इस बार झारखंड पर मानसून की अतिरिक्त कृपा रही है. पूरे राज्य में बीते तीन महीने में सामान्य से 19 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है. राज्य के किसानों को उम्मीद है कि धान की बंपर पैदावार होगी. असर पड़ा है तो मकई की खेती पर. मकई उगाने वाले किसान बेहद निराश हैं. खासकर पहाड़ी इलाके में जहां बारिश का पानी रुकता नहीं. लेकिन इन दोनों के बीच में कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो खेती की तैयारी अब कर रहे हैं. ये हैं अवैध तरीके से अफीम उगाने वाले किसान.
झारखंड सहित पूरे देश में इसकी खेती पर बैन लगा हुआ है. भारत में मात्र तीन जगहों पर सरकार इसकी खेती की इजाजत देती है. यूपी में बाराबंकी, राजस्थान चित्तौड़गढ़ और मध्य प्रदेश मंदसौर जिले में इसकी खेती केंद्र सरकार के अनुमति से की जाती है. वह भी केवल औषधि बनाने के लिए. किसानों को इसके लिए लायसेंस दिए जाते हैं. लेकिन अगर केवल झारखंड में अवैध अफीम की खेती की बात करें तो मात्र पांच महीने, यानी 2024 के नवंबर से मार्च 2025 तक पुलिस ने 40 अरब रुपए के अफीम की खेती को नष्ट किया है.
कभी माओवादियों के लिए सेफ जोन रहा झारखंड के खूंटी, सिमडेगा, चाईबासा, चतरा, हजारीबाग, बोकारो जैसे जिले अब सूखे नशे के कारोबारियों के लिए सबसे उर्वरक इलाके बन गए हैं. इन जिलों में एक बार फिर अवैध तरीके से अफीम की खेती की तैयारी शुरू होने जा रही है.
खूंटी के एक किसान सैमुअल मुंडा (बदला हुआ नाम) पहले इसकी खेती करते थे. लेकिन तीन साल पहले पुलिस की कार्रवाई और जागरुकता के बाद बंद कर दिया. वे बताते हैं, "अक्टूबर से खेत को तैयार किया जाता है. नवंबर में खेतों में मेड़ तैयार कर बीजारोपण किया जाता है. अफीम की फसल को बेहतर ग्रोथ के लिए ठंड और नमी की जरूरत होती है. नवंबर के अंत तक पौधा निकल जाता है.’’
दिसंबर तक फसल की लंबाई एक से डेढ़ फीट तक हो जाती है. जनवरी में फूल आने लगते हैं. इसके तीन रंग के फूल खिलते हैं. सबसे प्रमुख होता है सफेद. इसके बाद बैगनी और गुलाबी. फरवरी में पॉपी निकल आता है. पौधा परिपक्व होने पर गोल आकार वाले पॉपी में ब्लेड से चीरा लगाया जाता है. पॉपी के आकार के हिसाब से सामान्यत: छह से आठ चीरा लगाकर छोड़ दिया जाता है. उस चीरा से दूध की तरह दिखने वाले एक तरल पदार्थ निकलता है.’’
सैमुअल जानकारी देते हैं, "एक दिन में सूख कर वही पॉपी भूरे रंग की हो जाती है. यही कच्ची अफीम होती है. खेती करने वाले हर पॉपी से निकले इस भूरे पदार्थ को पानी पीने वाले गिलास से खुरचकर पतीले में जमा करते हैं. कुछ दिन बाद उसी पॉपी पर दूसरी जगह दोबारा चीरा लगाया जाता है. फिर इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है.’’
बरामद हो चुकी है 40 अरब रुपए की अफीम
नवंबर 2024 से जनवरी 2025 तक पुलिस की ओर से राज्य भर में चलाए गए व्यापक अभियानों के दौरान झारखंड में 19,086 एकड़ भूमि पर अवैध अफीम की फसल नष्ट की गई थी. सबसे ज्यादा खूंटी जिले में 10,520 एकड़ में अफीम की फसल को नष्ट किया गया . दूसरे स्थान पर राजधानी रांची है, जहां 4624 एकड़ में फसल नष्ट की गई. इस दौरान 283 मामले दर्ज किए गए और 190 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. जबकि 2024 की जनवरी तक सिर्फ 3,974 एकड़ पर अफीम की खेती को नष्ट किया गया था. यानी सिर्फ एक साल में यह साढ़े चार गुना तक बढ़ गई.
