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झारखंड : हाईकोर्ट जज बनाम वकील मामले में क्या है बार काउंसिल की उलझन?

झारखंड हाईकोर्ट में 16 अक्टूबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान एक वकील जज से भिड़ गए. इस मामले में हाईकोर्ट ने अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू की है वहीं बार काउंसिल दुविधा में दिखा दे रही है

The Jharkhand High Court has sought the state government's response to the petition. (File photo)
झारखंड हाईकोर्ट
अपडेटेड 19 अक्टूबर , 2025

बीते 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई पर अधिवक्ता राकेश किशोर ने जूता फेकने की कोशिश की. इस घटना ने न्यायपालिका में न्यायाधीश और वकीलों के संबंध, आपसी व्यवहार पर देशभर में बहस छेड़ दी. इसी बीच ठीक दस दिन बाद झारखंड हाईकोर्ट में भी कुछ ऐसा ही वाकया सामने आया. 

16 अक्टूबर को झारखंड हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई को दौरान वकील महेश तिवारी जस्टिस राजेश कुमार से भिड़ गए. महेश तिवारी ने जस्टिस से कहा, ‘’आप बहुत ज्यादा जानते हैं तो जज बन गए, हमलोग कम जानते हैं तो वकील रहे. आप किसी अधिवक्ता के अपमान की कोशिश मत करिये. न्यायपालिका के साथ देश जल रहा है. ये मेरे शब्द हैं.’’ 

जस्टिस राजेश कुमार की अदालत में एक महिला के बकाया बिजली बिल मामले की सुनवाई चल रही थी. कुल 1.30 लाख का बकाया होने के कारण कनेक्शन काट दिया गया था. जस्टिस ने आधा जमा करने को कहा. इस पर पहले महेश तिवारी ने कहा कि 10 हजार दे पाएंगे, फिर कहा 15 हजार दे पाएंगे. जस्टिस ने ऑर्डर दिया कि 50 हजार जमा करने पर बिजली कनेक्शन चालू कर दिया जाए.

इतना सुनते ही तिवारी ने कहा कि यह अन्याय है. जिस पर जस्टिस का कहना था कि कोर्ट के किसी भी फैसले से एक के साथ न्याय होता है तो दूसरे के साथ अन्याय. थोड़ी देर बाद ऐसा ही एक और मामला लेकर दूसरे वकील कोर्ट के सामने पेश हुए. जिरह चल रही थी, जस्टिस राजेश कुमार ने कोर्ट रूम में मौजूद बार काउंसिल के चेयरमैन राजेंद्र कृष्णा से कहा कि देख रहे हैं कैसे बहस की जा रही है, फेवर में ऑर्डर नहीं आ रहा है तो मुझ पर आरोप लगाया जा रहा है. 

जस्टिस राजेश कुमार और वकील महेश तिवारी के बीच नोकझोंक
जस्टिस राजेश कुमार और वकील महेश तिवारी के बीच नोकझोंक

इतना सुनते ही पीछे बैठे महेश तिवारी आगे आए और जस्टिस राजेश कुमार को कहा कि किसी को अपमानित मत करिये. तिस पर जस्टिस राजेश कुमार ने कहा कि अगर आपको बहस करनी है तो सही तरीके से करनी होगी. जवाब में वकील ने कहा, ‘’मैं अपने तरीके से बहस कर रहा हूं. आप सीमा रेखा मत लांघिये. मैं पिछले 40 साल से इस पेशे में हूं. आपको भी सही तरीके से बात करनी होगी.’’ मामले ने तूल पकड़ा और हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया. कोर्ट ने इसे आपराधिक अवमानना का मामला माना है. मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने 17 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई की. 

सुनवाई को दौरान नोक-झोंक वाला वीडियो प्रस्तुत किया गया. वीड़ियो देखने के बाद बेंच ने अधिवक्ता का पक्ष जानना चाहा. इस पर महेश तिवारी ने कहा कि उन्होंने पूरे होश में जस्टिस राजेश कुमार को ये बातें कही थी. इस पर उन्हें कोई पछतावा नहीं है. इसके बाद अदालत ने उन पर आपराधिक अवमाननावाद मामले में नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि वकील की इस हरकत से न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंची है और किसी भी जज को अंगुली नहीं दिखाई जा सकती है. अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी. अधिवक्ता महेश तिवारी ने कहा कि मामला अभी कोर्ट में हैं, ऐसे में वे मीडिया में कोई बयान नहीं दें. वे बार काउंसिल ऑफ झारखंड के सदस्य भी हैं. 

