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झारखंड मुक्ति मोर्चा बंगाल और असम में चुनाव लड़ेगा! हेमंत सोरेन इन राज्यों में क्यों लगा रहे दांव?

प. बंगाल और असम में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर हेमंत सोरेन की नजर है

Jharkhand CM Hemant Soren, along with his cabinet ministers, held multiple road show to seek votes for Somesh Chandra Soren. (Image: Social Media)
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन JMM के एक कार्यक्रम में (फाइल फोटो)
अपडेटेड 29 दिसंबर , 2025

पश्चिम बंगाल और असम में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) भी चुनावी मैदान में उतरती दिख रही है. बीते दिनों JMM ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता अभिषेक बनर्जी से इस बारे में बातचीत की है. JMM ने झारखंड के सीमावर्ती इलाकों के अलावा आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में से कुल 14 सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है. 

बीते विधानसभा चुनाव में भी JMM ने इसकी कोशिश की थी लेकिन ममता बनर्जी की ओर बेरुखी दिखाने के बाद हेमंत सोरेन को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे. लेकिन इस बार ममता और अभिषेक ने जनवरी के पहले हफ्ते में उनके अनुरोध पर विचार करने का आश्वासन दिया है. 

इसके अलावा पार्टी ने असम में भी चुनाव लड़ने का मन बना लिया है. चुनाव पूर्व तैयारियों के लिए JMM ने चार सदस्यों के एक प्रतिनिधमंडल के गठन का ऐलान किया है. यह असम में रह रहे आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनैतिक स्थितियों का आकलन करेगा साथ ही चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को तलाशेगी और रिपोर्ट हेमंत सोरेन सौंपेगा.

JMM बंगाल में 1980 के दशक से चुनाव लड़ती रही है. बंगाल में पार्टी के लोग जीते भी हैं. वहीं असम में 1995 से चुनाव लड़ रही है, लेकिन अभी तक वहां सफलता नहीं मिली है. झारखंड में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद JMM अपना विस्तार और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने की कोशिश कर रही है. इसी मकसद से एक बार फिर इन दोनों राज्यों में पैठ बनाने की जुगत में लग गई है. 

इस वर्ष अप्रैल में रांची में आयोजित JMM के 13वें महाधिवेशन के दौरान JMM ने असम, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की कुछ चुनिंदा सीटों पर अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ाने की घोषणा की थी. पार्टी नेताओं ने यह भी कहा था कि वे राज्य से बाहर गए प्रवासियों को संगठित कर असम में चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं. हालांकि पार्टी ने आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन सूत्रों के अनुसार JMM कई राज्यों में अपने कार्यालय खोलने की योजना बना रहा है. झारखंड में शानदार जीत के बाद पार्टी नई दिल्ली में भी कार्यालय खोलने पर विचार कर रही है. 

बंगाल में JMM का दावा 

कुल 294 विधानसभा सीट वाले इस राज्य में आदिवासियों के लिए कुल 16 सीट आरक्षित हैं. मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि इन सीटों पर JMM जीत भी सकती है और TMC को जिताने में बड़ी भूमिका अदा कर सकती है. 

आबादी के लिहाज से देखें तो बंगाल में कुल 40 जनजातियां रहती हैं, जिनकी आबादी साल 2011 की जनगणना के मुताबिक 52,96,963 है. इसमें संताल आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक यानी कुल आदिवासी आबादी का 51.8 फीसदी है. JMM मान सकती है कि संताल आदिवासियों का समर्थन उसे भरपूर मिल सकता है. इसके अलावा उरांव 14 फीसदी, मुंडा 7.8 फीसदी हैं. बाकि अन्य जनजातियां हैं. 

पश्चिम बंगाल में JMM के प्रदेश सचिव बिट्टू मुर्मू सन 1979 से पार्टी से जुड़े हुए हैं. वे कहते हैं, ‘’बंगाल में इस वक्त JMM के लगभग 10 हजार सदस्य हैं. कुल 12 जिलों में संगठन सक्रिय है. पिछले विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो हमने सन 1980 के बाद से सभी चुनाव लड़े हैं. हमारी पार्टी के समर्थन से नौरंगा हांसदा और फिर बाद में उनकी पत्नी श्रीबाला हांसदा भी विधायक बनी हैं.’’  

