
बीता चार साल झारखंड में बाबूओं के लिए कुछ सुखद अनुभव नहीं रहा है. उनकी ओर से किए गए तथाकथित भ्रष्टाचार और फिर इन करतूतों पर उनकी गिरफ्तारी देशभर में चर्चा का विषय बनती रही है. आलम ये है कि हेमंत सोरेन के कार्यकाल में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अब तक चार अधिकारी गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं. ये वो अधिकारी हैं, जिनकी तूती प्रशासनिक हलकों में खूब बोलती रही. अब इन्हें कभी ईडी तो कभी एसीबी गिरफ्तार कर रही है.
इस कड़ी में सबसे पहले हालिया गिरफ्तारी पर आते हैं. बीते 17 जून को पूर्व आईएएस अधिकारी और उत्पाद कमिश्नर रहे अमित प्रकाश को राज्य भ्रष्टाचार निरोधक इकाई (एसीबी) ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उन पर आरोप है कि साल 2022 में बनी नई शराब नीति में हेरफेर कर राज्य सरकार को 38 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व का नुकसान पहुंचाया.
आरोप है कि दो कंपनियों द्वारा फर्जी बैंक गारंटी देने के कारण सरकार को 38 करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है. इन अधिकारियों ने नीति में बदलाव कर एक सिंडिकेट को फायदा पहुंचाया, जिसमें शराब की आपूर्ति और मैनपावर सप्लाई के टेंडर में हेराफेरी की गई. छत्तीसगढ़ में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद रांची एसीबी ने भी मामले में वर्ष 2024 में प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की थी. आरोप सही पाए जाने पर घोटाले को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है.
बीते 20 मई को पूर्व उत्पाद आयुक्त और सीएम हेमंत सोरेन के आप्त सचिव यानी पीएस रहे आईएएस विनय चौबे को इसी शराब नीति घोटाले मामले में एसीबी ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है. इस मामले में राज्य सेवा के भी तीन अधिकारी गिरफ्तार हो चुके हैं. चर्चा ये भी है कि शराब नीति मामले में कुछ और अधिकारी जेल जा सकते हैं.
इससे बाद सेना जमीन घोटाले मामले में रांची के जिलाधिकारी रहे छवि रंजन भी इस वक्त जेल में हैं. छवि रंजन पर रांची के उपायुक्त रहते राजधानी रांची में सेना की जमीन की खरीद-बिक्री मामले में गड़बड़ी का आरोप लगा. ईडी ने उन्हें 4 मई 2023 को गिरफ्तार किया था. उन पर आरोप है कि उन्होंने रांची के बरियातू स्थित सेना की जमीन के कागजात में हेरफेर करने वालों की मदद की. उन पर रांची के ही चेशायर होम रोड स्थित जमीन घोटाला का भी आरोप है. मामलों की जांच चल रही है.
सबसे पहले मनेरगा घोटाले में सचिव स्तर की अधिकारी पूजा सिंघल को जेल भेजा गया. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें 11 मई 2022 को गिरफ्तार किया था. इसके पहले उनके 25 ठिकानों पर छापेमारी हुई. पूजा सिंघल के सीए के आवास और कार्यालय पर भी छापे पड़े. इसमें ईडी को 19.31 करोड़ रुपए नकद मिले. बीते 7 दिसंबर 2024 को पूजा सिंघल को जेल से रिहा कर दिया गया. इसके बाद सरकार ने उनका निलंबन खत्म करते हुए उनकी पोस्टिंग कर दी. वर्तमान में वे आईटी सचिव हैं. साल 2000 बैच की आईएएस पूजा सिंघल करीब 28 महीने तक जेल में रहीं.
राज्य बनने के बाद से अब तक कुल 6 आईएस अधिकारी जेल जा चुके हैं. इन चारों से पहले पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती और आईएएस प्रदीप कुमार भी भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जा चुके हैं.
बिना वेतन के काम कर रहे डीजीपी
राज्य के डीजीपी अनुराग गुप्ता बीते 30 अप्रैल को रिटायर हो गए. जब वे अप्रैल में रिटायर होनेवाले थे, उससे पहले राज्य सरकार ने पहली बार डीजीपी नियुक्ति नियमावली बनाकर उन्हें सेवा विस्तार दे दिया. राज्य सरकार का कहना है कि पुलिसिंग राज्य का विषय है, ऐसे में उसे अधिकार है किसे डीजीपी रखा जाए. राज्य नियमावली के मुताबिक डीजीपी को दो साल का टर्म दिया गया है. उसी नियमावली के आधार पर अनुराग गुप्ता के दो साल के सेवा विस्तार संबंधित जानकारी राज्य सरकार ने केंद्र को भेजी.
केंद्र सरकार ने भी डीजीपी अनुराग गुप्ता के अवधि विस्तार को नहीं माना है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 22 अप्रैल 2025 को ही राज्य सरकार को पत्र लिखकर बता दिया था कि अनुराग गुप्ता 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो जाएंगे.
