आदिवासियों की खेतिहर जमीन पर अस्पताल निर्माण की जिद. इसका विरोध कर रहे पूर्व सीएम चंपाई सोरेन को हाउस अरेस्ट. विरोध कार्यक्रम को कवर करने से रोकने के लिए पत्रकार सुनीता मुंडा और तीर्थनाथ आकाश को डिटेन करना. चार बार चुनाव लड़ चुके पूर्व बीजेपी नेता का एनकाउंटर और उस पर उठते गंभीर सवाल. हेमंत सोरेन सरकार इस वक्त राज्य के आदिवासियों से ही उलझती नजर आ रही है!
रविवार 24 अगस्त को राजनीतिक समय का पहिया घूम गया. रांची के नगड़ी स्थित जिस जमीन को बचाने के लिए 13 साल पहले स्थानीय आदिवासी आंदोलन कर रहे थे. उसे धार और आवाज देने 15 जुलाई 2012 को शिबू सोरेन पहुंचे थे. तब उन्होंने ने कहा था ‘’हरवा तो जोतो न यार, कैसे बचेगा. खेती लायक जमीन किसी भी कीमत पर सरकार के हाथ नहीं जाने दिया जाएगा. अलग राज्य भई गेलऊ, लेकिन तोरा की मिललऊ, तोरा त कुच्छो होना चाहिए न (हल तो चलाओ न आप लोग. नहीं तो खेत कैसे बचेगा. अलग राज्य मिल गया, लेकिन आपको क्या मिला. आपको तो कुछ मिलना चाहिए न)’’. तब सीएम थे अर्जुन मुंडा, वहां आईआईएम, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी बननी था, पुलिस आई लाठीचार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले छोड़े गए. बड़ी संख्या में लोग जेल गए. सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा.
ठीक वही स्थिति अब हेमंत सोरेन सरकार के सामने खड़ी हो गई है. लोग शिबू सोरेन के उसी नारे का पोस्टर बनाकर अब फिर से आंदोलन कर रहे हैं. हेमंत सरकार उस जमीन पर 2600 बेड का अस्पताल- राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) 2 बनाने का फैसला किया है. विरोध में बीते 24 अगस्त को उसी जमीन पर पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने ‘हल जोतो, रोपा रोपो’ कार्यक्रम करने की घोषणा की थी. रविवार सुबह हेमंत सरकार ने उन्हें सुबह उनके आवास पर हाउस अरेस्ट कर लिया.
चंपाई ने कहा, “आदिवासियों को उजाड़ कर अगर सरकार विकास करना चाहती है, तो हम किसी हाल में ऐसा नहीं होने देंगे.” जवाब में कृषि मंत्री शिल्पी नेता तिर्की ने कहा कि आदिवासियों को उजाड़ने वाली बीजेपी कब से उनकी हितैषी बन गई. ये अलग बात है कि शिल्पी के पिता बंधू तिर्की भी उस जगह पर रिम्स-2 के निर्माण का विरोध कर रहे हैं.
यही नहीं, इस घटना को कवर करने से रोकने के लिए महिला पत्रकार सुनीता मुंडा और उनके साथी पत्रकार तीर्थनाथ आकाश को भी 23 अगस्त की देर शाम डिटेन किया और फिर जिले से बाहर रहने की शर्त पर देर रात उन्हें छोड़ा. स्थानीय आदिवासी फिर भी उस जगह पर गए और धान रोपी. पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे, लाठीचार्ज किया. दोनों तरफ से लोग घायल हुए.
सरकारी दावे के मुताबिक भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के तहत साल 1957-58 में इस जमीन को अधिगृहीत किया गया था. उस वक्त इस जमीन पर 153 रैयत थे. जिसमें से 123 ने अधिग्रहण के बाद मिलने वाला पैसा लेने से इनकार कर दिया था. उन्होंने आज तक ये पैसा नहीं लिया है. यह जानकारी भी आरटीआई के माध्यम से भू-अर्जन विभाग से दी गई है. इसका मतलब है ग्रामीणों ने इस अधिग्रहण को नहीं माना था. उसी अधिग्रहण कानून 1894 के सेक्शन 48 के मुताबिक अगर अधिग्रहण के बाद दो साल के भीतर जमीन पर कब्जा में नहीं लिया जाता तो वह अधिग्रहण स्वतः रद्द माना जाता है.
साल 2019 के जेएमएम के घोषणा पत्र के पेज नंबर 6 पर साफ लिखा है कि पांच वर्षों तक उपयोग में नहीं लाई गई, अधिग्रहित भूमि रैयतों को वापस की जाएगी. ऐसे में सवाल ये है कि हेमंत सरकार आदिवासियों के इस खेतीहर जमीन पर रिम्स बनाने के लिए क्यों अड़ी है?
इसी इलाके में जमीन खरीद-बिक्री पर सालों से पैनी निगाह रखने वाले राजू कुमार (बदला हुआ नाम. क्योंकि उन्हें डर है कि उनका नाम आने से पुलिस और जमीन के काम में लगे लोग परेशान करेंगे) ने बताया, जहां रिम्स प्रस्तावित है, वहां की जमीन तीन साल पहले 20 हजार से लेकर 1 लाख रुपए डिसमिल बिक रही थी. बीते छह महीने में यह रेट 3 लाख रुपए प्रति डिसमिल (आदिवासी भूमि) और 5 से 10 लाख रुपए प्रति डिसमिल (सामान्य भूमि) हो गया है.
