के अध्यक्ष चुने गए. खास बात यह रही कि उनका चुनाव निर्विरोध हुआ और वे इस पद पर पहुंचने वाले सबसे कम उम्र के शख्स बन गए.
महानआर्यमन सिंधिया, सिंधिया परिवार के तीसरे सदस्य हैं जो इस कुर्सी तक पहुंचे हैं. उनसे पहले उनके पिता ज्योतिरादित्य और दादा माधवराव सिंधिया MPCA के अध्यक्ष रह चुके हैं. बाद में माधवराव भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के प्रेसिडेंट भी बने थे.
महाआर्यमन की मां की तरफ से भी क्रिकेट प्रशासन का गहरा रिश्ता रहा है. उनके नाना संग्राम सिंह गायकवाड़ के बड़े भाई फतेह सिंह गायकवाड़ BCCI अध्यक्ष रह चुके थे, जबकि संग्राम सिंह ने बड़ौदा की तरफ से फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला था.
ग्वालियर के पूर्व शाही घराने से आने वाला सिंधिया परिवार 1982 से MPCA की कमान में अहम रहा है, जब माधवराव सिंधिया अध्यक्ष बने थे. इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2006 से 2013-14 तक एसोसिएशन की बागडोर संभाली. उन्होंने उस वक्त इस्तीफा दिया जब जस्टिस आर.एम. लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू होने लगीं, जिनका मकसद खेल संगठनों से नेताओं को दूर रखना था.
सवाल यह है कि सिंधिया परिवार, जिसने महानआर्यमन से पहले तीन पीढ़ियों तक मध्य प्रदेश की राजनीति में भी बड़ी भूमिका निभाई, पिछले चार दशकों से राज्य के क्रिकेट मामलों पर अपनी पकड़ कैसे बनाए रख सका?
जवाब उनके इतिहास में छिपा है. जैसे उन्होंने 1947 के बाद भारतीय राजनीति में अपना रास्ता निकाला और 18वीं सदी से ग्वालियर रियासत के दौर में सियासत को बारीकी से संभाला, वैसे ही एमपी में क्रिकेट प्रशासन को भी उसी कौशल से चलाया, बस पैमाना छोटा था.
कहानी शुरू होती है 1982 से, जब उषा देवी होल्कर (इंदौर के आखिरी शासक यशवंतराव होल्कर की बेटी) के पति सतीश मल्होत्रा ने MPCA अध्यक्ष का पद छोड़ा. तब तक क्रिकेट प्रशासन पर इंदौर के शाही घराने यानी होल्करों का दबदबा था. इसी दौरान एम.एम. जगदाले और ए.डब्ल्यू. कनमडिकर जैसे वरिष्ठ क्रिकेटर और प्रशासक, जो MPCA मामलों में अहम भूमिका रखते थे, माधवराव सिंधिया से मिले और उन्हें अध्यक्ष बनने के लिए कहा. यहीं से नियंत्रण इंदौर से शिफ्ट होकर ग्वालियर की तरफ चला गया. यह मध्य प्रदेश की दूसरी बड़ी मराठा रियासत थी.
माधवराव की अध्यक्षता में MPCA को नई पहचान और मजबूती मिली और वह राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों में अलग जगह बनाने लगा. वे 2001 में अपनी मौत तक इस पद पर बने रहे. उनके बाद अध्यक्ष पद गया उनके करीबी कांग्रेसी नेता श्रवण भाई पटेल के पास. वे जबलपुर के बीड़ी कारोबारी थे, खुद भी रणजी खिलाड़ी रह चुके थे और राज्य मंत्री भी थे.
पटेल 2006 तक अध्यक्ष बने रहे. उसके बाद क्रिकेट प्रशासकों के एक ग्रुप, जिसमें संजय जगदाले, कांग्रेसी नेता महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और सुबोध सक्सेना शामिल थे, ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को MPCA अध्यक्ष बनाने का आइडिया रखा. राज्य के क्रिकेट जानकारों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, जो खुद खेलों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं मगर उनका राजनैतिक रूप से सिंधिया परिवार से बेहतर रिश्ता नहीं था, उन्होंने भी इस आइडिया का समर्थन किया.
