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झारखंड : हेमंत सोरेन का ड्रीम प्रोजेक्ट क्या उनकी सरकार के लिए ही बनेगा सिरदर्द!

झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (Rims) के एक्स्टेंशन का निर्माण रांची के कांके प्रखंड के नगड़ी गांव में होना है लेकिन स्थानीय आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं

Jharkhand CM Hemant Soren
सीएम हेमंत सोरेन के साथ स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी
अपडेटेड 25 जून , 2025

बिहार से अलग होकर बने झारखंड में भी स्वास्थ्य व्यवस्था हमेशा से लचर रही है. खासकर ग्रामीण इलाकों में मरीजों का अस्पतालों तक पहुंच पाना ही मुश्किल काम है. पहुंच भी गए तो वहां जरूरी इलाज मिल पाने की कोई गारंटी नहीं होती.

दरअसल राज्य के सीएचसी-पीएचसी के साथ-साथ जिलों के सदर अस्पतालों में इलाज के लिए जरूरी उपकरणों और डॉक्टरों की भारी कमी है. ऐसी परिस्थिति में राज्य भर के गंभीर मरीजों को राज्य के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) में रेफर कर दिया जाता है. 

रिम्स पर मरीजों का इतना बोझ है कि कभी फर्श पर तो कभी बरामदे पर लेटे मरीजों का इलाज किया जाता है. मरीजों की बढ़ती संख्या और व्यवस्था में कमी को देखते हुए हेमंत सोरेन सरकार ने फैसला किया कि रिम्स का एक एक्सटेंशन यानी रिम्स-2 का निर्माण किया जाएगा. 

हालांकि निर्माण कार्य शुरू होता, इससे पहले पूरा मामला विवादों से घिर गया. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और एक पूर्व मंत्री इसको लेकर आमने-सामने आ गए हैं. स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी इसे हर हाल में बनाने की बात कर रहे हैं तो पूर्व मंत्री बंधू तिर्की किसी हाल में निर्माण नहीं होने देने पर अड़ गए हैं. 

विवाद के जड़ में एक बार फिर जमीन का मुद्दा उभर कर सामने आया है. इस अस्पताल के निर्माण का फैसला सरकार ने राजधानी रांची के कांके प्रखंड के नगड़ी गांव की 227 एकड़ जमीन पर किया गया है. गांव आदिवासी बहुल है. ग्रामीणों के मुताबिक यह खेतिहर जमीन है और वे यहां दशकों से खेती करते आ रहे हैं. ग्रामीणों के मुताबिक वे अस्पताल का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि चाहते हैं कि सरकार ऐसी जमीन पर निर्माण करे जहां खेती-बाड़ी नहीं होती. बीते एक महीने से यहां कभी जोर तो कभी छिटपुट तरीके से आंदोलन चल रहा है. ग्रामीण हर उस नेता के पास जा रहे हैं, जो उनकी मांगों का समर्थन कर सके. 

आदिवासियों की मांग पर आपस में भिड़े कांग्रेस नेता

इसी कड़ी में राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता बंधू तिर्की से भी समर्थन देने की अपील की गई. शुरूआत में ग्रामीणों को उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. तब ग्रामीणों ने फैसला लिया कि बंधू तिर्की का आवास घरेंगे. इसके बाद बंधू तिर्की पूरे मामले को लेकर सीएम हेमंत सोरेन के पास गए. उन्होंने हेमंत से कहा कि रिम्स-2 के लिए कहीं और जमीन देखी जाए. यहीं से मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया.  

इसके जवाब में कांग्रेसी नेता और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने कहा, “जो लोग रिम्स-2 का विरोध कर रहे हैं, वह बाबूलाल मरांडी पाठशाला के छात्र हैं. उनकी सोच शुरू से ही झारखंड विरोधी रही है. ऐसे लोगों से जनहित की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती. रिम्स बनने से कोई रोक नहीं सकता. यह हेमंत सोरेन का ड्रीम प्रोजेक्ट है.’’ बंधू तिर्की पूर्व में बाबूलाल मरांडी की पूर्व की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से विधायक रहे हैं. 

इसके जवाब में बंधू तिर्की ने कहा, “इरफान अंसारी आंधी-तूफान को निमंत्रण न दें. उन्हें आदिवासियों को नहीं छेड़ना चाहिए. चाहे कुछ भी हो जाए, फिलहाल जो जगह प्रस्तावित है, वहां पर मैं इसे बनने नहीं दूंगा.’’ यहां ध्यान देने वाली बात है कि बंधू तिर्की राज्य की कृषि मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की के पिता भी हैं. 

तिर्की के इन तेवरों के बाद डॉ इरफान अंसारी ने जवाब दिया, “बंधू तिर्की वरिष्ठ नेता हैं. मैं उनका आदर करता हूं. उन्हें ऐसी बातें मीडिया में नहीं कहनी चाहिए. उन्हें सीधे मुझसे कहना चाहिए था. जहां 240 एकड़ जमीन है, वहां 120 एकड़ में अस्पताल बनेगा. कुछ जमीन हम छोड़ देंगे. लेकिन राजनीति में मैं कभी झुका नहीं हूं, अगर कोई झुकाना चाहे तो वो भी मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा.’’ फिलहाल प्रस्तावित जमीन को राज्य सरकार ने कंटीले तारों से घेर दिया है. 

पहले भी विवादों में रही है ये जमीन  

नगड़ी गांव के इसी जमीन पर साल 2012 में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ट्रिपल आईटी, आईआईएम रांची के भवनों का निर्माण होना था. उस वक्त अर्जुन मुंडा की सरकार थी. स्थानीय आदिवासियों ने बड़ा आंदोलन छेड़ दिया. दयामनी बारला, ग्लैडसन डुंगडुंग जैसे कई नाम देशभर में इस आंदोलन के चलते चर्चा में आए. बंधू तिर्की भी इस आंदोलन में शामिल थे. 

