बच्चे पैदा करने और फिर बच्चे पालने की जिम्मेदारी का अधिकांश हिस्सा महिलाओं ने सैकड़ों सालों से अपने पास रखा है. फिर विज्ञान ने तरक्की की. पुरुषों की नसबंदी ईजाद हुई. सरकारें और स्वयंसेवी संस्थाओं ने इसे प्रचारित किया. इस तरक्की के सहारे, बड़ी मुश्किल से पुरुष इस बात के लिए तैयार हुआ कि वह परिवार नियोजन की जिम्मेदारी निभाएगा. यानी नसबंदी कराएगा. कुछ साल इस चलन ने जोर पकड़ा, लेकिन एक बार फिर मामला सिफर साबित होता नजर आ रहा है.
झारखंड में घर के साथ परिवार नियोजन की जिम्मेदारी का बोझ भी महिलाओं के ऊपर ही आ गया है. पुरुष यहां भी अपना प्रभाव जमाकर अपने परिवार की महिलाओं को इसके लिए आगे कर दे रहे हैं. झारखंड सरकार की ओर से ताजा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इस साल अप्रैल से अक्टूबर तक जहां 13,901 महिलाओं ने ऑपरेशन कराया है. वहीं मात्र 312 पुरुषों ने नसबंदी कराई है. ये हालात तब हैं जब भारत दुनिया का पहला देश है जो सन 1952 में ही परिवार नियोजन जैसी योजनाओं की शुरूआत कर चुका था.
बहरहाल, जिलावार आंकड़ों को देखें तो लोहरदगा और पाकुड़ जिले में तो मात्र एक-एक पुरुष ने नसबंदी कराई है. वहीं चतरा, कोडरमा में दो-दो पुरुष ही नसबंदी के लिए सामने आए. पश्चिमी सिंहभूम जिले में सबसे अधिक पुरुषों ने नसबंदी कराई है, लेकिन उसकी भी संख्या मात्र 47 है. हालांकि कुछ मामलों में राज्य की स्थिति बेहतर है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक शशि प्रकाश के मुताबिक झारखंड में कुल प्रजनन दर इस वक्त 3.5 से घटकर 2.3 हो गई है. वहीं गर्भनिरोधक प्रचलन दर 35.7 से बढ़कर 61.7 फीसदी हो गई है.
सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों के बाद भी राज्य में परिवार नियोजन के लेकर पुरुषों को प्रोत्साहित करने में सफलता नहीं मिली है. पिछले साल भी पूरे राज्य में मात्र 447 पुरुषों ने ही नसबंदी कराई थी. जबकि राज्य सरकार पुरुषों की नसबंदी के लिए 3000 तो महिलाओं के ऑपरेशन के लिए 2000 रुपए देती है. डॉक्टरों के मुताबिक पुरुष नसबंदी एक सरल, सुरक्षित, जल्दी होने वाली और कम जोखिम भरी प्रक्रिया है. जबकि महिलाओं का ऑपरेशन सर्जिकल और पुरुषों के मुकाबले अधिक जोखिम वाली प्रक्रिया है.
रिपोर्ट को देखते हुए बीते 13 नवंबर को राज्य स्तरीय पुरुष नसबंदी अभियान की शुरूआत की गई है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी का कहना है कि परिवार नियोजन केवल जनसंख्या नियंत्रण का नहीं, बल्कि स्वस्थ परिवार और सुरक्षित मातृत्व की दिशा में एक बड़ा कदम है. यह पुरुषों की समान भागीदारी से ही सफल होगा. हर बच्चा योजना और तैयारी के साथ इस दुनिया में आए और हर मां को सुरक्षित मातृत्व का अधिकार मिले. उन्होंने कहा, "हम यह भी जानते हैं कि परिवार नियोजन की जिम्मेदारी अक्सर महिलाओं तक सीमित रह जाती है, लेकिन अब समय आ गया है कि पुरुष भी समान रूप से इस जिम्मेदारी को साझा करें. नसबंदी के प्रति समाज में जो गलतफहमियां हैं, उन्हें दूर करना हम सबकी जिम्मेदारी है.”