पूरे मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए, बार काउंसिल ऑफ झारखंड के अध्यक्ष अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण ने कहा, ‘’काउंसिल की बैठक होनी है. बैठक के बाद ही कुछ कह पाएंगे.’’ 

काउंसिल पेशोपेश में 

इधर वकीलों के बीच चल रही चर्चाओं के मुताबिक महेश तिवारी थोड़े गरम मिजाज के हैं. उन पर पहले भी ऐसा करने का आरोप लग चुका है. लेकिन काउंसिल तय नहीं कर पा रही है कि अपने मेंबर का साथ कैसे दें. क्योंकि महेश तिवारी ने पांच जजों की बेंच के सामने भी कहा कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है, पूरे होश में कहा है. बार काउंसिल के सदस्यों के पास देशभर के वकीलों का फोन आ रहा है. कोई वकील का साथ देने की बात कह रहा तो कोई मामले पर राज्य के वकीलों की राय जानना चाह रहा है. लेकिन मामले में दोषी जो भी हो, पूरे सिस्टम की साख पर बट्टा लग चुका है. 

हाईकोर्ट के वकील अभय मिश्रा कहते हैं, ‘’महेश तिवारी का पिछला रिकॉर्ड ऐसा ही रहा है. साल 2007 में उन्होंने तत्कालीन न्यायाधीश डीपी सिंह पर फाइल फेंक दी थी. उनके साथ बदतमीजी की. यही नहीं, एक महिला को कोर्ट परिसर में वे पीट चुके हैं. कांड ये करते हैं और इनके बदले बदनाम पूरी न्याय व्यवस्था होती है. इनके किए की माफी बार काउंसिल मांगता है.’’ मिश्रा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, ‘’जिस बार काउंसिल के मेंबर का काम अधिवक्ताओं के बीच नैतिकता की शिक्षा देना है, वह अपने पक्ष में फैसला नहीं आने पर कह रहा है कि नेशन इज बर्निंग (देश जल रहा है). यही नहीं, गलती होने के बावजूद माफी मांगने को तैयार नहीं है और यहां का अधिवक्ता समाज चुप्पी ओढे बैठा है.’’ 

25 सदस्यों वाली बार काउंसिल की एकमात्र महिला सदस्य रिंकू कुमारी भकत अपने साथी सदस्य का खुलकर बचाव करती है. उनके मुताबिक, ‘’जस्टिस राजेश कुमार को पॉपुलर होना है. इसलिए वे लाइव स्ट्रीम करवाते हैं और इस तरह का बयान देते रहते हैं. कुछ दिन पहले उनकी अदालत में एक आईएएस अधिकारी पेश हुए थे, जिनको इन्होंने सीधे चोर बोल दिया. यहां भी उन्होंने बीते 16 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान कह दिया कि हमारा दिमाग खाली नहीं है न जी. ये तरीका होता है क्या एक वकील से बात करने का. आपको अगर सबमिशन पसंद नहीं है तो रिजेक्ट कर दीजिये, किसी वकील पर कटाक्ष मत करिये न.’’ रिंकू भकत का कहना है कि बार और बेंच में दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना होगा, तभी यह व्यवस्था चल पाएगी. जजों को भी ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जिससे वकीलों का संयम टूट जाए. 

इससे पहले बीते माह भी ऐसा ही मामला झारखंड हाईकोर्ट में आ चुका है. जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत में एक मामले की सुनवाई चल रही थी. सुनवाई के दौरान एडवोकेट राजेश कुमार तेज आवाज में अपना पक्ष रखने लगे. कोर्ट ने उन्हें मर्यादित तरीके से अपनी बात रखने को कहा. बावजूद इसके राजेश कुमार तेज आवाज में जिरह करते रहे. इससे नाराज कोर्ट ने उन्हें नोटिस जारी किया. जब मामला तूल पकड़ा तो राजेश कुमार ने माफी मांगी और अदालत को भरोसा दिलाया कि आगे ऐसा नहीं होगा. उनकी मंशा अदालत की अवमानना की नहीं थी. बाद में उन्हें बिना शर्त माफी दी गई. 

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