ज्योतिरादित्य के कार्यकाल की पहचान ग्वालियर में एक और क्रिकेट स्टेडियम के काम की शुरुआत रही. लेकिन इसी दौरान उन्हें कड़ी चुनौती मिली भाजपा के दिग्गज कैलाश विजयवर्गीय से. क्रिकेट जानकारों का कहना है कि सिंधिया खेमे के ही किसी शख्स ने विजयवर्गीय को यकीन दिला दिया था कि वे MPCA अध्यक्ष की कुर्सी छीन सकते हैं.
नतीजा यह निकला कि MPCA अध्यक्ष पद के लिए 2010 और 2012 में दो चुनाव हुए, जिनमें कैलाश विजयवर्गीय हार गए, जबकि उस वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार थी और ज्योतिरादित्य कांग्रेस में थे. ज्योतिरादित्य ने 2013-14 में इस्तीफा दे दिया और संजय जगदाले ने कमान संभाली.
2019 में जब लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू हो चुकी थीं, तब फैसला लिया गया कि अभिलाष खांडेकर को MPCA अध्यक्ष बनाया जाए. खांडेकर वरिष्ठ पत्रकार थे, खेलों में उनकी खास रुचि थी और वे सिंधिया परिवार को भी अच्छे से जानते थे. उन्हें पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के करीबी के तौर पर भी देखा जाता था. दिलचस्प बात यह थी कि जब तक महाजन सक्रिय थीं तब तक विजयवर्गीय और महाजन, इंदौर भाजपा राजनीति के दो ध्रुव माने जाते थे.
जैसी उम्मीद थी, ज्योतिरादित्य और इंदौर में प्यार से ‘ताई’ कहलाई जाने वाली सुमित्रा महाजन एक साथ आए और खांडेकर को सपोर्ट किया. इससे किसी और, खासकर विजयवर्गीय के उम्मीदवारों, की राह अपने आप बंद हो गई. खांडेकर ने अपने कार्यकाल में कई उपलब्धियां हासिल कीं. वे कहते हैं, “मेरे लिए सबसे बड़ा पल वह था जब एमपी ने 2022 में पहली बार रणजी ट्रॉफी जीती. इसके अलावा ग्वालियर में राज्य का दूसरा इंटरनेशनल स्टेडियम बनाया गया और BCCI ने MPCA को देश का बेस्ट क्रिकेट एसोसिएशन चुना.”
इसी दौरान, जब खांडेकर का दूसरा कार्यकाल चल रहा था तब महानआर्यमन को आगे की भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा था. 2024 में शुरू हुई एमपी क्रिकेट लीग, जिसके मुखिया महानआर्यमन थे और जिसमें आठ पुरुष और अब पांच महिला टीमें खेल रही हैं, उनका लॉन्च प्लेटफॉर्म बना. पिछले साल और 2025 में इस लीग ने सफल rटी20 टूर्नामेंट आयोजित किए. अंदरखाने यह भी सोचा गया कि महानआर्यमन की लंबे समय से चर्चा में रही राजनीति में एंट्री, MPCA अध्यक्ष बनने से किस तरह प्रभावित होगी, ख़ासकर नए नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस ऐक्ट को देखते हुए.
महानआर्यमन की ताजपोशी पर न तो विजयवर्गीय और न ही किसी और तरफ से कोई विरोध सामने आया. 3 सितंबर को स्थानीय अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपे, यहां तक कि विजयवर्गीय के करीबी बीजेपी नेताओं ने भी महानआर्यमन को बधाई दी. साफ था कि दूसरी तरफ को भी साथ मिला लिया गया है.
अध्यक्ष पद संभालने के बाद महानआर्यमन ने कहा, “मैं चाहता हूं कि गांव-गांव से टैलेंट को तलाश कर क्रिकेट में लाऊं और ज्यादा से ज्यादा इंटरनेशनल मैच मध्य प्रदेश में हों.” यानी खेल तो अभी शुरू हुआ है.