आखिर पुरुष क्यों नहीं कराना चाहते नसबंदी
राज्य नोडल पदाधिकारी (परिवार नियोजन) डॉ पुष्पा कहती हैं, "मैं ये नहीं कहूंगी कि नसबंदी को लेकर जो मिथ चले आ रहे हैं, वो खत्म हो गए है. पुरुषों में अभी भी ये डर है कि नसबंदी कराने से उन्हें कमजोरी होगी, उनका पौरुष कम हो जाएगा, वे भारी काम नहीं कर पाएंगे. इसको दूर करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से सास बहु सम्मेलन नामक योजना चलाई जा रही है.”
इस योजना के तहत स्वास्थ्य सहिया किशोरियों, गर्भवती महिलाओं के साथ हर सप्ताह बैठक करती है. इसमें वे परिवार नियोजन से संबंधित मिथकों को दूर करने, इसके फायदे आदि बताती हैं. उन्हें जागरुक करती हैं. झारखंड इस मामले में एक कदम आगे बढ़ गया है. इसे 'सास, बहु और पति' सम्मेलन कर दिया गया है. इन बैठकों में नव विवाहित जोड़ों को खासकर शामिल किया जाता है. उनके साथ परिवार नियोजन से संबंधित क्विज प्रतियोगिता जैसी गतिविधियां आयोजित होती हैं ताकि लोगों में जागरूकता बढ़े.
डॉ पुष्पा आगे यह भी बताती हैं, "अब लोग नसबंदी से जुड़ी स्थायी तरीकों की जगह अस्थाई तरीकों को तेजी से अपना रहे हैं. कंडोम का इस्तेमाल, कॉपर टी, पिल्स, इंप्लांट आदि का इस्तेमाल बढ़ा है. इस वजह से भी पुरुषों के कम नसबंदी संबंधित आंकड़े आपको कम दिख रहे हैं. यही नहीं, सरकार पहले नसबंदी के लिए टारगेट देती थी. अब यह टारगेट फ्री हो गया है. सरकार का मानना है कि स्थाई और अस्थाई दोनों प्रक्रिया लोगों को बताई जाए. वे जिसमें ज्यादा सहूलियत महसूस करें, उन्हें उसकी जानकारी दी जाए.”
क्या है राष्ट्रीय स्थिति
संयुक्त राष्ट्र (UN) के डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनोमिक एंड सोशल अफेयर्स की ओर से जारी विश्व परिवार नियोजन 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले दो दशकों के दौरान गर्भ निरोधक और परिवार नियोजन के उपाय आज़माने की इच्छुक महिलाओं की तादाद में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है. साल 2000 में ऐसी महिलाओं की संख्या 90 करोड़ थी, जो 2020 में बढ़कर 1.1 अरब हो गई. इसका नतीजा यह हुआ कि गर्भ निरोधक के आधुनिक उपाय अपनाने वाली महिलाओं की तादाद 66.3 करोड़ से बढ़कर 85.1 करोड़ हो गई है.
इसके अलावा गर्भ निरोधक की प्रचलन दर 47.7 से बढ़कर 49.0 फीसदी हो गई है. उम्मीद की जा रही है कि साल 2030 तक इसमें 70 करोड़ महिलाएं और जुड़ जाएंगी.
इसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले कई दशकों से गर्भ निरोधक के विकल्प के रूप में महिलाओं की नसबंदी को ही तरज़ीह दी जाती रही है. नसबंदी के कुल ऑपरेशनों में से 75 फ़ीसद सरकारी अस्पतालों में होते हैं और इनमें से मोटे तौर पर एक तिहाई ऑपरेशन बच्चे पैदा होने के बाद किए जाते हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के मुताबिक़, अवांछित गर्भ से बचने के लिए 37.9 प्रतिशत महिलाएं नसबंदी के ऑपरेशन कराती हैं.
यह तादाद गर्भ निरोधक के अन्य उपायों जैसे कि गोलियों (5.1 फीसदी), इंजेक्शन के उपाय (0.6 फ़ीसदी), कंडोम (9.5 फीसदी), IUD (2.1 फ़ीसदी) या फिर पुरुष नसबंदी (0.3 फीसदी) की तुलना में बहुत ज़्यादा है. भारत के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में गर्भ निरोधक के उपायों के चुनाव में भी काफ़ी फ़र्क़ दिखाई देता है. उत्तर और पश्चिमी इलाक़ों में जहां कंडोम का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा होता है. वहीं, उत्तर पूर्व और पूर्वी इलाक़ों में गर्भ निरोधक के लिए गोलियों के इस्तेमाल को तरज़ीह दी जाती है.

