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झारखंड के 100 में से 67 बच्चों में खून की कमी; सरकार कहां हो रही फेल?

एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के अंतर्गत झारखंड सरकार आईएफए (आइरन+फोलिक एसिड) की दवाएं बांटने का अभियान चला रही है लेकिन इसके बावजूद यहां हालात खराब हैं

Tribal woman in Jharkhand
Tribal woman in Jharkhand
अपडेटेड 27 अगस्त , 2025

इसी साल 2 मार्च को झारखंड में साहेबगंज जिले के नगरभिट्ठा गांव के चांदू पहाड़िया के दो साल के बेटे की मौत हो गई थी. ग्रामीणों ने इसे सामान्य मौत की तरह देखा और बच्चे का अंतिम संस्कार कर दिया. 

ठीक 17 दिन बाद 19 मार्च को असना पहाड़िया के पांच साल के एक बेटे की भी मौत हो गई. इसके दो दिन बाद 22 मार्च को दो व 23 मार्च को एक और बच्चे की मौत हो गई. इन सभी बच्चों को दिमागी बुखार हुआ था और ये सभी एनीमिया (खून की कमी) के शिकार थे.

दो महीने पहले केंद्र सरकार ने सिकल सेल एनीमिया से मुक्ति के लिए जनजातीय बहुल क्षेत्रों में विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया है. लेकिन झारखंड में हालात बेहद खराब दिख रहे हैं. राज्य के पांच साल से कम उम्र के 67 फीसदी बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. 

एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य सरकार एनिमिया पर नियंत्रण के लिए आईएफए (आइरन+फोलिक एसिड) संपूरण अभियान चला रही है. इसके तहत हर तीन महीने पर अभियान चलाकर आयरन और फोलिक एसिड की खुराक दी जाती है. जिसमें 0-5 साल तक के बच्चे, 5-9 साल तक के बच्चे, 10-19 साल तक के किशोर, गर्भवती महिलाएं एवं धातृ यानी जिन महिलाओं का बच्चा हो चुका है, उनको भी यह दी जाती है. लेकिन राज्य में इस अभियान की हालत खराब है. 

सबसे बुरी स्थिति में गढ़वा में है, जहां मात्र 46.5 फीसदी बच्चों को आईएफए दिया जा सका है. इसके बाद कोडरमा जहां सबसे अधिक अभ्रक की माइनिंग होती है, वहां 54.1 फीसदी, स्टील सिटी कहे जानेवाले बोकारो में 56.4 फीसदी, पूर्वी सिंहभूम जहां सबसे अधिक आइरन ओर की माइनिंग होती है, वहां 56.5 फीसदी, देवघर में 58.0 फीसदी और साहेबगंज, जहां मात्र 58.3 फीसदी बच्चों को आईएफए दी जा सकी है. इसका खुलासा हाल ही में जारी हुए जिला एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्कोर कार्ड से हुआ है. 

मात्र छह जिले ऐसे हैं जिन्होंने 70-80 फीसदी तक का आंकड़ा हासिल किया है. रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के बच्चों में खून का स्तर 11 के बजाय 31.9 फीसदी बच्चों में 10 से 11, 34.3 फीसदी बच्चों में 7 से 10, जबकि 1.2 फीसदी बच्चों में 7 से भी कम है. 

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? बच्चों महिलाओं और के स्वास्थ्य से इस   खिलवाड़ की वजह क्या है? सबसे खराब स्थिति वाले जिले गढ़वा के सिविल सर्जन डॉ जॉन एफ केनेडी कहते हैं, “यहां समस्या है इस बात से इंकार नहीं है, लेकिन आंकड़ा सही तरीके से दर्ज नहीं किया गया है. यह हमारे तरफ से गड़बड़ी हुई है, जिसे ठीक कर रहे हैं. वास्तविक आंकड़ा 70 फीसदी से अधिक का होना चाहिए.” 

बता दें, गढवा में कई ऐसे इलाके हैं जहां पानी में फ्लोलाइड की ज्यादा मात्रा है. जिले के कुछ गांवों में  बीते 10 सालों में 70 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. 

वहीं दूसरा खराब परफॉर्मेंस वाला जिला कोडरमा है. यहां के सिविल सर्जन डॉ. अनिल कुमार का कहना है, “जिले में स्वास्थ्य जांच के लिए इंपैक्ट इंडिया फाउंडेशन नाम की एक एनजीओ आई थी. स्वास्थ्य विभाग के कई लोग उन्हीं की मदद में लग गए थे, इसलिए हमारे जिले का जुलाई का आंकड़ा खराब दिख रहा है. हालांकि अगस्त में ये बेहतर हो गया है.” 

भारत सरकार ने साल 2047 तक देश को एनीमिया मुक्त बनाने का रखा है. देश में आदिवासी बहुल इलाकों में सिकल सेल एनीमिया की समस्या गंभीर है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार 31 जुलाई 2025 तक 17 चिह्नित आदिवासी बहुल राज्यों में कुल 6.07 करोड़ सिकल सेल एनीमिया संबंधी जांच की गई हैं. 

देशभर के आदिवासी इलाकों में एनीमिया से मुक्ति के लिए आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने एम्स दिल्ली के सहयोग से औषधि विकास के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित करने जा रहा है. चयनित प्रस्ताव को औषधि विकास के लिए 10 करोड़ रुपये तक का अनुदान दिया जाएगा. साथ ही एम्स दिल्ली के अंतर्गत एक उन्नत जनजातीय स्वास्थ्य एवं अनुसंधान संस्थान स्थापित किया जाना है. प्रस्तावित संस्थान, विशेष रूप से जनजातीय लोगों में व्याप्त रोगों के लिए एक उन्नत अनुसंधान केंद्र के रूप में कार्य करेगा; यह केंद्र सरकार को नीति निर्माण में भी मार्गदर्शन देने का काम करेगा.  

देशभर में महिलाओं की हालत ज्यादा खराब  

एनीमिया के मामले में महिलाओं की स्थिति भी बेहद खराब हैं. 15 से 45 साल की महिलाएं गंभीर एनीमिया की चपेट में हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक देशभर में 6-59 महीने के 67.1 फीसदी बच्चे, 15-49 साल की 52.2 फीसदी महिलाएं, 15-19 साल की 59.1 फीसदी लड़कियां, 15-19 साल के 31.1 फीसदी लड़के, 15-49 साल की 57 फीसदी महिलाएं, 15-49 साल के 25 फीसदी पुरुष एनीमिया के शिकार हैं. 

एनीमिक महिलाओं के मामले में देश भर के दस बेहद खराब स्थिति वाले राज्यों में झारखंड की स्थिति छठे नंबर है. जबकि लद्दाख, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य क्रमशः पहले और दूसरे नंबर पर हैं. 

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