हाल ये है कि आदिवासियों की जमीन को अवैध तरीके से सामान्य भूमि में कनवर्ट किया जा रहा है, उसे ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है. अगर रिम्स-2 बन जाता है, तो इसकी कीमत में और इजाफा होगा. इसका सीधा फायदा जमीन कारोबारियों और सत्ता से जुड़े लोगों को होगा.
रिम्स-2 का जहां निर्माण होना है वो इलाका कांके प्रखंड का हिस्सा है. यहां के पूर्व सीओ जय कुमार राम पर ईडी की कार्रवाई चल रही थी. उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने लगभग 700 एकड़ आदिवासी लैंड को सामान्य भूमि में बदल कर जमीन कारोबारियों के हवाले कर दिया. हालांकि जांच के बीच में ही बीते 23 अगस्त को उनका निधन हो गया.
कांके सीओ जय कुमार फर्जी दस्तावेजों से जमीन की अवैध खरीद-बिक्री मामले में गिरफ्तार कमलेश कुमार के लिए झारभूमि के पोर्टल से पुराना रिकॉर्ड मिटाते थे. उनके सहयोग से ही कमलेश ने फर्जी कागज के जरिये नॉन सेलेबल ( बिक्री के योग्य नहीं, एसटी लैंड) जमीन बेची. जमीन पर कब्जा करने के लिए नकली कागजात बनाये. जमीन के ऑनलाइन रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की. सरकारी दस्तावेजों में भी गड़बड़ी की. इससे जुड़े संबंधित सबूत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बीते साल 16 नवंबर को अदालत को सौंपा था.
सूर्या हांसदा एनकाउंटर पर घिरी सरकार
बीते 11 अगस्त को पूर्व बीजेपी नेता और चार बार चुनाव लड़ चुके सूर्या हांसदा का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया था. स्थानीय पत्रकार तीर्थनाथ आकाश ने पूर्व बीजेपी नेता सूर्या हांसदा के एनकाउंटर मामले को जोर-शोर से उठाया था, परिजनों ने हेमंत सोरेन के करीबी पंकज मिश्रा को सीधे तौर पर इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था. पूरे मामले पर बीजेपी ने पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में सात सदस्यी जांच टीम बनाई. टीम ने घटनास्थल का दौरा किया, सूर्या हांसदा के परिवार और स्थानीय लोगों से बात कर रिपोर्ट तैयार की.
वहीं 24 अगस्त को दोपहर तीन बजे बीजेपी मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाबूलाल मरांडी ने साफ कहा कि यह एनकाउंटर सीएम हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के राष्ट्रीय प्रवक्ता पंकज मिश्रा के इशारे पर किया गया है. उन्होंने दावा किया कि मिश्रा के अवैध खनन के कारोबार के खिलाफ वो लगातार मुखर थे.
बाबूलाल ने कहा, “हांसदा की छाती के बाएं, दाएं तरफ और पेट पर गोली के निशान थे. न की पीठ पर. पुलिस ने जिन 24 मुकदमों के आधार पर उन्हें अपराधी कहा है, उसमें से 14 में बरी हो गए थे, पांच में जमानत मिली थी, बाकि पांच में जमानत की प्रक्रिया चल रही थी. वो किसी भी मुकदमें में वारंटी नहीं थे. जब वारंटी नहीं थे तो फरार भी नहीं हो सकते.’’
एनकाउंटर के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में गोड्डा एसपी मुकेश कुमार ने कहा था कि सूर्या हांसदा पर कुल 25 मुकदमे दर्ज थे. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या किसी के ऊपर केवल मुकदमे दर्ज होने भर से उसका एनकाउंटर कर दिया जाएगा?
यह भी दिलचस्प है कि चुनाव पूर्व दिए गए शपथपत्र के मुताबिक झारखंड विधानसभा के 81 सदस्यों में से सीएम हेमंत सोरेन, नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी सहित कुल 41 सदस्य अपराधिक मामलों में आरोपित हैं. आरोपित विधायकों में बीजेपी के 12, झामुमो के 12, कांग्रेस के 7, राजद के 4, सीपीआइएमएल के दो विधायकों के अलावा जदयू, लोजपा, आजसू व जेएलकेएम के एक-एक विधायक शामिल हैं.
बाबूलाल ने आगे कहा, “जिस मामले (एक कंपनी की गाड़ी को आग लगाना) में पुलिस सूर्या हांसदा की तलाश कर रही थी, उस मामले की एफआईआर किसी ने नहीं कराई थी, खुद पुलिस ने 27 मई 2025 को एफआईआर दर्ज की थी. यहां तक कि वो उसमें नामजद भी नहीं थे. बाद में पुलिस ने उनका नाम जोड़ा.’’
जांच समिति में शामिल पूर्व विधायक भानूप्रताप शाही ने दावा किया, “सूर्या के शरीर के कई हिस्सों में करंट के निशान थे. इससे साफ है कि उसे थर्ड डिग्री दी गई थी और उसी दौरान उसकी मौत हो गई थी. इसे बस एनकाउंटर का रूप दिया गया है क्योंकि पुलिस ने एनकाउंटर के बाद किसी को उस स्थल पर जाने नहीं दिया. जब डेड बॉडी पुलिस लेकर चली गई, स्थानीय लोग उस जगह पर पहुंचे तो वहां के एक बूंद भी खून का निशान नहीं था.’’
बीजेपी सहित पूरा विपक्ष इस मामले को लेकर चालू विधानसभा सत्र में हमलावर है. वो सीबीआई जांच की मांग कर रही है. जबकि सरकार ने सीआईडी जांच के आदेश दिए हैं.
जाहिर है, जिस झारखंड पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप लग रहे हैं, उसे ही जांच का जिम्मा दिया गया है. ऐसे में जांच के परिणाम पर सवाल उठना ही है.