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झारखंड : एक मां के अपना नवजात शिशु बेचने की कहानी जो विकास का हर आंकड़ा झुठला देती है!

झारखंड की प्रति व्यक्ति आय करीब 1.24 लाख रुपए है, और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य विकास भी कर रहा है, फिर एक मां को को अपना नवजात बच्चा क्यों बेचना पड़ा?

A new born baby sold in Jharkhand in 50 thousand rupees
50 हजार रुपए में बेचा गया शिशु जिसे बाद में खोजकर उसकी मां को सौंपा गया
अपडेटेड 8 सितंबर , 2025

बीते 9 अप्रैल को जारी झारखंड के पांचवे वित्त आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024-25 में राज्य के लोगों की सालाना आमदनी 1 लाख 14 हजार 271 रुपए थी, जो 2025-26 तक बढ़कर 1 लाख 24 हजार 079 रुपये होने का अनुमान है. जबकि राज्य बनने के तुरंत बाद 2001-02 में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 1 लाख 451 रुपये थी. यानी 25 वर्षों के दौरान झारखंड में लोगों की प्रति व्यक्ति आमदनी में 12 गुणा से अधिक का उछाल आया है, जो राज्य की मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत है.

सरकार के इस दावे के ठीक उलट बीते 5 सितंबर को पलामू जिले के लोटवा गांव की रहनेवाली पिंकी देवी ने अपने एक माह के नवजात को मात्र 50 हजार रुपए में बेच दिया. पिंकी के मुताबिक उनके पति रामचंद्र राम दिहाड़ी मजदूर हैं. लगातार बारिश की वजह से उनके पति को मजदूरी का काम नहीं मिल रहा. खाने-पीने तक का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था. खुद उन्हें स्तन में गांठ है. जब खाने पर आफत, तो इलाज के लिए पैसे कहां से. इस बरसात में उनका फूस का घर भी ढह गया. चार बच्चे पहले से थे. इन हालात में उन्होंने अपने नवजात को बेचने का फैसला किया.

यह खबर अखबारों में छपी. फिर डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी उस परिवार तक पहुंची. सीएम हेमंत सोरेन ने संज्ञान लिया. हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया. जिला प्रशासन ने रातोरात बच्चे को बरामद कर उसकी मां को सौंपा. 

इसी साल 21 फरवरी को हेमंत सरकार ने 70 करोड़ रुपए की लागत से अपने मंत्रियों के लिए बने 11 बंगले उन्हें आवंटित किए. इसी के बंगला नंबर 3 में रहनेवाले वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि अगर वह परिवार कोई व्यापार शुरू करना चाहता है तो वे उसे 1 लाख रुपए की मदद करेंगे. फिलहाल उस पूरे परिवार की स्वास्थ्य की जांच हो रही है.

इन सब के बीच मूल सवाल ये है कि वो मां अपने बच्चे को मात्र 50 हजार में बेचने पर क्यों मजबूर हुई? पिंकी देवी कहती हैं, "हम बच्चा को पोसने (पालने) नै सक रहे थे (बच्चे का लालन-पालन नहीं कर पा रहे थे). क्या करते. गलती हो गई. बाद में बहुत पछताए. अब कभी किसी को नहीं देंगे. जैसे भी होगा, सब अपने करेंगे. सरकार से बोल कर मेरे पति को कोई रोजगार दिलवा दीजिए.’’ 

क्या गर्भावस्था के दौरान कभी किसी सहिया दीदी (झारखंड में ‘सहिया के नाम से जानी जाने वाली आशाकर्मी विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में सहयोग करती हैं ) ने संपर्क नहीं किया. क्या उन्होंने परिवार नियोजन के बारे में नहीं बताया? पिंकी देवी कहती हैं कि इस बारे में वे कुछ नहीं जानतीं. पलामू जिले के चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्य रवि कुमार ने बताया, "पिंकी देवी का एक बार भी इंस्टीट्यूशनल डिलिवरी यानी अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में बच्चा पैदा नहीं हुआ है. जबकि गांव सड़क के किनारे है.’’ यह स्थिति तब है, जब स्थानीय विधायक शशिभूषण मेहता का घर इस महिला के गांव से मात्र चार किलोमीटर दूर है.

सवाल ये भी है ऐसे हालात बने ही क्यों? इन हालात का जिम्मेदार कौन?

