जयपुर शहर में पिछले एक माह से एक अनूठा आंदोलन चल रहा है. राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम (रीको) और 'डोल का बाढ़' बचाओ कम्युनिटी के बीच जंगल को उजाड़ने और बचाने की लड़ाई चल रही है. रीको 2500 पेड़-पौधों वाली जगह 'डोल का बाढ़' को उजाड़ने की तैयारी में जुटा है, वहीं शहर के पर्यावरण प्रेमी इसे किसी भी कीमत पर बचाने के लिए डटे हैं. अमूमन हर रोज रीको के बुलडोजर इस क्षेत्र में आते हैं. उनके वहां पहुंचने के साथ ही पर्यावरण प्रेमी यहां आ जाते हैं और बुलडोजरों के सामने लेट जाते हैं. दिनभर दोनों पक्षों के बीच खूब वाद-विवाद चलता है और शाम को बुलडोजर वापस लौट जाते हैं. पिछले एक माह से रोज यही क्रम चल रहा है.
डोल का बाढ़ जयपुर एयरपोर्ट से डेढ़ किलोमीटर दूर करीब 2500 पेड़ों से भरा 40 एकड़ में फैला वन क्षेत्र है. इसमें 74 प्रजातियों की चिड़ियों सहित करीब 150 तरह के पशु-पक्षियों का बसेरा है. रीको इसे अपनी जमीन मानते हुए यहां फिनटैक पार्क बनाना चाहता है तो शहर के पर्यावरण प्रेमी इस जमीन पर बायोडायवसिर्टी पार्क बनाए जाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. दिलचस्प ये है कि जयपुर शहर के छोटे से क्षेत्र की यह लड़ाई राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई है. पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री मेनका गांधी, एमआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी से लेकर पर्यावरणविद् मेधा पाटकर तक जयपुर के लोगों की इस मुहिम में जुड़ चुके है. मेनका गांधी और ओवैसी ने इस जंगल को बचाने के लिए ट्वीट किया. वहीं मेधा पाटकर ने पर्यावरण प्रेमियों के बीच पहुंचकर उनकी लड़ाई में योगदान दिया. मेधा पाटकर ने कहा, ‘‘ऑक्सीजन किसी प्लांट या कंसंट्रेटर से नहीं, इन्हीं जंगलों से मिलती है. अगर ये जंगल ही नष्ट कर दिए तो लोगों की सांसें घुटने लगेंगी. सरकार को खुद आगे आकर इस जंगल का संरक्षण करना चाहिए.’’
जयपुर के करीब 7000 लोग डोल का बाढ़ बचाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम ज्ञापन पर अपने हस्ताक्षर कर चुके हैं. शहर के पर्यावरण प्रेमियों ने फिनटैक पार्क की जगह यहां बायोडायवर्सिटी पार्क बनाए जाने की मांग की है. इनकी ओर से जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसमें सामुदायिक सहभागिता के आधार पर बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन, क्लाइमेट चेंज म्यूजियम और एनवायरमेंट स्कूल बनाए जाने की बात कही है.
स्थानीय निवासी शौर्य गोयल का कहना है, ‘‘बायोडायवर्सिटी पार्क बनाए जाने से यहां की प्राकृतिक संपदा और पशु-पक्षी सुरक्षित रहेंगे तथा आवासीय इलाके का वातावरण भी साफ रहेगा. नेशनल ग्रीन गाइडलाइन के अनुसार प्रति व्यक्ति 9 वर्गमीटर तक ग्रीन एरिया होना चाहिए लेकिन जयपुर शहर में यह सिर्फ 2.25 वर्गमीटर ही है. ऐसे में सरकार को इस गाइडलाइन का पालन करते हुए जंगल को उजाड़ने की जगह बचाना चाहिए. विकसित देशों में तो ग्रीन एरिया 30 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक है.’’
मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव का कहना है, ‘‘आवासीय कॉलोनियों के बीच में स्थित इस ग्रीन बेल्ट को उजाड़ना ठीक नहीं है. सरकार को अपनी जिद छोड़कर फिनटेक पार्क को शहर के किसी अन्य इंडस्ट्रीयल एरिया में शिफ्ट कर डोल का बाढ़ की इस जमीन को बायोडायवर्सिटी पार्क के रूप में विकसित करना चाहिए.’’
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2021-22 के बजट में आईटी और वित्तीय कंपनियों के लिए द्रव्यवति नदी के किनारे करीब 4 लाख 8 हजार वर्गमीटर जमीन पर फिनटेक पार्क बनाए जाने की घोषणा की थी. सरकार का तर्क था कि इस पार्क से प्रदेश में 3000 करोड़ रुपए का निवेश आएगा.
उद्योग विभाग के सचिव आशुतोष पेडनेकर के अनुसार, ‘‘फिनटेक पार्क के लिए सरकार 106 करोड़ रुपए खर्च कर सड़क और पार्किंग, स्ट्रीट लाइट, पानी, बिजली, पार्क, सामुदायिक सुविधाएं, सार्वजनिक उपयोगिता क्षेत्र विकसित करेगी. परियोजना के तहत लगभग 55 फीसदी जमीन वाणिज्यिक भूखंडों और कारखाने के लिए समर्पित है.’’
भूमि अधिग्रहण कानून 1953 के तहत साल 1970 से लेकर 1982 तक सरकार ने 591 बीघा और 17 बिस्वा जमीन किसानों से अधिग्रहित की थी. फिर इस जमीन को रीको को सौंप दिया गया. रीको ने 1988 में यह जमीन डायमंड और जेम डवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को लीज पर जेम इंडस्ट्री की स्थापना के लिए दे दी. शर्तों के तहत जेम्स इंडस्ट्री का कार्य शुरू नहीं किए जाने के कारण 1996 में इस लीज को रद्द कर दिया गया. लीज धारक कंपनी रीको के खिलाफ कोर्ट में पहुंच गई. हाईकोर्ट ने 2000 में फिर से लीज उनके पक्ष में जारी करने का फैसला सुनाया. इसके बाद रीको ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में फैसला रीको के पक्ष में दिया. इसके सात साल बाद 2021 में सरकार ने इस जमीन पर फिनटेक पार्क बनाए जाने की घोषणा कर दी.
सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र सिंह का कहना है, ‘‘जयपुर शहर के 2025 के मास्टर प्लान में इस जमीन का उपयोग आवासीय श्रेणी में दर्शाया गया है. अगर मास्टर प्लान को माना जाता है तो रीको इस पर औद्यौगिक क्षेत्र विकसित नहीं कर सकता है. इसी तरह डोल का बाढ़ क्षेत्र द्रव्यवती नदी के किनारे पर है और हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत कैचमेंट एरिया के पास किसी भी तरह का निर्माण प्रतिबंधित है. गुलाब कोठारी प्रकरण में हाईकोर्ट ने औद्योगिक क्षेत्र को शहर से बाहर विकसित करने के निर्देश दिए हैं, इस कारण भी यहां किसी तरह की इंडस्ट्री की स्थापना नहीं हो सकती है.’’