दरअसल किसी भी आईएएस या आईपीएस के पदस्थापन संबंधित जानकारी संबंधित राज्य के महालेखाकार के कार्यालय में दी जाती है. यही वजह है कि महालेखाकार (कैग) के रिकॉर्ड में भी डीजीपी अनुराग गुप्ता 30 अप्रैल 2025 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं. दिलचस्प है कि पूरे माह काम करने के बावजूद उन्हें मई का वेतन नहीं मिला है.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब अनुराग गुप्ता विवादों में आए हैं. रघुबर दास की सरकार में भी इनका खूब बोलबाला रहा. उस दौरान वे सीआईडी के मुखिया में थे. उनके ऊपर साल 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान बीजेपी प्रत्याशी को वोट देने के लिए एक विधायक को लालच और धमकी देने का आरोप लगा था. साल 2017 में विधायक और अनुराग गुप्ता के बीच बातचीत की सीडी पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी ने जारी की थी.
इसके बाद साल 2019 में रघुबर दास की सरकार जाते ही सीएम हेमंत सोरेन ने फरवरी 2020 में अनुराग गुप्ता को सस्पेंड कर दिया था. मामले में चार्चशीट दायर नहीं हुई और फिर जून 2022 में उन्हें विभागीय कार्रवाई से मुक्त कर दिया गया. इसके बाद वे फिर हेमंत सोरेन के करीबी हो गए.
साल 2024 के अगस्त महीने में हेमंत ने तत्कालीन डीजीपी अजय कुमार सिंह को हटाकर अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाया. ठीक दो महीने बाद आचार संहिता लगी और चुनाव आयोग ने गुप्ता को डीजीपी पद से हटा दिया. नवंबर 28 तारीख को हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह के तत्काल बाद फिर से अनुराग गुप्ता को डीजीपी बना दिया गया.

अब मामले में राजनीतिक रंग ले लिया है. एक बार फिर नेता प्रतिपक्ष और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी वर्तमान डीजीपी के मामले को हाईकोर्ट लेकर चले गए हैं. गुप्ता इस वक्त डीजीपी के अलावा एसीबी, सीआईडी के प्रभार में भी हैं.
इस मामले पर बाबूलाल मरांडी कहते हैं, "डीजीपी अनुराग गुप्ता अब न अखिल भारतीय सेवा में हैं, ना सस्पेंड हो सकते हैं, ना उनपर कोई विभागीय कार्रवाई लागू होती है, ना तो उन्हें वेतन मिल रहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आप उनका वेतन रोक सकते हैं. लेकिन पुलिस विभाग के सारे तुगलकी आदेश वही दे रहे हैं. सिपाहियों तक की ट्रांसफ़र-पोस्टिंग कैसे ले-देकर हो रही है? पता कर लीजिये. कोई नहीं बताये तो हमें कॉल कीजिएगा, विस्तार से सब बता देंगे.’’
वहीं बीजेपी के गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे कहते हैं, "अखिल भारतीय अधिकारी होने के कारण पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता जी को केन्द्र सरकार सेवानिवृत्त मानती है और वेतन बंद कर दिया है. तो क्या अनुराग गुप्ता को खुद से पद नहीं छोड़ना चाहिए? मेरा मानना है कि विनय चौबे मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव की तरह ही झारखंड में अनुराग गुप्ता को ठिकाने लगाने की तैयारी है. वैसे भी खुला खेल फर्रुखाबादी है.’’
हेमंत सोरेन का जेपीएससी के अधिकारियों पर अधिक भरोसा
हेमंत सोरेन के पहले कार्यकाल (2019-24) में ये चर्चा आम थी कि यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) से चुनकर आए अधिकारी हेमंत सरकार की नहीं सुनते. इसकी वजह ये भी थी कि सरकार के अधिकतर मंत्री कामकाज और योजना बनाने के मामले में पूरी तरह इन अधिकारियों पर निर्भर रहे. मंत्रियों की इसी कमजोरी का फायदा नौकरशाह उठाते रहे. हालात ये रहे कि कई सारी योजनाओं का क्रियान्वयन हेमंत सोरेन के मुताबिक नहीं हो सका, जैसा कि वो चाहते थे. इस दौरान उन्हें ये भी लगता रहा कि ईडी को इनपुट देने में यूपीएससी कैडर के अधिकारियों का भी हाथ है.
इस बात को भांपते हुए कार्यकाल के आखिरी साल में हेमंत सोरेन ने झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जेपीएससी) के अधिकारियों पर अधिक भरोसा जताया. कई अधिकारियों को प्रमोट कर उन्हें आईएएस-आईपीएस बनाया और प्रमुख विभागों और जिलों में पदस्थापित किया. इसमें रांची के एसएसपी चंदन सिन्हा को पहले प्रमोट कर आइपीएस बनाया. उन्हें डीआईजी में भी प्रमोशन मिला. उनकी पत्नी कंचन सिन्हा को भी आईएएस में प्रमोट किया गया.
23 जुलाई 2023 में झारखंड पुलिस सेवा के 24 पुलिस पदाधिकारियों को भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में प्रोन्नति मिली थी. तत्कालीन मुख्य सचिव सुखदेव सिंह ने प्रोन्नति पाने वाले पदाधिकारियों से कहा था कि 24 पुलिस पदाधिकारियों को एक साथ आईपीएस में प्रोन्नति देने वाला झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है. झारखंड में 158 आईपीएस के पद निर्धारित हैं. जिसमें से 110 पद सीधे यूपीएससी से रिक्रूट होते हैं, वहीं 48 पदों पर राज्य पुलिस सेवा के पदाधिकारी प्रोन्नत होकर आईपीएस सेवा में शामिल होते हैं.