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वामपंथी रुझान वाले जावेद अली क्यों बने ‘इंडिया’ गठबंधन में सपा का चेहरा

गैर-विवादित और साफ-सुथरी छवि वाले जावेद अली खान को समाजवादी पार्टी ने 2022 में दोबारा राज्यसभा भेजा था

समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद जावेद अली खान
समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद जावेद अली खान
अपडेटेड 5 सितंबर , 2023

विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ की मुंबई में हुई दो दिवसीय बैठक के दौरान जब समन्वय एवं रणनीतिक समिति की घोषणा हुई तो इसमें यूपी से सबसे चौंकाने वाला नाम जावेद अली खान का था. गठबंधन के घटक दलों के दिग्गज नेताओं के साथ सपा की तरफ से समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी पाने वाले जावेद का नाम इस लिए भी जिज्ञासा पैदा करने वाला था क्योंकि यह ‘इंडिया’ की मुंबई बैठक में शामिल नहीं हुए थे. 

राजनीतिक रूप से भी जावेद का नाम सपा की बदलती रणनीति की ओर इशारा करता है क्योंकि अभी तक सपा में मुस्ल‍िम चेहरे के रूप में आजम खान को ही आगे रखा जाता रहा है. 61 साल के जावेद अली खान की पहचान सपा के गैर विवादित और साफ सुथरी छवि वाले नेताओं में होती है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि  जावेद को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी मिलने का मतलब है कि मुसलमानों को लेकर सपा की रणनीति बदल रही है.

मेरठ विश्वविद्यालय से रिटायर प्रोफेसर अब्दुल बासित बताते हैं, “सपा वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे किसी नेता को आगे नहीं बढ़ाना चाहती जो अपने बयान या अन्य किसी तरीके से विवादों में आ जाए. और इसका फायदा भाजपा को मिले. जावेद की छवि एक गैर विवादित नेता की है. जावेद अली को महत्पूर्ण जिम्मेदारी देने का संकेत यही मिलता है कि अब पश्च‍िमी यूपी में यही मुस्ल‍िमों के बीच पार्टी का चेहरा भी होंगे.” 

जावेद अली खान संभल जिले के बहजोई क्षेत्र के मिर्जापुर नसरुल्लाहपुर गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता अशफाक अली खान दिल्ली के एंग्लो-अरैबिक स्कूल में टीचर थे. यह स्कूल दिल्ली के सबसे पुराने स्कूलों में से है. जावेद अली की प्रारंभिक शिक्षा बहजोई के स्कूल में ही हुई. इसके बाद वो उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आए और जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली में एडमिशन ले लिया. 

जामिया से जावेद अली ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. इसके बाद ग्रेजुएशन रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से किया और उस्मानिया यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में प्राइवेट मास्टर्स किया. छात्रजीवन में पढ़ाई के साथ जावेद अली का रुझान राजनीति की ओर भी हुआ. छात्र जीवन के दौरान जावेद कम्युनिस्ट पार्टी की स्टूडेंट विंग आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के एक्ट‍िविस्ट थे. जावेद 1984 में छात्रसंघ के महांमत्री निर्वाचित हुए. युवा काल के उत्तरार्ध में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की यूथ विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे. वर्ष 1994 में जब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे उस वक्त प्रदेश में कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन विधायक और पार्टी के सचिव मित्रसेन यादव के नेतृत्व में रामचंद्र बख्श सिंह व कई अन्य नेताओं ने समाजवादी पार्टी (सपा) की सदस्यता ग्रहण की थी. इन्हीं नेताओं में एक नाम जावेद अली खान का भी था. 

इसके बाद से लगातार जावेद सपा में हैं. वर्ष 2006 में मुरादाबाद जिले में सपा के जिलाध्यक्ष रहे. इस वक्त संभल जिला मुरादाबाद से अलग नहीं हुआ था. इससे पहले जावेद सपा के प्रदेश सचिव थे. इस वक्त सपा की प्रदेश कार्यकारिणी में केवल छह सचिव और चार महासचिव हुआ करते थे. जावेद को अपनी पहली चुनावी जंग में हार का सामना करना पड़ा था. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में जावेद ने मुरादाबाद की ठाकुरद्वारा सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन शि‍कस्त झेलनी पड़ी. 

वर्ष 2011 से वे लगातार सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. जावेद अली की पहचान सपा के ऐसे नेता के रूप में रही है जिन्होंने पार्टी के हर आदेश को बिना किसी हिचक के माना. इसकी बानगी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखी थी. सपा ने काफी पहले जावेद को संभल लोकसभा सीट से पार्टी का प्रत्याशी घोषि‍त कर दिया था. जावेद ने लोकसभा क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दिनरात एक कर दिया था. चुनाव के ठीक एक महीना पहले सपा ने जावेद का टिकट काटकर शफीकुर्रहमान बर्क को उम्मीदवार बना दिया. जावेद के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था. इसके बावजूद जावेद न केवल पार्टी में बने रहे बल्क‍ि बर्क के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया. 

लोकसभा चुनाव में शफीकुर्ररहमान बर्क भले ही कम अंतर से चुनाव हार गए हों लेकिन जावेद ने खुद को सपा के एक अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में साबित कर दिया. इसका पुरस्कार भी जावेद को मिला. पार्टी ने वर्ष 2014 में जावेद को राज्यसभा भेजा. वर्ष 2020 में राज्यसभा में पहला कार्यकाल पूरा करने के बाद सपा ने वर्ष 2022 में दोबारा जावेद को राज्यसभा भेजा. अब्दुल बासित बताते हैं “राज्यसभा सदस्य होने के नाते जावेद पर खुद कोई चुनाव लड़ने का दबाव नहीं होगा. ऐसे में वे सपा की ओर से इंडिया गठबंधन सहयोगियों के बीच समन्वय स्थापित करने का काम आसानी से कर सकेंगे.” अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में सपा और ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगियों के बीच रिश्ते कितने सौहार्द्रपूर्ण रह पाते हैं? यह जावेद अली खान की राजनीतिक और समन्यव क्षमता पर भी निर्भर करेगा.

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