लेखिका और महिला अधिकार के लिए मुखर रहनेवाली वंदना टेटे कहती हैं, "अपने हालात की वजह से ऐसी महिलाएं ये फैसले करने में सक्षम नहीं होतीं कि कितने बच्चे पैदा किए जाएं. वो परिवार चलाने के लिए मजदूरी का निर्णय करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन बच्चे पैदा करने न करने को लेकर नहीं. उन्हें सशक्त करने के लिए स्वास्थ्य सहिया हैं, सेल्फ हेल्प ग्रुप है, लेकिन ऐसी घटनाओं से उस व्यवस्था पर ही सवाल उठते हैं, जिसमें सरकार अक्सर दिखाती है कि स्वास्थ्य सहिया के होने से ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में आमूल-चूल बदलाव हुए हैं. सेल्फ हेल्फ ग्रुप के होने से ग्रामीण महिलाओं की तरक्की हो रही है. दरअसल सरकार शहरी इलाकों के आंकड़े जो कि बेहतर होते हैं, को दिखाकर वास्तविक स्थिति से मुंह मोड़ लेती हैं.’’  

जाहिर है, पिंकी देवी जैसी महिलाओं को मालूम ही नहीं है कि सुरक्षित सेक्स क्या होता है जिसमें बच्चे पैदा न हों. ऐसी महिलाओं का आज भी अपने शरीर पर कोई अधिकार नहीं है. वे बच्चा चाहें या न चाहें, हो जाते हैं. रविदास समाज से आनेवाली पिंकी देवी की भी दो बेटी और तीन बेटा है. इन परिवार के पुरुष भी इस बात से बेपरवाह हैं या फिर उन्हें जानकारी नहीं है.

राज्य की पूर्व मानव संसाधन मंत्री नीरा यादव वंदना टेटे से इतर बात  कहती हैं. उनका कहना है, ‘’वो महिला बहुत खुशनसीब होती हैं जो मां बनती है. लेकिन एक बच्चे को पालने में जो त्याग और मेहनत है, वो भी एक मां ही समझ सकती है. ऐसे में बच्चे दो ही अच्छे के नारों के बीच महिला को ही ये तय करना होगा कि उसे कितने बच्चे चाहिए. दूसरी बात ये भी है कि विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी इसी देश में महिलाएं बर्तन मांजकर भी बच्चे पाल रही हैं. ऐसे में किसी मां का अपना बच्चा बेचना, या बच्चों के साथ आत्महत्या कर लेना, इसे मैं कहीं से भी सही नहीं ठहरा सकतीं.’’  

गरीबी और बेरोजगारी 

पूरे मामले के केंद्र में दो चीजें हैं. पहला गरीबी और दूसरा महिला स्वास्थ्य और परिवार नियंत्रण. 

पहले बात राज्य में रोजगार के हालात की. हालात ये हैं कि मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2025-26 में अब तक पर 34.53 फीसदी परिवारों को रोजगार दिया जा सका है. जबकि इससे पहले करीब 50 फीसदी और वित्त वर्ष 2023-24 में भी इतने ही परिवारों को काम मिला था.

वहीं राज्य सरकार के श्रम विभाग की ओर से दिए गए आंकड़े के मुताबिक राज्य में इस वक्त 3,86,752 लोगों ने श्रम नियोजन पोर्टल पर खुद को रजिस्टर्ड कराया है. इसमें 2,72,672 पुरुष, 1,14,060 महिलाएं और 20 ट्रांसजेंडर हैं. 

हालांकि गरीबी को लेकर सरकार के आंकड़े कुछ और कह रहे हैं. नीति आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2015-16 में 42.10 फीसदी गरीबी झारखंड में थी. जो 2019-21 में घटकर 28.81 फीसदी हो गई. साल  2015-16 में झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में 50.92 फीसदी गरीब थे, वहीं 2019-21 में यह आंकड़ा घटकर 34.93 फीसदी पर आ गया है. 

इसी तरह शहरी क्षेत्र की बात करें तो 2019-21 में 8.67 फीसदी गरीब शहरी क्षेत्र में हैं, जबकि 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार इनकी संख्या 15.04 फीसदी थी. 

जहां तक बात महिला स्वास्थ्य और परिवार नियंत्रण की है, राज्य के 100 में से 67 बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया द्वारा सात मई 2025 को जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में मातृ मृत्यु दर पहले 56 थी जो घटकर अब 51 हो गया है. यानी एक लाख शिशुओं के जन्म पर इतनी महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान या प्रसव के 45 दिनों के भीतर हो जाती है. 

राज्य में शिशु मृत्यु दर 25 थी, जो अब भी बरकरार है. इसका मतलब यह कि एक हजार शिशुओं के जन्म पर इतने शिशुओं की मौत एक वर्ष के भीतर हो जाती है. यहां लड़कों में यह दर 24 है, जबकि लड़कियों में 26 है. तीन वर्ष पहले भी यही स्थिति थी. 

सरकारी दावे, आंकड़ें अपनी जगह हैं. पिंकी देवी का 50 हजार में अपने बच्चे का सौदा कर देना इन सभी आंकड़ों पर एक धब्बे की तरह है. पिंकी देवी और उनके पति के पास न तो आधार कार्ड है, न मनरेगा कार्ड है, न ही राशन कार्ड और न ही हेल्थ कार्ड है.

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