मुर्मू के मुताबिक, “झारग्राम, पारा, रघुनाथपुर, गाजल- इन विधानसभा सीटों पर हम इस वक्त भी बहुत मजबूत स्थिति में हैं. ये चारों सीट JMM निकाल सकती है. पार्टी ने कहा है कि वह बंगाल चुनाव लड़ेगी, लेकिन केंद्रीय कमेटी से अभी तक इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं मिला है. जैसे ही निर्देश मिलेगा, हम पूरे दम खम के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे.’’  

असम में JMM 

असम विधानसभा की 126 सीट में से कुल 19 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इनमें से 6 सीटें राज्य के तीन ऑटोनॉमस बॉडी जिलों में हैं, 6 सीट बोडोलैंड रीजन में और 7 सीट अन्य जिलों में है. 

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में आदिवासियों की संख्या 38,84,371 है. वे कुल जनसंख्या के 12.44 फीसदी हैं. हाल ही में असम सरकार ने वहां के चाय आदिवासियों (टी-ट्राइब) को एसटी का दर्जा दिया है. लेकिन अभी तक इसे केंद्र सरकार की तरफ से स्वीकृति नहीं मिली है. 

JMM के महासिचव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, “असम में आदिवासी आबादी की अच्छी-खासी संख्या होने के कारण पार्टी वहां विधानसभा चुनाव लड़ने को इच्छुक है. इसी के मद्देनजर पार्टी का चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल राज्य में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों के लिए संभावनाएं तलाशने के उद्देश्य से जल्द ही वहां का दौरा करेगा.’’ 

असम में JMM का संगठन नहीं है, तो क्या केवल राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं? सुप्रियो इस पर कहते हैं, “संगठन वहां पहले था, बीते वर्षों में थोड़ा कमजोर जरूर हुआ है, लेकिन खत्म नहीं हुआ है. दूसरी बात कि स्थानीय आदिवासियों में हमारी स्वीकार्यता है. खासकर झारखंड से दशकों पहले वहां पलायन कर पहुंचे आदिवासी, जो वहां अब टी ट्राइब के नाम से जाने जाते हैं, उनके बीच में JMM की स्वीकार्यता है. हिमंता सरकार ने उन्हें एसटी का दर्जा तो दिया है, लेकिन हालात में अब भी कोई परिवर्तन नहीं है. इसके अलावा इन लोगों को एसटी का दर्जा तभी तक हासिल है, जब तक कि किसी टी ट्राइब परिवार का सदस्य चाय बगान में काम कर रहा है. यानी अभी ये लोग गुलामी वाली स्थिति में ही जी रहे हैं.’’  

झारखंड में बीते विधानसभा चुनाव में असम के सीएम हिमंता बिस्व सरमा झारखंड BJP के चुनाव प्रभारी थे. उन्होंने खुद को साबित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. ऐसे में अब अगर हेमंत सोरेन वहां JMM या इंडिया गठबंधन के लिए चुनाव प्रचार करने जाते हैं, तो क्या हिमंता को बड़ा राजनीतिक नुकसान पहुंचा पाएंगे? विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी बीते पांच सालों से यहां संगठन खड़ा कर रही है, लगातार मेहनत करने पर साल 2022 में नगर निकाय चुनाव में उसे एक पार्षद पद पर सफलता मिली. 

यहां हर चुनाव में TMC, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, सपा चुनाव लड़ती रही हैं. इन दलों को कुछेक मजबूत नेता मिल जाते हैं. इनमें से अगर कोई चुनाव जीत भी जाए तो अभी तक का इतिहास रहा है कि वे बाद में पार्टी छोड़ देते हैं. ऐसे में लगता यही है कि JMM भले ही BJP को कुछ वोटों का नुकसान पहुंचा दे, लेकिन इसके आगे शायद ही पूरे चुनाव पर कोई असर डाल पाएगी.

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