दयामनी बारला अब कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं. वे कहती हैं, “सरकारी दावे के मुताबिक भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के तहत साल 1957-58 में इस जमीन को अधिगृहीत किया गया था. उस वक्त इस जमीन पर 153 रैयत थे. जिसमें से 123 ने अधिग्रहण के बाद मिलने वाला पैसा लेने से इनकार कर दिया था. उन्होंने आज तक ये पैसा नहीं लिया है.”  

यह जानकारी भी आरटीआई के माध्यम से भू-अर्जन विभाग से दी गई है. इसका मतलब है ग्रामीणों ने इस अधिग्रहण को नहीं माना था. उसी अधिग्रहण कानून 1894 के सेक्शन 48 के मुताबिक अगर अधिग्रहण के बाद दो साल के भीतर जमीन पर कब्जा में नहीं लिया जाता तो वह अधिग्रहण स्वतः रद्द माना जाता है. 

दयामनी बताती हैं, “इसी कानून और सूचना के आधार पर हमने साल 2013 में लॉ यूनिवर्सिटी, आईआईएम, ट्रिपल आईटी आदि, जिसे तत्कालीन अर्जुन मुंडा की सरकार की तरफ से निःशुल्क जमीन दिया जा रहा था, के निर्माण का विरोध किया था. जिसके परिणाम में मुझ पर कुल 9 केस किए गए, तीन महीने जेल में रही. अब भी एक केस चल रहा है.”  

वो आगे कहती हैं कि रिम्स-2 का निर्माण किसानों को उजाड़ कर, कंगाल बनाकर नहीं किया जा सकता. बारला के मुताबिक इस सरकार को बनाने में इन्हीं गरीब किसानों ने मदद की है और अब सरकार को इनकी बात सुननी पड़ेगी. 

नगड़ी के ग्रामीणों ने 23 जून को पूर्व सीएम रघुवर दास से भी मुलाकात की. इससे पहले वे बाबूलाल मरांडी से मिल चुके हैं. बाबूलाल ने कहा है कि सरकार को किसी दूसरी जगह रिम्स-2 का निर्माण कराना चाहिए. वहीं रघुवर दास का कहना है कि इस सरकार में अगर सबसे ज्यादा कोई प्रताड़ित है तो वो है आदिवासी समाज. सरकार को ग्रामीणों को बुलाकर बात करनी चाहिए. 

क्या सोच रहे हेमंत और उनकी पार्टी

लेकिन सवाल ये है कि क्या हेमंत सोरेन की बिना सहमति और शह के डॉ इरफान अंसारी इस जिद पर अड़े हैं? बीजेपी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं, “यह पूरी तरह से फिक्स मैच है. गठबंधन के नेताओं से परस्पर विरोधाभासी बयान दिलवा कर आम आदिवासियों को हेमंत सोरेन गुमराह कर रहे हैं.” 

जवाब में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है, ‘’सरकार जनहित में फैसला लेगी. इस मामले में हो रही बयानबाजी से जेएमएम का कोई लेना-देना नहीं है.’’  

वहीं साल 2012 में हुए नगड़ी आंदोलन में शामिल रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग कांग्रेस और जेएमएम दोनों को चेताते हैं. वे कहते हैं, “अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित नगड़ी गांव की कुल 227.53 एकड़ जमीन है, जिसमें से लॉ यूनिवर्सिटी के लिए 63.76 एकड़ और रिंग रोड के लिए 13.10 एकड़ जमीन का उपयोग किया जा चुका है. इस तरह से वहां अब शेष 150.53 एकड़ जमीन है, जहां नगड़ी के आदिवासी सदियों से खेती कर रहे हैं.”  

वे आगे कहते हैं, “लेकिन डॉ. इरफान अंसारी इसे खेती की जमीन नहीं मानते हैं. अगर इस जमीन पर रिम्स-2 बना तो समझ लीजिए कि आदिवासियों के बीच कांग्रेस पार्टी अस्तित्व विहीन हो जाएगी और जेएमएम का अगले एक दशक तक सत्ता में रहने का सपना भी चकनाचूर हो जाएगा. ध्यान रखा जाए कि जेएमएम के संस्थापक गुरूजी शिबू सोरेन ने 15 जुलाई 2012 को नगड़ी में ही कहा था कि खेती की जमीन किसी भी कीमत पर सरकार को नहीं दी जाएगी.’’ 

हेमंत सोरेन के इस कार्यकाल में आदिवासी लगातार छोटे-छोटे मसलों पर उनकी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. पेसा एक्ट-1996 लागू करने के लिए राज्यभर में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया है. रांची रेलवे स्टेशन के नजदीक एक फ्लाइओवर का उद्घाटन बीते 5 जून को हेमंत सोरेन ने किया. इस फ्लाइओवर का रैंप सिरमटोली इलाके के सरना स्थल के नजदीक बनाया जा रहा है. इसके खिलाफ स्थानीय आदिवासियों ने विरोध ही नहीं किया, झारखंड बंद तक बुला लिया. 

इसके अलावा रांची के लापुंग प्रखंड में बीते 3 जून को एक धरना स्थल के घेराव को लेकर पुलिस की ग्रामीणों से झड़प हो गई और दो लोगों को गोली लगी. पास के एक और बेड़ो प्रखंड में भी बीते 1 जून को धरना स्थल घेराव को लेकर लोगों की पुलिस से झड़प हुई और फिर स्थानीय आदिवासियों ने थाने में तोड़फोड़ की. 

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