पुलिस के अनुमान के मुताबिक इस फसल से 80 हजार किलो अफीम का उत्पादन किया जाना था. एक किग्रा अफीम का बाजार मूल्य करीब पांच लाख रुपये है. ऐसे में 80 हजार किलोग्राम उत्पादित अफीम का बाजार मूल्य करीब 40 अरब रुपये होता. हालांकि यह स्वभाविक ही है कि पुलिस अफीम की पूरी फसल तो नष्ट नहीं ही कर पाती होगी और स्थानीय तस्कर इसकी खरीद-बिक्री में लगे भी हुए हैं. नष्ट करने से इतर साल 2022 से 2024 के मार्च महीने तक 1.59 अरब रुपए की अफीम, 48 करोड़ का गांजा, 13.08 करोड़ का पोस्ता को झारखंड पुलिस ने जब्त किया गया था.
बीते साल यानी 18 मई 2024 को रांची पुलिस ने 700 किलो डोडा (अफीम का सूखा हुआ फल) के साथ पांच तस्करों को गिरफ्तार किया था. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और खूंटी के पूर्व सांसद मनोज कुमार का भाई सुधीर भी शामिल था. सुधीर इस समय जेल में है. इन तस्करों से हुई पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि झारखंड से अफीम पंजाब, बिहार, ओडिशा जैसे राज्यों में सप्लाई की जा रही है.
खेत से दूसरे राज्यों में सप्लाई करने के लिए तस्कर गरीब और जरूरतमंद युवाओं का सहारा ले रहे हैं. ऐसे ही मामलों में खूंटी जिले के गोस्सनर पतरस ओडेया नामक व्यक्ति बीते 25 जुलाई को लुधियाना में गिरफ्तार किया गया. वो इस वक्त लुधियाना के जेल में बंद है. गोस्सनर राष्ट्रीय स्तर का पैरा तीरंदाज रह चुका है. लेकिन सरकारी मदद न मिलने के कारण तस्कर बन गया. वह भी मुरहू प्रखंड के बुरुमा गांव का रहनेवाला है. मां सुसाना सोय और पिता सलन ओडेया कहते हैं कि उनके पास इतना पैसा भी नहीं है कि लुधियाना जाकर बेटे को देख सकें, जेल से छुड़ाना तो बहुत दूर की बात है.
पिता आगे कहते हैं, "गोस्सर बीए पार्ट-1 तक की पढ़ाई की थी. तीरंदाजी से मिले प्रमाणपत्र लेकर घूमता रहा, लेकिन कहीं मदद नहीं मिली. फिर वो ऑटो चलाने लगा. हो सकता है इसी दौरान उसके संपर्क अफीम तस्करों से हुई हो.’’
अफीम की खेती रोकने की चुनौती
अफीम की खेती के खिलाफ पुलिस ने बीते अगस्त में अभियान चलाया था. इस दौरान जिन गांवों में खेती पाई गई, उनके ग्राम प्रधान को नोटिस दिया गया. ऐसे में लोग परेशान होकर इसे रोकने के लिए खुद आगे आ रहे हैं. ऐसे की कई गांव खूंटी के गांवो में भी बंटे हैं.
कुछ लोगों का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें जबर्दस्ती नोटिस दिया है. खूंटी जिले के सुदूर गांव कोचांग के ग्राम प्रधान कालीचरण मुंडा कहते हैं, "हमारी पंचायत में अफीम की खेती पूरी तरह बंद है. फिर भी पुलिस ने बीते अगस्त में नोटिस दिया और जिसमें कहा है कि हमारे गांव के फलां आदमी पर अफीम की खेती का संदेह है, आप उसकी जमीन का सत्यापन कर कागजात सौंपे. कांग्रेस कोटे के सभी चारों मंत्री मेरे इलाके में आनेवाले हैं. जहां हम ये मुद्दा उनके सामने उठाएंगे.’’ खूंटी के सांसद कालीचरण मुंडा हैं, गांव के लोग उन तक यह शिकायत पहुंचा चुके हैं.
कोचांग के ग्राम प्रधान यह भी कहते हैं, "हम लोग अफीम उगाने के घोर विरोधी हैं. अगर हमें कहीं फसल दिख जाती है तो खुद ही उसे नष्ट करा देते हैं, दिक्कत होती है तो पुलिस को खबर करते हैं. लेकिन यह काम तो असल में पुलिस का है और वो अपनी जिम्मेदारी टालकर हमें नोटिस दे रही है.”